पेटलावद हादसे के नैतिक ज़िम्मेदार शिवराज भी है ?

SANJAYROKDE,sanjayrokdeinvcnews– संजय रोकड़े –

अक्षम्य लापरवाही

जिन विस्फोटकों की मदद से सख्त चट्टानों और ठोस पत्थरों को तो क्या , उन्होंने हाड़-मांस के जीवित मनुष्यों के चिथड़े-चिथड़े उड़ा दिए। कागज के पुर्जों की तरह लोगों के शरीर हवा में बिखर गए। यह एक बेहद भयानक और भीतर तक हिला देने वाला दृश्य था। मध्यप्रदेश के झाबुआ जिले के एक छोटे और अपेक्षाकृत शांत कस्बे पेटलावद की एक सुबह मौत के तांडव में बदल जाएगी, ऐसी किसी ने कल्पना भी नहीं की थी। जिलेटिन की छड़ों से इतनी बड़ी दुर्घटना भारत में संभवत: पहली बार ही देखने में आई है। इस हादसे के तमाम बारीक ब्योरे तो खैर जांच पूरी होने के बाद ही जनता के सामने आ पाएंगे लेकिन जिस तरह से यह दुर्घटना घटी है, उसमें राजनेताओं की धन पाने की हवस व प्रशासनिक लापरवाही साफ-साफ दिखाई दे रही है। जिस धमाके की गूंज दिल्ली तक सुनाई दी हो और खुफिया ब्यूरो (आईबी) और एनआईए (राष्टीय जांच एजेंसी) की टीमें विस्फोट के कुछ ही समय बाद घटनास्थल पर मुआयना करने जा पहुंची हों, उसकी बू स्थानीय प्रशासन तक इससे काफी पहले ही भला क्यों नहीं पहुंच सकी थी? इस धमाके में पेटलावद के रहवासी इलाके में करीब दो सौ लोग अकाल मौत की भेंट चढ़ गए पर प्रशासन मौत के इन आंकड़ों को मानने की बजाय इनको कम बताने की जुगत में लगा हुआ है। 

ये पहली बार नहीं हुआ है। इस तरह के हादसे शासन-प्रशासन की लापरवाही के चलते कई दफा और कई जगह हो चुके है। हादसे के बाद लोंगों में इतना गुस्सा सवार था कि जब इस घटना का मौका ए मुआयना करने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पेटलावद पहुंचे तो पीडि़त लोगों ने उन्हें बीच रास्ते में ही घेर कर अपने गुस्से का इजहार किया। मुख्यमंत्री ने भी मौके की नजाकत को भांपते हुए बीच सडक़ पर ही बैठ कर उनकी पीढ़ा को सुनने लगे। इस दौरान मुख्यमंत्री ने स्थानीय लोगों के आक्रोश को देखते हुए छापामार कार्यवाही के आदेश भी दे दिए। हाथों-हाथ पेटलवाद हादसे के मुख्य आरोपी राजेंद्र कांसवा पर एक लाख रुपए का इनाम भी घोषित कर दिया। यह घोषणा खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। इस गंभीर हादसे में मुख्यमंत्री ने जांच के तुरंत आदेश देकर एक जांच आयोग भी बना दिया है ताकि लोगों के गुस्से को शांत किया जा सके। हालाकि क्षेत्र में सीएम की इस पहल का भी पुरजोर विरोध यह कह हो रहा है कि आखिर क्यों सरकार इस तरह गैर कानूनी धंधा करने वाले इंसानों पर अंकुश लगाने में विफल रही। जब से इलाके में यह हादसा घटित हुआ है आम इंसान के बीच चर्चा यही है कि गैर कानूनी कामों को अंजाम देने वालों को प्रश्रय भी इस शिवराज सरकार में खुब मिला है और वे इन पर अंकुश लगाने में फिसड्ड़ी साबित हुए है। लोगों के बीच चर्चाओं का मुद्दा यह भी है कि क्या अब भी शिवराज सरकार के कानों तक धमाकों की आवाज व आंखों तक इसकी धूल पहुंचेगी या नही। बेशक यह समूचे तंत्र की आपराधिक लापरवाही है।

