– निर्मल रानी –
पूरा विश्व ही नहीं बल्कि संपूर्ण पृथ्वी तथा ब्रह्मांड का एक बड़ा हिस्सा इस समय ग्लोबल वार्मिंग का शिकार है। सहस्त्राब्दियों पुराने गलेशियर व हिमखंड पिघल चुुके हैं। दुनिया की कई बर्फीली पहाड़ी चोटियां इतिहास बन चुकी हैं। इनका एकमात्र कारण वैज्ञानिकों द्वारा यही बताया जा रहा है कि विकास के नाम पर बढऩे वाला पृथ्वी का तापमान इसके लिए जि़म्मेदार है। विकास निश्चित रूप से मनुष्य की आवश्यकताओं का एक अहम हिस्सा है। जनसंख्या वृद्धि व वैज्ञानिक प्रगति के साथ-साथ पूरे विश्व में आए दिन छोटे व बड़े नए-नए उद्योग स्थापित होते जा रहे हैं। कल कारख़ानों में हो रही वृद्धि के साथ-साथ सडक़ों पर दौडऩे वाली ज़हरीला धुंआ उगलने वाली गाडिय़ों की संख्या भी प्रतिदिन लाखों के हिसाब से बढ़ती जा रही है। ज़ाहिर है इसका सीधा नकारात्मक प्रभाव धरती पर ही पड़ रहा है। नतीजतन पृथ्वी का तापमान बढ़ता जा रहा है। पूरी पृथ्वी के मौसम में परिवर्तन होते हुए देखा जा रहा है। कहीं बेमौसमी बारिश की खबरें आ रही हैं तो कहीं गर्मीं अपने सैकड़ों वर्ष पुराने रिकॉर्ड को तोड़ती नज़र आ रही है। कहीं सूखा पड़ रहा है तो कहीं रिकॉर्ड तोड़ बर्फबारी के समाचार सुनाई दे रहे हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर किए जा रहे तमाम प्रयासों के बावजूद ग्लोबल वार्मिंग में हो रही बढ़ोत्तरी का यह सिलसिला शायद अब थमने वाला नहीं।
वैज्ञानिकों ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अब तक ग्लोबल वार्मिंग को रोकने हेतु जो प्रमुख उपाय किए हैं तथा उन उपायों को दुनिया के लगभग सभी देश अपने-अपने स्तर पर लागू भी कर रहे हैं उनमें धुंआ व प्रदूषण छोडऩे वाली औद्योगिक इकाईयों को प्रदूषण नियंत्रित करने हेतु तकनीकी प्रबंध करने हेतु अनिवार्य करना,परिवहन व यातायात में इस्तेमाल होने वाले वाहनों के इंजन को कम से कम प्रदूषण छोडऩे वाले इंजन के रूप में अर्थात् आईएसओ श्रेणी में तैयार करना, रसोई ईंधन के रूप में इस्तेमाल की जाने वाली लकड़ी व कैरोसीन तेल की जगह एलपीजी अथवा रसोई गैस मुहैया कराना,गर्मी छोडऩे वाले बिजली के बल्ब तथा बल्ब की जगह पहले सीएफएल और अब एलइडी बल्ब का निर्माण करना,एसी तथा िफ्रज जैसे कई इलेक्ट्रिकल उपकरणों को कम से कम तापमान छोडऩे वाला बनाना तथा इन की स्टार रेटिंग निर्धारित करना तथा रेल क्षेत्र में कोयला तथा डीज़ल के स्थान पर विद्युत चालित ट्रेन तथा चुंबकीय तकनीक से चलने वाली ट्रेन चलाना जैसे कई उपाय हैं जो दुनिया के जि़म्मेदार देश अपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित व प्रदूषणमुक्त अथवा कम प्रदूषण वाला वातावरण हस्तांतरित करने के उद्देश्य से अपना रहे हैं। परंतु इन सबके बावजूद अभी भी इसी पृथ्वी पर तमाम अनपढ़ या पढ़े-लिखे परंतु गैर जि़म्मेदार लोग ऐसे भी हैं जो ग्लोबल वार्मिंग के विषय में न तो जानते हैं न ही जानना चाहते हैं। और ऐसे लोग अपने अंधविश्वासों,अपनी धर्मांध परंपराओं तथा अपनी अज्ञानतावश आए दिन इन सभी अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों को धक्का पहुंचाते रहते हैं। इनकी नज़र में न तो सरकारी कायदे व कानून की कोई अहमियत है न ही इस बात की कोई परवाह कि उनकी इन काली करतूतों से परेशान होकर उन्हें कोई कुछ कह रहा है या उनकी हरकतों का बुरा मान रहा है।
मिसाल के तौर पर सरकार द्वारा प्रत्येक वर्ष यह हिदायत जारी की जाती है कि फसलों की कटाई के बाद खेतों में बचे खर-पतवार को खेतों में ही जलाकर साफ करना अवैध है। परंतु कुछ जागरूक व जि़म्मेदार किसानों को छोडक़र प्राय: अधिकांश खेतों में फसल के बचे हुए ठुंठ जलते देखे जा सकते हैं। जबकि किसानों को तो सबसे अधिक जि़म्मेदार व जागरूक इसलिए होना चाहिए क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग व धरती के बदलते तापमान तथा ऋतुओं में हो रहे परिवर्तन का सबसे पहला व सबसे अधिक प्रभाव तो किसानों पर ही पड़ता है? इसके पश्चात तमाम लोग ऐसे हैं जो अपने-अपने घरों में अकारण कहीं मच्छर भगाने के नाम पर तो कहीं चुड़ैल या भूत भगाने के लिए बेवजह धुंआ करते फिरते हैं। इन लोगों को आप चाहे जितना समझाने की कोशिश करें परंतु यह अनपढ़ तबके के लोग कुछ सुनने-समझने के बजाए उलटे घटिया िकस्म के तर्क देने लग जाते हैं। तमाम लोग अपने घरों के आसपास का कूड़ा-करकट जलाते रहते हैं। रोज़ सुबह व शाम के समय तमाम सफाई कर्मचारी तथा दुकानदार कूड़े की ढेरियां इक_ी कर उनमें आग लगा देते हैं।