महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार की ऐसी महत्वकांक्षी योजना है जिसने न केवल भारतीय ग्रामीण गरीब परिवारों के लिए रोजगार की नई संभावनाओं को जन्म दिया वरन् देश के आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक जीवन पर बहुआयामी निर्णायक प्रभाव छोड़े है। अगस्त 25, 2005 को संवैधानिक रूप से लागू हुई यह योजना संपग्र सरकार के समाजिक सरोकारों का समाजिक, राजनीतिक उच्चारण बनकर संभवतया दुनिया की अपनी तरह की सबसे बड़़ी रोजगार योजना के रूप में सामने आई। फरवरी 2006 से क्रियान्वित इस योजना ने अब छह वर्ष पूरे कर लिए हैं और इन छह वर्षों में इस महत्वकांक्षी योजना ने समाज के सर्वाधिक निचले पायदान पर खडी बहुत बड़ी आबादी को सफलतापूर्वक रोजगार उपलब्ध कराने का महत्ती काम किया है।
2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना का शुरूआती प्रारूप देश के कुल 200 जिलों के लिए तैयार किया गया था जिसमें बाद में 130 जिले और शामिल किए गए। परंतु वर्तमान समय में इस योजना के तहत देश के सभी 624 जिले आते है। यदि रोजगार सृजन करने और उपलब्ध कराने के संदर्भ में संप्रग सरकार की तुलना पिछली राजग सरकार से क जाए तो निश्चित ही इस सरकार की उपलब्धियां कहीं अधिक है। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के अनुसार सत्ता में आने के बादे से वर्तमान सरकार ने तीन गुना रोजगार मुहैया कराए हैं और इस सफलता का मुख्य श्रेय मनरेगा को ही जाता है। दिसंबर 2010 तक ही इस योजना के तहत ही सरकार देश के चार करोड़ दस लाख परिवारों को रोजगार मुहैया करा चुकी थी। मनरेगा से रोजगार पाने वाले इन परिवारों की समाजिक स्थिति और इनके वर्गीय चरित्र का आंकलन किया जाए तो इस योजना की सफलता ओर भी उल्लेखनीय जान पड़ती है। मनरेगा से रोजगार पाने वाले लोगों में जहां 47 प्रतिशत महिलाएं थी तो वहीं 28 प्रतिशत वह लोग थे जो अनुसूचित जाति से आते हैं और इसमें 24 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जनजाति का था इस दृष्टिकोण से मनरेगा ना केवल अकुशल ग्रामीण मजदूर को रोजगार मुहैया कराने वाली योजना बन सकी वरन् इसने सामाजिक रूप से पिछड़े वर्गो के आर्थिक सशक्तिकरण के द्वारा समाजिक न्याय के महत्वपूर्ण और प्रभावी औजार के रूप में भी काम किया है। जाति संप्रदाय और लैंगिक भेदभाव से अलग इस योजना ने समाज के सबसे अधिक कमजोर तबको के आर्थिक्सशक्तिकरण का काम किया। इतना ही नहीं मनरेगा के कारण देश के ग्रामीण क्षेत्रों में अपना वेजन पाने के लिए 10 करोड़ लोगों को बैंक या स्थानीय डाकघर में खाते खोलने पड़े है, जिससे ग्रामीण गरीब मजदूरों में जमा और बचत की भावना का भी प्रसार हुआ है।
हालांकि केंद्र सरकार ने इस योजना की मजदूरी को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक से जोड़ दिया है परंतु अभी कई राज्यों में मिलने वाला मेहनताना न्यून्तम मजदूरी से कम है। योजना के प्रारंभ में योजना का पारिश्रमिक 57 रूपये प्रतिदिन था, जिसे बाद में बढ़ाकर 100 रूपये किया गया वर्तमान समय में यह 125 से लेकर अलग-अलग राज्यों में 180 रूपये तक है। पारिश्रमिक की दर पुरूष और महिलाओं के लिए एक समान हैं, इसमें कोई लैंगिक भेदभाव नहीं है। इस लैंगिक समानता के अलावा मनरेगा ने महिला सशक्तिकरण की एक नई ग्रामीण पटकथा लिखी है। महिला सशक्तिकरण इस योजना का एक बेहद महत्वपूर्ण पहलू है। योजना ने 33 प्रतिशत महिलाओं को रोजगार मुहैया कराने की प्रतिबद्धता तो जाहिर की थी परंतु अधिकतर राज्यों में यह प्रतिशत 33 से कहीं ज्यादा दर्ज किया गया है। तमिलनाडु में सबसे अधिक 82 प्रतिशत महिलाएं योजना से लाभ पा रही हैं तो वहीं केरल और राजस्थान भी क्रमश: 72 और 69 प्रतिशत के साथ योजना में महिलाओं की भागेदारी के मामले में सबसे उंचे पायदान पर खड़े है। अभी तक अपने रोजमर्रा के खर्च के लिए पुरूषों पर आश्रित ग्रामीण महिला अपने आप को अधिक आत्मनिर्भर और स्वतंत्र महसूस कर रही है। अभी तक औरत की जिस मेहनत का कोई आर्थिक आंकलन नहीं होता था वह अब परिवार की एक कमाने वाली सदस्य बनकर अपने परिवार और समाज विकास की नई भूमिका में सामने आ रही है। बेशक यह ग्रामीण महिलाओं के जीवन में एक फलदायी बदलाव है और यह नए समाज के निर्माण में महिलाओं की नई, सक्रिय एवं निर्णायक भूमिका की जमीन तैयार करेगा जो केवल मनरेगा से ही संभव हो पा रहा है। इसके अतिरिक्त जलाशयों के पुनर्निर्माण और जल संरक्षण का बड़ा काम भी मनरेगा के कारण संभव हो रहा है। 