
आजकल हमारी खुफिया तंत्र भी केन्द्र सरकार की तरह अत्यंत सक्रिय है। जिस तरह से चुनाव-2014 को ध्यान में रखकर भारत की सरकार फटाफट संसद में जनता के लिए तोहफों की बौछार कर रही है, उसी तरह भारत के खुफिया तंत्र भी अतिवांछित इस्लामी आतंकियों को दनादन गिरफ्तार कर रही है। चाहे सत्तर के उम्र के पार करने वाला इस्लामी आतंकी अब्दुल करीम टुंडा हो या तीस वर्षीय यासीन भटकल। राजनीतिक दलों की विसात पर जन सुरक्षा की भावना का बाढ़ इन दिनों विभिन्न प्रांतों में आई बाढ़ की तरह हीं है? क्योंकि एक ओर जहां देश की अर्थव्यवस्था डांवाडोल है। रुपये सत्तर की उम्र को पार करने को आतुर है, वहीं म्यानमार भी चीन, पाकिस्तान व बंग्लादेश की नक्शे कदम पर चलते हुए मणिपुर के चंदेन जिले के मोरेह कस्बे के नजदीक भारतीय जमीन पर होलेनफई गांव में बाड़बंदी शुरु कर दी थी। इस देश की क्या तकदीर है? उपरोक्त उदाहरण ही काफी है। आर्थिक मोर्चों पर मिल रही लगातार शिकस्त एवं सीमा क्षेत्रों का लगातार हो रहा अतिक्रमण पर खुफिया तंत्रों द्वारा टुंडा और भटकल जैसे इस्लामी आतंकियों को दबोचना, दम तोड़ रही वर्तमान केन्द्र सरकार के लिए ऑक्सीजन की तरह है। इस जीवन रक्षक गैस के सहारे वर्तमान सरकार की सांसे कुछ लम्बी होती जाएगी और देष का प्रधानमंत्री चोर है का नारा देने बाले विपक्ष को भी एक संदेष है।

भारत की बिडम्बना है कि इस देश की सरजमी पर ही आतंकियों के रहनुमा तथाकथित सेकुलवादियों और मानवाधिकारवादियों का जमात इस तरह के आतंकियों के पैरोकार रहे हैं। खासकर तब जब देश वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव की ओर अग्रसर है और ऐसे दुर्दान्त राष्ट्र द्रोही शक्तियों पर कानूनी शिकंजा वक्त की नजाकत है। चूंकि अपने पड़ोसियों से त्रस्त भारत सदैव मार खाने को आदि रहा है। आज भी इस देश की बहुसंख्यक मानसिकता उसी परम्परा का पोषक है, जिसके कारण इस देश पर इस्लामी और चर्च का प्रहार हुआ। अपनी कायरता को ढ़ोता यहां का बहुसंख्यक आज सिकुड़ती भारत भूमि को इस मुकाम तक ले आया है। हर राजनीतिक दलों ने आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दों पर राजनीतिक रोटियां सेकती है। इन दलों ने वोटों के लिए हमेशा इस देश के मान-सम्मान को पैरों तले रौंदा और एक कायर हिन्दुस्तानी, पिटता हिस्दुतानी के स्वरूप को आगे बढ़ाता रहा। इस देश का शैक्षिक माहौल स्वाभिमानी हिन्दुस्तानी के बजाय गुलाम मानसिकता के हिन्दुस्तानी को उत्पन्न किया। फलस्वरूप इसी देश की मिट्टी में पला-बढ़ा, इसी देश से गद्दारी करना सीखा, किंतु खुद्दारी से कोसों दूर हुआ। आज आतंक के इस बबंडर में नेहरु- मार्क्स-मुल्ला और मैकाले के मानस पुत्रों की संलिप्ता के कारण हीं देष असुरक्षित है। राष्ट्रीय स्वाभिमान की शून्यता ने इस देश के युवाओं को आतंक की पाश्विकता की ओर मुड़ाआ।
राष्ट्रीय संवेदनाओं से मुक्त युवा वर्ग बाजारवाद और उपभोगवाद को गले लगाया। यह बाजारवाद और उपभोगवाद ने जिस व्यापारिक सोच को जन्म दिया वहां सिर्फ पैसा ही पैसा बोलता है। इन नव तथाकथित प्रगतिवादियों ने पैसों या डॉलरों के लोभ में ऐसा अंधा बन गया कि इसके नजर में राष्ट्र-राष्ट्रीयता, आत्मगौरव या स्वाभिमान ये सब प्रगति के बाधक है। फलतः इस देश के सरकार की नियत और नियति ने यहां के युवाओं को आतंकवाद की ओर ढकेला। समान नागरिक संहिता या समान कानून संहिता के अभाव