आखिर कितनी बार आरक्षण

सुरेन्द्र अग्निहोत्री **,,

समय आ गया है अब यह निर्णय हो ही जाना चाहिऐ कि आखिर आरक्षण कितनी बार एक ही व्यक्ति को दिया जाये। पहले च्चिक्षा में, फिर नौकरी में, फिर प्रमोच्चन में, फिर और बड़े प्रमोच्चन में जब तक सीनियर जूनियर न हो जाये। यह सिलसिला चालू रहे और हमारा संविधान के प्रदत्त अधिकार प्रतिद्गठा और अफसर की समता जब तक समाप्त न हो जाये। आखिर क्या हमने बाबा साहब अम्बेडकर के नेतृत्व में बने संविधान को इसीलिऐ अंगीकृत किया था। क्या आज के तथा कथित आकाओं का विच्च्वास संविधान के निर्माता द्वारा मूल भावनाओं से डिग गयी है?

सरकारी नौकरियों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के कर्मियों को जून १९९५ से प्रोन्नति में आरक्षण देने का प्रस्ताव है। मानसून सत्र में जो विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था उसमें इसका उल्लेख है। विधेयक में कहा गया है, यह भी जरूरी है कि संविधान के अनुच्छेद १६ के प्रस्तावित परिच्छेद (४ ए) को तभी से प्रभावी माना जाए जबसे यह परिच्छेद मूल रूप में पेश किया गया था। वह तिथि १७ जून १९९५ है। इसका अर्थ यह हुआ कि यह प्रावधान वर्ष १९९५ की उस तिथि से प्रभावी माना जाएगा जब एससी और एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण के लिए संविधान संशोधन किया गया था। अब यह संविधान संशोधन विधेयक कम से कम शीतकालीन सत्र तक के लिए लटक गया है। समाजवादी पार्टी व शिव सेना के विरोध और कोयला घोटाले के मुद्दे पर भाजपा के तेवर को देखते हुए ऐसा नहीं लगता कि अगले सत्र में भी यह पारित हो पाएगा। वर्ष १९९५ में ७७वां संविधान संशोधन किया गया था। उसमें एक नया परिच्छेद (४ ए) को जोड़ा गया था जिससे सरकार प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने में सक्षम हुई थी। बाद में वर्ष २००१ में ८५वें संविधान संशोधन के जरिए एससी और एसटी समुदाय के प्रत्याशी को आरक्षण प्रावधान के परिणाम स्वरूप वरीयता देने का प्रावधान किया गया। इस संविधान संशोधन की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। सुप्रीम कोर्ट ने एम नागराज के मामले में फैसला दिया कि संबंधित राज्य हर मामले में ऐसा किस कारण से मजबूर होकर किया गया यह बताने कहा। यह भी कहा कि प्रोन्नति में आरक्षण का प्रावधान करने से पहले पिछड ापन, प्रतिनिधित्व की कमी और कुल मिलाकर ऐसे उम्मीदवार की प्रशासनिक कार्यक्षमता के बारे में बताएं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के आधार पर राजस्थान और इलाहाबाद हाई कोर्ट दो राज्यों में प्रोन्नति में आरक्षण खत्म कर दिया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन दोनों हाई कोर्ट के फैसले को मान लिया। उसी के बाद यह संविधान संशोधन की तैयारी है।

