जुही झा की पांच कविताएँ

जुही झा की पांच कविताएँ

1.वो वीर जो रह गये अनाम

खुशियाँ और दर्द में जब हुई टकरार
चुनना था एक रास्ता उस वीर को,
जिसमें,
एक में था खुशियाँ अपार,
एक में था दुःख और दर्द का भरमार,
फिर भी बिना सोचे उस वीर ने,
दुःख और दर्द भरे रास्ते को,
हँसते-हँसते कर लिया स्वीकार,
सीमा पर जाकर उस वीर ने ,
फिर से लगाया नारा,
लहराओ तिरंगा प्यारा,
सुनकर उसकी ये पुकार
दुश्मनों ने फिर किया वार पे वार
फिर से सरहद पर हुई टकरार
खुन से लथपथ होकर भी,सहे वार पर वार
मरते मर गए,पर अंत तक ना माना हार
ना भुल पायेगा कोई भी नर-नारी,
लुटा गए देश के लिए खुद को,
वो वीर थे,स्वतंत्रता के पुजारी
वो जंग तो कुछ ही रातों की होती थी,
पर हमारा जीवन उन वीरों को याद करके,
ना जाने कितने वर्षों तक रोती थी,
माँ का कोख जब सुना होता था,
हर बुढा पिता,अपने जवाँ बेटो की लाशों को ढोता था
आज फिर से करेंगे याद,उन वीरों को हम
याद करेगा भारत का हर हिन्दुस्तानी,
व्यर्थ ना जाएगी उनकी कुर्बानी
ना जाने कितने वीरों ने,
सरहद पर र्पाण गवाएँ,
हाथों मे तिरंगा लेकर जो निकले थे,
वो तिरंगे की गोद में घर आए
जो वीर नाम कमाकर भी रह गऐ अनाम,
उन वीरों को मेरा हर बार र्पणाम
सौ बार सलाम-सौ बार सलाम।

2.मैं लिखती हुँ।

हाँ,मैं लिखती हुँ।
हमेशा अपने लिखने कि आदत से,
कुछ नया सीखती हूँ।
आज मन करता है,
अपने दिल के उस पन्ने को खोलु,
जो भी दिल के मोती जैसे शब्द उसमे बयाँ किये,
उन्हे अपने मन के धागे मे पिरोलूँ।
मन के सागर में मिले वो मोती बंद सीप में,
आज दिल करता है उस सीप को मैं खोलू,
फिर एक नई कविता मैं बोलू,
अपने कविता के चंद शब्दों से,
किसी कोने को रोशन कर दूँ,
तो किसी के मन मे अपने हक के र्कांति भरूँ।
ताकि भारत मे ना हो कोई गुलाम,
और हर देश करे भारत को झुक कर सलाम।

3.जीवन- पथ

चाहे मुझे पथ पर सत्कार मिले,
चाहे मुझे पथ पर दुत्कार मिले,
राही मेरा नाम है,
जीवन पथ पर बढना मेरा काम है।
राहों में होंगे काँटे भरे,
मिलेंगे आशा-निराशा के घङे,
दरियाँ र्पवाह-मान है,
और जीवन दरियाँ समान है,
यात्री मिले बहुत से,खैबेयाँ मेरा नाम है,
इस पथ पर बढना मेरा काम है,
मेरी गति ना अवरुद्ध हो,
जिवन की राहे कभी ना शुद्ध हो,
कुछ सुन लिया,कुछ कह लिया,
कुछ गम मेरा बँट गया,
क्या हुआ जो राहों मे दुश्मन ही मिले,
कुछ रास्ता ही कट गया,
जब तक ना ये जीवन दरियाँ पार हो,
हाथों को ना विराम है,
जीवन-पथ पर बढना मेरा काम है।
इस जीवन-दरिया में किसको नहीं बहना पङा,
सुख-दुख मेरी ही तरह किसको नहीं सहना पङा,
फिर व्यर्थ ही क्यों कहती फिरु,
खुशियाँ मुझसे रूठ गई,
जीवन की आधी राह पर,दोस्ती मेरी टुट गई।
कर्म ही मेरा विधाता है,
फिर कर्म से क्यूं वाम है,
राही मेरा नाम है,
जीवन-पथ पर बढना मेरा काम है।