एक ऐसी गंभीर चूक जो कभी सुधारी नहीं जा सकती है। यह बात आम है कि गैर-कानूनी काम करने वाले लोगों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है, जिसे नहीं होता वे जल्द ही किसी पार्टी की सदस्यता लेकर sanjayrokdeinvcnews,sanjayrokdeया चंदा देकर संरक्षण प्राप्त कर लेते हैं। ऐसा इतने विश्वास से इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि आरोपी पिछले 10 वर्षों से यूरिया गोदाम में अवैध तरीके से जिलेटिन रॉड रख रहा था। हादसे के बाद से चर्चाओं में यह भी है कि दोषी कौन है यह सबको पता है। केवल वह आदमी नहीं जिसने रहवासी इलाके में जिलेटिन रखा था बल्कि दोषी वे अधिकारी व राजनेता है भी है जिन्होंने लोगों की शिकायत के बाद भी कार्रवाई नहीं की। बता दे कि हादसे के बाद इलाके में एक अजीब सी दहशत पसर गई है। लोग अनचाहे खौफ से डरे -सहमें से है। जो धडकने हादसों की गवाह बनीं वे थमने का नाम नहीं ले रही हैं और जो दिल हादसे की वजह जान रहे हैं, वे थमे-थमे व थके-थके से है। जो लोग हादसे में तबाह हुए है उनके परिजन व्यवस्था की नाकामियों व सरकार की गैर कानूनी धंधों में लिप्त लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से प्रश्रय देने वाली नीतियों को जी-भर कर कोस रहे हैं।

इस जानलेवा हादसे में विस्फोट विशेषज्ञ शरद सरवटे ने विश्लेषण करते हुए यह अनुमान लगाया है कि पेटलावद में जिस तरह भीषण हादसा हुआ है उसे देख कर लगता है कि गोदाम में कम से कम 25 किलो बारूद रखा होगा। डेटोनेटर का एक पूरा बॉक्स होने की भी आशंका जाहिर की है। एक बाक्स मेंं लगभग 150 डेटोनेटर रखे हो सकते हैं। इसी गोदाम के अगले हिस्से में अमोनियम नाइट्रेट के बोरे रखे थे। विस्फोट के बाद अमोनियम नाइट्रेट से संपर्क में आया और बड़ा ब्लास्ट हो गया। शरद की माने तो डेटोनेटर फटने के बाद गोदाम व दुकान में रखे अमोनियम नाइट्रेट के कारण हादसे ने और बड़ा रूप ले लिया था। वे इस भीषण बलास्ट के लिए इस बात कि भी आशंका जाहिर करते है कि हो सकता है कि इसी जगह डीजल या पेट्रोल भी रखा हो। इस कारण अत्यधिक लोग मारे गए हैं।

पेट्रोलियम एंड एक्सप्लोसिव सेफ्टी ऑर्गनाइजेशन (पेसो) के अधिकारियों का कहना है कि पेटलावद में राजेंद्र कांसवा क्या किसी भी कारोबारी को डेटोनेटर या विस्फोटक सामग्री रखने का लाइसेंस जारी नहीं किया गया है, लेकिन झाबुआ जिला प्रशासन का कहना है कि पेटलावद में चार लाइसेंस जारी किए गए हैं। इनमें कांसवा का लाइसेंस भी शामिल है। यदि इसे सही मान भी लिया जाए तो इस बात का प्रशासन के पास कोई जवाब नहीं है कि रहवासी क्षेत्र में बारूद का जखीरा कैसे रखा गया था। प्रशासन के अधिकारी बचाव और राहत कार्य में लगे होने से जानकारी देने में बच रहे हैं। वे लाइसेंस को लेकर भी स्थिति साफ नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, 25 किलो से कम के एक्सप्लोसिव लाइसेंस जिला प्रशासन जारी करता है जिसका उपयोग आमतौर पर कुओं की खुदाई में ब्लासटिंग के लिए किया जाता है। इसका परिवहन ट्रैक्टर पर काम्प्रेशर के साथ किया जाता है। इससे अधिक क्षमता और मात्रा के विस्फोटक पदार्थ रखने के लाइसेंस पेसो जारी करता है। पेटलावद में बड़ी लापरवाही यह सामने आ रही है कि यदि जिला प्रशासन ने अपने अधिकार क्षेत्र के लाइसेंस जारी किए भी हैं तो उनके नियमों का पालन कोई लाइसेंसधारी नहीं कर रहा है। वे लाइसेंस की शर्तों को तोडक़र रहवासी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर विस्फोटक और डेटोनेटर का स्टॉक करके रखे हुए हैं। जिस भवन में कारोबारी राजेंद्र कांसवा ने डेटोनेटर रखे थे वहां इसे रखने की परमिशन ही नहीं थी। इसके बावजूद उस रहवासी और बस स्टैंड के पास के व्यस्त इलाके में विस्फोटक पदार्थ का भंडारण कैसे होता रहा।

