सवाल प्रधानमंत्री पद की गरिमा का ?

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narendramodi– तनवीर जाफ़री –

भारतीय जनता पार्टी के नेताओं में अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे नेता का नाम है जिन्हें न केवल एक कवि,एक कुशल राजनेता,एक अच्छे कूटनीतिज्ञ तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार के सफल  प्रधानमंत्री के रूप में जाना जाता है बल्कि देश के अन्य पूर्व प्रधानमंत्रियों की तुलना में उन्हें सबसे कुशल वक्ता के रूप में भी जाना जाता है। अपनी बातों को पूरे संयम व मर्यादा के साथ अपने भाषण के माध्यम से जनता के बीच रखना,सुंदर से सुंदर व प्रभावी शब्दों का अपने भाषण में प्रयोग करना तथा उनमें सुंदर साहित्यिक शब्दों का प्रयोग करना वाजपेयी जी के भाषण की खास विशेषता थी। आज देश को नरेंद्र मोदी के रूप में भाजपा की पूर्ण बहुमत सरकार का प्रधानमंत्री मिला है। मोदी समर्थक उन्हें भी एक अच्छे वक्ता के रूप में प्रचारित करने की कोशिश करते रहते हैं। कभी-कभी भाषणों के लिहाज़ से अटल बिहारी वाजपेयी व नरेंद्र मोदी की तुलना भी की जाती है। पंरतु हकीकत यह है कि नरेंद्र मोदी भाषण के मामले में तथा अपने भाषण में शब्दों व मुद्दों के चयन तथा साहित्यिक शब्दावली के प्रयोग के क्षेत्र में वाजपेयी के समक्ष कहीं भी नहीं ठहरते। बड़े अफसोस के साथ यह कहना पड़ता है कि मोदी ने अपने भाषणों में कई बार ऐसे शब्दों,ऐसे वाक्यों तथा ऐसे मुद्दों का प्रयोग किया जो निश्चित रूप से प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं थे। मोदी की इस प्रकार की भाषण शैली हालांकि गुजरात में उनके मुख्यमंत्री रहते हुुए भी कमोबेश ऐसी ही रही है। परंतु चूंकि वे उस समय देश के एक राज्य के मुख्यमंत्री मात्र थे इसलिए उनके ऐसे गैर जि़म्मेदाराना भाषणों की अनदेखी भी कर दी जाती थी। परंतु जब से वे देश के प्रधानमंत्री बने हैं उस समय से उनके एक-एक शब्द देश के प्रधानमंत्री के मुंह से निकले हुए शब्द समझे जा रहे हैं। और उनके वक्तव्यों को या उनके भाषणों के अंशों को सीधेतौर पर प्रधानमंत्री पद की गरिमा से जोड़ा जा रहा है। यह भी देखा जा रहा है कि नरेंद्र मोदी अपने भाषणों में अपना जो एजेंडा सार्वजनिक करते हैं,उनके सांसद,उनके मंत्री व पार्टी के नेता तथा उनको समर्थन देने वाले उनके सहयोगी संगठन उनकी बातों पर कितना अमल करते हैं व उन्हें कितनी गंभीरता से लेते हैं?

उदाहरण के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस वर्ष की ही तरह गत् वर्ष भी स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल िकले की प्राचीर से झंडारोहण के पश्चात अपने भाषण में देश के लोगों से दस वर्षों तक सांप्रदायिकता से दूर रहने की अपील की गई थी। निश्चित रूप से यह एक अच्छी अपील थी तथा देश के सभी धर्मों के लोगों को खासतौर पर धर्म की राजनीति करने वाले धर्म के ठेकेदारों को प्रधानमंत्री की इस अपील पर अमल करना चाहिए था। परंतु पिछला पूरा एक वर्ष प्रधानमंत्री की अपील के विपरीत सांप्रदायिकता फैलाने की कोशिशों में ही बीता,और सांप्रदायिक एजेंडे को बढ़ाने,कभी घर वापसी,कभी धर्म परिवर्तन,कभी लव जेहाद तो कभी मोदी विरोधियों को पाकिस्तान भेजो,अल्पसंख्यकों को मताधिकार से वंचित करो जैसे एजेंडे को हवा देने में बीता। आिखर इसका क्या अर्थ निकाला जाए? बहुमत सरकार का प्रधानमंत्री देश से एक अपील करे और विपक्ष या उसके विरोधी तो क्या उसकी अपनी पार्टी के नेता व मंत्री उसकी सार्वजनिक अपील को अनसुनी करते हुए उसी काम में लग जाएं जिसके लिए प्रधानमंत्री मना कर रहे हैं। इसे आिखर प्रधानमंत्री पद की गरिमा की तौहीन कहा जाएगा अथवा नहीं? या फिर इसे इस नज़रिये से देखा जाए कि प्रधानमंत्री सार्वजनिक रूप से जो चाहे बोलते रहें परंतु उनकी पार्टी व उसके नेता किसी गुप्त एजेंडे पर ही चलना जारी रखेंगे?

