भूख लत है
अखबार में छपा था कि
तुरंत कार्रवाई होगी
उन इलाकों में
जहाँ भूख से हो रहीं हैं मौतें
आगे लिखा था
शिविर लगाया जायेगा
सबकी स्वस्थ्य जाँच होगी
और फ़ूड पैकेट बांटे जाएंगे
एक व्यक्ति का
मरने से पहले लिया गया
बयान भी छपा था
उसने कहा था कि
” पहले भूख मज़बूरी थी साहब
लेकिन अब लत है
और प्राण के साथ ही छूटेगी ”
घरों में मिट्टी के बुझे चूल्हों में
राख-ही-राख बाकी है
लेकिन तंत्र बेखबर है कि
भूख जब लत बन जाती है
तब राख से भी जला ली जाती हैं मशालें
सालों तक अखबार छापता रहा
तुरंत कार्रवाई होगी
और जिनको भूख की लत थी
वे जलाते रहे मशालें
अखबार में फिर छपा कि
अब भूख से मौत की खबरें नहीं आती
अलबत्ता देशद्रोही करार दिए गए
और मुतभेड में मारे गए लोगों की
संख्या में भारी इज़ाफा हुआ है
इस प्रकार हो रही है
तुरंत कार्रवाई
और साबित हो रहा है कि
भूख लत है
एक जानलेवा लत
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2.
आसमानों को रंगने का हक
बारिश होने लगी फिर
उठने लगी
ज़मीन से सौंधी-सौंधी महक
जिसमें चीखने लगा खून
फिर मेरे बाप-दादाओं का
जिस जमीन को हम जोतते चले आये
हरी-भरी बनाते चले आये
सींचते चले आये खून से पीढ़ी-दर-पीढ़ी
जिस जमीन में मिल कर
हमारे खून की तीक्ष्ण गंध सौंधी हो गयी है
उस जमीन के लिए खून लेने का हक हमें चाहिए
शोषकों के संगीनों को
उनकी ही तरफ मोड़ने का हक भी हमें चाहिए
मिट्टी में सनी लालिमा से
आसमानों को रंगने का हक भी हमें चाहिए
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3.
बदन पर सिंकतीं रोटियाँ
गरम-गरम रोटियों के लिए
तुम्हारे भी पेट में
आग धधकती होगी
कितना अच्छा लगता है
जब माँ या पत्नी तुम्हारे लिए
सेकतीं है गरमा-गरम रोटियाँ
लेकिन
एक गली है इस शहर में
जहाँ रोटियाँ तवे की मुहताज नहीं हैं
बल्कि बदन पर सेंकीं जाती है
यहाँ बदन को तपाकर
इतनी गर्मी पैदा कर ली जाती है कि
उस पर रोटियाँ सेंकी जा सके
तुम जान भी नहीं पाते हो
कि तुम्हारी सहानुभूति के छींटे
कब छनछनाकर उड़ जाते हैं
इस लहकते शरीर से
यहाँ शरीर की रगड़न से पैदा हुई
चिंगारियों को अंगीठी में सहेज कर
क्रूर सर्द रातों को गुनगुना बनाया जाता है
इस गली तक चल कर आते हैं
शहर भर के घरों से रास्ते
और शायद यहीं पर खत्म हो जाते हैं
क्यूंकि इस गली से कोई रास्ता
किसी घर तक नहीं जाता
तुम बात करना अगर मुनासिब समझो
तो जरा बताओ कि क्या तुमनें कभी
बदन पर सिंकतीं हुई रोटियों को देखा है यहाँ
शायद नहीं देखा होगा
क्यूंकि यहाँ से निकलते ही
जब तुम अपनी पीठ
इस गली की तरफ करते हो
नजरें चुराने में माहिर तुम्हारी आँखें
सिर्फ अपने घर के दरवाजे पर टिकी होती है |
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4.
एक मौत ही साम्यवादी है
वह माटी की सौंधी गंध का मुरीद था
सुनता था कहीं कोई चटकन सुनायी तो नहीं देती
कलियों के फूल बनने की प्रक्रिया में
इन्द्रधनुष की खबर
गाँव भर में देता फिरता सबसे पहले
पैरों के तलवे को छूने वाली
एक-एक ओस की बूंद को वह पहचानता था
बसंत में वह ऐसे झूमता जैसे
गुलमोहर और पलास उसी के लिये रंग बिखेरने आये हों
अगर अपनी धुन में जीता
तो वह कवि होता
लेकिन फांकाकशी में
चाँद भी रोटी दिखता है
कब तक सौन्दर्यबोध में जीता
और दवाईयों के लिए
लोगों के सामने हाथ फैलाता
भूख की लड़ाई में
एक के बाद एक
सबने अलविदा कहा
पिता, बड़ा भाई, माँ और चाचा
और वह जान पाया कि
हर काली रात एक
सुर्ख सुबह पर जा कर ख़त्म होती है
जहाँ सब के हिस्से में एक बराबर आती है मौत
इस क्रूर व्यवस्था में
एक मौत ही साम्यवादी है
उसने जो पहली कविता लिखी
वह कविता नहीं, सुलगते कुछ सवाल थे
या कहें चंद सवालात की पूरी कविता
कि आखिर वह कौन है जो
समाजवादी तरीकों से मौत तय करता है
और जिंदगी बाँटते समय पूंजीवादी हो जाता है ?
