तुर्कमेनिस्तान के साथ गैस की बिक्री और खरीद समझौते (जीएसपीए) पर 23 मई, 2012 को हस्ताक्षर होने के साथ ही भारत ने ऊर्जा सुरक्षा की दिशा में एक बड़ा कदम आगे बढ़ाया है। इससे गाल्कीनीश क्षेत्र से प्राकृतिक गैस लाने का सपना हकीकत में बदल जाएगा। इस क्षेत्र को इससे पहले तुर्कमेनिस्तान में साउथ लोलोतन क्षेत्र के नाम से जाना जाता था। गैस अफगानिस्तान में हैरात और कंधार तथा पाकिस्तान में मुल्तान और क्वेटा के रास्ते भारत में फाजिलका तक 1700 किलोमीटर लम्बे तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत, (टीएपीआई) पाइप लाइन के जरिये आएगी। इस पर काम 2018 तक पूरा हो जाएगा। पाइप लाइन से प्रतिदिन 9 करोड़ मीट्रिक स्टेंडर्ड क्यूबिट मीटर, (एमएमएससीएल) गैस गुजर सकेगी। इसमें से अफगानिस्तान को 14 एमएमएससीएम और पाकिस्तान तथा भारत को 38-38 एमएमएससीएम गैस मिल सकेगी। अमरीकी विदेश विभाग के ऊर्जा सलाहकार डेनियल स्टीन ने इस वर्ष मार्च में एक व्याख्यान में जानकारी दी थी कि इस पाइप लाइन पर 10 से 12 अरब डॉलर लागत आएगी। इसके अलावा गैस क्षेत्र के विकास पर 10 अरब डॉलर खर्च होंगे।
समझौते पर भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी, भारतीय गैस प्राधिकरण तथा तुर्कमेनिस्तान की राष्ट्रीय तेल कंपनी, तुर्कमेनगाज़ के बीच हस्ताक्षर किये गये। भारत के पेट्रोलियम मंत्री श्री जयपाल रेड्डी इस अवसर पर तुर्कमेनिस्तान के अवाज़ा में मौजूद थे। बाद में वहां तीसरी तुर्कमेनिस्तान गैस कांग्रेस को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, ”भारत के लिए जीएसपीए पर हस्ताक्षर होना कोई सामान्य घटना नहीं है। हालांकि कुछ लोग जीएसपीए को महज एक ठेका सम्बन्धी दस्तावेज समझ सकते हैं, भारत के लिए यह विशेष जीएसपीए बहुपक्षवाद, क्षेत्रीय सहयोग और आर्थिक एकीकरण की विजय है।” श्री रेड्डी ने तुर्कमेनिस्तान, अफगानिस्तान और पाकिस्तान के पेट्रोलियम मंत्रियों को इस परियोजना के साकार करने की दूरदर्शिता के लिए बधाई दी और आशा व्यक्त की कि टीएपीआई गैस पाइप लाइन इस क्षेत्र की राजनीति को बदल देगी और आर्थिक एकीकरण को सुदृढ़ करेगी। उन्होंने कहा कि इस पाइप लाइन के फायदों से चारों देश व्यापार और निवेश के मुद्दों पर जोर देने के लिए प्रेरित होंगे और उनमें पड़ोसियों और सहयोगियों के रूप में विश्वास कायम होगा।
भारत 24 अप्रैल, 2008 को टीएपीआई परियोजना में उस वक्त शामिल हुआ था, जब पाकिस्तान-भारत और अफगानिस्तान ने तुर्कमेनिस्तान से प्राकृतिक गैस खरीदने केलिए एक समझौते की रूपरेखा पर हस्ताक्षर किये थे। इसके बाद पाइप लाइन पर अंतरसरकारीय समझौते पर तुर्कमेनिस्तान की राजधानी एशगाबात में 11 दिसम्बर, 2010 को हस्ताक्षर किये गये। तत्पश्चात पारगमन शुल्क के बारे में भारत और पाकिस्तान ने इस वर्ष 16 मई तक अफगानिस्तान के साथ समझौता वार्ता की। जब अफगान संसद के ऊपरी सदन, मेशरानो जिरगा ने पारगमन शुल्क प्रस्तावों को मंजूरी दे दी। जिरगा ने अफगान क्षेत्र से गैस के प्रवाह की इजाजत देने के लिए 50 सेंट प्रति मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट, (एमएमबीटीयू) पारगमन शुल्क तय किया। अगले दिन भारत सरकार ने गैस प्राधिकरण, गेल को अफगानी और पाकिस्तानी सहयोगियों के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने की हरी झंडी दे दी। यह फैसला किया गया कि गैस के लिए ढुलाई शुक्ल, पाइप लाइन के रख-रखाव के लिए एक संकाय के बन जाने के बाद तय किया जाएगा। इसके अलावा पारगमन शुल्क और पाइप लाइन के निर्माण के दौरान आने वाली सुरक्षा चुनौतियों के बारे में लम्बे समय तक विचार-विमर्श किया गया।
एक बार पाइप लाइन का निर्माण कार्य पूरा होने पर टीएपीआई परियोजना में शामिल सभी चारों देशों को काफी फायदा होगा। इस पाइप लाइन से भारत और पाकिस्तान को अपनी गैस आपूर्ति का विस्तार करने में मदद मिलेगी। भारत को इससे फायदा होगा, क्योंकि भारतीय सीमा में गैस का सुपुर्दगी मूल्य 10-12 प्रति एमएमबीटीयू डॉलर होता है, जबकि जहाजों से आयात की जाने वाली तरल गैस (एलएनजी) का मूल्य 16 प्रति एमएमबीटीयू प्रति डॉलर होता है। तुर्कमेनिनिस्तान को इससे फायदा होगा, क्योंकि वह 2030 तक वार्षिक गैस निर्यात को तिगुना करके 180 अरब क्यूबिक मीटर तक ले जाना चाहता है। अपने निर्यात बाजार को बढ़ाने के लिए उसकी अपने परंपरागत सहयोगी रूस पर नजर है। अफगानिस्तान को प्रतिदिन 14 एमएमएससीएम गैस मिलने के अलावा, प्रति वर्ष एक करोड़ 80 लाख डॉलर पारगमन शुल्क के रूप में मिलेंगे। बदले में वह अपनी जमीन से गुजरने वाली 733 किलोमीटर लम्बी पाइप लाइन को सुरक्षा प्रदान करेगा।
हालांकि चार देशों ने कल जीएसपीए पर हस्ताक्षर किये, तुर्कमेनिस्तान से गैस लाने का विचार काफी पुराना रहा है। जीएसपीए पर 30 वर्ष के लिए हस्ताक्षर किये गये हैं। साउथ लोलोतन क्षेत्र दुनिया का सबसे बड़ा क्षेत्र है, लेकिन ऊर्जा संसाधनों के लिए भारत की खोज अभी समाप्त नहीं हुई है। भारत का लक्ष्य 2050 तक दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का है, इसके लिए उसे अपने विकास की रफ्तार को बढ़ाना होगा। घरेलू ताप, पन और परमाणु ऊर्जा संसाधनों के दोहन के अलावा भारत 12वीं पंचवर्षीय योजना में 76,000 मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य हासिल करने के लिए अन्य देशों से तेल और गैस का आयात जारी रखेगा।
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*लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।
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