कानून मंत्री डॉ. आंबेडकर ने देश को संविधान दिया,गृहमंत्री वल्लभभाई पटेल को पांच सौ से भी अधिक रियायतों को भारत में मिलने के लिए याद किया जाता है वहीं भारतीय सेना के आधुनिकीकरण का श्रेय तत्कालीन वाई बी. चव्हाण को जाता है। बतौर कृषिमंत्री सी.सुब्रमण्यम ने देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर बनाया, वही रेलमंत्री मधु दंडवते ने रेलवे को नया रूप दिया।
देश की आजादी के बाद बने हमारे मंत्रिमंड़ल में तत्कालीन समय के लोगों ने संसद में ऐसे नेताओं को मंत्री के लिए चुना जो आज भी हमारे लिए गर्व का विषय बने हुए है। ये वे लोग है जिन्होने काम के बल पर अपना ऐसा मुकाम बनाया कि सदियों तक वह हमारे बीच जिंदा रहेगें। आजादी के बाद से अब तक हमारे देश में अनेक प्रधानमंत्री व उनके मंत्रीमंड़ल अलग-अलग समय पर बने और शपथ ली है लेकिन शुरूआती मंत्रिमंडलों के मंत्रियों ने काम किया है वह काबिले तारिफ है। अब तक जितनी भी कैबिनेट बनी है, प्रत्येक मंत्रिमंडल में औसतन 50 मंत्री मानते हुए कहा जा सकता है कि हमारे यहां कम से कम एक हजार नेताओं ने केन्द्र सरकार में मंत्री पदों का जिम्मा संभाला है। सवाल उठाया जाए कि अब तक जितने भी मंत्री बने है उनमें से कितनों ने ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए देश की जनता की सेवा की है। मुझे तो देश की पहली कैबिनेट से अब तक ऐसे चंद नाम ही जेहन में आते है जिनके बारे में विश्वास से कहा जाए कि जिनने देश की अवाम के बारे में सोचा-समझा है। ऐसे चंद नामों में से पहली कैबिनेट से निश्चित तौर पर सबसे पहले डॉ. बाबा साहेब भीमराव अम्बेडक़र को रख सकते है। यही वो शख्स से है जिसने देश को चलाने के लिए एक सशक्त संविधान दिया और उस संविधान के माध्यम से आम गरीब को अधिकारों की कुंजी दी। डॉ. आंबेडकर को कांग्रेसियों के प्रभुत्व वाली एक सभा के जरिए संविधान का मसौदा तैयार करने का जिम्मा था जिसे उन्होंने बखूबी अंजाम दिया – जैसा कि संविधान सभा की कार्यवाहियों के तेरह वृहद अध्याय इसके गवाह है।
जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट में कानून मंत्री के रूप यह एक ऐसा बेमिसाल सदस्य रहा है जिसने न केवल गरीबों के लिए श्रम कानून बनाए बल्कि देश की तमाम महिलाओं को उनके हक अधिकार दिलाए। यह आंबेडकर ही थे जिन्होंने नारी शक्ति के अधिकारों के लिए सबसे लडक़र नए हिंदु कोड़ के मसौदे का जिम्मा उठाया। इस कोड़ के जरिए पहली बार न केवल हिंदू बल्कि मुस्लिम,सिक्ख, जैन व तमाम नारी जगत को अपना जीवनसाथी चुनने का, अपने माता-पिता की संपत्ति में हिस्सा पाने का और अपनी जाति से बाहर शादी करने के अलावा बेरहम और दगाबाज पति को तलाक देने का अधिकार दिलाया। इतिहास में उनके द्वारा जो भी काम किए गए है उनके बारे में आज तक सीमित सोच ही रही है। उनके साथ सबसे बड़ा अन्यााय यह है कि अभी भी उनको जातिगत दायरे में ही बांध कर देखा जाता है। बल्कि होना यह चाहिए था कि उनके कामों को विस्तृत रूप में देखकर उनकी योग्यता के आधार पर मान-सम्मान दिया जाना चाहिए था। उनके प्रति समाज के पुरूष वर्ग में यह आस्था भले ही न होती लेकिन नारियों ने तो उनको सम्मान देना चाहिए था, पर ऐसा संभव नही हो सका। आज भी देश की उच्च वर्ग की महिलाओं के दिलों में उनके प्रति वह भाव नही जागा जो होना था। कांग्रेस ने आम गरीबों के विरोधी में जितनी भी नीतियां बनाई वह उसके धुर विरोधी के रूप में भी पहचाने जाते है। पटेल की तरह आंबेडकर की और भी उपलब्धियां रहीं। यह आंबेडकर और भी उपलब्धियां रही।
