डा0 राजीव राज के मुक्तक
– मुक्तक –
हैं सियासी गिद्ध नभ में नोंचने को बोटियाँ।
बिछ गयीं देखो बिसातें चल रहे हैं गोटियाँ।
जल रहा है अन्नदाता त्रासदी की आग में,
सिक रहीं है राजनैतिक स्वार्थ की बस रोटियाँ।।
मनुज होकर अगर मुस्कान का गहना नहीं पहना।
वृथा जीवन यथा गंगा सलिल संग रेत का बहना।
मलो तो दीन के मुख पर मृदुल मुस्कान का चन्दन,
तुम्हारी उँगलियाँ भी गर महक जायें न तो कहना।।
है कभी सूखा कभी है बाढ़-पानी क्या करें।
आ रहीं हैं मुश्किलें जानी-अजानी क्या करें।
और कितनी पूस की रातें पडे़ंगी काटनी,
अब गुज़ारा भी बमुश्किल है किसानी क्या करें।।
डोर सम्बन्धों की मन के गाँव में बाँधी गयी।
धूप से बछिया कोई ज्यों छाँव में बाँधी गयी।
जिन्दगी को कर्म का आधार देने के लिए,
धर्म की बेड़ी मनुज के पाँव में बाँधी गयी।।
मीत ममता पर विवशता कब पड़ी भारी नहीं।
त्याग देखा धाय का पन्ना की लाचारी नहीं।
जाने किन मजबूरियों में माँ कुमाता बन गयी,
यूंँ ही तो बेटी किसी माँं से गयी मारी नहीं।।
चीज क्या माँ-बाप ने औलाद पर वारी नहीं।
रक्त पर लेकिन जिन विवशता कब पड़ी भारी नहीं।
हो गए मजबूर मोरध्वज धरम के सामने,
यँू ही तो अपने जियाले पर चली आरी नहीं।।
मानता हूँ मैं कि उनकी कम गुनहगारी नहीं।
किन्तु घटना की परिस्थितिजन्य तैयारी नहीं।
हैं भले मुजरिम सजा भी पा गए कानून से,
पर हमारी आपकी नफरत के अधिकारी नहीं।।
बड़े लोगों के जैसा तौर ना उसका तरीका है।
बदन पर भी उसके रेशमी कुर्ता ज़री का है।
दिखाकर नाच, मेहनत से वो भरती पेट है उसको
गरीबी में भी खुद्दारी से जीने का सलीका है।।
चंद लमहंे महकते बस इत्र की बौछार से।
और कुछ शामो सहर बस गुजशनो गुलजार से।
है महज कुछ वक्त की सौगात खुशबू फूल की,
पीढ़ियाँ तो महकती हैं खुशबुए किरदार से।।
कर्म से हो विमुख सुख के लक्ष्य के संधान में
ढूढ़ते हो भाग्य जाकर धर्म की दूकान मंे
बाँध पट्टी आस्था की आंख पर अज्ञान की
भेद कैसे कर सकोगे संत में शैतान में।।
है गुजारा भी इधर मुश्किल किसानी क्या करें।
हो रही बिटिया उधर पल-पल सियानी क्या करें।
जिन्दगी तो ‘‘राज’’ फिर भी काट लेते हम मगर
मौत बरसी है कहर बन आसमानी क्या करें।।
सभी ढूढ़ें जिसे सुख वो हसीं अहसास होता है।
मगर गम का तजुर्बा तो सभी के पास होता है।
इन्हीं दोनों तटों के बीच हँसकर जंग जीवन की
वही जीता जिसे खुद पर अटल विश्वास होता है।।
हर घड़ी में इक सदी दीदार करना आ गया ।
सांस के बाजार में व्यापार करना आ गया ।
आज तक अंजान थे हम जिन्दगी के मोल से
आप नजरें मिलीं तो प्यार करना आ गया।।
छुपा पाये न जब मुस्कान की पाँखों में खारे गम।
हकीकत खुद बयाँ करने लगी जब नज्म हो पुरनम ।