shivrajsinghchauhan,sanjayrokde,invcnewsराजेंद्र कांसवा के पास डिटोनेटर रखने का लायसेंस था ही नहीं। स्थानीय नागरिकों के अनुसार लायसेंस उसके भाई झमकलाल के नाम पर था। बता दें कि झमकलाल 10 साल पहले ही डिटोनेटर फटने से मारा गया था। एमके झाला, डिप्टी चीफ कंट्रोलर, पेसो, भोपाल की माने तो उनकी तरफ से पेटलावद में किसी को लाइसेंस नहीं दिया गया था। वे बताते है कि पेसो की ओर से विस्फोटक सामग्री रखने का कोई लाइसेंस जारी नहीं किया गया है। राजेंद्र कासवा के नाम से भी कोई लाइसेंस नहीं है। इधर पेटलावद एसडीएम अशोक कुमार जाधव ने भी यह बात कह कर साफ जाहिर कर दिया है कि मैंने कोई एनओसी नहीं दी है। खासकर विस्फोटक के लाइसेंस को लेकर मेरे कार्यकाल में तो किसी को एनओसी जारी नहीं की गई है। जिले से चार लाइसेंस जारी होने की जानकारी मिली है। अभी बचाव के काम में लगा हूं और मुझे यहां आए हुए तीन-चार महीने ही हुए हैं इसलिए ज्यादा जानकारी नहीं है।

ये हालात प्रशासन और पुलिस की लापरवाही को उजागर करते हैं। एक बार लाइसेंस मिलने के बाद प्रशासन के नुमाइंदे यह देखने की जहमत भी नहीं उठाते कि लाइसेंसधारी विस्फोटक सामग्री का उपयोग कब, कैसे और कहां कर रहा है।

सनद रहे कि क्षेत्र में सस्ते बारूद के कारण अमोनियम नाइट्रेट का अवैध कारोबार बड़े स्तर पर होता है और इस अवैध धंधें में कथित तौर पर सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा से सरोकार रखने वाले लोग अधिक है। सनद रहे कि अमोनियम नाइट्रेट का उपयोग रासायनिक खाद में होता है, लेकिन कई लोग इसका उपयोग सस्ते बारूद के रूप में करने लगे हैं। इसी कारण इसका अवैध कारोबार भी खूब फल-फूल रहा है। हालाकि सरकार ने इसकी खुले तौर पर खरीदी-बिक्री पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन यह प्रतिबंध केवल कागजों में है।  पत्थर और अन्य खदानों में इसका उपयोग विस्फोट के लिए बड़े स्तर पर किया जा रहा ह वह भी बिना किसी लाइसेंस के। यह बात दिगर है कि इसके लिए बाकायदा लाइसेंस दिए जाते हैं।
बताया जाता है कि अमोनियम नाइट्रेट में डीजल या कोई ऑइल मिला दिया जाता
है तो यह बारूद का रूप ले लेता है। एक्सप्लोसिव डेटोनेटर महंगे होते हैं, इसलिए
कई विस्फोट कारोबारी सस्ते विकल्प के रूप में अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल करते हैं। पेटलावद के विस्फोट कारोबारी राजेंद्र कासवा के गोदाम में जिन बोरों को खाद बताया जा रहा है, वे अमोनियम नाइट्रेट के हो सकते हैं।

झाबुआ जिला आदिवासी बहुल क्षेत्र है जहां शिक्षित लोगों की संख्या कम है। पिछड़े और निर्धन होने के कारण यहां के लोग अपने अधिकारों की रक्षा करने में भी असमर्थ हैं। इस क्षेत्र में अवैध खनन का कारोबार भी जोरों पर चलता है , इसकी शिकायतें मुख्यमंत्री स्तर तक कई बार की जा चुकी हैं लेकिन कथित तौर पर अवैध धंधें में भाजपा से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नाता होने के चलते कोई ध्याान नही दिया गया। आदत में आ चुके अभाव के साथ जीने के आदी लोंगों व ऐसे इलाकों में आमतौर पर व्यवस्था जैसी कोई चीज नहीं होती। कोई कुछ बोलता नहीं, इसीलिए सुनने वालों ने भी अपने कानून बना लिए हैं। इन कायदों का आम आदमी से कोई सरोकार नहीं होता। और, जैसा कि ऐसे हादसों में होता है – जांच की घोषणा होती है, कागज बनते हैं, कागज चलते हैं, कागज बोलते भी हैं। लेकिन, ये कागजी कश्तियां किनारे के पहले कब और कहां डूब जाती हैं, ये कोई नहीं जानता और शायद पेटलावद हादसे का भी यही हश्र होने की आशंका जाहिर की जा रही है। इस हादसे में भी लोगों को न्याय की उम्मीद कम ही दिख रही है इसलिए भी स्थानीय लोगों में इस घटना को लेकर अत्यधिक आक्रोश है। बहरहाल  इस हादसे को दुर्घटना कहना गलत है इसे सामूहिक हत्याकांड की संज्ञा दी जानी चाहिए , क्योंकि अवैध खनन के कारोबार में लिप्त व्यापारी जिलेटिन जैसे विस्फोटक पदार्थ बड़ी आसानी से किसी भी स्थान पर बेरोकटोक यूं ही नहीं रख सकते। मध्यप्रदेश में विस्फोटक पदार्थ का लाइसेंस लेते समय कागज पर तो सारे नियम नजर आते हैं, लेकिन लाइसेंस लेने के बाद इन्हीं नियमों के परखच्चे उड़ाए जाते हैं। प्रशासन के अफसर यह देखने की जहमत नहीं उठाते कि विस्फोटक सामग्री का भंडारण और परिवहन किस तरह हो रहा है वहीं स्थानीय व प्रदेश के सत्तारूढ़ दल के नेताओं को इस बात से कोई मतलब नही है कि इलाके में कौन क्या अवैध करोबार कर रहा है, उन्हे तो सिर्फ और सिर्फ अपनी राजनीतिक रोटी सेकने व अवैध कारोबारियों से चंदा उगाही करने से फुर्सत नही मिलती है।

