राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’ की कलम से : ग़ज़ल , आल्हा छंद व् दोहे

राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’ की कलम से :  ग़ज़ल , आल्हा छंद  व्  दोहे

राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’  के ” आल्हा छंद “

ललित मानिकपुरी जी की समीक्षा :  आल्हा वीर रस का अनूठा छंद है। हाल ही में पेशावर की घटना पर राजकुमारधर द्विवेदी ने उत्कृष्ट आल्हा छंद की रचना की है। उन्होंने दु:ख और आक्रोश के साथ मां दुर्गा, काली, विष्णु, राम, शंकर का आह्वान किया है कि वे उन दुष्टों का नाश करें, जिन्होंने मासूम बच्चों को मौत के घाट उतार दिया। सबसे बड़ी बात यह कि रचनाकार ने यमराज का भी आह्वान किया कि वे चुपक्यों बैठे हैं, अपने दूतों को भेजकर आतंकियों के प्राण हर क्यों नहीं लेते? दूसरे आल्हा छंद में श्री द्विवेदी ने पाकिस्तान की हरकतों पर प्रहार किया है और समझाइश भी दी है कि पाकिस्तान तू अपनी हरकतों से बाज आए। दोनों ही रचनाएं उत्कृष्ट हैं, भाषा-शैली प्रवाहपूर्ण एवं कथ्यसंवेदना से युक्त है।ललित दास मानिकपुरी उपसंपादक- नईदुनिया रायपुर। आकाशवाणी और कादम्बिनी सहित देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन)

आल्हा छंद

हाहाकार मचा दुनिया में, लागो दुर्गा आज सहाय,
काटो खप्पर वाली उसको, जो आतंकी, क्रूर कहाय।
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जग के पालनहार देवता, दो अब अपना चक्र चलाय,
शीश -विहीन दुष्ट आतंकी, जाएं भू पर सभी बिछाय।
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छोड़ो तीर विनय रघुराई, लो तुम अपना धनुष उठाय,
बचे न कोई भी आतंकी, जो निर्मोही खून बहाय।
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नेत्र तीसरा खोलो भोले, भस्म करो पापी को धाय,
बढ़ी पीर, धरती अकुलानी, कष्ट देव अब सहा न जाय।
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भेजो दूत पाक में जल्दी, क्यों चुप बैठे हो यमराज,
आतंकी सब मारे जाएं, राहत पाए देश -समाज।
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दिल में ली क्यों बाड़ लगाय
बंटवारा क्यों किया देश का, दिल में ली क्यों बाड़ लगाय।
ऐसा करके क्या है पाया, मुझको दो थोडा समझाय।।
छलनी करते जिसका सीना, देते हो तुम शीश उड़ाय।
जिसको मान लिया है बैरी, वह तो अपना भाई आय।।
अमरीका के पांव पूजते, कहते दुश्मन हिंदुस्तान।
कब सुधरोगे आज बताओ, अक्ल कहां है पाकिस्तान।।
सीधी -सच्ची राह मनुज की, छोड़ बना तू क्यों हैवान।
दुनिया के नक़्शे से मिटना, चाह रहा तू क्यों नादान।।
राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’
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राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’ की “ग़ज़ल “

ललित मानिकपुरी जी की समीक्षा : देश की वर्तमान राजनीतिक दुरावस्था और भ्रष्ट नेताओं की पोल खोलती है यहगज़ल। उम्दा शेरों में शायर राजकुमार धर द्विवेदी ने जहां यह बताया है कि किस तरह भ्रष्ट आचरण वाले ये नेता देश की बोटियां तक खा रहे हैं और और आमआदमी को रोटी के लिए तरसना पड़ रहा है। गज़ल के नियम का बखूबी निर्वाह किया गया है। गालगा पर आधारित यह गज़ल गुनगुनाने का मन करता हैललित दास मानिकपुरी उपसंपादक- नईदुनिया रायपुर। आकाशवाणी और कादम्बिनी सहित देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन)

ग़ज़ल
सादगी की नहीं ‘मूर्तियां’ देखिए,
वो किला, आशियां, कोठियां देखिए।
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भाषणों में छलावा भरा झूठ है,
नोट की थैलियां, गाड़ियां देखिए।
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वोट ले के गए हैं फरेबी बड़े,
खा रहे देश की बोटियां देखिए।
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कौन नेता यहां दूध का है धुला,
सेंकते हैं सभी रोटियां देखिए।
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बेबसी, भूख का है पिटारा मिला,
ख़्वाब में आप तो रोटियां देखिए।
राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’
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राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’  के  ” दोहे “