2010-11 के वित्त वर्ष में मनरेगा के लिए आवंटित धन के 40 प्रतिशत हिस्से का उपयोग जलाशयों के पुनर्निर्माण, संरक्षण और ग्रामीण सिंचाई योजनाओं पर खर्च करने का निमर्णय सरकार द्वारा किया गया। बड़ी संख्या में मनरेगा के तहत ग्रामीण क्षेत्रों में सूख गए जलाशयों, पोखरों, बावडियों और तालाबों को पुनर्जीवित और संरक्षित करने का प्रभावी काम हो पाया है। तमाम तरह की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोपो और आलोचनाओं के बीच भी मनरेगा ने भारतीय जनजीवन पर कई रूपों में परिवर्तनकारी अमिट छाप छोडी है। यह राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कानून ही हैं, जिसके क्रियान्वयन के बाद से कृषि क्षेत्र में न्यूनतम मजदूरी दोगुनी हुई है। दरअसल कम कृषि मजदूरी ही ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी का मुख्य कारण रहा है, अब के कमजोर गरीब तबको के सशक्तिकरण की प्रक्रिया शुरू हुई है। मनरेगा के लागू होने, रोजगार की संभावनाएं बनने औश्र कृषि मजदूरी में बढ़ोतरी के कारण गांवों से मजदूरों के विस्थापन और पलायन में भी कमी आई है। इसके अलावा इस कानून की एक बड़ी उपलब्धि ग्रामीण क्षेत्रों में सामुदायिक संसाधनों का निर्माण भी हैं, जिसमें ग्रामीण इलाकों में सड़कों, परंपरागत जलाशयों का संरक्षण और नए स्रोतो का निर्माण भी है। मनरेगा की यह ऐसी उपलब्धियां है, जो ग्रामीण समाज पर व्यापक एवं दूरगामी प्रभाव छोड़ रही है और जिसके नतीजे आने वाले समय में दिखाई देगें।
सकरात्मक प्रभावों के बाद भी इस प्रभावी कानून को कई नकारात्मक आलोचनाओं का सामाना करना पडा है जिसे वर्तमान ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश ने भी पिछल दिनों एक पत्रिका को दिए गए अपने साक्षात्कार में स्वीकार किया है। उन्होंने स्वीकार किया कि देश के 600 से भी अधिक जिलों में फैली इस योजना का दायरा इतना व्यापक और विविधतापूर्ण है कि इसमें छिद्र बचे ही रहते हैं क्योंकि इसे लागू करने की कोई एकरूप व्यवस्था नहीं है। योजना बेशक केद्र सरकार द्वारा निर्मित और क्रियान्वित की जाती हो परंतु इसे जमीनी स्तर पर लागू करने और इसके लिए मांग निर्माण आदि में ग्राम पंचायत की ही प्रमुख भूमिका है। रोजगार कार्ड धारकों को पारिश्रमिक अदायगी में अनियमितताओं की मिल रही शिकायतों के मद्देनजर सरकार ने राज्य सरकारों को आदेश दिया है कि प्रत्येक कार्ड धारको को उसके द्वारा किए गए काम के बाद 15 दिन के भीतर पारिश्रमिक मिल जाना चाहिए और ऐसा नहीं होन की स्थिति में इन अनियमितताओं पर हर्जाना राज्य सरकार को देना होगा। हालांकि आंध्र प्रदेश सरीखे कुछ राज्यों में इन अनियमितताओं पर मजबूत मेनेजमेंट इंर्फोमेंशन सिस्टम (एमआईएस) द्वारा अंकुश लगाया जा सका है। यह मजबूत एमआईएस सरकार द्वारा जारी धन के बहाव की असरदार ढंग से निगरानी करने में सक्षम रहता है। श्री जयराम रमेश ने कहा कि इसके अलावा भी हमने समाज के अलग-अलग हिस्सों से मिल रहे सुझावों और आलोचकों की चिंताओं के आधार पर कानून में सुधार के लिए एक मनरेगा 2.0. ब्ल्यू प्रिंट तैयार किया है। वास्तव में यह कोई मनरेगा में संशोधन नहीं है, वरन् कार्य सूची में बदलाव करे हुए मनरेगा को अधिक प्रभावी तरीके से लागू करना ही है। 2.0. को अपने आलोचकों की चिंताओं के मद्देनजर और अपने अनुभवों के अनुसार तैयार किया गया हैं जिसे ज्यादा से ज्यादा कृषि क्षेत्र से जोडा जाएगा। इसके अतिरिक्त उन्होंने बताया कि हमने योजना के समक्ष नौ प्रमुख चुनौतियों को रेखांकित किया है और उनसे निपटने की योजना तैयार करने के लिए डॉ0 मिहिर शाह की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया है जो आगामी बजट सत्र से पहले अपनी कार्ययोजना पेश कर देगी और हमारे सामने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना को अधिक प्रभावी बनाने का एक नया प्रारूप होगा।
नोट: इस लेख में लेखक द्वारा व्यक्त विचार उसके अपने है और यह जरूरी नहीं कि वे आई.एन.वी.सी के विचारों को प्रतिबिम्बित करें।