– प्रकाश चावला –
केन्द्र सरकार ने वर्ष 2016-17 के बजट में व्यय के मद में 20 लाख करोड़ रुपये के करीब खर्च करने का प्रावधान किया है। वित्तीय वर्ष 2017-18 के लिए केन्द्रीय वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली ने कुल व्यय 22 लाख करोड़ रूपये और 23 लाख करोड़ रूपये के बीच रखा है। यह मौजूदा कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 14 प्रतिशत है।
अतीत में बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस को संसद में प्रस्तुत किया जाता था, लेकिन इस बार वित्तीय वर्ष 2017-18 का बजट वित्त मंत्री श्री अरूण जेटली 1 फरवरी को पेश करेंगे। बिना किसी राजनीतिक बहस में गये, एक स्वतंत्र विश्लेषण द्वारा बजट प्रस्तुति को आगे बढ़ाने को रख सकते हैं जिसके फलस्वरूप हम कह सकते हैं कि इससे सरकार को दो प्रमुख आयात उद्देश्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।
सबसे पहला और महत्वपूर्ण लक्ष्य व्यय की गुणवत्ता में सुधार लाना है और इस तरह से केन्द्रीय योजनाओं और परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में निश्चित रूप से बदलाव आयेगा जब इनके लिए आवंटित राशि को संसद से मंजूरी दिलाकर संबंधित विभागों या मंत्रालयों को समय से निर्गत कर दिया जायेगा। दूसरी उपलब्धि यह है कि सरकार जीडीपी में विकास के लिए किस तरह व्यय करती है; 20 लाख करोड़ रूपये से ज्यादा का सरकारी व्यय निवेश के पुनरुद्धार और उपभोक्ताओं की मांगों को बढ़ाने के लिए किए गये प्रयासों को दर्शाता है, साथ ही इससे केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिए सातवें वेतन आयोग की रिपोर्ट के कार्यान्वयन में भी मदद मिली है।
प्रचलित प्रणाली के अनुसार अब तक बजट फरवरी के अंतिम कार्य दिवस के दिन लोकसभा में पेश किया जाता था और जिससे नये वित्तीय वर्ष के पहले दिन 1 अप्रैल से संचित निधि से धन की निकासी के लिए लेखानुदान संसद से प्राप्त होता था।
बजट सत्र को दो चरणों में संपन्न होता है: पहले चरण में सरकार को निर्बाध गति से कामकाज करने के लिए लेखानुदान प्राप्त किया जाता है जबकि बजट सत्र के दूसरे चरण मई में बजट को संसद से पूर्ण मान्यता मिलती है। जबकि वित्त मंत्री के बजट भाषण में कर और गैर-कर प्रस्तावों को बजट पेश करते समय ही सरकार की प्रमुख नीति तथा दशा एवं दिशा को दर्शाता है और बजट बाषण की समाप्ति के बाद इस पर बहस होती है। बहस के बाद ही बजट प्रस्तावों में सुधार की सिफारिश की जाती है।
लेकिन समय से पूर्व कम-से-कम पहली तिमाही के लिए अंतिम परिव्यय उपलब्ध हो जाता है। दूसरी तिमाही में संबंधित विभाग और मंत्रालय बजट में घोषित परियोजनाओं और कार्यक्रमों को लागू करने पर काम शुरू कर देते हैं जो सरकार के लिए प्रमुख होता है। सरकारी धन को निजी व्यवसाय की तरह खर्च नहीं किया जा सकता है। इसमें तय प्रक्रियाओं का अच्छी तरह पालन किया जाता है, संसदीय समितियों के अलावा भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) और इस जैसी अन्य एजेंसियों जैसे केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा समीक्षा की जाती है। नौकरशाहों को कार्यक्रमों और नीतियों के कार्यान्वयन में सावधानी बरतने के कारण थोड़ा विलम्ब होता है। निविदा जारी करने, सौदों को अंतिम रूप देने इत्यादि की पूरी प्रक्रिया में कुछ महीने लग सकते हैं जिससे ज्यादातर मामलों में संबंधित विभाग को ठेकेदार को आदेश निर्गत करने में तीसरी तिमाही के मध्य या अंत तक का समय लग जाता है। जिससे पैसा अंतिम तिमाही में या कभी-कभी तो 31 मार्च तक ही व्यय हो पाता है। स्वाभाविक रूप से दवाब संबंधित ठेकेदार के साथ-साथ विभाग या मंत्रालय पर भी आ जाता है जिससे उस काम की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
इन्हीं सब बातों को ध्यान में रखकर सरकार ने बजट को पहले पेश करने का मन बनाया और उसे इस वर्ष से मूर्त रूप भी देने जा रही है। सरकार के इस कार्य से बजट पर लोकसभा एवं राज्यसभा में चर्चा के लिए पर्याप्त समय भी मिलेगा तथा संबंधित मंत्रालयों एवं विभागों को परियोजनाओं को कार्यान्वित करने की शुरूआत करने में भी सुविधा होगी। इसमें सरकार की मंशा स्पष्ट है कि उसे कार्यों को शुरू करने से लेकर खत्म करने तक में समय की कमी नहीं होगी और सरकार भी उन्नति के पथ पर अग्रसर रहेगी।
इस तरह के प्रयासों का स्वागत किया जाना चाहिए। इससे न सिर्फ अर्थव्यवस्था में सुधार दिखाई देगा बल्कि उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने एवं निवेश को बढ़ाने में भी मदद मिलेगी तथा कई वरिष्ठ मंत्रियों को सरकार की अर्थव्यवस्था के बारे में समय से आकलन करने में मदद मिलेगी; जिससे 2017 में सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों, शिपिंग, कृषि के बुनियादी ढांचे आदि जैसे क्षेत्रों में राज्य के व्यय में आर्थिक पुनरुद्धार के लिए नया रास्ता भी खुलेगा और जब एक बार स्थिति में गतिशीलता आ जायेगी तो निजी क्षेत्र में गुणात्मक प्रभाव देखने को मिलेगा और पूरे चक्र में एक परिवर्तन दिखाई देगा।
बजट में ग्रामीण परिदृश्य पर और ध्यान देने की उम्मीद है ताकि आने वाले महीनों में कृषि और संबद्ध क्षेत्रों से संबंधित सरकारी कार्यक्रम सकल घरेलू उत्पाद की गति में उत्प्रेरक साबित हों।
इस तरह, पूरे बजट का सदुपयोग किया जा सकेगा और अंतत हम कह सकते हैं कि सरकार की मंशा सकारात्मक दिशा में कदम बढ़ाने की है।
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Prakash Chawla
journalist and commentator
Prakash Chawla is a senior journalist and commentator. He mostly writes on political-economy and global economic issues.
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