ललित मानिकपुरी जी की समीक्षा : भूख, गरीबी, बेकारी, भ्रष्टाचार, महंगाई, बीमारी, लाचारी को लेकर लिखे गए दोहे बड़े ही मार्मिक हैं, जो अंतस को छू लेते हैं। दोहा छंद का पूर्ण निर्वाह करते हुए राजकुमार धर द्विवेदी ने आम आदमी की व्यथा को उभारतेहुए सवाल किया है कि ऐसे हालात में क्या उत्सव हंसी-खुशी से मनाया जा सकता है? ये दोहे वर्तमान व्यवस्था के प्रति आक्रोश व्यक्त करते हुएबदलाव की जबरदस्त अपील करते हैं। यहां उल्लेख कर दूं कि राजकुमार धर द्विवेदी कविता, कहानी, नाटक आदि विधाओं में तीन दशकों से कलम चला रहेहैं। बचपन से ही इनका साहित्य के प्रति अनुराग है और सतत लेखन को पूजामानकर साधना कर रहे हैं। ( ललित दास मानिकपुरी उपसंपादक- नईदुनिया रायपुर। आकाशवाणी और कादम्बिनी सहित देश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन)

 दोहे
महंगू भूखा हो पड़ा, चैतू हो बीमार,
ऐसे में कैसे मने, उनके घर त्योहार।
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बेटा राजा बन रहे, अम्मा मांगे भीख,
धर्म -ग्रंथ की एक भी, काम न आई सीख।
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कैसे बेटी का करे, बेवा कन्यादान,
नेता के घर देखिए, है पैसों की खान।
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रोजगार मिलता नहीं, युवा पड़े बेकार,
कैसे उत्सव की खुशी, बतलाओ सरकार।
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महंगाई नभ छू रही, बढ़ता भ्रष्टाचार,
हंसी -खुशी सब छिन गई, दीन बहुत लाचार।
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Rajkumar Dhar Dwivedi's poems,poems of Rajkumar Dhar Dwivedi,Rajkumar Dhar Dwivediपरिचय : –
राजकुमार धर द्विवेदी

लेखक, कवि, पत्रकार

साहित्यिक नाम:-  राजकुमार धर द्विवेदी ‘विद्रोही’

संप्रति :- वरिष्ठ उप -संपादक, नईदुनिया, जेल रोड,रायपुर छत्तीसगढ़

साहित्यिक गुरु (अगर हो)-  स्व.  डा. प्रयागदत्त तिवारी जी

साथ में : – प्राध्यापक हिंदीव्यवसाय- पत्रकारिता, स्वतंत्र लेखन, कादम्बिनी,हिन्दुस्तान सहित देश की राष्ट्रीय पत्रिकाओं में लेखन

फोन नंबर : —09425484657 ,  ईमेल :- rajkumardhardwivedi@gmail.com

21 COMMENTS

  1. Aapaki lakhani pahali dafaa padhi ,Aalha chhand, ghazal, dohe,bahut aanand aayaa,
    Aaapki,laghu katha sangrah main jald padhanaa chahungi.

  2. सुधी पाठकों की रहस्यमयी प्रतिक्रिया से मुझे अनिर्वचनीय सुखानुभूति हो रही है।

  3. आमतौर पर रचना पहले और समीक्षा का क्रम बाद में होता है। यहां नया प्रयोग देखकर किसी मंचीय विधा का स्मरण हो आया, जिसमें प्रस्तुति के पूर्व उद्घोषक दर्शक-श्रोताओं को रसास्वादन के लिए उत्साहित कर देता है। भले ही यह प्रयोग मंच संचालक आदरणीया सोनाली बोस से संयोगवश हो गया हो, लेकिन स्वागतेय है। इससे रचना के प्रति उत्सुकता जागृत होती है। सम्मानीय विद्वतजन की प्रतिक्रिया मस्तिष्क पर जोर डालने पर विवश करती है।

    • आमतौर पर रचना पहले और समीक्षा का क्रम बाद में होता है। यहां नया प्रयोग देखकर किसी मंचीय विधा का स्मरण हो आया, जिसमें प्रस्तुति के पूर्व उद्घोषक दर्शक-श्रोताओं को रसास्वादन के लिए उत्साहित कर देता है। भले ही यह प्रयोग मंच संचालक आदरणीया सोनाली बोस से संयोगवश हो गया हो, लेकिन स्वागतेय है। इससे रचना के प्रति उत्सुकता जागृत होती है। सम्मानीय विद्वतजन की प्रतिक्रिया मस्तिष्क पर जोर डालने पर विवश करती है।

      • ललित जी, बिलकुल सही कहा आपने। सुन्दर प्रयोग हुआ है।

  4. राजकुमार जी बहुत सी विधाएं ….और हर विधा में विशुद्ध उच्च कोटि का आपका लेखन …….दोहा अतिउत्तम

    • पूनम माटिया जी, उत्साहवर्धन के लिए साधुवाद, नमन।

  5. तारीफ़ सच में ,किसी एक विधा की मुश्किल हैं मैं सभी से सहमत हूँ ! समीक्षा तो लाजबाब हैं ! राजकुमार धर द्विवेदी जी आप सच में बधाई के पात्र हैं पर साथ में ललित दास मानिकपुरी जी की तारीफ़ किए बिना भला कौन रह सकता हैं !

