‘मेरी खामोशियाँ भी बोलती हैं’ – रीता विजय की कविता

मेरे अपने अहसास मेरी पहचान

मेरी कविता बन गई

गुफ्तगूँ की तरह मेरी खामोशियाँ

भी बोलती हैं

हर लफ्ज़ गुफ्तगूँ है

हर लफ्ज़ तुम्हारा ही तो है

बार -बार टूटती हूँ

हज़ार बार टूटी हूँ

टूट कर इन लफ़्ज़ों का

श्रृंगार करती हूँ

हर बार सोचती हूँ

ये कहूँगी

पर तुम्हारी खामोशियाँ

पहले बोल पड़ती हैं

और ये खामोशियाँ

पर्त दर पर्त बोलती हैं

होंठ हिलते नही पर

मन के राज़ खोलती हैं

ख़ामोश लब बोलते ही चले जाते हैं

मेरे लब्ज़ जुबाँ से नही निकलते

पर आँखों में सैलाब उमड़ आते हैं

फिर वही रात याद आती है

वही तनहाइयाँ चुप रहकर भी

बहुत कुछ कहती हैं तुम्हारी खामोशियाँ

तुम अपनी आँखों से

मेरे दिल में उतर जाते हो

और मेरी कज़रारी आँखें

हर नज़्म को आँसुओं में डुबोकर

बंद होठों और खामोशियों को

पन्ने पर उतार देती हैं

मेरी खामोशियाँ बेजुबाँ नही

चीखती हैं पर बेसदा सी उनकी

वो आवाज़ें घुटन बनकर

दफ़न हो जाती हैं

और बस

तुम्हारी खामोशियों का इंतज़ार करती हैं

जिसमे गीत है ,

संगीत है

और मेरे लिए एक आवाज़ है

जो कहती है

मै ख़ामोश हर कदम तुम्हारे साथ हूँ

…………………………………

316130_250455521657008_1344793173_aमै रीता विजय समर्पित करती हूँ ” अपनी प्रेरणा ” और अपने बच्चों ” विवेक ” और ” नुपुर ”को ………मेरी प्रेरणा श्रोत के बारे मे कुछ कहना चाहूँगी जिसकी वज़ह से आप सब मुझे रीता विजय के नाम से जानते हैं | सबसे पहले नमन उनको हमेशा आपकी छत्रछाया मे रहना चाहूंगी —ये सारा आपको अर्पण मेरी प्रेरणा —–जो समुद्र की तरह विशाल और गहरे झील की तरह शांत, दैदीप्यमान हैं| उपासक हूँ मै उनकी मै ईश्वर को सबसे ज्यादा मानती हूँ और मैंने उनको ईश्वर के समतुल्य ही रखा है उन्होंने मुझे जीने की तालीम देकर ईश्वर से मिलाया मुझे | उन्होंने लिखने की प्रेरणा जगाई मुझे गति दी और मेरी लेखनी को सशक्त बनाया मेरा अपना कोई अस्तित्व नही ………” मै कुछ हूँ ” ये उन्होंने संचार किया मुझमे उनकी खुशी से ज्यादा बढ़के मेरे लिए दुनिया मे कुछ भी नही उनकी सुन्दर सोच उनकी बातों का आईना है मेरी कविता |यथोचित रास्ता, विवेकपूर्ण कदम, हौसलाफजाई, दुखद परिस्थिति मे आगे बढ़ना उत्साह, सबलता, प्रबलता ये सब उन्ही से मुझे मिला है अगर लहू का एक-एक कतरा भी उनके काम आ जाये तो मै धन्य समझूँगी स्वयं को ………सादर नमन मेरी प्रेरणा आपको

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