इनको तो यह भी नहीं पता कि वातावरण में प्रदूषण रूपी ज़हर घोलने का वे जो काम कर रहे हैं वह पृथ्वी को गर्म करने के साथ-साथ उनकी अपनी भावी पीढ़ी को कितना नुकसान पहुंचा रहा है।
और इन सब के अतिरिक्त धरती पर धुंआ रूपी ज़हरीला प्रदूषण फैलाने में धार्मिक मान्यताओं व धर्म स्थानों का भी बहुत बड़ा योगदान है। दुनिया के तमाम मंदिर,दरगाहें,मज़ारें तथा अन्य धर्मस्थल ऐसे हैं जहां हर समय धूप,अगरबत्ती,ज्योति आदि जलती रहती है। प्रत्येक आने वाला दर्शनार्थी इन स्थानों पर माथा टेककर धूप-बत्ती जलाकर उस स्थान को प्रदूषित करने का पहला काम करता है। जो अपने को जितना बड़ा आस्थावान अथवा पैसे वाला समझता है वह उतना ही अधिक धूप-बत्ती व दिया जलाता है। इसी प्रकार हवन-यज्ञ आदि का आयोजन कहने को तो शांति,प्रगति तथा समाज कल्याण के लिए किया जाता है। परंतु यह सब चीज़ें तो हवन-यज्ञ के काफी बाद प्राप्त होती हैं। तात्कालिक रूप से तो इन आयोजनों से उठने वाला धुंआ वातावरण को प्रदूषित कर ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनता है। परंतु न तो कोई धर्मगुरू इन वास्तविकताओं को समझने के बावजूद इस विषय पर अपनी आवाज़ बुलंद करता है और न ही कोई नेता या कोई कानून सदियों से चली आ रही इन परंपराओं को नियंत्रित करने का साहस करता है। इन बातों का एक सामाजिक पहलू भी है। यानी एक ओर तो धर्मस्थलों पर देसी घी के चिराग रौशन किए जाते हैं और करोड़ों रुपये की धूप-अगरबत्ती जैसी सामग्री धुंए में मिला दी जाती है। तो दूसरी ओर उन्हीें धर्मस्थलों के द्वार पर तमाम भिखारी अपना पेट भरने व तन ढकने के लिए इन्हीं प्रदूषण फैलाने वाले ‘धर्मात्माओं’ के समक्ष हाथ फैलाए खड़े देखे जाते हें। यदि प्रदूषण फैलाने के बजाए वही पैसा गरीबों की रोज़ी-रोटी व उनकी भूख मिटाने के लिए खर्च किया जाए तो निश्चित रूप से हमारी धरती भी सुरक्षित रहेगी, भगवान भी खुश होगा और वह दु:खी आत्मा भी दिल से आशीर्वाद व दुआएं देगी। जिसका नतीजा दानदाता के लिए हर हाल में अच्छा ही निकलेगा।
लिहाज़ा हम सब का यह दायित्व है कि हम अपनी भावी पीढ़ी को एक साफ-सुथरा व स्वच्छ वातावरण तथा प्रदूषणमुक्त धरती हस्तांतरित करने के प्रयास करें। बजाए इसके कि हम अपने बच्चों को भी प्रदूषण फैलाने वाले उन्हीं ढर्रों पर डालें। आमतौर पर यही देखा जा रहा है कि अनपढ़ व अज्ञानी तथा गैर जि़म्मेदार िकस्म के माता-पिता व अभिभावक के ढर्रें पर ही उनकी संतान भी चलने लग जाती है। यदि मां-बाप धुंआ फैलाकर व प्रदूषण कर स्वयं को बहुत बड़ा धर्मात्मा जताने की कोशिश करते हैं तो बच्चे भी उन्हीें के नक्शे कदम पर चलते हुए वैसा ही करने लग जाते हैं। यदि मां-बाप बेतहाशा पानी बहाने में माहिर हैं तो उनके बच्चे भी पानी के मूल्य को समझ पाने की कोशिश नहीं करते। बच्चे समझें भी कैसे? यदि माता-पिता बच्चों को समझाने के बजाए खुद ही उनसे वही काम करवाने लगें? अत: इस विषय पर बड़े पैमाने पर सामाजिक चेतना जगाने की ज़रूरत है। धर्म स्थलों से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक तथा अखबारों से लेकर रेडियो तथा टेलीविज़न तक के विज्ञापनों में यह प्रचारित व प्रसारित करने की आवश्यकता है कि गैर ज़रूरी तरीके से अथवा धर्म के नाम पर होने वाली कारगुज़ारियों के कारण उठने वाले धुंए से धरती बुरी तरह प्रदूषित हो रही है। लिहाज़ा समय रहते इस पर तेज़ी से नियंत्रण करने की ज़रूरत है।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
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