वह कौन सा फार्मूला है कि
जिन मुश्किल दिनों में बामुश्किल
मेरे घर में कफ़न खरीद कर लाये जाते हैं
उसी दौर में पडोसी के घर
चर्बी घटाने की मशीनें आती है ?
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5.
बुरका
जब खुदा मेरी देह बना रहा था
उसी समय उसने
तुम्हारी आँखों पर
बनाया था हया का पर्दा
तुमनें मन की कालिमा से
एक लिबास बनाया
और
हमने पहन लिया
तुम्हारी कालिख छिपाने के लिए
तुम हमेशा मुझे पर्दे के मायने समझाते हो
और मैं हाँ-हाँ में सिर हिलाती हूँ
मन करता है
तुम्हारी बातों की मुखालफत करूँ
मैं जानती हूँ कि
बेहयाई मेरे बदन में नहीं है
जो ढँक लूँ किसी लिबास से
बल्कि
वो तैर रही है तुम्हारी आँखों में
बागी, बेख़ौफ़ लड़ती हुई हर पल
हया के पर्दे से
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6 .
गुंजाइशों का दूसरा नाम
लो वह दिन भी आ गया
जब हमारा खून गर्म तो होता है
लेकिन
उबलता नहीं है
सूख कर कड़कड़ाई हुई साखों में
रगड़ तो होती है मगर
अब वो चिंगारी नहीं निकलती
जिससे धू-धू कर
जंगल में आग लग जाती थी
आयरन की कमीं वाले हमलोगों नें
अपने खून में लोहे की तलाश भी छोड़ दी है
जिससे बनाए जाते थे खंजर
यह
उबाल रहित खून
आग रहित जंगल और
खंजर रहित विद्रोह का नया दौर है
फिर भी मजे की बात तो यह है कि
यहाँ समाजवाद
अजय भवन के मनहूस सन्नाटे में
आगंतुकों की बाट जोहती
कामरेड अजय घोष की मूर्ति नहीं
बल्कि
छांट कर रखी गयीं
पुस्तकालय की किताबों के चंद मुड़े हुए पन्नों में
बची गुंजाइशों का दूसरा नाम है
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7.
सलीब
दिशाओं के अहंकार को ललकारती भुजाएं
और
चीखकर बेदर्दी की इन्तहां को चुनौती देतीं
हथेलियों में धसीं कीलें
एक-एक बूंद टपकता लहू
जो सींचता है उसी जमीन पर
लगे फूल के पौधों को
जहाँ सलीब पर खड़ा है सच
जब भी लगता है कि
हार रहा है मेरा सच
सलीब को देखता हूँ
लगता है कोई खड़ा है मेरे लिए
झूठ के खिलाफ
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8.
कई बार लगा
कई बार लगा
मैनें लाँघ दी सीमाएँ
कई बार लगा
हैसियत से ज्यादा बोल गया
कई बार लगा
मैं दायरों से बाहर निकल रहा हूँ
कई बार लगा
मैं खडा हूँ वहीं और दायरे मुझसे बाहर निकल रहे हैं
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9.
गिरफ्त
तुम गिरफ्त में लेते हो
कुछ इस तरह
जैसे आकाश
पंक्षी को कैद करता है
उन्मुक्त रहने का
भ्रम भी रहे
और
बहार न निकल पाने की
असमर्थता भी ।
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10.
पर्दा
न रौशनी रूकती है
न ठंढी हवाएं
अब तो इन
पर्दों को बदल डालो ।
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11.
शहर में चांदनी
भागो कि सब भाग रहे हैं
शहर में
कंकड़ीले जंगलों में
मुंह छिपाने के लिए
चाँद
ईद का हो या
पूर्णिमा का
टी.वी. में निकलता है अब
रात मगर क्या हुआ
मेरी परछाई के साथ
चांदनी चली आई
कमरे में
शौम्य, शीतल,
उजास से भरी हुई
लगा मेरा कमरा
एक तराजू है
और
मै तौल रहा हूँ
चांदनी को
एक पलड़े में रख कर
कभी खुद से
कभी अपने तम से
लगा रहा हूँ हिसाब
कितना लुट चुका हूँ
शहर में !
