( तनवीर जाफरी **} भारतीय लोकतंत्र कहने को तो विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र है। परंतु दरअसल हमारे देश का ‘लोक’ विभिन्न वर्गों में जितना अधिक विभाजित है उतना शायद किसी अन्य लोकतांत्रिक देश का नहीं होगा। मज़े की बात तो यह है कि इस व्यवस्था के स्वयं जि़म्मेदार राजनीतिज्ञ विभिन्न श्रेणियों में आम भारतीयों के बंटे होने की सार्वजनिक तौर पर आलोचना तो करते हैं परंतु समय आने पर अथवा ज़रूरत पडऩे पर इसी भारतीय समाज में बन चुकी विभिन्न श्रेणियों अथवा वर्गों के बीच $फासला और अधिक बढ़ाने का काम भी करते हैं। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे राजनैतिक दलों का प्रयास भी यही होता है कि वे देश की संसदीय व विधानसभाई सीटों पर ऐसे प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारें जिनकी अपनी जाति अथवा धर्म के मतदाताओं का निर्वाचन क्षेत्र विशेष में या तो बहुमत हो या फिर उनका मज़बूत संख्या बल हो। हालांकि ऐसा करना भारतीय संविधान अथवा राजनैतिक दलों की अपनी नियमावली में कतई उल्लिखित नहीं है। परंतु राजनीति के बिगड़ते चेहरे तथा सत्ता तक किसी भी प्रकार से पहुंचने की राजनीतिज्ञों की चाहत ने उन्हें ऐसी व्यवस्था बनाने व उनपर अमल करने के लिए गोया मजबूर कर दिया है।
जाति के आधार पर आमतौर पर पार्टी द्वारा टिकट आबंटित किए जाने की यह परंपरा अब एक $खतरनाक मोड़ पर जा पहुंची है। कई सत्तालोभी राजनैतिक दल अब जातिगत आधार पर समाज के विभाजन से भी दो $कदम आगे बढक़र समाज के धर्म आधारित विभाजन के रास्ते पर चल पड़े हैं। और गुजरात जैसे राज्य को इन्होंने आ$िखरकार अपनी इस नापाक मंशा का शिकार भी बना डाला है। ऐसी शक्तियों का प्रयास है कि यह प्रयोग पूरे देश में किए जाएं तथा गुजरात की ही तरह पूरे देश को धर्म के आधर पर िफलहाल वैचारिक रूप से विभाजित कर देश के बहुसंख्यक मतदाताओं से अपने पक्ष में मतदान कराए जाने का वातावरण तैयार किया जाए। अपनी इस इच्छा पूर्ति के लिए कभी तो अयोध्या में बैठे-बिठाए अकारण तथा बिना किसी पारंपरिक रीति-रिवाज के बेमौसमी चौरासी कोसी परिक्रमा घोषित कर दी जाती है तो दूसरी ओर इसी परिक्रमा को कुछ इस तरह दबाने का प्रयास किया जाता है गोया यह साधू-संतों की परिक्रमा न होकर देश की एकता के लिए $खतरा पैदा करने वाले सबसे बड़े प्रयास हों। बहरहाल पिछले दिनों मीडिया की सुिर्खयां बटोरने वाली 84 कोसी अयोध्या परिक्रमा उत्तर प्रदेश सरकार की सख्ती के चलते अपना पूरा रंग नहीं दिखा सकी और विवादों के बीच संपन्न भी हो गई। प्राप्त समाचारों के अनुसार अब एक बार पुन: 84 कोसी परिक्रमा के वही आयोजक अयोध्या में पांच कोसी परिक्रमा करने का प्रयास कर रहे हैं। इस बार की प्रस्तावित यात्रा को लेकर आयोजकों का तर्क है कि 84 कोसी प्रस्तावित परिक्रमा को राज्य सरकार ने अपारंपरिक व असामयिक कहकर रोकने का प्रयास किया था। परंतु पांच कोसी परिक्रमा 12 महीने व 24 घंटे चलती रहती है। लिहाज़ा सरकार इसे रोकने का प्रयास नहीं कर सकती। $खबरों के अनुसार इस यात्रा को सफल बनाने हेतु तथा इसमें भीड़ जुटाने की $गरज़ से साधू-संतों का अयोध्या पहुंचना शुरु भी हो गया है।