कहा जाता है कि प्रधानमंत्री द्वारा अलिखित भाषण दिया जाता है। और वे जो भी बोलते हैं अपने  अंतर्मन से बोलते हैं। गत् वर्ष लोकसभा के चुनाव में अपनी नाकामियों के बोझ से दबी यूपीए सरकार के विरुद्ध अपने भाषणों में नरेंद्र मोदी ने बड़ी ही खूबसूरती के साथ जनता से अपनी हां में हां मिलवाई। परंतु उनके प्रधानमंत्री बनने के मात्र 8 महीने के भीतर ही प्रधानमंत्री के रूप में दिए जाने वाले उनके भाषणों में वैसा आत्मविश्वास व उस प्रकार का आक्रामक लहजा जाता रहा। नतीजतन प्रधानमंत्री की नाक के नीचे हुए दिल्ली विधानसभा चुनाव में प्रधानमंत्री व राष्ट्रीय सवयं सेवक संघ द्वारा अपनी पूरी ताकत झोंक देने के बावजूद भाजपा को ऐतिहासिक शिकस्त का मुंह देखना पड़ा। दिल्ली में हुई उनकी रैलियों में न तो मोदी-मोदी के सुनियोजित उद्घोष में कोई दम नज़र आया न ही दिल्ली की जनता उनके चिरपरिचित अंदाज़ में उनकी हां में हां मिलाती नज़र आई। दिल्ली में भी प्रधानमंत्री ने अपने भाषणों में कई ऐसी बातें कीं जो प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं थीं। मिसाल के तौर पर उन्होंने दिल्ली की एक रैली में स्वयं को नसीब वाला प्रधानमंत्री बता डाला जबकि अपने विरोधियों को बदनसीब होने की संज्ञा दी। अब यदि नसीब वाले प्रधानमंत्री के लिहाज़ से गत् एक वर्ष में देश की स्थिति पर नज़र डाली जाए तो उनके नसीब का अंदाज़ा अपने-आप हो जाता है। गत् एक वर्ष में देश में कितने किसानों ने आत्महत्याएं की, सांप्रदायिकता व अलगाववाद किस कद्र परवान चढ़ा, मंहगाई किस हद तक बढ़ी,आतंकवाद कितना फैला,काला धन अब तक कितना वापस आया तथा मुद्रा के अवमूल्यन की स्थिति आदि देखकर प्रधानमंत्री के नसीब का बखूबी अंदाज़ा लगाया जा सकता है।

