राष्ट्रधर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं

images{संजय कुमार आजाद**,,}
                        ‘‘‘सरकार का एक हीं धर्म होना चाहिए कि राष्ट्र ही सर्वोपरि है। संविधान ही सर्वोत्कृष्ट धर्मग्रंथ है।इस देष के 125 करोड़ की आबादी अपना है और यही संगठित शक्ति हमारा जनार्दन है।उपरोक्त धर्म, धर्मग्रंथ और जनार्दन की सेवा हीं हमारा भाग्य है। लोकषाही का मूलमंत्र भी यही है और इससे इतर चलना पाप का कारण है।’’ जिसदिन भारत के राजनीतिक दल और उसके खेवनहार इस नेक रास्ते पर चलना प्रारंभ कर दें उस दिन से ही ना इसके रास्ते में चुनाव आयोग आए और ना ही इनके पीठ पर न्यायालय की चावुक पड़ेगी।भारत का लोकतंत्र विष्व के आदर्षतम लोकतंत्र साबित होगा इसमें लेषमात्र भी संषय नही है।यदि लोकतंत्र के मंदिर में बैठकर ये राजनीतिक दल राजनीतिक व्यवस्था को अपराधमुक्त बनाने का प्रयास करती तो आज राजनीति की दषा और दिषा कुछ और होती।कभी सोने की चिड़ीया कही जानेबाला आर्यावर्त आज भ्रष्ट देषों की अग्रीम पंक्ति में नही होती और खरवों-खरब रूपये इस देष के निवासी कभी विदेषी वैंको में अपना धन नहीं छुपाते। यह देष के प्रति अपना नकारात्मक सोच जो नेहरूवादी नीति ने यहां के पीढ़ियों में बोया उसी का फसल आज भारत काट रहा है। भोगवादी प्रवृति यानि चावार्क दर्षन का नेहरूवादी चिन्तन आज भारत को इस मुकाम तक ला खड़ा किया है। आज राजनीतिक दलों की मिली भगत से देष का शैक्षणिक माहौल ऐसा बनाया गया जिसने भारत को लुटा-पीटा देष और गुलामी मानसिंकता के नागरिक को पैदा किया।
                        चन्द सिक्कों के लिये हमने जयचन्दी दामन को थामने में कोतही नही बरती क्योंकि हमें सनातनी, मुस्लिम, सिक्ख, बौद्ध, ब्राह्मण, राजपूत, कायस्थ, दलित, वंचित, षिया, बरेलवी,सुन्नी……. ना जाने कितने श्रेणियेंा में बंटकर गौरवान्वित हुए किन्तु हमें कभी भारतीय या हिन्दूस्तानी बनने का गौरव की अनुभूति नही हुआ। हमारी उपासना पद्धति अनेक हो सकती है किन्तु हमारी राष्ट्रीयता तो एक हीं है हमारे पूर्वज भी इसी मिट्टी से है। इस देष का तंगदिल राजनीतिज्ञों ने कभी भी इस देष के आवाम को भारतीय नही बनने दिया। धर्म के ठेकेदारों के कन्धे पर बन्दूकें रख इस देष के आवाम को सदैव छला गया। हर दलों ने कमोवेष राष्ट्रवाद को कुचलकर जातिवाद को, क्षेत्रवाद को बढ़ावा देने में तनिक भी शर्मसार नही हुआ। जिस नीति पर चलकर अंग्रेजों ने इस भारतभूमि को लुटा उसी तर्ज पर नेहरू ने भी इस देष का शासन व्यवस्था और शैक्षिक माहौल को बनाये रखा ताकि कहने को तो लोकतंत्र हो किन्तु सत्ता सदैव भोगवादियों और परिवारों के लिये सुरक्षित हो और राष्ट्रवादी चाहे भगत सिंह या आषफाक हो, सुभाषचन्द्र बोस या वीर सावरकर हो इस देष में शक की दृष्टि से देखें जायें ? भारत की समृद्ध सांस्कृतिक और साहित्यिक विरासत और विचारकों को भी सदैव शक के दायरे में लाने का घृणित चाल चला गया। इस विषम परिस्थितियों में भी भारत की आत्मा अमर और सकारात्मक शक्तियों को साकार कर रही है यही इस देष की आन-बान और शान के लिये युवायों को देष के लिये जीने की प्रेरणा देती है।
