देख रहा है दुनिया पंछी, भूखा प्यासा पिंजरे का,
उधर साफ मौसम की चाबुक, इधर कुहासा पिंजरे का ।
क्यों मारा-मारा फिरता है, दर-दर दाने-दाने को,
पंख कटा कर तूभी खाले दूध-बताशा पिंजरे का ।
बाग, पेड़, घोंसला, पंख सब हार गए हम क्या करते,
जिसको देखो वही फेंक देता था पांसा पिंजरे का।
तुझ को मौका दिया गया या घर की पाली बिल्ली को,
खोल गया दरवाजा मालिक आज जरा सा पिंजरे का।
जंगल का राजा आया है जब से शहर कट घरे में,
भीड़ बजाए डर कर ताली, देख तमाशा पिंजरे का ।
_____________________________
_____________________________
प्रमोद तिवारी