– तनवीर जाफ़री –
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ तथा उसके सहयोगी संगठन धर्म जागरण मंच ने इन दिनों देश में धर्म परिवर्तन कराए जाने का एक अभियान छेड़ रखा है। कहीं मुस्लिम तो कहीं ईसाई समुदाय से संबंध रखने वाले गरीबी रेखा से नीचे के लोगों को बीपीएल कार्ड बनावाए जाने अथवा नकद पैसे देकर उनका धर्म परिवर्तन कराए जाने की मुहिम को यह ‘घर वापसी’ का नाम दे रहे हैं। घर वापसी के इन योजनाकारों द्वारा यह बताया जा रहा है कि चूंकि हज़ारों वर्ष पूर्व भारत में रहने वाले मुसलमानों व ईसाईयों के पूर्वजों द्वारा हिंदू धर्म त्यागकर इस्लाम व ईसाई धर्म स्वीकार किया गया था। लिहाज़ा अब इनके वंशजों की अपने ही मूल धर्म अर्थात् हिंदू धर्म में वापसी होनी चाहिए। प्रोपेगंडा के तौर पर इन्होंने देश में कई स्थानों पर हवन आदि कर कुछ ऐसे कार्यक्रम भी आयोजित किए जिनके बारे में यह प्रचारित किया गया कि यह ‘घर वापसी’ के कार्यक्रम थे जिनमें सैकड़ों मुस्लिम परिवारों के सदस्यों ने पुन: हिंदू धर्म अपनाया। हालांकि बाद में इस कार्यक्रम में कथित रूप से ‘घर वापसी’ करने वाले कई लोगों द्वारा यह भी बताया गया कि उन्हें किस प्रकार नकद धनराशि का लालच देकर व उनके बीपीएल के पीले कार्ड बनवाने का भरोसा दिलाकर उन्हें हिंदू बनने तथा हवन में बैठने के लिए तैयार किया गया। हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एजेंडों को राजनैतिक जामा पहनाने वाली भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद इस प्रकार की और भी कई सांप्रदायिकतापूर्ण विवादित बातें सुनाई दे रही हैं। परंतु धर्म परिवर्तन अथवा उनके शब्दों में ‘घर वापसी’ जैसे मुद्दे ने भारतीय मुसलमानों व ईसाईयों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि धर्मनिरपेक्ष संविधान पर संचालित होने वाली देश की सत्ता का चेहरा क्या अब धर्मनिरपेक्षता से अलग हटकर हिंदुत्ववादी होने जा रहा है? या फिर इस तरह की बातें प्रचारित करने के पीछे केवल यही मकसद है कि ऐसे विवादित बयान देकर तथा सांप्रदायिकता का वातावरण कायम रखकर देश के हिंदू मतों का ध्रुवीकरण कर सत्ता में स्थायी रूप से बने रहने के उपाय सुनिश्चित किए जा सकें?