अवैध खनन से प्राप्त होने वाली कमाई का बड़ा हिस्सा नेता, मंत्रियों और प्रशासकीय अधिकारियों में भी बंटता हो तो आश्चर्य की बात नहीं है। इस हादसे ने सरकार के सामने सबसे बड़ा व यक्ष सवाल यह खड़ा shivrajsinghchauhan,sanjayrokde,invcnews,invcकर दिया है कि आखिर – मौत के मुखर मतलब निकालती ये दुकानें चल क्यों रही थीं? कौन थे जो इन्हें संरक्षण दे रहे थे? कौन है जो नियमों को मुंह चिढ़ाते हुए इन्हें चलवाता है? और, जब हादसा हो जाता है तो चुपके से जांच करने वालों में शामिल हो जाता है। सवाल तो और भी हो सकते हैं, बात हर बार भरोसे से भरे पुख्ता जवाबों पर आकर अटक जाती है और जनता हर बार की तरह न्याय के लिए तरसती रहती है। हालाकि इस तरह का यह हादसा पहला व आखिरी नही है। इसके पूर्व भी कसावा जैसे लोगों के लालच ने बेसहारा लोगों को अपना शिकार बनाया है और प्रदेश के अनेक इलाकों में आज भी कसावा जैसे हजारों -हजार लोग है जो अपने मतलब के लिए किसी की भी जान लेने की परवाह नही करते है। बता दे कि कुछ वर्षों पूर्व ही इंदौर के रहवासी इलाके राऊ स्थित पटाखा फैक्टरी में धमाके की वजह से कई निर्दोष लोगों ने अपनी जान गंवाई थी।

अब भी कई शहरों में गैस टंकियों से गैस चुराने का कारोबार रहवासी इलाकों में बदस्तूर जारी है इसके अतिरिक्त शायद ही ऐसा कोई व्यक्ति होगा जिसने घरेलू गैस सिलिंडर की गैस, कार में उपयोग करते लोगों को न देखा हो। ये सभी घटनाएं हमारी प्रशासनिक अमले व राजनेताओं की इच्छाशक्ति की अक्षमता और असंवेदनशीलता की दासतां सुनाने के लिए काफी हैं। इस तरह के हादसों के पीछे शासन व प्रशासन दोनों ही वर्ग के नुमांइदों का व्यक्तिगत लालच है। अब शिवराज सरकार को अब जागना ही होगा। कुछ हलचल हुई और सोते ही रहने के लिए बदनाम सियासत करवट बदल, कार्रवाई करने की बात करने लगी। तो क्या अब हम निश्चिंत हो सकते हैं कि अब ऐसा हादसा दोहराया नहीं जाएगा? शायद, इसलिए नहीं कि यह काफी पुराना और प्रामाणिक संदेह है कि सक्रिय सियासत ज्यादा दिन तक जागी नहीं रह पाती। सोती सरकार को जगाने की एक कोशिश पेटलावद में फिर हुई। यदि सचमुच में मुख्यमंत्री इस घटना के पीडि़तों की सहायता करना चाहते हैं तो अवैध खनन के कारोबारियों व अवैध धधों में लिप्त लोगों चाहे फिर वह भाजपा से सरोकार रखने वाले ही क्यों न हो उनकी नकेल कसना होगा अन्यथा पैटलावद का यह हादसा भी उन हादसों की तरह ही याद रखा जाएगा जिनमें पीडि़तों को आज जलक न्याय की दरकार है।

_____________________________

sanjayrokadeसंजय-रोकड़े11परिचय – :
संजय रोकड़े
पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक

लेखक पत्रकारिता से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से लेखन करते है।

संपर्क -:
निवास – : 103 देवेन्द्र नगर अन्नपूर्णा रोड़ इंदौर ,  मो- :  09827277518 ,  ईमेल – :  mediarelation1@gmail.com

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his  own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here