गवाहे प्यार बन छलके पलक की सीप के मोती।
उठाते और कब तक बोझ अपने आँसुओं का हम।।
भव्य आसन पर विराजे हैं दमकते वेश में।
संत, मुल्ला, पादरी बनकर हमारे देश में।
हैं विलासी भोगवादी धर्म व्यवसायी बड़े,
आचरण ऐसे भला होते कहाँ दरवेश में।।
लूटते थे भय दिखा परलोक का इस लोक में ।
और धन्धे कर रहे थे असत् के सतलोक में ।
वक्त उनके शीश लाठी सा पड़ा, फूटा घड़ा,
कर्म की कालिख छिपी कब धर्म के आलोक में।।
चूनर की वो फटी किनारी ब्रेसलेट जैसी ही है।
घाव भर गया बाँधी जिस पर अभी चोट वैसी ही है।
वो जादू सी छुअन तुम्हारी महुआ सी मदमाती है।
ये मीठी मुस्कान तुम्हारी चोकलेट जैसी ही है।।
महज दस साल के बच्चे के अन्दर जाग जाता है।
निवालों की जुगाड़ों में कलन्दर जाग जाता है।
नहीं ये वक्त की जादूगरी तो और फिर क्या है
कभी कतरे के अन्दर भी समन्दर जाग जाता है।।
नहीं कहता कि झोली में जहाँ की दौलतें भर दो।
मोहब्बत की जमीं छूटे न षोहरत का वा अम्बर दो।
किसी के पोंछकर आँसू हुयी मुझसे हो नेकी तो
वतन की धूल को चन्दन तिरंगे को कफन कर दो।।
चलो सद्भाव से मिलकर रहें क्या और करना है।
वही रसखान रघुपति सा हमें फिर दौर करना है।
नहीं होता कोई मजहब वतन की आन से बढ़कर
हमें इस देश को फिर से जगत सिरमौर करना है।।
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डा0 राजीव राज
शिक्षा- :
एम0एस-सी0, पी0एच-डी0;रसायनद्ध, बी0एड0 ,एम0ए0;हिन्दी साहित्यद्ध ,एम0ए0;संस्कृत साहित्यद्ध , एम0ए0;भूगोलद्ध,साहित्य रत्न ;प्रयाग विश्वविद्यालयद्ध,
सम्मान – :
श्री के0एल0गर्ग सर्वश्रेष्ठ शिक्षक सम्मान-2014 ,मा0मुख्यमन्त्री उ0प्र0 शासन द्वारा प्रदत्तद्ध, शिवाजी दर्पण साहित्य सम्मान ग्वालियर, म0प्र0 , ईश्वरीदेवी एवं वीरेन्द्र सिंह स्मृति सम्मान
मा0 लोक निर्माण मन्त्री उ0प्र0 शासन द्वारा प्रदत्तद्ध, श्री अग्रवाल सभा चैन्नई, श्री खेड़ापति हनुमान सेवासमिति, धार-म0प्र0, सहित विभिन्न प्रदेशों में अनेकानेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मान
सम्पादन- :
श्रीकृष्ण उद्घोष ;हिन्दी त्रैमासिक पत्रिकाद्ध, ज्योत्स्ना ;हिन्दी वार्षिक पत्रिकाद्ध, प्रकाशन- श्रीकृष्ण करमायण ;हिन्दी प्रबन्ध काव्यद्ध
रचनायें – :
वेदना के फूल ;प्रकाशित काव्य संग्रहद्ध, अहसासों की डोली में ;प्रकाशनाधीन गजल संग्रहद्ध , सम्प्रति- शिक्षण एवं स्वतन्त्र लेखन
सम्पर्क-
239, प्रेम बिहार विजय नगर इटावा-206001 , मो0. 9412880006,9012780006 ,ईमेल – dr_rajeevraj@yahoo.com
महत्मन इस जन को आपना शिष्य स्वीकारें।आपकी अति कृपा होगी।
वाह अति सुन्दर, मन मोहक, संतुलित मुक्तकों के लिए बधाई।
बहुत अच्छा ।