                         अभी हाल में वर्षों से चली आ रही समृद्ध परम्परा के आयोजन के अवसर पर दिल्ली के एक कार्यक्रम में भारत गणतंत्र के उपराष्ट्रपति और लोकतंत्र के उच्च सदन राज्यसभा के सभापति मोहम्मद हामिद अंसारी ने ‘‘ आरती-थाल ’’ को लेने से इंकार कर दिया ? वह पहले मुस्लिम हैं बाद में इस देष के नागरिेक या कोई संवैधानिक पद पर आसीन व्यक्ति ऐसी सोच से ग्रस्त हैं। मुहम्मद हामिद अंसारी का यह कृत्य भारतीय लोकतंत्र के साथ बलात्कार से कम शर्मनाक नहीं है।उस कार्यक्रम में आरती के थाल पकड़ने से इस व्यक्ति का मत खतरे में पड़ जाता तो धिक्कार है वैसा मत पर जिसकी डोर इतनी कमजोर है। ऐसे दाकियानुसी मतावलम्बी आतंकवादियो से भी ज्यादा खतरनाक है जो इस्लाम को कलंकित करता है। भारतीय लोकतंत्र में लगे ऐसे कीड़े हीं संविधान को चाटचाट कर देष को इस मुकाम तक ले आया। वैसा हर इंसान जिसे इस देष के संविधान , संस्कार, संस्कृति से परहेज है उसे बहुलतावादी इस देष के किसी भी पद पर रहने का कोई अधिकार नहीं है और उस हीन भावना से ग्रसित व्यक्ति को अपने मजहवी जमात में ही डेरा डालना चाहिये? अपने सुख-सुविधायों के लिये अपने दीन और मजहव को पैरों की जूती मानने वाले येसे मजहवी लोगों में अधिकार की हवस तो होती है किन्तु जब कर्तव्य बोध की बात आती तो ये मजहव का वास्ता देकर नाक-भौं सिकोड़ने लगते है। धिक्कार है भारत के सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर कुण्डली मारे ऐसे संविधानद्रोहीयों पर जिनकी इतनी तंगदिल मानसिकता है। अवसादग्रस्त ऐसे लोगों को संरक्षण देने बाले राजनीतिक दलो को इन समाजद्रोहीयों का साथ देना देष की एकता और अखण्डता के लिये खतरे की घंटी है।
                              भारत में मुगलों और अंग्रेजो के बाद नेहरू इस देष के शासक बने जो भारतीय वेष मेें अंग्रेजो के दुमछल्ले थे।भारतीय संस्कार और संस्कृति से सदैव चिढ़ने वाला यह शख्स इस देष के ताना-बाना को क्षत-विक्षत करने में कोई कसर नही छोड़ी। इनके इस घृणित कार्य में मार्क्स मुल्ला मरियम पुत्रों ने पूरा-पूरा साथ दिया। नेहरू के जमाने से चला विनाष का यह प्रवृति अनवरत आजतक जारी है जिसका स्पष्ट प्रकटीकरण है इस देष के देषभक्तों को आतंकवादी और देषद्रोहियों को देषभक्त बनाने का कुत्सित प्रयास। अंग्रेजों ने अपने हितों को साधने के लिये भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना की थी जिसका मूल उद्ेष्य था भारत के राष्ट्रवादी शक्तियों को कुचलना।वही प्रक्रिया आज तक दहषतगर्दो और फिरकापरस्तों की यह जमात अपनाये हुए है।अंग्रेजो ने बांटो और राज्य करो का सहारा लिया था जिसमें आज भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने थेाड़ा इजाफा किया और इसका ध्येय वाक्य है- बांटो, लूटो और राज्य करो’’। दहषतगर्दो और फिरकापरस्तों की यह जमात कांग्रेस ई  अपना राजनीतिक अस्तित्व बनाए रखने की कला में माहिर है तभी तो अंतहीन अराष्ट्रीय कुकृत्येंा व कारनामों और घोटालों की अंतहीन श्रृखंला के बाद भी इसके चेहरे पर षिकन तक नही उभरती है। इस दल के कारनामों से तो मुगल और अंग्रेज भी पीछे छूट गये? ऐसे दहषतगर्दो और फिरकापरस्तों की यह जमात अपना उल्लू सीधा करने के लिये मौका मिला तो देष की जनता और संप्रभुता को विदेषियों के हाथों बेचने से भी नही हिचकेगी।भारत में अबतक की सबसे भ्रष्ट सरकारों की श्रेणी में शामिल सेनिया-राहुल नियंत्रित मनमोहन सिंह की सरकार है इसमें रंचमात्र भी संदेह की गंुजाईष अव नही है। पूरी की पूरी सरकार ‘‘नेहरू-गांधी-बाड्रा परिवार’’ की दासमात्र है। संविधान संसद के बजाय 10-जनपथ की कैद में कराह रही है। राष्ट्रीय स्वाभिामान के अभाव में लोग चरण-बंदना को आकुल रहतें है। नेहरू की आत्मा को शकुन मिलता होगा कि उसका बनाया नीति आज उसके परिवार के चरण बंदना के लिये अमोघ शस्त्र है। जिस गुलामेंा की परिकल्पना नेहरू ने अंग्रेंजो से मिलकर बनाई थी वह आषा से भी अधिक फलदायी हुया।
