– संजय रोकड़े –
मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल के आदिवासी व छोटी जोत के किसान को राज्य सरकार की दमनकारी नीति से बीते दिनों फिर रूबरू होना पड़ा है। विकास के नाम पर विनाश की कहानी को प्रदेश के पश्चिम निमाड़ में फिर एक बार दोहराया गया है। खरगोन जिले के खारवां गांव के सैकड़ों आदिवासियों के घरों में अपर वेदा बांध का पानी छोड़ कर घरों को तबाह कर दिया। बीते 5 अगस्त को प्रदेश सरकार ने जिला प्रशासन के सहयोग से अपर वेदा बांध में पानी भरना शुरू कर दिया था इसके चलते पालदा, सोनुद, उदयपुर, खारवा सहित आसपास के तमाम गांवों व घरों में पानी घुस गया था और इसके चलते अनेक आदिवासी परिवार बरबाद हो गए थे। बीते साल इन दिनों बांध का जल स्तर 310 मीटर था लेकिन अबकि बार यह जल स्तर लगातार बढ़ा कर 314 मीटर के ऊपर पहुंचा दिया। बांध का जल स्तर के बढऩे से न केवल आदिवासियों के सिर से छत छिन गई बल्कि जिंदगी भर तिल-तिल कर जोड़े गए पैसों से खरीदा गया सामान भी पानी की भेंट चढ़ गया। खाने पीने का सामान, अनाज बर्तन- भांड़े सब कुछ नष्ट हो गए। बता दे कि बांध का जल स्तर बढ़ा कर घरों में पानी भरने का काम लगातार आठ दिन तक चलता रहा। इस कारण करीब एक दर्जन गांव के आदिवासी प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होकर तबाह हो गए है। जो लोग पानी के लगातार बढऩे के बाद भी अपने आशियानों को बचाने के भाव से जुटे हुए थे उनको पुलिस के दमन का भी शिकार होना पड़ा। पुलिस की कु्ररता और निर्दयता से भरी यह दमन भरी कार्यवाही दो-तीन दिन तक लगातार चलती रही।
हालाकि सरकार और पुलिस की इस दमन भरी पहल का विरोध खारवा गांव के आदिवासियों ने पूरी ताकत के साथ किया। जब पलदा गांव में पुनर्वास कमिश्नर रेणु पंत व पुलिस अधिकारी जेसीबी मशीनों,ट्रैक्टर्स व दल-बल के साथ आदिवासियों को खदेडऩे पहुंचे तो सबने एक स्वर में यही बात दोहराई कि सबसे पहले बांध के गेट खोलकर जल स्तर कम किया जाए और प्रभावितों का पुनर्वास पूरा होने के बाद ही बांध में पानी भरा जाए। हालाकि इस दौरान पुलिस ने आतंक और भय का माहौल बनाने में कोई कोर-कसर नही छोड़ी थी। बावजूद इसके एकजूट आदिवासियों ने डरने की बजाय उनका खुलकर सामना किया। जब अफसर व पुलिस बल जेसीबी मशीने लेकर घरों को तोडऩे के लिए ग्राम खारवा पहुंचे तो उस समय अनेक महिलाएं मशीनों के सामने लेट गई और उनको आगे नही बढऩे दिया। ग्रामीणों का यह विरोध जारी है लेकिन पुलिस का दमन भी जैसे के तैसा है,कम नही हुआ है। बता दे कि जिस तरह से प्रदेश सरकार ने गरीब आदवासी किसानों व मजदूरों को बिना पुनर्वास डुबोने और उनके घरों को तोडऩे की जो कायरतापूर्ण करवाई की है उसका हर तरफ से प्रबल विरोध हो रहा है। इसे गैरकानूनी और अमानवीय बताते हुए चर्चा इस बात को लेकर छिड़ गई है कि जब अपर वेदा बांध के 300 किसानों ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद शिकायत निवारण प्राधिकरण में जमीन के बदले जमीन के आवेदन लगाये थे और उन पर प्राधिकरण ने गत माह सुनवाई भी शुरू कर दी थी तो सरकार ने समय बढ़ाने की मांग क्यों कर दी। क्या यह सरकार ने सोची समझी रणनीति के तहत किया था।
