{संजय कुमार आजाद**}
“एक बार जंगल में चुनाव हुआ,जंगल के लोगों ने एक बंदर को अपना राजा चुना। कुछ दिन के बाद एक शेर ने बकरी के एक बच्चे को उठा कर अपने मांद में ले गया। बकरी अपनी फ़रियाद लेकर जंगल के राजा बन्दर के पास पहुची और उसने सारी वाकया सुनाई। बकरी के साथ बन्दर राजा भी शेर की मांद तक आया और वहाँ बकरी के बच्चे को देखा भी,किन्तु मांद के अन्दर घुसने की हिम्मत बन्दर में थी नहीं फलतः उसने बकरी को कहा-तुम जायो, मै शीघ्र ही तुम्हारे बच्चे को शेर से मुक्त करा दूंगा और वही एक पेड़ पर चढ़ गया । बकरी वापस अपने घर आ गयी।दो-तीन दिनों के बाद जब बच्चा वापस नहीं आया तो बकरी फिर जंगल के राजा बन्दर के पास पहुची तो देखती है बन्दर इस डाल से उस डाल पर कूद रहा है। बकरी बन्दर से निवेदन करती है-राजन मेरे बच्चे का क्या हुआ? बन्दर तिलमिलाते हुए कहता है – देखो मैं ने अपनी तरफ से पूरी शक्ति लगा दी उस दिन से मै दौड़-धुप कर रहा हूँ।मैं क्या हाथ पर हाथ धरे बैठा हूँ जो ऐसा बात करती हो। भारत की वर्तमान शासन सत्ता इसी कहानी के इर्द-गिर्द घुमती है।
देश में १६वी लोकसभा चुनाव का पान्चजन्य बज चूका है ।इस महासमर में इस बार राष्ट्र्वाद बनाम वंशवाद का निर्णयाक युद्ध शुरू हो गया है, जनता रूपी भगवान् श्रीकृष्ण जिसके पास होंगे विजयश्री उसी के गले में डलेगी।वही लोकतंत्र रूपी महाभारत का पांडव होगा।१९४७ से अनवरत छला जा रहा लोकतंत्र,बद से बदतर होता गया शासनतन्त्र और निरंतर डगमगाती अर्थव्यवस्था भारत की गौरवशाली इतिहास को धूमिल करता रहा। भारत की सनातन परम्परा को कलंकित,हिंदुत्व को दिग्भ्रमित और राष्ट्रीयता को विलोपित करती आ रही वंशवादी शासन का जहर इस लोकतन्त्र को सतत दीमक की तरह चाटती रही है।२०१४ का चुनाव हर हाल में इस लोकतंत्र को इस वंशवाद रूपी दीमक से मुक्ति देगी ऐसा संकल्प का यह १६वी आम चुनाव है।
लोकतांत्रिक व्यवस्था में चुनाव सबसे बड़ा त्यौहार होता है और हम अपने एक वोट से लोकतंत्र के हर खोट पर चोट कर सशक्त भारत का निर्माण करेगे ऐसा संकल्प हम सबों को लेना होगा। २१वी सदी का भारत आज १४वी सदी में जी रहा है इसका कारण इस देश की वंशवादी परम्परा और नेहरूवादी सत्ता की सोच रही है।
आज भारत की आंतरिक सुरक्षा तार-तार है पूरा का पूरा वर्तमान सरकार का कुनवा तुष्टिकरण में लिपटा है।इस देश के अल्पसंख्यक मामलो के मंत्री रहमान खान मलेशिया में जाकर यह घोषणा करते हैं की वर्तमान सरकार ने भारत में इस्लामिक बैंकिग व्यवस्था लागू करने की योजना बना ली है।इससे पूर्व देश का रिजर्व बैंक ने देश में इस्लामिक बैंक व्यवस्था को लागू करने से इनकार कर दिया था। देश की अर्थव्यवस्था को साम्प्रदायिक बादल से ढकने का यह कुत्सित प्रयास संविधान की मूल धारणा के विपरीत है फिर भी राष्ट्रवादी शक्तिओ की निष्क्रियता के कारण और इस्लामी देशो के दवाव में कार्य करने वाली वर्तमान सरकार ऐसे घृणित प्रयास कर रही है।
उत्तर प्रदेश की साम्प्रदायिक सरकार की शह पर उत्तर प्रदेश उर्दू एकेडमी ने उर्दू के साहित्यकारों और पत्रकारों की विधवा को दस-दस हजार रूपये की मासिक पेंशन तथा ५० साल से अधिक उम्र के उर्दू के लेखक,पत्रकार,और कविओ को एकेडमी द्वरा दो-दो लाख का बीमा और सहायता राशि पांच हजार से बढाकर बीस हज़ार करने की घोषणा की है,उधर महारष्ट्र में १७ संघटन मिलकर एक नया फ्रंट मुस्लिम दलित फ्रंट बनाया है जिसका उदेश्य इस देश में साम्प्रदाइकता को ही बढाना और राष्ट्रवादी शक्तिओ को कमजोर करना है।
आजतक जम्मू कश्मीर के हिन्दुओं को अपने ही देश में शरणार्थी का जीवन जीने को इस वंशवादी सरकार ने मजबूर कर रखा है जबकि उसी जम्मू कश्मीर में पाकिस्तनी इस्लामी आतंकियो को बसाया जा रहा है, अगर नार्थ-ईस्ट की और देखे तो वहाँ इसाई आतंकियो का राज है,केरल और पछिम बंगाल में राष्ट्रवादी ताकतों को कुचलने में वहाँ की सरकार पाकिस्तान को भी पिछे छोड़ दिया है।आज झारखंड के जनजातियो के सरकारी सुविधाओं पर क्रिप्टो क्रिश्चियनो का कव्जा है।देश की आंतरिक व्यवस्था डावाडोल है और सरकारे विदेशों में घुमने में मशरूफ रही है।आज सिमटती सीमाए बिखरती एकता इस देश की पहचान बनती जा रही है?