4.जीवन परिचय

जिवन मेरा अस्थिर है,
अनजाने ही होता मेल कही,
मंजिल मेरी दुर खङी,
तय कर लेना बच्चों का खेल नहीं।
सुख-दःख आये जीवन लय में,
होगी मंजिल से मेल कही,
रुठी हुई है जीवन पथ,
तय कर लेना बच्चों का खेल नहीं।
गीली मिट्टी की मेरी ये काया है,
चलते-चलते ही चटक गई,
जब राह पर ना राही मिले,
अनजाने ही में भटक गई।
राह में जिनसे हुई पहचान,
दोस्त बनाकर सोचा पाने का मान,
वो दोस्त भी ना आये काम,
फिर भी उनको मेरा सलाम।
जिनसे कभी ना मिली नज़र,
उनके बिना सुनी ना हुई डगर,
पथिक जितने भी गऐ इस राह से,
इतना ही वे कह गऐ,
राही मर लेकिन कर जा तु राह अमर।
काँटों की इस राहों पर,
वो ही आगे बढते है, जो र्सिफ इतना कहते है,
जिनसे मुझे ना मिला प्यार,
उनको भी मेरा आभार।
जो कभी ना मुझसे टकराये,
गम में मेरे वो मुस्काये,
मंजिल पाने को मेरा अंतर मन,
कैसे होता?
यदि मेरा अंतर मन पाता ानरता र्पुण-र्पहर।
शुर्कगुजार हूँ मैं उन सबकी,
जिनसे व्यथा का मिला र्पसाद,
और जिनसे जीवन-पथ पर मिला प्यार,
उन सबको मेरा आभार,उन सब को मेरा नमस्कार।

5.एक कविता आंतकियों के नाम

आग,बारुद,और गोलियों से तुमने,
किसी के सपने जलाये होंगे,
जब पेशावर के हर पिता ने,
अपने नन्हें शहजादों को,
कर्ब में दफनाऐं होंगे
उस मासुम से चेहरे में,
तुम्हें अपने शहजादें क्यूं दिखाई ना दियें,
उस वक्त तुम्हें क्यूं याद नहीं आया कि,
तुमने भी कभी अपने नन्हें शहजादों के लिए सपने थे जिये।
उस वक्त,
तुम्हारी बंदुक से जो गोलियाँ निकली थी,
उन गोलियों ने उन नन्हें शहजादों को ही नहीं मारा था,
बल्की पेशावर के सपनों को भी कुचल डाला था।
अपने दिल को पत्थर बना कर,
हँसते हुए बहारों को रुला कर,
अपने अंदर की इंसानियत को जला कर,
जब तुमने उन नन्हें फरिसतों के दिलों मे,
गोलियों की बारिश की थी,
उस वक्त एक बार,
याद तो जरुर आया होगा तुम्हें
उन शहजादों के अब्बाजान की भीगी आँखें,
हर उस शहजादी के अम्मीजान का वि तरसता आँचल,
जिस गुलिस्तान में,
फुलों ने खिलना भी शुरु नहीं किया था,
तुमने उन फुलों को खिलने से पहले ही क्यों कुचल दिया,
क्या कोई जबाब है तुम्हारे पास?
पर,
अब हो जाओ सावधान,
क्योंकि,
तुमने पेशावर ही नहीं,बल्की पुरे मुल्कों के लोगोॅ को भी रुलाया है,
और अब,
पेशावर ही नहीं बल्की पुरे मुल्कों की आखोॅ से,
आँसु की जगह चिंगारी बहेगी,
जो तुम्हें और तुम्हारे नापाक इरादों को जला के भस्म कर देगी।

juhi jha, poem of juhi jha,writer juhi jhaपरिचय :-
     जुही झा
युवा कवयित्री व् लेखिका

संपर्क -:
H.NO-3, Road No-3, Mithila Colony, Baridih Basti, Jamshedpur-831017

Contact No:-8809561114, 9939687431

5 COMMENTS

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here