घर वापसी के नायकों द्वारा कहा जा रहा है कि छठी शताब्दी के बाद भारत में आक्रमणकारी मुगल शासकों द्वारा बड़े पैमाने पर भय फैलाकर धर्म परिवर्तन कराया गया। यदि इनकी बातों को सही मान भी लिया जाए तो भी क्या हज़ारों वर्ष पूर्व आज के मुसलमानों के पूर्वजों द्वारा जो धर्म परिवर्तन किया गया था आज उनके वंशज अपने पूर्वजों के फैसलों का पश्चाताप करते हुए पुन: हिंदू धर्म में वापस जाने की कल्पना कर सकते हैं? इस विषय को और आसानी से समझने के लिए हमें वर्तमान सांसारिक जीवन के कुछ उदाहरणों से रूबरू होना पड़ेगा। मिसाल के तौर पर यदि किसी गांव का कोई व्यक्ति शहर में जाकर किसी कारोबार या नौकरी के माध्यम से अपना जीवकोपार्जन करता है और वह शहर में ही रहकर अपने बच्चों की परवरिश,उसकी पढ़ाई-लिखाई करता है तथा उसे शहरी संस्कार देता है तो क्या भविष्य में उस शहर में परवरिश पाने वाले उसके बच्चे अपने पिता के स्थाई निवास यानी उसके गांव से कोई लगाव रखेंगे? ज़ाहिर है आज देश में करोड़ों परिवार ऐसे हैं जो अपनी रोज़ी-रोटी के लिए गांवों से शहरों की ओर आए और वहीं बस गए। परिवार का वह बुज़ुर्ग भले ही अपने अंतिम समय में अपने गांव वापस क्यों न चला जाए परंतु उसकी अगली पीढ़ी शहर में ही रहकर अपना जीवन बसर करना मुनासिब समझती है। सिर्फ इसलिए कि उसके संस्कार शहरी हैं। इसी प्रकार जो भारतीय लोग विदेशों में जा बसते हैं और वहीं उनके बच्चे पैदा होते हैं वे बच्चे भारत में आकर रहना व बसना कतई पसंद नहीं करते। क्योंकि उनके संस्कार विदेशी हैं। एक विवाहित महिला अपने विवाह पूर्व के संस्कार नहीं छोडऩा चाहती क्योंकि उसका पालन-पोषण युवावस्था तक उसके अपने मायके में हुआ होता है। उसे वहीं के संस्कार अच्छे लगते हैं। इसी प्रकार गांव के बुज़ुर्गों को कभी-कभार किसी कारणवश शहर आना पड़े तो उन्हें शहर की तेज़ रफ्तार जि़ंदगी,यहां का शोर-शराबा,प्रदूषण,अफरा-तफरी का माहौल यह सब रास नहीं आता। क्योंकि उनके संस्कार गांव के शांतिपूर्ण,प्रदूषणमुक्त व परस्पर सहयोग व सद्भाव के हैं।
सवाल यह है कि जब बीस-पच्चीस और सौ साल के संस्कारों को और वह भी सांसारिक जीवन के संस्कारों को आप बदल नहीं सकते फिर आज सैकड़ों और हज़ारों वर्ष पूर्व विरासत में मिले धार्मिक संस्कारों को कैसे बदला जा सकता है? और वह भी ऐसे धार्मिक संस्कार जिनकी घुट्टी प्रत्येक धर्म के माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को पैदा होते ही पिलानी शुरु कर दी जाती हो? शहर में रहने वाले किसी जीन्सधारी युवक से यदि आप कहें कि वह अपने दादा की तरह लुंगी या धोती पहनने लगे तो क्या वह युवक उस लिबास को धारण कर सकेगा? कतई नहीं। क्या आज बच्चों को स्लेट व तख्ती पर पुन: पढ़ाया जा सकता है? हरगिज़ नहीं। कहने का तात्पर्य यह कि समाज का कोई भी वर्ग पीछे मुडक़र न तो देखना पसंद करता है और न ही इसकी कोई ज़रूरत है। फिर आिखर घर वापसी के नाम पर धर्म परिवर्तन कराए जाने के पाखंड का मकसद यदि सत्ता पर नियंत्रण नहीं तो और क्या है? इसी घर वापसी से जुड़ा एक और सवाल घर वापसी के इन योजनाकारों से यह भी है कि आिखर इसकी सीमाएं निर्धारित करने का अधिकार किसको किसने दिया? क्या सिर्फ मुसलमानों और ईसाईयों की ही घर वापसी से हिंदू धर्म का उत्थान हो जाएगा? आिखर सिख धर्म भी तो हिंदू धर्म की ही एक शाख़ है। सिखों के पहले गुरु नानक देव जी के पिता कालू राम जी भी तो हिंदू ही थे? फिर आिखर सिखों की घर वापसी कराए जाने का साहस क्यों नहीं किया जाता? महात्मा बुद्ध भी हिंदू परिवार में जन्मे थे। आज उनके करोड़ों अनुयायी बौद्ध धर्म का अनुसरण करते दिखाई दे रहे हैं। कई देशों में बौद्ध धर्म के लोग बहुसंख्या में हैं। क्या यह सांस्कृतिक राष्ट्रवादी उनकी घरवापसी के भी प्रयास कभी करेंगे? चलिए यह बातें तो फिर भी सैकड़ों साल पुरानी हो चुकी हैं। परंतु अभी कुछ ही दशक पूर्व संघ के मुख्यालय नागपुर के ही एक विशाल पार्क में बाबासाहब डा० भीमराव अंबेडकर के लाखों समर्थकों द्वारा हिंदू धर्म छोडक़र बौद्ध धर्म स्वीकार कर लिया गया था। क्या उनकी घर वापसी भी कराई जाएगी? और एक सवाल यह भी कि क्या सिख धर्म की उत्पत्ति,बौद्ध धर्म का अस्तित्व में आना, देश के लाखों दलितों द्वारा बौद्ध धर्म में शामिल होना इस सब के पीछे भी क्या किसी आक्रांता मुगल शासक की तलवार का योगदान था? क्या इन लोगों ने भी भयवश या लालचवश इन गैर हिंदू धर्मों का दामन थामा था?
