गाँधीजी की विनोदप्रियता

Mahatma Gandhi ,article on mahatma ghandi– प्रभात कुमार राय – 
सुप्रसिद्ध जापानी कवि नागूची ने भगवान से वरदान माँगा था-”जब जीवन में किनारे की हरियाली सूख गयी हो, चिड़ियों की चहक मूक हो गयी हो, सूर्य को ग्रहण लग गया हो, मेरे मित्र एवं साथी मुझे काँटों में अकेला छोड़कर कतरा गये हो और आकाश का सारा क्रोध मेरे भाग्य पर बरसनेवाला हो, तब हे भगवान, तुम मुझपर इतनी कृपा करना कि मेरे ओठों पर हँसी की एक उजली लकीर खिंच जाय।” बापू को सचमुच यह वरदान प्राप्त था। वे महान संत थे और पूर्ण मानव भी थे और इसी रूप में विनोदप्रियता, व्यंग-प्रहार व हास्यवृति उनके स्वाभाव का अविच्छिन्न अवयव था। स्वंय उन्हीं के शब्दों में, ”यदि मुझमें विनोदप्रियता नहीं होती तो मैंने बहुत पहले ही आत्महत्या कर ली होती।” वे सत्य-शोधक थे, सिद्यांतों के कठोर पालक थे; अपरिग्रह, अध्यवसाय एवं निर्भयता के मूर्तिमान स्वरूप थे। उनके पारदर्शी चरित्र में दृढ़ सवं गूढ़ सैद्यंातिकता और सहज विनोद का अद्भुत सांमजस्य था। वे बड़ी निपुणता से एक ही वाक्य में गंभीरता को हास्य का पुट देकर प्रस्तुत करते थे जिससे लोगों के साथ उनकी आत्मीयता प्रगाढ़ हो जाती थी। उन्होंने एक बार कहा भी था, ”मेरे मजाक में भी हमेशा बड़ा गंभीर अर्थ छिपा रहता है।” गाँधीजी के हास्य का हीरे की तरह कई फलक थे। गुरूदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने उनके निर्मल हास्य को उनकी आत्मा का उदार स्वरूप बताया था। उन्होंने कहा था, ”अगर कोई उनका गला दबोचता है तो निःसंदेह वे नहीं चिल्लाएगें। बल्कि गला घोटने वाले पर हँसेगें। उनकी मृत्यु मुस्कुराते हुए होगी।”

राउन्ड टेबुल कान्फ्रेंस में गाँधीजी के काफिले के कुछ सदस्य मंहगे सूटकेस तथा कीमती उपहार ले जा रहे थे। गाँधीजी के अनुसार वे अनावश्यक एवं विलासिता संबंधी वस्तुएँ थी। जहाज के केबीन में धन एवं विलासिता के इस प्रदर्शन पर गाँधीजी अपने सहयोगियों से अप्रसन्न थे। काफी मंहगी काश्मीरी शॉल को देखकर उन्होंने भोपाल के निजाम के आप्त सचिव सुयैव कुरेशी की ओर मुखातिब होकर व्यंगपूर्ण लहजे में कहाः ‘अगर महाराजा को शॉल की जरूरत है तो मेरे पास एक ऐसा महीन शॅाल है जो अंगूठी के अन्दर से निकल सकती है। महाराजा मुझसे यह शॉल ले लें तथा 7000 रूपये मुझे गरीबों की सहायता के लिए दे दें।’ अपनी अप्रसन्नता को उन्होंने बड़े ही मधुर ढंग से तथा गरीबों के प्रति सहृदयता दर्शाते हुए पेश किया।

दुःख एवं विपदा के प्रतिकूल एवं गमगीन माहौल में भी बापू का हास्य एवं विनोद साथ नहीं छोड़ता था। कस्तूरबा गाँधी की मृत्यु के बाद उनकी चिता के पास शोकमग्न गाँधीजी बिना अन्न एवं जल ग्रहण किये हुए अहले सुबह से ही बैठे हुए थे। सगे-संबंधियों द्वारा बार-बार उन्हें वहाँ से हटकर कुछ भोजन ग्रहण कर आराम करने की सलाह दी जा रही थी। बापू ने तुरत कहा, “62 वर्षो के साथ रहने के बाद अगर मैं उसकी चिता को जलते छोड़ जाऊँगा, तो मेरी धर्मपत्नी मुझे कभी माफ नहीं करेगी।”

दक्षिण अफ्रीकी प्रवासियों के उत्पीड़न और भेद-भाव की विषम परिस्थिति में संघर्षरत रहते हुए भी अपने परिवार से बात करने में वे हास्य का सहारा लेते थे। 1910 के दशक में दक्षिण अफ्रीका में गैर-ईसाई विवाह अवैध माना जाता था। गाँधीजी ने कस्तूरबा को मजाक में यह कह कर इस गंभीर सामाजिक मुद्दे का मतलब समझाया कि तुम मेरी ‘मिस्ट्रेस’ हो।