रही-सही कसर प्रधानमंत्री ने गत् दिनों बिहार में 26 जुलाई की रैली में पूरी कर दी। उन्होंने अपने पूर्व सहयोगी तथा बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार के डीएनए को ही चुनौती दे डाली। डीएनए जिसका संबंध किसी इंसान की नस्ल व उसके वंश से होता है का राजनीति में जि़क्र करना कतई मुनासिब नहीं होता। हमारे देश में आम बातचीत में यदि कोई बहस के दौरान किसी के मां-बाप का जि़क्र करे तो कोई व्यक्ति उसे सहन करना नहीं चाहता। न कि प्रधानमंत्री जैसे देश के सर्वोच्च पद पर बैठे हुए व्यक्ति द्वारा अपने ही एक पूर्व सहयोगी के डीएनए को कुरेदना, इसे तो किसी भी दृष्टिकोण से प्रधानमंत्री पद की गरिमा के अनुरूप नहीं कहा जा सकता। हालांकि इस के पूर्व उन्हीं के मंत्रिमंडल के नितिन गडकरी भी यह कह चुके हैं कि ‘जातिवाद बिहार के डीएनए में शामिल है’। परंतु गडकरी के बयान की उतनी अहमियत नहीं जितनी कि प्रधानमंत्री के मुंह से निकले हुए शब्दों की होती है। इसी प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बिहार में राजनैतिक दलों के नामों का स्वयं गढ़ा हुआ अर्थ समझाने पर उतर आए। राष्ट्रीय जनता दल अर्थात आरजेडी को उन्होंने ‘रोज़ाना जंगल राज का डर’ कहकर परिभाषित किया तो जनता दल युनाईटेड यानी जेडीयू को ‘जनता दमन उत्पीडऩ पार्टी’ बताया। इस स्तर तक जाकर अपने विरोधियों को व उनके दलों के नाम को नीचा दिखाने का प्रयास देश के किसी भी प्रधानमंत्री द्वारा आज तक नहीं किया गया। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने लालू प्रसाद को भुजंग प्रसाद का नाम दिया और नीतिश कुमार को चंदन कुमार कहते हुए यह कहा कि यह दोनों बिहार को बर्बाद कर देंगे।

मोदी ने बिहार को बीमारू राज्य भी बताया। इतना ही नहीं बल्कि उन्होंने लालू प्रसाद की ओर इशारा करते हुए यह भी कहा कि वे जेल से बुराईयां सीख कर आए हैं। मोदी के इस वाक्य को भी आलोचकों ने आड़े हाथों लिया। गौरतलब है कि हमारे देश में जेल को बंदी सुधार गृह का नाम दिया गया है। अर्थात् यहां बिगड़े हुए व अपराधी िकस्म के लोगों को सज़ा देने के साथ-साथ उन्हें सुधारने का काम भी किया जाता है। लिहाज़ा जेल से बाहर आया हुआ व्यक्ति सुधार की दिशा में बढ़ता हुआ माना जाता है न कि बिगड़ा हुआ। परंतु मोदी के इस कथन के दृष्टिगत् उनके आलोचकों ने उन्हीें के सामने यह प्रश्र रख दिया कि यदि लालू यादव जेल से बुराई सीख कर आए हैं तो उनके सबसे विश्वस्त सहयोगी व उनकी इच्छा से भाजपा के अध्यक्ष बनाए गए अमित शाह के बारे में उनका क्या ख्याल है? वे काफी लंबे समय तक जेल में रहकर आिखर क्या सीख कर आए हैं? लोगों को ‘बदला लेने’ के लिए आमादा करना व दंगे-फसाद फैलाने की रणनीति तैयार करना? बहरहाल मोदी अपने ‘बोल अनमोल’ के चलते तथा अपने निरर्थक फलसफे बघारने की वजह से प्राय:आलोचनाओं के घेरे में रहा करते हैं। उन्हें कई बार इतिहास का गलत वर्णन करते हुए भी सुना गया है। इस प्रकार की हल्की व बेतुकी बातें देश के जि़म्मेदार नेताओं पर भी शोभा नहीं देती। प्रधानमंत्री पद पर बैठने वाले व्यक्ति पर तो हरगिज़ नहीं। पिछले ही दिनों बिहार के दसवीं कक्षा के एक छात्र ने प्रधानमंत्री के बिहार में दिए गए भाषण से दु:खी होकर एक पत्र लिखा था जो सोशल मीडिया पर बहुत लोकप्रिय हुआ। उसने आरजेडी व जेडीयू की मोदी द्वारा की गई परिभाषा के बाद एनडीए का अर्थ बताया। उसने एनडीए को ‘नौटंकी ड्रामेबाज़ एलाईंस’ बताते हुए लिखा कि उसे प्रधानमंत्री जी के भाषण से यह लगा कि जैसे कोई नाटक का पात्र नाटकीय भाषण दे रहा है। प्रधानमंत्री को देश के सर्वोच्च पद की गरिमा का खयाल रखते हुए शब्दों व वाक्यों का चयन करना चाहिए। क्योंकि वे किसी पार्टी के नहीं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं।

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Tanveer Jafri
Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities

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