कुल मिलाकर घर वापसी के नाम पर छेड़ी गई यह मुहिम महज़ एक प्रोपेगंडा रूपी राजनैतिक मुहिम है जो हिंदू धर्म के सीधे-सादे व शरीफ लोगों के बीच में स्वयं को हिंदू धर्म का शुभचिंतक जताने व चेताने के लिए छेड़ी गई है। कभी इन्हें पांच व दस बच्चे पैदा कर हिंदू धर्म को बचाने जैसी भावनात्मक अपील कर इन को जागृत करने के नाम पर स्वयं को हिंदू धर्म का हितैषी दिखाने का प्रयास किया जाता है तो कभी मुसलमानों के चार पत्नियां व चालीस बच्चे होने जैसे झूठी अफवाहें फैलाकर हिंदू धर्म के लोगों में अपनी पैठ मज़बूत की जाती है। आश्यर्च की बात तो यह है कि हिंदुत्व का दंभ भरने वाले इन्हीं तथाकथित हिंदुत्ववादी नेताओं में ऐसे कई नेता मिलेंगे जिनके बेटों व बेटियों ने मुस्लिम परिवारों में शादियां रचा रखी हैं। गोया व्यक्तिगत रूप से तो यह अपना पारिवारिक वातावरण सौहाद्र्रपूर्ण रखना चाहते हैं जबकि मात्र हिंदू वोट बैंक की खातिर समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करने में लगे रहते हैं। अन्यथा यदि इनका मिशन घर वापसी वास्तव में हिंदू धर्म के कल्याण अथवा हिंदू हितों के लिए उठाया गया कदम होता तो इन्हें अपने इस मिशन की शुरुआत गऱीब मुसलमानों अथवा ईसाईयों को पैसों की लालच देकर या उनके पीले कार्ड बनवाने की बात करके नहीं बल्कि सबसे पहले इन्हें अपनी पार्टी के केंद्रीय मंत्रियों नजमा हेपतुल्ला,मुख्तार अब्बास नकवी तथा शाहनवाज़ हुसैन जैसे पार्टी नेता की तथाकथित ‘घर वापसी’ कराकर करनी चाहिए न कि गरीबों के बीच अपना पाखंडपूर्ण ‘घर वापसी’ का दुष्प्रचार करके? देश के लोगों को ऐसे दुष्प्रचारों से सचेत रहने की ज़रूरत है। देश का तथा देश के सभी धर्मों व समुदाय के लोगों का कल्याण तथा राष्ट्र की प्रगति इसी में निहित है कि सभी देशवासी मिलजुल कर रहें,एक-दूसरे के धर्मों व उनकी धार्मिक भावनाओं तथा उनके धार्मिक रीति-रिवाजों का सम्मान करें। घर वापसी जैसे ढोंग तथा नाटक से किसी को भयभीत होने या घबराने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह मुहिम हकीकत से कोसों दूर है। और इस मुहिम को महज़ एक फसाना अथवा राजनीति से परिपूर्ण स्क्रिप्ट ही समझा जाना चाहिए।
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Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities
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