  6. श्री राजकुमार धर द्विवेदी जी हृदयस्पर्शी कवि है। उनकी रचनाएं आम आदमी की आवाज होती है। राष्ट्र और समाज की समस्याओं की मुखरित वाणी होती हैं ! श्री द्विवेदी सिद्धहस्त कवि हैं। उनकी पैनी लेखनी खेत-खलिहान, झोपड़ी से राजमार्ग तक के मर्म को आम जनता तक पहुंचाने में कामयाव होती हैं ! प्रस्तुत आल्हा छंद आतंकवादी खूनी चेहरे को बेनकाब करती हुयी राष्ट्रीय समाज की पीड़ा को व्यक्त करती अत्यंत संवेदन शील रचना है। आल्हा छंद गांव और ग्रामीणों की वाणी है, जिस पर आज के रचनाकार कलम नहीं चला पाते, उस वीर रस के छंद पर लिखी प्रस्तुत रचना राष्ट्रीय भावना से ओत प्रोत आतंकवाद को ललकारती हुयी उसे चेतावनी भी देती है ! इसी तरह दूसरी रचना अलगाववाद के खिलाफ आवाज बुलंद करती सारगर्भित रचना है !कब सुधरोगे आज बताओ, अक्ल कहां है पाकिस्तान।।
    सीधी -सच्ची राह मनुज की, छोड़ बना तू क्यों हैवान।
    दुनिया के नक़्शे से मिटना, चाह रहा तू क्यों नादान।।अत्यंत समसामयिक अपील और पकिस्तान को चेतावनी देती रचना, जो देश की आवाज प्रतीत होती है ! प्रस्तुत गजल प्रजातंत्र की धज्जियां उड़नेवाले नेताओं /अधिकारियों को सचेत करती हुयी राष्ट्रीय समाज की पीड़ा व्यक्त करती है यथा– बेबसी, भूख का है पिटारा मिला,
    ख़्वाब में आप तो रोटियां देखिएबेबसी, भूख का है पिटारा मिला,
    ख़्वाब में आप तो रोटियां देखिए वास्तव में रचनाकार में प्रस्तुत गजल में रचनाधर्म के द्वारा राष्ट धर्म का निर्वहन किया है ! इसीतरह प्रस्तुत दोहे लाजबाब और राष्टीय समाज की समस्याओ को बड़ी ही संजीदगी से आवाज देते है बहुत ही सुन्दर दोहे है जी सरल भाषा में सामाजिक विसंगतियो पर कड़ा प्रहार करते है ! कला पक्ष और भाव पक्ष से परिपूर्ण उत्तम रचनाये अत्यंत रोचक मर्मस्पर्शी और अर्थवान है !
    -हरिहर प्रसाद तिवारी, वरिष्ठ साहित्यकार, संयोजक -कादम्बिनी क्लब, प्रधान संपादक ‘सहस्त्राब्दी के आरपार’, सतना, मध्यप्रदेश

  7. एक वरिष्ठ साहित्यकार की और समीक्षा
    आल्हा छंद का मूलस्वभाव वीररस का रसास्वादन कराना है और आप उसमें पूर्णरूपेण सफल रहे हैं. इस मृतप्राय छंदविधा को आक्सीजन देने के लिए आपको बधाई….
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    ग़ज़ल के माध्यम से राजनीति पर कसे गए तंज दिलोदिमाग़ पर गहरा असर छोड़ते है हर शे’र उम्दा है……वाह तो बनती है
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    इन दोहों मे आपके मन की अतिसंवेदनशीलता परिलक्षित होती है….किसी दोहे में अगाध मार्मिकता है तो किसी में व्यंग्य का पैनापन उसे प्रभावी बना रहा है….. बधाई इस सुन्दर सृजन के लिए
    -अनमोल शुक्ल ‘अनमोल’
    P-lll/10 मध्य गंगा नहर कालोनी
    . बिजनौर. (उ0प्र0)

  8. मै इस पोस्ट ,जो हर विधा से सम्पूर्ण हैं , उसे अपनी वाल पर शेयर करने पर मजबूर हो गई हूँ !! साभार !!

  9. इस पोर्टल के संपादक परम आदरणीय जाकिर हुसैन साहब को नमन, सलाम, जिन्होंने मुझे यहां स्थान दिया। हुसैन साहब का साहित्यनुराग प्रणम्य है।

  10. अपने गुरु ब्रह्मलीन डॉ प्रयागदत्त तिवारी जी [प्राध्यापक, हिंदी] को पुण्य स्मरण करना कैसे भूल सकता हूं, जिन्होंने मुझे कविता का अनुरागी बनाया और कलम पकड़ाकर दुनिया से विदा हो गए। शत -शत नमन।

  11. करुणा तिवारी जी, स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए नमन, साधुवाद। आपने प्रोत्साहित किया, आभारी हूँ।

  12. सर्व प्रथम आदरणीया सोनाली बोस जी को नमन। मेरी रचनाओं को इस प्रतिष्ठित न्यूज़ पोर्टल में स्थान देकर सोनाली जी ने आप लोगों -जैसे सुधी पाठकों से मिलने का सौभाग्य प्रदान किया। डॉ. रेनुका जी साधुवाद। इसी तरह स्नेह-भाव बनाए रखें, ताकि कुछ सार्थक सृजन हो पाए।

  13. बहुत सारी विधाएं एक साथ पढ़ने को मिली ! विद्रोही जी आप सच में विद्रोही हैं !

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