देश को सांप्रदायिकता की आग में झोंकने की इसी मुहिम में पिछले दिनों उत्तर प्रदेश का मुज़फ्फरनगर जि़ला सांप्रदायिकता की आग में जल उठा। सांप्रदायिकता की यह आग पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जि़लों में भी जा पहुंची। केंद्र व राज्य सरकार की चौकसी तथा सा$फ नीयत होने के कारण हालांकि इस क्षेत्र में फैलने वाली सांप्रदायिक हिंसा को तो सेना की तैनाती कर तथा कई जगहों पर सेना का फ्लैग मार्च करवा कर इसे नियंत्रित तो ज़रूर कर लिया गया। परंतु प्राप्त खबरों के अनुसार सांप्रदायिकता की आग को हवा देने व इसको भडक़ाने के प्रयास में लगे राजनीतिज्ञ का$फी हद तक अपने म$कसद में कामयाब भी हो गए। अर्थात् इस क्षेत्र में सांप्रदायिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण होने के समाचार अभी से आने लगे हैं। अलग-अलग राजनैतिक दल अलग-अलग संप्रदाय के लोगों के प्रति अपना लगाव व सहानुभूति दर्शा रहे हैं। भारतीय राजनैतिक व्यवस्था का यह कितना भयावह व डरावना सत्य है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हाल में दंगा प्रभावित क्षेत्रों के दोनों ही धर्मों के लोगों के कई सदस्य अभी तक लापता हैं। कई ऐसे लोग हैं जिनकी बेटियां व बेटे अभी तक उनके घरों तक वापस नहीं पहुंचे हैं। दोनों ही समुदायों के कई लोग ऐसे भी हैं जिन्होंने अपने परिवार के सदस्यों को अपनी नज़रों के सामने कटते व मरते देखा है। इन लोगों के दिलों पर इस समय क्या गुज़र रही होगी इस बात का अंदाज़ा केवल भुक्तभोगी परिवार ही लगा सकता है। पंरतु इन सबकी पीड़ा से बे$खबर व बे$िफक्र राजनीतिज्ञ इस सांप्रदायिक हिंसा से लाभ व हानि के समीकरण बिठाने में अभी से लग गए हैं। कोई स्वयंभू रूप से बहुसंख्यकों का हमदर्द बना बैठा है तो कोई अल्पसंख्यकों को ही अपना भाग्य विधाता समझे हुए है।
जहां तक मुज़फ्फरनगर व आसपास के क्षेत्रों में भडक़े सांप्रदायिक दंगों का प्रश्र है तो मुज़फ्फरनगर में घटी प्रेम प्रसंग की इस घटना ने तथा इसमें हिंसा यहां तक कि हत्या हो जाने के बाद इस मामले ने राजनीतिज्ञों की ‘कृपा दृष्टि’ के चलते सांप्रदायिक दंगों का रूप धारण कर लिया तथा इन दंगों के बाद राजनीतिज्ञ इसमें अपनी मनचाही $फसल तलाशने लगे। परंतु यह राजनीतिज्ञ तो अपने नापाक इरादों को परवान चढ़ाने में इतने पारंगत हैं कि यह बिना किसी कारण के भी कारण पैदा करने की पूरी क्षमता रखते हैं। तिल का ताड़ बनाना या बिना बात के बतंगड़ खड़ा करना इन राजनीतिज्ञों के बाएं हाथ का खेल है। याद कीजिए भीष्म साहनी द्वारा भारत-पाक विभाजन पर आधारित वास्तविकताओं को उजागर करने वाला टीवी धारावाहिक ‘तमस’ जिसमें राजनीति के माहिर व रणनीतिकार किस प्रकार सांप्रदायिकता का ज़हर समाज में घोलने तथा दंगे कराकर एक-दूरे धर्म के लोगों का खून बहाने की योजना के तहत बड़े ही नियोजित ढंग से मस्जिद में सुअर का मांस तथा मंदिर में गौमांस रखवा देते हैं। और उसके बाद किस प्रकार आहत होती हैं दोनों ही धर्मों के लोगों की धार्मिक भावनाएं और कैसे जंगल की आग की तरह फैलती है सांप्रदायिकता की यह चिंगारी। हमारे देश में आज़ादी के बाद कई बार ऐसा पाया गया जबकि राजनीति से प्रेरित शरारती तत्वों द्वारा राजनीतिज्ञों के इशारे पर जानबूझ कर सांप्रदायिकता फैलाने व बेवजह दंगे-फ़साद भडक़ाने के प्रयास किए गए हों।