रूग्नावस्था में भी गाँधीजी अपने चेहरे पर मुस्कुराहट बनाये रखते थे। ऑगा खाँ पैलेस में बीमार पड़े गाँधीजी को जाँच के लिए तत्कालीन बंबई सरकार द्वारा सर्जन-जनरल को भेजा गया था। गाँधीजी ने स्वाभाविक शिष्टाचार एवं मैत्रीपूर्ण मुस्कान के साथ उनका अभिनंदन किया। रोगी के चेहरे पर मुस्कान एवं प्रफुत्लचित्त हाव-भाव को देखकर सर्जन-जनरल ने उनकी बीमारी को हल्के में लिया तथा ठीक-ठाक स्वास्थ्य का मेडिकल बुलेटिन जारी कर दिया। दो दिनों बाद जब पैथोलोजिकल जाँच का रिर्पोट प्राप्त हुआ तो गुर्दे की क्षमता में कमी का उल्लेख था। रिर्पोट की गंभीरता को देखते हुए गाँधीजी को बिना किसी शर्त्त के जेल से रिहा कर दिया गया। जेल से बाहर आने पर उनके शुभचिन्तको एवं अनुयायिओं ने उनकी उन्मुक्त हॅसी एवं प्रसन्न मुद्रा को देखकर अंग्रेज सरकार पर अनावश्यक रूप से गाँधीजी को गंभीर रूप से बीमार बताने का आरोप लगा दिया। ऑगा खाँ पैलेस से रिहाई के बाद महामना मालवीय ने एक टेलीग्राम भेजाः ”मैं आशान्वित हूँ कि भगवान आपको मातृभूमि एवं मानवता की सेवा के लिए शतायु बनाएगें।“ 1902 में अखिल भारतीय कांग्रेस कमिटी के सत्र में गॉधीजी ने हॅसते हुए 125 साल जीवित रहकर जनकल्याण करने की इच्छा जतायी थी। उन्होंने तुरत पंडित मालवीयजी को उत्तर भेजाः ”आप ने तो एक झटके में ही मेरे जीवन का 25 साल काट दिया। ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी आयु में 25 साल जुड़ जाय।“

सावरमती आश्रम में छोटे बच्चे गॉधीजी से विभिन्न विषयों पर प्रश्न पूछा करते थे। गॉधीजी का जबाब अत्यंत संक्षिप्त हुआ करता था जिससे बच्चों को संतुष्टि नहीं मिलती थी। एक बच्चे ने कहा, ”बापूजी, आप हमेशा गीता की चर्चा करते हैं। गीता में अर्जुन के बहुत छोटे प्रश्न के जबाब में भगवान कृष्ण पूरे अध्याय में प्रवचन देते हैं। लेकिन हमलोगों के पूरे पृष्ट पर अंकित प्रश्न का आप बहुधा एक शब्द या वाक्य में जबाब देते हैं। क्या यह न्यायसंगत है?“ गाँधीजी ने कहाः “भगवान कृष्ण को मात्र एक अर्जुन के प्रश्न का जबाब देना पड़ता था लेकिन मेरी कुटिया में तो अनेक अर्जुन हैं। अतः अतिसंक्ष्प्ति उत्तर देना पड़ता है।”
सुप्र्रसिद्ध अमेरीकी पत्रकार लुई फिशर भी बापू के व्यंगवाण के शिकार हुए थे। फिशर डील-डौल में लंबे-तगड़े थे। जब वे बापू से मिलने गाँधी आश्रम पहुँचे वहाँ भोजन के वक्त बापू ने बड़ा चमचा पकड़ा दिया। वृहत्काय फिशर को चकित देखकर गाँधीजी ने तुरत स्पष्टीकरण दिया- ‘अरे भाई, यह तुम्हारे आकार के अनुरूप है और अधिक सुविधाजनक रहेगा।’

सरदार पटेल से अक्सर उनका मधुर तर्क चलता रहता था और प्रायः सरदार पटेल की जोरदार एवं उन्मुक्त हँसी के साथ उन दोनों के बीच विनोदपूर्ण बातों की समाप्ति होती थी। एक बार सरदार पटेल ने गाँधीजी को खाने के लिए खजूर भिंगोये। गाँधीजी नियमपूर्वक रोज छः खजूर खाते थे। सरदार पटेल उस दिन पीछे पड़ गये और बोले कि आज एक खजूर ज्यादा सही। गाँधीजी के मना करने पर बोले, ‘पर 6-7 में अंतर क्या है?’ गाँधीजी बोले, ”तो 5 ही दीजिए, क्योंकि 5-6 में क्या अंतर है?“ गाँधीजी का विलक्षण प्रत्युत्पन्नमतित्व और अचूक उत्तर प्रश्नकर्त्ता को प्रायः मौन कर देता था।
अन्तर-एशियाई सम्मेलन में आये हुए तिब्बती प्रतिनिधि ने बापू को अनेक वस्तुएँ भेंट स्वरूप दी थी। इनमें बारीक दो पट्टियाँ भी थी। बापू ने पूछा ये कहाँ की बनी है। उन्हें बताया गया कि ये चीन में बुनी गयी है। बापू ने तुरत दूसरा प्रश्न कियाः ‘सूत भी वहीं का है क्या?’ जब पता चला कि सूत भी चीन का ही है तो बापू ने मजाक में कहा, ”चीन की यह कौन लड़की है, जो इतना महीन सूत काटती है? उसे ढूढ़ना चाहिए। यद्यपि अब मेरी उम्र शादी की नहीं है, फिर भी इतना महीन सूत कातनेवाली लड़की से तो मैं शादी कर ही लूँगा।’ वस्तुओं की गुणवत्ता के वे कायल थे और मनुष्य के हूनर तथा परिश्रम की सराहना सूक्ष्मता एवं उदारता के साथ विनोद भाव से करते थे।