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12..
मन का कारोबार
मन के कारोबार में
प्यार की पूंजी
दाव पर होती है
कोई बही-खाता नहीं होता
इसलिए
तुम्हारी शर्तें
सूद की तरह
चढ़ती गयीं मुझपर
जिसे चुकाते-चुकाते
अपने मूलधन को
खो रहा हूँ
तमाम मजबूरियों के बावजूद
मैं कारोबारी हो रहा हूँ
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13.
विकल्प
बारूदी सुरंग सा जीवन
तुम्हारे दमनकारी जूतों के इंतज़ार में
तैयार है विस्फोट के लिए
जिन्दा रहना ही जब सबसे बड़ा सवाल हो
तब विकल्प हो जाते हैं सिमित
और चुनना पड़ता है
भूख या बन्दूक
चुनना पड़ता है
जिन्दा रहने की चाह में
मौत का एक विकल्प
आत्महत्या या मुठभेड़
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14.
कॉमरेड की मौत
आज लाल चौक पर
चुपचाप सोया है,
अक्टूबर क्रांति का शेर
तटस्थ है,
प्रतिवाद नही करता,
क्रांति की बातें भी नही
इस तरह हो जाती है
एक कॉमरेड की मौत
जब वह
चुप रहता है,
तटस्थ रहता है,
प्रतिवाद नहीं करता,
क्रांति की बातें भी नहीं
शब्दार्थ
लाल चौक – मास्को (रूस) का रेड स्क्वायर, जहाँ लेनिन की समाधि है ।
कॉमरेड – साथी (साम्यवाद की लडाई में हमकदम) ।
अक्टूबर क्रांति – 1917 में लेनिन के नेतृत्व में हुई रूसी क्रांति, जो सर्वहारा समाजवादी क्रांति थी
जिसमें जनवादी क्रांति के शक्तिशाली तत्व थे।
15.
हांफ रही है पूंजी
बहुत तेजी से भागती है पूंजी
मानो वक्त से आगे निकल जाना हो इसे
मानो अपनी मुट्ठी में दबोच लेना हो समूचा ब्रह्माण्ड
समूची धरती, खेत, नदियाँ और पहाड़
बच्चों की किलकारियां,
मजदूरों का पसीना,
किसानों का श्रम,
मेहनतकशों के हकूक,
आज़ादाना नारे,
और वह सब कुछ
जो उसकी रफ़्तार के आड़े आता हो
वह बढ़ाना चाहती है अपनी रफ़्तार प्रतिपल
लेकिन बहुत जल्दी हांफने लगती है पूंजी
और जब पूंजी हांफने लगती है
तब खेतों में अनाज की जगह बन्दुकें उगाई जाती है
भूख के जवाब में हथियार पेश किये जाते हैं
परमाणु, रासायनिक और जैविक
पूंजी पैदा करती है दुनियां के कोने-कोने में रोज नए
भारत-पकिस्तान
उत्तर-दक्षिण कोरिया
चीन-जापान
इसराइल-फिलिस्तीन
फिर हंसती है दोनों हाँथ जंघों पर ढोंक कर
सोवियत संघ के अंजाम पर
अफगानिस्तान पर
ईराक पर
मिश्र पर
अपनी हंसी खुद दबाकर
बगलें झांकती है पूंजी
वेनुजुवेला और क्यूबा के सवाल पर
दम फूल रहा है प्रतिपल
हांफ रही है पूंजी
और खेतों में अनाज की जगह उग रहीं हैं बन्दुकें
पूंजी आत्मघाती हो रही है दिन-ब-दिन
———————————————
16.
अनगढ़ पत्थर
सदियों से
हमें यह सिखाया गया है कि
पत्थर छेनी और हथौड़ी से तराशे जाते हैं
और हम देते चले आये हैं
पाषाण खण्डों को विभिन्न आकार
छेनी की धार और हथौड़ी की मार को
पत्थर पहचानते हैं और
जो तराशे जाने को नियति मानते हैं
पूज्यनीय या शोभनीय हो जाते हैं
विशाल पर्वतों और दुर्गम पठारों में
आज भी हैं विलक्षण शिलाखण्ड
जो तराशे नहीं गए
इसलिए पूजे या सजाये भी नहीं गए
पहाड़ों के स्वाभाविक सौन्दर्य का हिस्सा बनकर
वे चेतना के अंकुरण की बाट जोह रहे हैं
जब भी कभी जीवन संगीत
इन पहाड़ों पर बजेगा
सबसे पहले उठ खड़े होंगे
ये अनगढ़ पत्थर
आकार से मुक्त और चेतन
————————————–
17. रौशनदान
सोचता हूँ किसने बनाया होगा
सबसे पहले अपने घर में रौशनदान
दिन ढलते ही रौशनदान से
अन्धेरा भी दाखिल हो जाता है कमरे में
और मुझको लगता है कि
रौशनदान की मिलीभगत
रौशनियों से कम और अंधेरों से ज्यादा है
घर के अन्दर बना एक घर
जहाँ मुझसे ज्यादा समय
कबूतर अपनी मादा के साथ रहता है
जिनकी गुटरगूँ मुझे ही दखलअंदाज बतातीं हैं
मैं अक्सर दबे पाँव कमरे से बहार आ जाता हूँ
नींद से ठीक पहले
जब ऑंखें और कमरे को बत्ती बंद होती है
मैं देख पाता हूँ
एक रौशनदान जड़ा है दूर क्षितिज पर
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18 .