सियासी दाव पेच में उलझा आरक्षण का जिन्न कितने बार इस देच्च को डसेगा द्रयाम बाबू के द्राब्दों में कहॉ जाकर रूकेगा आरक्षण यह सिलसिला ? आजादी के बाद से लागू आरक्षण व्यवस्था कम होने के बजाय इसका दायरा निरन्तर बड़ता जा रहा है। मात्र दस वद्गर्ाो से लागू इस व्यवस्था का कोई अन्त होता भी हाल फिलहाल नजर नही आ रहा है। सुप्रिम कोर्ट के प्रमोच्चन में आरक्षण को रद्‌द करने के फैसले के बावजूद सरकार फिरसे इसे बहाल करने की कोच्चच्च कर न्याय व्यवस्था पर प्रच्च्न चिन्ह लगा रही है। संविधान निर्माता डॉ० भीमराव अंबेडकर और देच्च के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू जातियों का भेद मिटाने और सभी तरह के आरक्षण को धीरे-धीरे खत्म किए जाने के हिमायती थे। संविधान निर्माताओं ने सरकार को समाज के एक ऐसे तबके को आगे करने के लिए आरक्षण का विवेकाधिकार दिया था, जो बरसों से पीछे था। पूर्व कैबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रहा्रण्यम का कहना है कि सरकार की नीति संविधान के अनुच्छेद १४ की मूल भावना के भी खिलाफ है। संविधान का यह अनुच्छेद कानून के सामने हर नागरिक को समान अधिकार देता है। अगर संविधान में बदलाव भी होता है तो इस बात की पूरी गुंजाइस है कि सुप्रीम कोर्ट इस संच्चोधन को संविधान की मूल भावना के खिलाफ मानते हुए रद्‌द कर सकता है। इस कथन के साथ सहमति जताते समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा प्रोन्नति में आरक्षण लागू करने को मंजूरी देना अनुचित और सामाजिक न्याय के सिद्वान्त के सर्वथा विपरीत है। सर्वोच्च न्यायालय ने २७ अप्रैल २०१२ के अपने फैसले में उत्तर प्रदेच्च में बसपा सरकार के आदेच्चों को असंवैधानिक करार दिया था। इसको संविधान संच्चोधन द्वारा पलटने की तैयारी के गम्भीर परिणाम होगें। उन्होंने कहा कि समाजवादी पार्टी प्रारम्भ से ही प्रोन्नति में आरक्षण का विरोध करती रही है।

मुलायम सिंह याद ने केन्द्र सरकार को इस सम्बन्ध में चेताया था कि वह सामाजिक विद्गामता और असंतोद्गा को बढ़ाने का काम न करें। प्रोन्नति में आरक्षण से जहां प्रच्चासनतंत्र में च्चिथिलता आएगी वही सामाजिक सद्‌भाव पर भी विपरीत प्रभाव पड ेगा। इससे सामान्य व पिछड ें वर्गो के कार्मिकों को मनोबल गिरेगा और वे संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार से वंचित हो जाएंगे। चौधरी ने कहा कि यह विधेयक संसद में पास नही होगा। यदि हो भी गया तो सुप्रीम कोर्ट इसे फिर रद्‌द कर सकता है। चिन्तक और वरिद्गठ पत्रकार निरंकार सिंह के द्राब्दों में यह बात बिल्कुल साफ है कि आरक्षित और गैर आरक्षित दोनों तबको द्वारा एक ही स्तर की निर्धारित परीक्षा उत्तीर्ण करने के पच्च्चात समान पद पर नियुक्ति प्राप्त होती है तो उसके पच्च्चात सभी सरकारी वर्ग के सेवक हो जाते है। इन सेवकों में भेद और विभेद करना और उन्हें जन्मजाति कारणों से सीनियर को रोक कर जूनियर को सीनियर बना देने की परिकल्पना प्राकृतिक न्याय के और सामाजिक न्याय के सर्वथा विपरीत है। सरकारी सेवाओं में प्रोन्नति का आधार कार्यच्चैली गुणवत्ता और अनुभव आदि मापदण्ड जो निर्धारित हमारे संविधान के अन्तर्गत किये गये उन्हें हटा कर संविधान संच्चोधन के माध्यम से नये नियमों को लागू करने से देच्च बट जायेगा। वैसविक करण के इस युग में जब तमाम विकसित देच्च जाति और देच्च की सीमाओं को तोड कर प्रतिभाओं का इस्तेमाल कर रहे है तो ऐसे किसी विधेयक का ध्क्या औचित्य हो सकता है जो देच्च को पीछे ले जाये।

सुप्रीम कोर्ट कें तीन फैसले
इंदिरा साहनी मामला

१६ नवम्बर १९९२ को इंदिरा साहनी मामले में सुनाए गए निर्णय में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने स्पद्गट व्यवस्था दी थी कि संविधान के अनुच्छेद १६ (४) के अंतर्गत नौकरी की द्राुरूआत में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के उम्मीदवारों को आरक्षण दिया जा सकता है, मगर पदोन्नति के लिए इसका विस्तार नही किया जा सकता।