में यह देश निरंतर अलगाववादियों का शरण स्थली बना रहा है। राष्ट्र धर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं, इसे नजरअंदाज कर फिरकापरस्तों और दहशतगर्दों की जमात के दबाव, जो नीतियों या संविधान की मूल भावना के विपरित कानून बने हुए हैं वह सिर्फ टुंडा और भटकल जैसे लोग को ही पैदा करने एवं पैसा बनाने की प्रेरणा देगा, यह कभी अशफाक उल्ला या अब्दुल कलाम जैसे देशभक्त बनने नहीं दे सकता। यहां कानून जब मत/ मजहब पर आधारित होगा तब आतंकवादी ही पैदा होंगे, जिहादी ही पैदा होंगे, राष्ट्रवादी पैदा होने का सवाल ही नहीं है। देश के संस्कार-संस्कृति और अपने पूर्वजों का परित्याग करने वाले लोग विदेशों की अपसंस्कृति को आत्मसात करेंगे और उस देश का कानून उन्हें इजाजत देगा वैसे में आप भारत में भारत के प्रति समर्पित पुत्र की आशा करेंगे यह दिवा स्वप्न है। जब भारतमाता को डायन कहने वाला आजम खान जैसा द्रोही इस देश की सत्ता चलाता हो, अपने आपको खूंखार आतंकी संगठन आईएसआई का एजेंट बताने वाला और अपराध के सैकड़ों आरोपों के बाद भी भारत की कानून को अंगुठा दिखाने वाला समाज द्रोही मुहम्मद बुखारी जैसा लोग अपने तकरीर से जिस कौम को हांकता हो, वैसे हालात भटकल और टुंडा जेसे लोग को ही पैदा करता है। भारत की संविधान की मूल भावना के विपरित यहां के अधिसंख्य कानून बने हैं और यही कानून बहुसंख्यकों को कायर और बुजदिल तो अल्पसंख्यकों को देशद्रोही बनने को मजबूर किया है। इसी सोच में तथाकथित सेकुलरवादियों और मानवाधिकार के ठेकेदारों ने आग में घी का काम किया। तीस्ता शीतलवाड़ जैसे देशद्रोही और अरुणघती रॉय जैसे डॉलरों के देशद्रेाही गुलामों ने हमेशा इस देश में विद्वेष की भावना का संचार कर आतंकवाद और नक्सलवाद जैसे कुकृत्यों को ही समर्थन किया। जहां बड़े-बड़े स्वनामधन्य बिकाऊ मीडिया दलालों ने इसे सत्य प्रमाणित करने का घृणित व राष्ट्रद्रोही कृत्य किया है एक तो केरला दूजा ए मीडिया वाले नीम चढ़ा से कम नहीं रहा है। आतंकवाद या नक्सलवाद की पौध को इस देश के समाजद्रोही कानून, तथाकथित बुद्धिजीवी वर्ग, धर्म के ठेकेदारों और मीडिया के रणकारों से खाद मिलती है तो विदेशी चर्चों, चन्दों और इस्लामी देशों से संरक्षण मिलता है। फलतः आतंकवाद भारत में फल-फूल रहा है। रक्तबीज की भांति फैलता आतंकवाद इन कुछ मोहरों को पकड़ने से नहीं बल्कि भारत सरकार को ‘रक्तबीज’ का नाश करने की छूटकारा पाया जा सकता है। इन रक्तबीज के नाश में इस देश में सबसे बड़ा रोड़ा उस देश की लोकतांत्रिक पद्धति को कैद में रखे हुए राजनीतिक दल है। राजनीतिक दल पतन के जिस दल-दल में पनप रहे हैं वहां कमल नहीं सिर्फ विषधारक कीड़े-मकोड़े ही पैदा कर रहा है। इसी सड़ाध में भारत भूमि पर टुंडा, अफजल, यासीन, मल्लिक…… जैसे सैकड़ों कीड़े-मकोड़े पैदा हो रहे हैं, पल रहे हैं और भारत माता को घायल कर रहे हैं। राजनीतिक पतन जहां आतंकवादियों के लिए वरदान है, वहीं देश द्रोहियों के लिए यह ऐशगाह है। जिसे विदेशी सरकारें अपने डॉलरों पर , अपने बीजा पर ,नचाती है और भारत लहुलूहान होती रही है।
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** लेखक- संजय कुमार आजाद, प्रदेश प्रमुख विश्व संवाद केन्द्र झारखंड एवं बिरसा हुंकार हिन्दी पाक्षिक के संपादक हैं।
**लेखक स्वतंत्र पत्रकार है *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।