अब थोड़ा और मुश्किल सवाल -हम उनके कर्मों व देश हित में किए गए कार्यों के साथ न्याय क्यों नही कर पाए। श्री नेहरू की कैबिनेट में एक और ऐसा ही बेमिसाल सदस्य गृहमंत्री के रूप में सरदार वल्लभ भाई पटेल थे।गृहमंत्री के रूप में उनको जितनी दिक्कतों का सामना करना पड़ा शायद ही किसी मंत्री को आज तक करना पड़ा हो। मेरी समझ के अनुसार उनके मंत्रालय को जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ा, वैसी किसी भी नए देश के सामने नही आई होगी और न ही संभवत: कभी आएंगी। उस समय वल्लभ भाई पटेल के तकरीबन पांच सौ रियासतों और उनके मुख्य सियासतदानों को भारतीय संघ में मिलाने की बड़ी चुनौती थी। इनमें से कुछ तो आदर्श और उच्च नैतिक मानदंडों का पालन करने वाले थे लेकिन ये लोग उन लोगो की श्रेणी में कम थे बहुत ही वाहयात व अंहकारी किस्म के थे। इस तरह की खराब व अय्याश किस्म के लोगों को समझाने का काम पटेल पर ही था। सरदार पटेल और उनके सहयोगी वी.पी. मेनन का जिम्मा था कि वे उनसे एक-एककर बातचीत करें, मनाएं ,फुसलाएं और उन्हें भारत के साथ जुडऩे के लिए राजी करें। सरदार को कुछ राजाओं के साथ ये कामयाबी तो मिली लेकिन वह अनेकों के साथ अपनी इस तकनीक में कारगर साबित नहीं हो सके, हिलाजा दबाव का रास्ता भी अपनाना पड़ा। आखिरकार, दो साल तक अथक मेहनत और संघर्ष के बाद पटेल और उनके अधिकारियों ने अपने देशवासियों को एक संगठित और अखंड भारत सौप दिया। वैसे पटेल एक अन्य मायन में भी एक बेहतरीन गृहमंत्री थे। मिसाल के तौर पर उन्होंने अखिल-भारतीय सिविल सेवा की नींव डाली।
दिसंबर 1950 में पटेल का देहावसान हो गया और एक साल बाद डॉ.आंबेडकर ने कैबिनेट छोड़ दी। इन दोनों के अलावा अगला मंत्री जो इस श्रेणी में खरा उतरता है, वे है वाई बी. चव्हाण, जिन्होंने 1962 की सर्दियों में चीन द्वारा भारतीय सेना की जबरदस्त आघात पहुंचाएं जाने के बाद रक्षामंत्री का जिम्मा संभाला। चव्हाण ने अपने पूर्ववर्ती मंत्री की तरह जनरलों के साथ मनमाने ढंग से व्यवहार करना छोड़ दिया, दसका यह नतीजा निकला की सेना के अफसरों में अपने मंत्रियों के प्रति सम्मान का भाव जागृत हुआ। इतना ही नही महत्वपूर्ण यह भी है कि जहां उनके पूर्ववर्ती मंत्री पश्चिम को लेकर एक अलग तरह से नफरत का भाव लेकर चलते थे, उसे त्यागते हुए चव्हाण ने फ्रांस, ग्रेट ब्रिटेन और अमेरिका से नवीनतम हथियार जुटाए। इसी का नतीजा था कि 1965 में पाकिस्तान के साथ हुई अगली जंग तक आते-आते भारतीय सेना लडऩे के लिहाज से कहीं बेहतर सैन्य साजो-सामान से लैस हो चुकी थी।
नए रक्षामंत्री के रूप में उन्होंने न सिर्फ सेना के मनोबल को बढ़ाया, बल्कि उसे बेहतरीन हथियार भी मुहैया कराए। 1962 और 1965 में हुए युद्घों से भारत के विदेशी मद्रा भंडार को गहरा नुकसान पहुंचा था। देश में मानसून की लगातार नाकामियों की वजह से गेहूं के बड़े पैमाने पर आयात के चलते यह नुकसान और गंभीर हो गया। अपनी राजनीतिक आजादी को अक्षुण्ण रखने के लिए भारत के लिए किसी तरह खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर होना जरूरी था, इसके लिए भी ईमानदार पहल करते हुए दिखाई दिए। हालाकि इस काम में सबसे बड़ी व अहम सफलता कृषि मंत्री सी. सुब्रमण्यम को मिली है। नेहरू के बाद प्रधानमंत्री बनते ही लाल बहादूर शास्त्री ने इस तथ्य को पहचाना और अपने एक बेहतरीन मंत्री को महत्वपूर्ण इस्पात मंत्रालय से निकालकर अपेक्षाकृत कमतर कृषि मंत्रालय में भेज दिया। मंत्री सी. सुब्रमण्यम ने भी अपनी पूरी क्षमताओं के साथ काम करके खुद को साबित किया। उन्होंने खुद फॉर्मिंग स्टॉक से लेकर देश में