नागराज मामला

१९ अक्टूबर २००६ को एम. नागराज में भी अपना निर्णय देते हुए सुप्रीम कोर्ट के संविधान पीठ ने साहनी मामले पर दिए गए निर्णय को ही अपना आधार बनाया था। भारत के तत्कालीन मुखय न्यायाधीच्च वाईएस सभरवाल की अध्यक्षता वाली इस संविधान पीठ में भारत के पूर्व मुखय न्यायाधीच्च रह चुके और वर्तमान राद्गट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति केजी बालाकृद्गणन और भारत के वर्तमान मुखय न्यायाधीच्च एसएच कपाडिया भी द्राामिल थे। इस संविधान पीठ ने स्पद्गट राय दी थी कि पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था संविधान के बुनियादी ढांचे और इसके अनुच्छेद १६ में दिए गए समता के अधिकार के खिलाफ है। एम. नागराज मामले में संविधान पीठ द्वारा दिए गए निर्णय में भी आरक्षण की सीमा ५० प्रतिच्चत तक सीमित रखे जाने, इन वर्गो के संपन्न तबके की अवधारण, पिछड़ेपन और अपर्याप्त प्रतिनिधित्व जैसे अपरिहार्य कारणों की अनिवार्यता का उल्लेख किया गया था। संविधान पीठ का मानना था कि इस व्यवस्था के बिना संविधान में दिया गया समान अवसर का उद्‌देच्च्य ही नद्गट हो जाएगा। इसके अलावा संविधान पीठ का यह भी मानना था कि राज्य अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए पदोन्नति में आरक्षण को व्यवस्था किए जाने हेतु कतई बाध्य नही है। इसकें बावजूद यदि कोई राज्य अपने विच्चेद्गााधिकार का इस्तेमाल करते हुए ऐसी कोई व्यवस्था करना चाहता है, तो उसे इस वर्गो के पिछड ेपन और सरकारी नौकरी में इनके अपर्याप्त प्रतिनिधित्व के आंकड े प्रस्तुत करने होंगे तथा अनिच्च्िचत काल तक के लिए आरक्षण विस्तार नही किया जा सकता, यह भी सुनिच्च्िचत करना होगा।

अप्रैल २०१२ का फैसला

उत्तर प्रदेच्च की मायावती सरकार द्वारा अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को पदोन्नति में आरक्षण एि जाने के प्रावधान को सुप्रीम कोर्ट ने तीसरी बार खारिज कर दिया, क्योंकिम सुप्रीम कोर्ट द्वारा मांगे गए इन वर्गो के कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण दिए जाने के जाति आधारित आंकड़े मायावती सरकार कोर्ट में प्रस्तुत नही कर सकी थी। न्यायमूर्ति दलवीर भंडारी और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा की पीठ ने कहा कि हम इस दलील को स्वीकार करने को तैयार नही है, क्योंकि जब संविधान के प्रावधान कुछ द्रार्तो के साथ वैध माने गए है, सरकारी के लिए आवच्च्यक है कि वह इसे आगे बढ ाए और अमल करे ताकि संच्चोधनों को परखा जा सके और वह निर्धारित मानदंडों पर खरा उतर सके। इस मामले में कर्मचारियों के एक वर्ग ने उत्तर प्रदेच्च सरकार के कर्मचारियों की वरीयता संबंधी नियम १९९१ की धारा ८ए के प्रावधानों की वैधता को चुनौती दी थी।

