कविताएँ
1. बिस्तर ताले में बन्द हो गया
छोटा बेटा था मैं
हाँ सबसे छोटा
जिसके बालों की चाँदी को अनदेखा करके
किसी ने बच्चा बनाए रखा था
जिससे लाड़ था
प्यार था
दुलार था
कि आदत जिसकी
हो गई खराब थी
कि अचानक
अनचाही एक सुबह
यूँ करके उठी
कि मायने हर बात के बदल गए
कि वो बच्चा आदमी सा बन गया
कि बिस्तर भी उसका सोने का बदल गया
क्योंकि बिस्तर जिस पर
माँ सोती थी
किसी ताले में बन्द हो गया।
2. वो जगह
ढूँढ रहा हूँ जाने कब से
धुँध में प्रकाश में
कि सिरा कोई थाम लूँ
जो लेकर मुझे उस ओर चले
जाकर जिधर
संशय सारे मिट जाते हैं
और उत्तर हर सवाल का
सांसों में बस जाते हैं।पर जगह कहां वो
ये सवाल ही
अभी उठा नहीं
की आदमी अब तक अभी
खुद से ही मिला नहीं।
3. जिन्दगी अजीब है
ये जिन्दगी बड़ी अजीब है
कि हर आदमी
जो मेरे करीब है
कि संग जिसके
कुछ पल
कुछ साल गुजारे थे मैंने;
जिनमें से कइयों ने तो
अँगुली पकड़कर
चलना भी सिखाया था,
दूर
बहुत दूर चले जा रहे हैं
जहाँ से वो ना वापस आ सकते हैं
और ना ही मैं मिल सकता हूँ उनसे
और इस तरह
हर पल
थोड़ा कम
और अकेला होता जा रहा हूँ मैं।यूँ तो चारों तरफ
झुंड के झुंड लोग हैं
और चेहरे कई
जाने-पहचाने से भी हैं
पर उस जान-पहचान का क्या?
कि हँस तो सकते हैं वो संग मेरे
और रो भी सकते हैं
पर कदम दो कदम
संग टहल सकते नहीं।ऐसा नहीं
कि इस भीड़ में
बस अकेला मैं ही हूँ।
हर कोई तन्हा है
अकेला है
पर भीड़
इस कदर है आस-पास उसके
कि वो नहीं
बस भीड़ ही भीड़ है
कि आदमी, आदमी का जंजीर है।
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राजीव उपाध्याय
कवि व् अर्थशास्त्री
शिक्षा -:
एम बी ए, पी एच डी (अध्ययनरत)
संप्रति-:
अध्यापन (दिल्ली विश्वविद्यालय) एवं सहायक सम्पादक (मैना)
प्रकाशन-:
कविताएँ अटूट बंधन, मेरी चौपाल, प्रतिलिपि, युवा सुघोष, जय विजय (ई-मैगजीन), स्वयं शून्य, काव्य सागर, कविता संसार, हिन्दी साहित्य, हेलो भोजपुरी, दी भोजपुरी, आखर व भोजपुरिका में प्रकाशित। आर्थिक आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। टीवी एवं रेडियो पर कार्यक्रम।
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धन्यवाद सम्पादक महोदय