चाँद की वसीयत
चाँद नें अपनी रातों की बादशाहत का विस्तार करना चाहा
उसने बनाई एक वसीयत
जिसमें एक मटरगस्त को
आधी सल्तनत दे दी गई
जिसे रात भर जागने और भटकने की लत हो और
जो बुन सके सौम्यता की इतनी बड़ी चादर
जिससे पूरी कायनात पर जिल्द चढ़ाया जा सके
इस तरह मेरे हिस्से में जमीन आई और
उसके पास रहा आसमान
रातों को ये दोनों सुलतान
भटकते हैं अपनी-अपनी रियाया की तपिश
बटोरने के लिए
जिसे ढ़ोकर उतर जाते हैं
क्षितिज की गहरी घाटियों में
———————————–
19.
सबसे ज़रूरी शर्त
दोनों हाथों से
मैं पेट पकड़ कर
भूख टटोल रहा था
कल-परसो से नहीं
बरसों से
न जाने तुम कब आए
और मेरी छाती पर
लिख गए इन्कलाब
बस उस दिन से
मेरे सवालात सिर्फ मेरे नहीं रहे
आसमान की लालिमा
चेहरे पर उतर आई
पेट को जकड़कर रखे हाथ
मुट्ठी बन हवा में लहराने लगे
फिर बारी आई कन्धों की
जहाँ झंडे फहराए गए
सिर की,
जहाँ टोपी लगाई गई
आँखों की,
जहाँ सजाये गए
बदले हुए कल के सामान
मुँह की,
जिसमें बारूद भरे गए
छाती, कंधे, सिर और आँखों के बाद
तुम ठहर गए
मैनें तुम्हें अपना पेट दिखाया
जो अभी भी खाली था
और उपलब्ध भी
तुमने मुनासिब नहीं समझा
इस संदिग्ध पेट को हाथ लगाना
तुम जानते थे
अच्छी तरह कि
तुम्हारे बदलाव की लहर में
मेरे पेट का खाली रहना
सबसे ज़रूरी शर्त है
————————————-
20.
घर-बाज़ार
जैसे-जैसे मुहल्ले में
भीड़ बढ़ती गई
बाज़ार को जगह देने के लिए
घर सिमटने लगे
पता ही नहीं चला
कब दबे-पाँव घरों में
घुस आया बाज़ार
शहर के तंबू में
पनाह लिए हुए
गाँव सोचता है
कि कोई और गाँव आए
तो दुआ-सलाम हो
——————————————–
सुशील कुमार : संक्षिप्त परिचय
जन्म – 1978, झारखण्ड के हजारीबाग में | शिक्षा – समाज सेवा में स्नातकोत्तर । वर्षों से सामाजिक क्षेत्र में सक्रिय रूप से कार्यरत | लम्बे समय तक एच.आई.वी. / एड्स जागरूकता के लिए उच्य जोखिम समूह (यौन कर्मियों, समलैंगिकों व ट्रकर्स) के साथ कार्य का अनुभव | साथ ही साथ जन सरोकार के मुद्दों के साथ सक्रियता से जुड़कर काम करते रहे हैं | वर्तमान में दिल्ली स्थित एन. जी.ओ. कंसल्टेंसी कंपनी गोल्डेन थाट कंसल्टेंट्स प्राइवेट लिमिटेड के साथ चीफ कंसल्टेंट के रूप में कार्यरत है और कई सामाजिक, सरकारी एवं गैर-सरकारी संस्थाओं (जैसे नाको, यूनिसेफ, वी.वी.गिरी राष्ट्रीय श्रम संस्थान आदि) के साथ प्रशिक्षक, मूल्यांकनकर्ता व सलाहकार के रूप में जुडाव | पता : ए-26/ए, पहली मंजिल, पांडव नगर, मदर डेरी के सामने, दिल्ली-110092 ई-मेल : goldenthoughtconsultants@gmail.com ब्लॉग : http://sambhawnaonkashahar.blogspot.in
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