देश के संसाधनों पर पहला हक़ भारतीय का नही बल्कि एक विशेष समुदाय का है ऐसे घृणित सोच से त्रस्त जिस देश का निर्देशित और नियंत्रित नेतृत्व हो वैसा देश सिर्फ और सिर्फ भारत ही है ? तुष्टिकरन के ही कारण आज देश बारूद की ढेर पर खड़ा है फिर वंशवादी लोकतंत्र के खेवन हार राष्ट्रवादी शक्तिओ पर नित्य-प्रति विष वमन कर देशद्रोही ताकतों को फलने फूलने का माहौल बनाती है।अभारतीय मतों और विचारों ने इस देश में जो इंद्रजाल फैला रखा उस इंद्रजाल से मुक्ति के लिए हमें अपने मतदान केन्द्रों पर जाकर हर विषम परिस्थिति में भी अपना वोट को देना ही होगा और इस साल यदि हम चुके तो तो आने बाली पीढियां हमें कभी माफ़ नही करेगी। १।२ अरब की विशाल आबादी वाले इस देश में आधे से ज्यादा २५ साल से कम उम्र वाले युवा हैं अमूमन इस देश को हर साल १३ लाख बेरोजगार युवाओं को रोज़गार चाहिए।किन्तु रोज़गार के बजाय उन्हें नक्सलवाद या आतंकवाद की और मुड़ना पडा आखिर क्यों ? विश्व के सर्वाधिक युवाओं का देश की ऐसी दुर्गति वंशवाद की पाशविक नीतिओ के नेहरूवादी शोषकों ने की है।इन शोषको से युवाओं को मुक्त होने के लिए साल २०१४ का आम चुनाव महत्वपूर्ण है ।
इस देश का विकास दर निरंतर गिरता जा रहा है। विश्व बैक के अनुसार चालु वित्त वर्ष में अर्थव्यवस्था की दर ६।२ फीसदी रहेगी वहीँ तीन साल से कम उम्र के ४० फीसदी बच्चे औसत भार से कम है यानि देश की अर्थ व्यवस्था और देश का स्वास्थ दोनों चौपट हो चुकी है।१९४७ से लेकर आजतक इस वंशवादी शासन व्यवस्था ने भारत को दंगो का देश, भूखे-नंगों का देश ,अत्याचारिओं का देश, बलात्कारिओं का देश के रूप में विश्व के मानचित्र पर उभारा है ?विश्व गुरु भारत इस वंशवादी सोच के साए में आज शोषित पीड़ित और अपमानित होता रहा है और हम आम नागरिक पिछले दस साल से लोकतंत्र के साथ सबसे भयंकर मज़ाक कर रहें है की हम अपना प्रधान मंत्री तक नही चुन पा रहे हैं ? क्या हम संविधान की मूल भावना और लोकतंत्र की अवमानना नही कर रहे है जो रिमोट से चलने बाले प्रधान मंत्री को ज़बर दस्ती ढो रहें है ।क्या यही हमारी नियति है की ऐसे लोगो के सरपरस्ती में लोकतंत्र को नीलाम होने दें, संविधान को तार-तार होने दें ?
अब समय आ गया है की हम इस वंशवादी मार्क्स-मुल्ला-मैकाले और नेहरूवादी सोच से भारतीय लोकतंत्र को निजात दिलाने के लिए अपने घरों से निकलकर मतदान केन्द्रों तक जायें और अपने असीमित अधिकार का प्रयोग करें।जिस तरह से उस बकरी के बच्चे की दुर्गति हुई बैसा हमारे बच्चों के साथ ना हो इसलिए हमें बन्दर को राजा बनने से हर हाल में रोकना होगा।हम एकजुट होकर देश की एकता के लिए देश की अखंडता के लिए देश के विकास और आत्मविश्वास के लिए देश की रक्षा और नारीओं की सुरक्षा के लिए, अपने संस्कृति के अभिमान और अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए हमें अपना मत का प्रयोग हर हाल में करना है।देशहित सर्वोपरि हो ऐसी स्वस्थ राष्ट्रवादी विचारों से ओत प्रोत होकर लोकतंत्र के इस महापर्व हम सब बढ़ चढ़कर हिस्सा ले और सशक्त भारत स्वस्थ भारत एक भारत श्रेष्ठ भारत का निर्माण करे।
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