राद्गट्रीय अनुसूचित जाति आयोग केग उपाध्यक्ष का ने यह आरक्षण तो एससी और एसटी को संविधान के तहत पहले से ही मिलता रहा है। आरक्षण नीति संविधान के अनुरूप चल रही थी। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने नागराज मामले मंें निर्णय देकर कहा कि एससी और एसटी को प्रोन्नति में आरक्षण नही मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी थ्की। इस फैसले से हम लोग हतप्रभ रहे है दरअसल, न्यायालय अपनी सीमाओं को लांघ रहा है। कोर्ट भी कई दफा अपनी सीमा कूे पार जाकर, इस तरह का फैसला सुना देता है। जिससे समाज के एक वर्ग को धक्का लगता है और उनके हितों को भारी नुकसान पहुंचता है। एससी और एसटी सबसे पिछड ास समाज है। आज भी देच्च के हर कोने में बसने वाले गांवां में अमीरों और गरीबों की अलग-अलग बस्तियां बनी हुई है। सबसे गरीब समाज होने के कारण हमेच्चा से इनके साथ उचित व्यवहार नही हुआ। जब न्यायालय इस तरह के फैसले करता है, तो विच्चेद्गाकर सबसे गरीब तबके को ठोस पहुंचाती है। अभी भी सरकारी नौकरियों में जो प्रमोच्चन में आरक्षण एससी और एसटी को मिला हुआ है, वह मात्र २ से ३ प्रतिच्चत है। जो कि काफी कम है। इसके बाद भी न्यायालय ने इसे भी देने से मना कर दिया। आखिर दबे और कुचले समाज के साथ इतनी नाइंसाफी क्यों?

नौकरियो में कितना ‘पिछड़ापन’

सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी सेवाओं में पदोन्नति में आरक्षण की व्यवस्था को खारिज करते हुए सरकार से पूछा था कि वह बताए कि देच्चों में नौकरी कर रहे अनुसूचित जाति और जनजाति के पिछड ेपन का आंकड ा कितना है, जिसके आधार पर प्रमोच्चन में रिजर्वेच्चन की मांग की जा रही है। लेकिन सरकार अब तक यह नही बता पाई है कि इस बारे में आंकड ा क्या है। आरक्षण लागू किए जाने से जातियों का पिछड ापन कितना दूर हुआ है और कितने लोगों ने इसका फायदा उठाया है, इसे लेकर सरकार ने आज तक कोई ठोस अध्ययन नहीं करवाया है। इसी प्रच्च्न में कई राज छिपे है। माया सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को अपना जवाब इस लिए नही दिया था क्योंकि उनकी सरकार के समय उत्तर प्रदेच्च के टाप पोस्टों पर सबसे अधिक अधिकारी तैनात थे। तब वह किस आधार पर सच से मुॅह चुराती रही और उसी का परिणाम यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुॅचा जहॉ से हुए फैसले ने मायावती के चुनावी आधार को ही तहस-नहस कर डाला इसे फिरसे आधार देने के लिये कांग्रेस से तालमेल करती नजर आई लेकिन समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के स्पद्गट रुख के कारण सरकारी बिल अटकता नजर आ रहा है। सवाल बिल अटके या लटके से बड ा सवाल मुलायम सिंह यादव ने जो उठाया है कि सीनियर को जूनियर किस आधार पर कर सकते है। इसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है? क्या इससे वैमनस्यता का खतरा पैदा होगा? इन सवालों के जवाब खोजने की जगह कांग्रेस ने अतिउत्साह में जो बिल पेच्च किया उसका हश्र कांग्रेस के लिए आने वाले दिनों में किस तरह मिलता है यह तो वक्त ही बतायेगा लेकिन इतना तय है कि समाजवादी पार्टी प्रमोच्चन में आरक्षण के मामले में आगामी चुनाव में मुद्‌दा बनाकर सड कों पर ले जाएगी।

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दावा अस्‍वीकरण – इस लेख में व्‍यक्‍त विचार लेखक के अपने हैं और यह जरूरी नहीं कि आई.एन.वी.सी उनसे सहमत हो।

*सुरेन्द्र अग्निहोत्री
ए-३०५, ओ.सी.आर. बिल्डिंग
विधानसभा मार्ग, लखनऊ
संपर्क : 9415508695

लेखक :- वरिष्ट पत्रकार ओर जानेमाने राजनीतीक , सामाजिक आलोचक है | लम्बे समाया से देनिक भास्कर ग्रुप से जुड़े हुए है |

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