कविताएँ
जोगी चाँद
यूँ खिड़की पर जो आते हो
मन जोगन से क्या पाते हो
न वचन कोई ना कोई सपना
ले खाली दामन ही जाते हो,
… फिर बोलो जोगी रोज-रोज
तुम खिड़की पर क्यों आते हो।
रमने को कँही क्या बास नहीं
क्या कोई भी तेरे पास नहीं
रोते हो तब भी भाते हो
ये दर्द सा कैसा गाते हो।
जब कुण्डी – ताले सोते हैं
दरवाजे ग़ाफ़िल होते हैं
तुम खिड़की पर आ जाते हो
और जी भर जब बतियाते हो
इस धुंधले काले आलम पर
तब धवल नदी सी बहती है
तुम दिल को बेहद भाते हो
शायद पहले के नाते हों।
जोगी तुम इक बात कहो
क्या तुमको नींद नहीं आती
या नींद से तुमको प्यारी हूँ
बचपन की जैसे यारी होऊं
कल आएगी जब फिर रैना
तुम जोगी तब ये भी कहना
ये जो तप कुंदन के फेरे हैं
क्या संग ही मेरे लेने हैं।
आज कही है जोगी मैंने
जो थी दिल में कुछ बातें
कल कहना कैसे दिन बीता
क्या-क्या दुनिया ने,की घातें।
यूँ रात में मेरी खिड़की पर
मैं जान गई क्युँ आते हो
क्युँ नैनों में तकते रहते हो
पर दूर जरा सा बहते हो…
____________________________
जलती तीली
कभी मेरे पास
सिगरेट कँहा रहा
पर जलते ख्यालों से
इक सिगरेट
सुलगाना है
कि, जब छींटे बारिश के
उंगलियों को
होठो को ,
बदन के हर गोशे को भिगों दें,
भिंगो – भिंगो कर थका दें ,
कि, जब आँखों से कोई आस
बारिश का छाता ओढ़ कर
बेधड़क निकल पड़े ,
तो सिगरेट सुलगा कर
सुलगती कुछ चाहतों को
दिखाना चाहती हूँ, एक
जलती तीली |
_____________
ज्योति गुप्ता
लेखिका व् कवयित्री
________________
लेखन – : अख़बार, पत्रिका, ई-पत्रिका में
_______________________________
संपर्क-
निवास– बोरिंग रोड, पटना , E-mail – : jtgupta9@gmail.com , Mob- : 9572418078
_________________________
लाज़वाब, शानदार जबरदस्त जिंदाबाद
आह…!!! बेहतरीन कविता ज्योति जी…!!!
बेहतरीन रचना / धन्यवाद.
Ati prashanshniya kavita
Nice lines
कमाल है दी बहुत प्यारी कवितायें
वाह जलती सिगरेट जागा जोगी
रात की प्यास है रात की प्यासी
है अंधियारा भी सुखा सूखा
सीली सीली है ये ज्योति 🙂
“जोगी तुम इक बात कहो क्या तुमको नींद नहीं आती या नींद से तुमको प्यारी हूँ।”
वाह वाह वाह ….बहुत उम्दा ॥
jyoti unnda , lik thish
ज्योति जी आपकी कविता दिल को छूने वाली है ।
बेहतरीन
Nyc Jyoti ji,aise hi likhti rahiye ji
सुन्दर रचना
।
जोगी को नींद नहीं आती ।