समय की मांग कर तारीख तो आगे बढ़वा दी लेकिन इसी बीच दमनात्मक कदम उठा कर सबको डुबोने का काम भी शुरू कर दिया। प्रदेश सरकार को इस तरह का कदम उठाने के पहले प्राधिकरण के उस फैसले का तो इंतजार करना चाहिए था जो इन प्रभावितों के पुनर्वास के संबंध में आना बाकी था। सनद रहे कि नये भू-अर्जन कानून की धारा 24 (2) के अनुसार अपर वेदा बांध प्रभावितों का भू-अर्जन भी निरस्त हो चुका था और सितम्बर 2014 में ही विस्थापितों ने इस संबंध में अपने दावे जिला कलेक्टर को दे दिए थे जिस पर कोई निर्णय नही दिए। इन सबके बावजूद विस्थापितों को बगैर किसी सूचना व मानवीय अधिकार की रक्षा किए बिना जमीन व घरों से बेदखल करके डुबोया गया। हालाकि इस अप्रिय स्थिति से निपटने के लिए अनेक सामाजिक संगठनों के कार्यकर्ता सामने आए और इससे निजात दिलाने के लिए इंदौर संभाग के आयुक्त संजय दुबे व नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष व पूर्व मुख्य सचिव राकेश साहनी से भी बातचीत भी की।
निमाड़ अंचल के लोगों की खुशहाली और बेहतरी के लिए काम करने वाले संगठन निमाड़ महासंघ ने भी प्रभावितों को ढ़ाढ़स बंधाते हुए अफसरों से न्याय की गुहार लगाई है। बता दे कि इस मामले में बतौर विरोध करने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नाम एक खुला पत्र भी लिखा गया है। इस पत्र के माध्यम से न केवल गुहार लगाई गई है बल्कि यथा स्थिति से भी अवगत भी किया गया है। मोदी को लिखे पत्र में स्पष्ट लिखा है कि प्रदेश की शिवराज सरकार गरीब आदिवासियों के साथ बड़े ही बेरहमी से पेश आ रही है।
विकास के नाम पर विनाश पर आमादा है। हम सब तबाह हुए लोग आपसे आग्रह करते है कि बांध का जल स्तर घटाकर 310 मीटर किया जाए और हमारे साथ होने वाली इस दमन भरी नीति पर अंकुश लगवाएं। इस गैरकानूनी और अमानवीय कार्रवाही को जितनी जल्दी हो सके रूकवाएं। हम प्रभावित लोग आपकी विकास की अवधारणा को जानना चाहते है लेकिन उसके पहले आपके विचार, नियोजन पद्धति और दूरदर्शिता के साथ विस्थापन जैसे मानवीय मुद्दे पर आपकी संवेदना भी परखना चाहते है। इसमें पीएम से सवाल भी किया गया कि आप देश को किस नई राह पर ले जाना चाहेंगे। इसके साथ ही चेतावनी भी दी गई कि हमारे साथ न्याय की कोई पहल नही की गई तो डूब क्षेत्र व पूरे प्रदेश में संघर्ष किया जायेगा और इस गैर कानूनी करवाई को न्यायालय में भी चुनौती दी जाएगी। इस संबंध में सामाजिक कार्यकर्ता सुश्री चित्तरूपा पालित की माने तो स्थिति बहुत गंभीर है। आदिवासियों को तबाह होने से बचाना है तो सबसे पहले पानी का स्तर 310 मीटर पर लाना चाहिए। इसके साथ ही सभी प्रभावितों का संपूर्ण पुनर्वास करने के बाद ही बांध में पानी भरा जाना चाहिए। अगर ऐसा नही किया गया तो फिर एक बार सैकड़ों परिवार तबाह हो जाएगें।
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संजय रोकड़े
पत्रकार ,लेखक व् सामाजिक चिन्तक
लेखक पत्रकारिता से सरोकार रखने वाली पत्रिका मीडिय़ा रिलेशन का संपादन करने के साथ ही सम-सामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र रूप से लेखन करते है।
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