वीणा की कविता “संतुष्टि“

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वह बोला
मेरे खेतों में सोना है
मैं हँसी ये सोच कर कि
यह अक्ल से कितना बौना है
सोना होता ,तो क्या इस के कपड़ों में
पैबन्द होता ?
वह भी तुरंत मुस्करा या
और बोला… बहन जी  जी,
खेतों में नीचे का सोना तो सरकार का है
ऊपर धनवान का है
मुझे तो अपना सोचकर
सन्तुष्ट होना है
और रही पैबन्द की बात,
तो ये पैबन्द अब कपड़ों पर नहीं
बदन पर चिपकेसे लगते हैं
पर मैं सन्तुष्ट हूँ
कम से कम
इज्ज़त तो ढांके हैं,

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वीणा

Veen Ji

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