कृषि संबंधी शोध को व्यवस्थित करने का काम आरंभ किया। उनकी इस पहल का नतीजा यह रहा कि वैज्ञानिक अपने मंत्री के साथ काम करने को तैयार व इच्छुक हो गए। सी. सुब्रमण्यम नेे उच्च पैदावार की क्षमता वाली गेहूं की ऐसी किस्मों, जिन्हें अमेरिकी वैज्ञानिकों द्वारा मैक्सिको के लिए विकसित किया गया था, को अपनाया जो भारतीय माहौल के अनुकूल हों। कुछ ही वर्षो के भीतर इस शोध के नतीजे मिलने लगे। उनकी इस पहल का असर यह हुआ कि देश सत्तर के शुरूआती दौर तक खाद्यान्न के लिहाज से आयात पर निर्भर नहीं रह गया था।
इस कड़ी में आखिरी नाम मधु दंडवते का आता है, जो 1977-79 के दौरान जनता पार्टी सरकार में रेलवे मंत्री रहे। एक दक्ष भौतिकविद दंडवते ने वैज्ञानिक व्यावहारिकता को गरीबों के प्रति संवेदना की उस समाजवादी परंपरा से जोड़ा, जिससे उनका वास्ता रहा। मंत्री के तौर पर उन्होंने रेलवे आरक्षण में कम्प्यूटरीकरण की शुरूआत की और बेकार हो चुके स्टॉक का प्रतिस्थापन करवाया। लेकिन उनकी सबसे सुधारात्मक पहल रेलवे के द्वितीय व तृतीय श्रेणी की लाखों सीटों पर तीन इंच मोटी गद्दी लगवाने की रही, जो तब तक सिर्फ सख्त लकड़ी की ही बनी होती थीं। इस तरह उन्होंने प्रथम श्रेणी के दर्जे का स्तर गिराए बिना दूसरे दर्जें का स्तर सुधारने के अपने वादे को भी पूरा कर दिया। हालाकि बीती सदी के पचास के दशक में नेहरू ने खूद देश का बुद्घिमत्तापूर्ण तरीके से बेहतरीन नेतृत्व किया, लेकिन पीछे मुडक़र देखने पर उनके किसी भी और सहयोगी मंत्री को ुउत्कृष्ट नहीं कहा जा सकता (इनमें से कुछ तो महज ठीक-ठाक काम करने वाले थे, बाकी तो इतने भी सक्षम नही थे) इनमें से कितने मंत्रियों ने भारतीय नागरिकों की भलाई के लिए अपना महती योगदान दिया है याद नही आता है। इन पांच बेहतर मंत्रियों की सूची के दायरे में चार दशक और तीन राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं।
यह आकलन हमारे मंत्रियों की ईमानदार पहल व कार्यक्षमता के आधार पर हुई अगर आपको इसमें किसी पूर्वागृह की बू आ रही हो तो उसे अनजाने में ही माना जाए। इसमें कोई शंका या अविश्वास नही होना चाहिए कि उनने देश के नागरिकों के हित में काम नही किया। इन पांच मंत्रियों की बेहतर नीतियों ने समग्र रूप से करोड़ों भारतीयों को फायदा पहुंचाया है। हमारे नए मंत्रियों को भी ऐसे ही मानदंड स्थापित करना चाहिए, जिनके जरिए हम उनकी नीतियों का आकलन कर सकें और देश उनको बेहतर मंत्री के रूप में पहचान सके। हमारे पास फिलहाल केन्द्र सरकार में 79 मंत्रियों का नया समूह है। मैं देश के सजग नागरिक व इतिहास में किए गए कामों के आधार पर हमारे नए मंत्रियों से यही कह सकता हूं कि यदि वे अपना मंत्रालय भी उसी तरह चलाएं, जैसा कि डॉ. बाबा साहेब अंबेडक़र, सुब्रमण्यम व दंडवते ने चलाया तो मानकर चलिए आने वाले तीस-चालीस साल बाद उनके बारे भी देश के बड़े-बड़े अखबार तारीफ से भरे होगे। मतलब साफ है कि आज जो आकलन इन पांच मंत्रियों का हुआ है और मीडिय़ा जगत उनकी कर्म प्रधान शैली का जो बखान करता है उस श्रेणी में कभी हमारे नए मंत्री भी आ सकते है। उनकी श्रेणी में आने के लिए सबसे पहले तो हमारे नए मंत्रियों को इमानदार व कर्तव्यनिष्ठ बनना होगा, इसके साथ ही भ्रष्टार मुक्त परिवेश बनाना होगा।
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संजय रोकड़े
पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक
लेखक पत्रकारिता से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से लेखन करते है।
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