राजस्थान में बाड़़मेर जिले के रेगिस्तानी क्षेत्र में कुमट के पेड़ किसानों के लिये अतिरिक्त आय का बढ़िया जरिया बन गये है । एक समय इन पेड़ों से नाम मात्र का गोंद प्राप्त होता था, लेकिन जोधपुर स्थित केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान “काजरी“ द्वारा विकसित तकनीक अपनाने के बाद एक पेड़ से एक मौसम में आधा से पौन किलो उच्च गुणवत्ता वाला गोंद मिलने लगा है ।
एक समय इन पेड़ों से बहुत ही कम गोंद प्राप्त होता था तथा इसकी लकड़ी काट कर लोग ईंधन के रूप में इस्तेमाल करते थे, लेकिन काजरी ने भारतीय अर्थव्यवस्था में गोंद की उपयोगिता और औषधीय महत्व को ध्यान में रखकर कुमट के पेड़ों से अधिक गोंद हासिल करने के प्रयास किये । साथ ही इस बात का पूरा ध्यान रखा कि गोंद प्राप्त करने के चक्कर में पेड़ सूख कर खत्म न हों ।
गौरतलब है कि अरब में इन पेड़ों की छाल हटा उस स्थान पर रसायन का इस्तेमाल कर गोंद प्राप्त किया जाता था । इस विधि से गोंद तो निकलता था, लेकिन पेड़ मर जाता । किन्तु काजरी के वैज्ञानिकों ने पहले अपने संस्थान में और बाद में किसानों के खेतों में जाकर कुमट के पेड़ों में नुकीले औजार से छेद कर उसमें इन्जेक्शन द्वारा निर्धारित मात्रा में रसायन प्रविष्ट करा प्रयोग किये और इसमें उन्हें सफलता हासिल हुई।
बाद में बेटरी संचालित ड्रिल मशीन से यह काम किया जाने लगा । इसके तहत पेड़ के तने में डेढ़ से दो सेंटीमीटर व्यास का एक से डेढ़ इंच गहरा छेद कर उसमें साढ़े तीन से चार मिलीमीटर इथेफान सोल्युसन इंजेक्शनल के माध्यम से प्रविष्ट कराते और छेद को तालाब की काली चिकनी मिट्टी मोम या लुगदी से बंद किया जाता है। इसके बाद पांच से दस दिन के अंतराल में गोंद निकलना शुरू होने लग जाता है ।
काजरी में वर्षों तक अपनी सेवाएं देने वाले वरिष्ठ कृषि विज्ञानी एल एन हर्ष बताते हैं कि इन पेड़ों में इंजेंक्शन से रसायन प्रविष्ट कराने का समय 15 फरवरी से मई तक रहता है । चट्टानी क्षेत्र में स्थित कुमट पर यह प्रयोग सफल नहीं रहता, जबकि नाले के किनारों पर स्थित पेडों पर इसके बहुत अच्छे परिणाम आये हैं। उन्होंने बताया कि चैहटन. फलौदी. मोडकिया. जाम्बा में कुमट के पेड़ सफलता की कहानी बयां कर रहे हैं ।
श्री हर्ष के मुताबिक पेड़ों में इंजेक्शन से रसायन प्रविष्ट कराने की जानकारी एवं प्रशिक्षण कुमट बहुल इलाकों के काश्तकारों को संस्थान में बुलाकर दिया गया है ताकि वे अपने खेतों और आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में पेड़ों में इंजेक्शन के माध्यम से अधिक से अधिक गोंद प्राप्त कर अच्छा पैसा कमा सकें । काजरी इसके लिये किसानों को रसायन उपलब्घ कराता है ।
एक पेड़ में रसायन का एक इंजेक्शन लगता है और उसे लगाने का खर्चा 15 से 20 रूपये आता है । इसमें रसायन की कीमत भी शामिल है । उन्होंने बताया कि शुरू में काजरी द्वारा रसायन का एक डोज पांच रूपये में किसान को उपलब्ध कराया जाता था । अब इसकी दर बढ़ाकर दस रूपये की गयी है । बाड़मेर और समीपवर्ती इलाकों के लगभग पांच हजार किसान कुमट के पेड़ों से गोंद प्राप्त करने की तकनीक का लाभ उठा रहे हैं । काजरी ने 1997 में जब इस कार्य की शुरूआत की उस समय नौ हजार रूपये का रसायन इस्तेमाल हुआ था । धीरे-धीरे बढ़ कर अब लगभग दो लाख रूपये के रसायन का उपयोग हो रहा है ।
गोंद की खेती के संबंध में बाड़मेर जिले की बायतु तहसील के जाखड़ा गांव के किसान रेखाराम का कहना है, ”मैंने काजरी से दो दिन की ट्रेनिंग ले रखी है तथा फरवरी से मई के दौरान जोधपुर जिले की शेरगढ़ और बायतु तहसील के गांवों में स्थित कुमट के पेडों में इंजेक्शन लगाने का कार्य करता हूं । मौसम के दौरान लगभग बारह- तेरह सौ पेड़ों में इंजेक्शन लगाता हूं । एक पेड़ में इंजेक्शन लगाने के 15 से 20 रूपये लेता हूं । इसमें रसायन की कीमत अलग है । इंजेक्शन उन्हीं पेड़ों पर लगाया जाता है, जो कम से कम पांच सात साल का होता है ।
मेरे खुद के खेत पर कुमट के 50 पेड़ हैं । एक पेड़ से लगभग आधा से पौन किलो गोंद प्राप्त होता है । कुमट के पेड़ों पर फल के रूप में फलियां लगती हैं तथा एक पेड से दो से सात किलोग्राम फलियां मिल जाती हैं । ये फलियां 50 से 80 रूपये किलो के भाव से बाजार में बिक जाती है । फलियों के अंदर के बीज राजस्थान की मशहूर पंचकूटे की लजीज सब्जी में इस्तेमाल होते हैं। पेड़ की पत्तियां बकरियां चारे की रूप में खाती हैं । साल भर में कुमट के पेड़ों से मुझे 50 हजार रूपये की आय हो जाती है।”
जिले की चैहटन तहसील के बींजराड गांव के 60 वर्षीय मोटाराम ने फरवरी 2005 में जोधपुर स्थित काजरी में कुमट के पेड़ों से इंजेक्शन के जरिये गोंद प्राप्त करने का प्रशिक्षण लिया था । उनके पास लगभग एक सौ बीघा जमीन है, जिस पर मोठ. मूंग. बाजरा, ग्वार आदि की खेती करते हैं । खेत में खड़े बीस फुट ऊँचे कुमट के पेड़ों से 70 से 80 किलो गोंद प्राप्त हो जाता है। यह गोंद 300 रूपये से लेकर 800 रूपये किलो की दर से बिक जाता है। वे कहते हैं पेड़ों के तने में इंजेक्शन लगाने के सप्ताह भर बाद पेड़ के विभिन्न स्थानों से गोंद निकलना शुरू होता है। खेती-बाड़ी के साथ अतिरिक्त आय का यह एक अच्छा साधन कहा जा सकता है।
नोट: इस लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचार उसके अपने है और यह जरूरी नहीं कि वे आई.एन.वी.सी के विचारों को प्रतिबिम्बित करें।