प्रियंका की पांच कविताएँ
1. *खामोशियाँ*
चलो आज फिर मैं जला दूँ एक दिया
और तुम गुज़र जाना
वैसे ही लापरवाही से
बड़ा खामोश सा है वो मोड़
जहाँ से गुज़रे ज़माने हए है
खुद पे क्या क्या गुज़री
दफ़न कर खुद में
खुद ही खुद से
कह लेती है
खामोशियाँ खामोशी से
मिले वक़्त तो सुन लेना
खामोशियों की भी
अपनी ज़ुबान हुआ करती है!!!
2. *अहसास*
कल रात यूँ ही पूछ लिया दरिया ने उस कश्ती से
ठहरे हुए सन्नाटों में
न कोई साया न आहट
दरिया इस क़दर सुनी आँखें लिए
सपाट चेहरा न शिकन न सलवट कोई
जैसे अहसास के सारे बोझ उतार बैठा हो
कह बैठा बड़े ही संजीदा लहज़े में
यूँ ही बहती हो संग मेरे
मैं किनारों का तुम मेरा हाथ पकड़
बस चलते रहते
यूँ ही खामोश सी बस बहती हो
संग रहती हो मगर कुछ भी न कहती हो
कहा कश्ती ने
ये हुक्मे सफ़र है हासिल तो कुछ भी नहीं
खामोश रह के तेरे दर्द को पिया है मैंने
दुनिया में तुझे शायद सबसे ज़्यादा जिया है मैंने।।
3. *वो लम्हा*
उस एक लम्हे में..
एक पत्थर सी
गिरी थीं आवाज़ें कुछ
टूट कर बिखरा था
कांच की मानिंद
जाने क्या क्या
बातों में,लहजों में,
नज़रों में,रिश्तों में
बहुत गहराई तक
चुभ गयी किरचें
उस शब्
उसी आवाज़ की किरचों से
काट ली थी नब्ज़ें अपनी
सुना है………
किसी रिश्ते ने ख़ुदकुशी कर ली!!
4. *अमावस से दिन*
मुट्ठी में रौशनी समेटने की चाहत में
खो जाया करता है मुस्कुराता चाँद
अक्सर ही
अहसास मखमली ख़्वाबों के
रूठते है जब
अटक कर रह जाता है
सावन भी
बस पलकों की कोरों पर
एक रौशनी की किरण
जज़्ब किये
खुद ही खुद को दिलासे देना
दूर कही फलक पर
निकला तो होगा ही चाँद
रातें अमावस की जीना
यूँ आसान भी नहीं हुआ करता….
5* *बेमानी रिश्ते*
बर्फ सी सर्द होती हैं खामोशियाँ
सुलगते रहते हैं
अनकहे शिकवे
मुस्कुराहटों के बीच भी
बड़ी नम सी होती हैं तन्हाईयाँ
समंदर का साथ
और तिश्नगी ताउम्र
रिसते जख्म,सिसकता यकीन
मायूस से ख्वाब,बेमानी रिश्ते
बेमौत मरते तो नहीं
पर जी भी कहाँ पाते हैं…………
___________________________
प्रियंका
कवयित्री व् लेखिका
प्रियंका जी एक गृहणी हैं इन्होने संस्कृत साहित्य से स्नातक एवं समाजशास्त्र से परास्नातक किया है।
संवेदनशील मन की संवेदनाएं…
कभी पुष्पों सी सुवासित,कभी मधुरिम, कभी अश्रु बिन्दुओं में परिलक्षित होकर
स्वतः ही शब्दों का प्रारूप लेती गईं।
प्रमुख लेखन विधा -समस्त विधाएं ,हिंदी छंद, गीत,छंदमुक्त कविताएं,हाइकू,मुक्तक लघु कथा
प्रकाशित संग्रह: शुक्तिका प्रकाशन की तीन साझा काव्य संग्रह अंजुरी , पावनी एवं निर्झरिका । तीन साझा एवं एक एकल काव्य संकलन शीघ्र प्रकाश्य सृजनात्मकता को नए आयाम मिले…अन्तर्निहित क्षमताओं को आत्मविश्वास में परिवर्तित करने वाले शुभचिन्तकों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए अन्तर्मन के नन्हें पंखों से अनन्त आकाश की ऊंचाइयां नापने का एक प्रयास !
संपर्क :- priyanka.narendra030201@gmail.com