                                     कुंठाग्रस्त वर्तमान केन्द्रीय सरकार अपने जन्मकाल से ही अल्पसंख्यक वोटों की मृग-मारीचिका में देष के बहुसंख्यक समाज को हाषिये पर धकेल उसे आपस में लड़ाने की चाल चली हुई है। 21 वीं सदी में भी ये दल आज देष को साम्प्रदायिक व जातिवादी दंगों में धकेलने का घृणित चाल चल रही है। सुरसा की भांति मुस्लिमों की बढ़ती आवादी पर रोक लगाने के बजाय उस जनसंख्या बाहुल्य क्षेत्र को विषेष सुविधा देना इस देष के लिये खतरा है।सुविधा पंथ,मत मजहव के वजाय समान रूप से हर भारतीय को मिले इसके बजाय वोट की राजनीति में लिया ऐसा निर्णय खतरनाक है। जबकि इस देष में एक विधान एक संविधान और एक निषान इसकी मूल कल्पना है ऐसे में ‘‘ समान नागरिक संहिता’’ के बजाय ऐसे हरकत निन्दनीय है, देष के साथ विष्वासघात है।ऐसे हरकत ही हामीद अंसारी जैसे मानसिकता को खाद-बीज मुहैया कराता है।
                                   हाल के एक फैसले में जम्मू-कष्मीर उच्च न्यायालय के न्यायाधीष मुज्जफर हुसैन अत्तार ने अपने में कहा है कि-‘‘ भारतीय संवैधानिक विचारधारा में एक ही इज्म-इण्डियनिज्म (भारतीयता) है।इसके अलावा सभी इज्म भारतीयता के दुष्मन हैं।’’ न्यायाधीष मुज्जफर हुसैन अत्तार ने केन्द्र सरकार और मुख्य चुनाव आयुक्त को उन नेताओं के खिलाफ कारवाई के निर्देष दिये हैं जो धार्मिक राष्ट्रवाद के आधार पर लोगों से वोट मांगते हैं। अपने फैसले में उन्होने कहा कि – संविधान सभी लोगों को अपने धर्म का पालन व इबादत करने का अधिकार देती है।संविधान की प्रस्तावना में पंथनिरपेक्षता जैसे शब्द जुड़ने से लोगों को कई विचारधाराओं में बांट दिया गया है जो देष के लिये घातक है।’’
                                   न्यायाधीष मुज्जफर हुसैन अत्तार के इस फैसले के बाद भी यदि इस देष के राजनीतिक दलों के खेवनहारों को सद्बुद्धि आये और ‘‘ भारतीयता’’ को समझे तो वह दिन दूर नही जब भारत फिर एकबार विष्व में अपना परचम लहरा सके।इस सरकार के अनेक देषद्रोही फैसलों पर सरकार ने रोक लगाकर इस देष की संप्रभुता की रक्षा की है। अब भी समय है कि इस देष के राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव-2014 में धार्मिक राष्ट्रवाद के बजाय भारतीय राष्ट्रवाद की नींव को मजवूत करने कार्यकर अपने पापों को प्रायष्चित कर सषक्त भारत का निमाणर््ा करने का कार्य करे। भारत की भूमि पर सिर्फ एक हीं राष्ट्रवाद है वह है ‘‘भारतीय राष्ट्रवाद’’। इस राष्ट्रवाद में जिसे विष्वास नही है चाहे वो कोई हो उसके लिये इस भारतभूमि पर कोई जगह नही है।वह भारत के लिये एक शत्रुमात्र है इसमें हमें तनिक संदेह नही होना चाहिये।
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sanjay kumar azad**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
निवारणपुर रांची 834002
मो- 09431162589
(*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं)
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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