एक बार एक चित्रकार ने उनका रेखाचित्र बनाकर उनके पास हस्ताक्षर के लिए भेजा था तो गाँधीजी हस्ताक्षर तो कर दिये, पर साथ में एक प्रश्न भी जड़ दिये कि ‘यह कौन बदसूरत व्यक्ति है, जिसे तुमने गलती से अपने चित्र का आधार बना लिया है।’

जब लार्ड माउंटबेटन अंतिम वायसराय बने तो वे चाहते थे कि लेडी माउंटबेटन श्रीमती असफ अली से अवश्य मिले। असफ अली बिट्रिश शासन का प्रबल विरोधी थी। शिष्ट भाषा में असफ अली को निमंत्रण भेजा गया जिसे उन्होंने नम्रतापूर्वक अस्वीकार कर दिया। लेडी माउंटबेटन सकते में आ गयी और उन्हें यह समझ में नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाए। इसी बीच गाँधीजी लार्ड माउंटबेटन से मिलने गये और अपने साथ श्रीमती असफ अली को भी ले गये। लार्ड माउंटबेटन से मिलते ही उन्होंने कहाः ”मैं सुना हूँ कि असफ अली मिलने नहीं आयगी इसलिए मैं उन्हें अपने साथ लाया हूँ।“ इस उक्ति से आपसी रिश्तों में जो खटास था वह कुछ हद तक दूर हो गया और लार्ड माउंटबेटन की हार्दिक इच्छा पूरी हुई।
जब आमरण अनशन के वक्त लार्ड माउंटबेटन गॉधीजी से मिलने गये तो अभिवादन के बाद उन्होंने कहाः ‘मैं समझ गया पहाड़ को मुहम्मद तक लाने के लिए उपवास की जरूरत होती है।’ ब्रिटिश शासको पर भारतवासियों से दूरी एवं संवादहीनता बनाए रखने पर यह एक व्यंगयात्मक प्रहार था।
गॉधीजी देश की आजादी की लड़ाई की कठिन यात्रा में अपने संक्रामक हास्य के बल पर सहिष्णुता बनाए रखे तथा अद्भुत मानवीय संवाद कायम कर सके। गॉधीजी के प्रपौत्र तुषार गॉधी के अनुसार गॉधीजी और नेल्शन मंडेला के बीच सबसे बड़ा साम्य दोनों की अप्रतिम हास्य-विनोद की भावना एवं शैली थी। उनके हर फोटो में ऑखों में खुशी और चेहरे पर मुस्कान व्याप्त था। वे प्रतिकूल परिस्थितयों, तनावपूर्ण माहौल और अतिशय कार्य-दबाव को अपने मोहक हास्य-विनोद की प्रकृति से आसानी से निपट लेते थे।

विहँसता हुआ चेहरा केवल उदासी ही नहीं मिटाती वरन् इससे शत्रु भी मित्र हो जाते हैं। हरभाँऊ उपाध्याय नेे अपनी पुस्तक ‘मेरे हृदयदेव’ में लिखा है कि जब कोई सभा में गाँधीजी के प्रतिकूल बोलता था, तब उसकी निर्भयता और साहस को देखकर उनका चेहरा खिल उठता था और जब कोई उनके तत्वज्ञान और आदर्शवाद की वृति पर कटाक्ष करता था तब वे खिलखिलाकर हँस पड़ते थे पर जब कोई उनके उनके पक्ष में बोलने के लिए उठता तब संकोच से उनका चेहरा गंभीर हो जाता था। उनकी द्वेषरहित हँसी प्रतिपक्षी पर कब्जा करनेवाली थी। वाक्चार्तुय और समय-सूचकता का परिचय उनकी प्रत्येक बात से मिलता था। उनका विनोद निर्मल, सारयुक्त, सूचक तथा प्रेरक होता था। उनका हास्य हमेशा सटीक होता था और कटुतारहित, तत्पर, मेधापूर्ण एवं तीव्र भी। गाँधी जी के हास्य में सहज वृति समायी हुई थी। उनका मानना था कि सार्वजनिक व्यक्ति के लिए हास्य एवं विनोद अनिवार्य है। वे हास्य और त्याग को सेवा का आवश्यक गुण मानते थे।

…………………..

prabhat-raiBIHAR-invc-newswriter-prabhat-rai,invc news prabhat rai , prabhat kumar raiपरिचय -:
प्रभात कुमार राय
( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार )

पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,  वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज, पटना 800014

email: pkrai1@rediffmail.com – energy.adv2cm@gmail.com

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here