ऐसे में हम शांतिप्रिय भारतीय नागरिकों को राष्ट्रहित एवं राष्ट्र के विकास के दृष्टिगत् यह सोचने की ज़रूरत है कि हमें स्वयं को इनके हथकंडों व इनके नापाक इरादों से कैसे बचकर रहना है। उदाहरण के तौर पर यदि अयोध्या के विवादित राम मंदिर-बाबरी मस्जिद प्रकरण की ही बात करें तो इसमें भी मंदिर व मस्जिद दोनों ही पक्ष के राम भक्तों व तथाकथित अल्लाह वालों की ओर से केवल और केवल राजनीति ही तो दिखाई देती रही है। जिस राम मंदिर के निर्माण के संकल्प को लेकर लाल कृष्ण अडवाणी ने रथ यात्रा निकाली तथा अपनी रथ यात्रा के अधिकांश मार्ग में सांप्रदायिक दंगों की लपटें पैदा कर दीं। उनके इन प्रयासों से ही उनकी पार्टी को देश में होने वाले चुनाव में अब तक की सबसे अधिक सीटें भी प्राप्त हुई। और 183 के संख्या बल तक ‘रामजी’ की कृपा से ही पहुंचने के बाद अपनी सरकार बनाने के समय सत्तालोभियों एवं तथाकथित स्वयंभू रामभक्तों ने मंदिर निर्माण के विषय को ही किनारे रख दिया। आ$िखर क्या कारण था कि इस मुद्दे को लेकर खुलेआम इन शक्तियों ने पूरे देश में सांप्रदायिकता फैलाई, दंगे भडक़ाए, सैकड़ों बेगुनाह भारतीय लोग इन दंगों में मारे भी गए। फिर आ$िखर सत्ता में आने की चाहत में राम मंदिर निर्माण के विषय को त्यागने की क्या आवश्यकता थी? क्या मंदिर मुद्दा त्यागकर सत्ता सुख भोगना इस बात का सुबूत नहीं है कि मंदिर निर्माण अथवा धार्मिक भावनाओं को भडक़ाना आदि बातें तो महज़ एक बहाना है जबकि असली म$कसद तो इस प्रकार छल-कपट व पाखंड रचकर मात्र सत्ता को ही पाना है?
कुछ ऐसे ही वादे पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव एवं तथाकथित मुस्लिम शुभचिंतकों द्वारा भी किए गए थे। अल्पसंख्यकों को अपनी ओर रिझाने हेतु बाबरी मस्जिद के निर्माण का वादा तथा आश्वासन दिया जाता रहा। कभी किसी अडवाणी जैसे नेता को गिर$फ्तार कर मुस्लिम समर्थक दिखाई देने की कोशिशें की गईं तो कभी किसी धार्मिक यात्रा को $खतरा बताकर उसे प्रतिबंधित कर धर्म विशेष के वोट झटकने के प्रयास किए गए। परंतु जो परिणाम सामने हैं वह यही हैं कि न तो अब तक मंदिर बना और न ही मस्जिद। हां समाज के इन नेताओं के सफल प्रयोग बदस्तूर जारी हैं। हिंदुओं को मंदिर व मुसलमानों को मस्जिद मिले या न मिले परंतु समाज को विभाजित करने वाले इन राजनीतिज्ञों को हर पांच साल बाद इसी हिंदू-मुस्लिम व मंदिर-मस्जिद जैसे विभाजनकारी मुद्दों पर सवार होकर सत्ता ज़रूर मिल जाया करती है। ताज़ा आ रही $खबरों के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बाद अब पूर्वी उत्तर प्रदेश के सांप्रदायिकता की आग से खेलने वाले चिरपरिचित खिलाड़ी 2014 के चुनाव से पूर्व केवल धार्मिक आधार पर मतों के ध्रुवीकरण की िफराक में किसी छोटी सी चिंगारी को जंगल की आग का रूप देने के प्रयास में हैं। भूख,बेरोज़गारी, गरीबी व मंहगाई जैसी बुनियादी समस्याओं से जूझ रहे भारतीय समाज को ऐसे दुष्प्रयासों से बचने व सचेत रहने की ज़रूरत है।
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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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