गौरी वैश्य की पांच कविताएँ
1.हे ईश्वर!
हे ईश्वर
मत दो प्रलोभन
स्वर्ग का
वैभव और ऐश्वर्य का
यदि तुम्हारी भक्ति का
प्रतिफल यही है
तो निरर्थक है
दुनिया के वैभव को ठुकराना
मोहमाया को बिसराना
क्यों कि
अभी इनको त्याग कर
यहीं तो प्राप्त करना है
तुम्हें प्राप्त कर।
फिर क्यों अभी इनका तिरस्कार
क्यों करें मात्र ‘स्वर्ग सुख’ के लिए
इस स्वर्ग का बहिष्कार।
हे ईश्वर!
मुझे ‘स्वर्ग’ की नहीं
‘शांति’ की खोज है
यदि तुम्हें प्राप्त कर
‘आत्मशांति’ मिले
तो यही स्वर्ग है
सच्चे सुख का उत्कर्ष है।।
2.जीवन दर्शन
मैं नहीं जानती
‘सत्य’ क्या है
‘अहम’ क्या है
‘परम’ क्या है
सूक्ष्म-स्थूल का चिन्तन,
शाश्वत जगत में व्याप्त
सृष्टि की सत्ता का चिन्तन,
द्वैत क्या है?
अद्वैत क्या है?
मैं केवल
अनुभव करती
कण कण में व्याप्त
आत्मा के स्वरूप को
मंदिर -मस्जिद में
परमात्मा के स्वरूप को
सकल जग में
एक विशिष्ट शक्ति को
किन्तु नहीं जानती
वो शक्ति क्या है
जो जीवन स्रोत बन
प्रवाहित होती
हमारी देह में
जो नित नये रूप धरती
पालन करती
नियंत्रण करती
और फिर विनाश की लीला रचती
मैं सिर्फ इस खोज में हूँ
कि इस जीवन का
दर्शन क्या है?
3.मिलन की आशा
सागर का शांत किनारा
संध्या का मधुर इशारा
नंगे पैरों के चिह्नों को
दोहराते हुए चलते जाना..
शायद तुम तक जा पहुंचे मन
तन में गति और मन है निश्चल
बस तेरा ही ध्यान लिये
गीली रेती पर धीरे से
चलते जाना चलते जाना..
हिलती लहरों के आंचल में
नन्हा मुन्हा चांद खेलता
शीतल हवा के झोकों से
भवरों का मन कुसुम डोलता
इस बैरागी मन को क्षणभंगुर
स्वप्नों से बहलाते जाना..
दूर क्षितिज से मिलता है ज्यों
नील गगन वसुधा से
किसी मोड़ पर मिल जायें हम
इसी मिलन की आस लिये
शांत किनारे चलते जाना
तन्हा तन्हा चलते जाना…
4.प्रियतम
हर शाम
जब फैल जाता है सन्नाटा
अन्तस् में
तब तुम स्मृति बन
साथ साथ चलते हो
सांसों की लम्बी डगर पर।
रात गहराने पर
बढ़ जाती हैं उदासियां
और बरसने लगती हैं
यादों की बदलियां
यह इच्छा प्यास बन जाती है
तुम मिलोगे पुनः उसी मोड़ पर
जहाँ हर आस
एहसास बन जाती है।।5.खोना किसी का
कुछ दिन पूर्व
मैंने तुम्हें देखा था
चलते फिरते
हंसते गाते
फिर उस दिन
जब तुम मिले
शांत निस्पृह योगी जैसे
मौन और उदासीन
फैली थी धुंध
तुम्हारे पतझड़ के उपवन
जैसे मुख पर..
फिर वह दिन भी आया
जब तुम खो गए
अनन्त आकाश में
कभी फिर न मिलने के लिए
धुंध!
जो तुम्हारे मुख पर थी
अब फैल चुकी थी
मेरे मुख पर
मेरे आंसुओं की
वाष्प बनकर।।।।
वर्तमान में बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार विभाग सीतापुर में प्रधान सहायक के पद पर कार्यरत
संस्कृत से एम.ए. किया है। लेखन का शौक छात्र जीवन से ही है,
विशेषतः कविताएँ लिखना और कविता कभी भी मैं दिमागी परिश्रम से नहीं लिखती, जब हृदय में भावों का स्रोत एक दम से निकलता है तो उसे मैं अक्षरबद्ध कर लेती हूँ वहीं कविता बन जाती है।
संपर्क-: gaurivaish@gmail.com
awesome lines…really pragmatic n heart touching..maasi.you are amazing hidden poet..all the best and keep it up.
regards
बहुत अच्छी कृति गौरी,मंगलकामनाऐ|
Thank u sir!
सारी ही कवितायेँ बहुत अच्छी लगीं। भावों की अभिव्यक्ति बहुत ही सहज है पर साथ ही साथ गहन भी। निःसंदेह एक सार्थक पहल! शुभकामनायें!