{संजय कुमार आजाद**,,}
इस देश के लोकप्रिय नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री ने हाल में अपने एक साक्षात्कार में अपने को ‘हिन्दु राष्ट्रवादी’ कहा, फिर क्या, इस देश के सेकुलरों के गिरोह में हड़कम्प मचना ही था। एक तो नरेन्द्र मोदी, दूसरा उनके मुख से ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ यानि सेकुलर गिरोहों के लिए ‘‘एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा’’ जैसा था। नरेन्द्र मोदी धन्यवाद के पात्र हैं कि उन्होंने हकीकत को स्वीकारा और ताल ठोककर कहा कि ‘मैं हिन्दू हूँ, राष्ट्रवादी हिन्दू हूँ।’ ध्यान दें इस देश में हिन्दू कहना ही अपने आप में बड़ा अपराध है? इस देश में आपातकाल लागु कर संविधान का कुख्यात 44वां संविधान संशोधन हुआ, उस संशोधन में संविधान के ऊपर ‘पंथ निरपेक्षता’ शब्द को घुसेड़ा गया। यह शब्द इस देश के संस्कार और संस्कृति विशेषकर वैदिक या सनातन धर्म के लिए धीमा जहर है। यह प्रेम, सहिष्णुता और भाईचारा के बीच वैमनस्य पैदा करने वाला अति घृणित शब्द है जो दीमक की तरह इस देष को चाट रहा है। इस देश की सरकार और इस देश के नेता अपने आपको सेकुलर कहलाने का दंभ भरते हैं। देश- विदेश के हर फोरम पर हिन्दुस्तानी संस्कार और संस्कृति को पानी पी-पी कर कोसते हैं और अपने गले में छद्म ‘सेकुलर’ का पट्टा डाल गर्वोन्त महसुस करते हैं। किंतु क्या इस देश की सरकार जैसा लोगों को कहती वैसा है? कदापी नहीं, कथनी और करनी में आसमान-जमीन का अंतर है। मै। एक उदाहरण – इस देश की एकता और अखंडता को पुष्ट करने वाली तथा प्रेम और भाइचारे को बढ़ाने वाली विश्व के विशालतम मेला जो झारखंड के बैद्यनाथ धाम देवघर में प्रतिवर्ष श्रावण के महीने में लगती है, उसका देता हूँ। प्रतिवर्ष श्रावण में लगने वाली यह मेला बैद्यनाथधाम देवघर से लगभग 105 कि.मी. दूर बिहार के सुल्तानगंज से उतरवाहिनी गंगा जी से गंगाजल भर कर मनोकामना शिवलिंग (बैैद्यनाथ देवघर) पर अर्पित करते हैं। यह मेला सदियों से चल रही है। वगैर किसी भेदभाव या ऊँच-नीच के यह मेला आपसी प्रेम और भाईचारा का सवोत्कृष्ट उदाहरण रहा है। अपराध मुक्त यह 105 कि.मी. की दूरी स्थानीय नागरिकों के निःशुल्क सहयोग से सम्पन्न होती रही है। अब जब इस देश का संविधान (तथाकथित) सेकुलर है, सरकार सेकुलर है, नेता सेकुलर है, सरकारी अमला भी सेकुलर है, तो फिर बाबा मंदिर में ‘सरकारी पूजा’ क्यों होती है? वी.आई.पी. दर्शन ये क्या बला है? यदि देखा जाए तो इस देश में भ्रष्टाचार को बढ़ावा और धर्म स्थलों पर व्यभिचार व भ्रष्टाचार का पोषक यहां की तथाकथित सेकुलर सरकार है। आस्था को छिन्न-भिन्न करने वाली इस देश की तथाकथित सेकुलर सरकार धर्म को बेचकर अपना खजाना भरती है। अलग-अलग राशि का पैकेज जिसमें आपको लाइन में नहीं लगना सीधे बाबा से दर्शन करा देना दोनों, करने वाला और करानेवाला व्यभिचार का जनक है। दोनों आस्था के नाम पर पैसों का नंगा नाच दिखाकर आम भक्तों के आस्था के साथ खिलवाड़ करती है। इस देश के नेता सेकुलर हैं फिर उनके दर्शन के लिए विशेष व्यवस्था पद के नाते क्यों दिया जाता है? उन नेताओं और सरकारी नौकरों की बेशर्मी की हद तो देखिए बाहर सेकुलर का पट्टा लगाए किंतु मंदिर में पंक्ति में खड़े होने के बजाय अपने पद का धौंस दिखाकर विशेष पूजा अर्चना का लाभ प्राप्त करते हैं। ईश्वर उनकी इस धुर्त-कपट चाल को तो देख ही रहे हैं। सरकारी पूजा या वी.आई.पी. दर्शन जैसे कार्यक्रमों के कारण प्रतिवर्ष देश के हरेक मेला में हादसा होता रहा है। जहां आम भक्त काल के गाल में समाते हैं। इन नेता रूपी भेड़िए हमेशा अनेक रूपों में अपने हित को साधने में लगी रहती है। तथाकथित सेकुलरों की जमात ने इस देश के मंदिरों और उससे प्राप्त आय से उसके मानने वाले लोगों को ही आस्था विहीन करने की जो कुत्सित चाल है, वह ‘हिन्दू राष्ट्रवाद’ के उद्भव से ही रोका जा सकता है। हिन्दू राष्ट्रवाद ही इस देश का प्राण है इसे छोड़कर भारत की कल्पना बेमानी है। ‘मैं हिन्दू हूँ’ जब तक इस भाव का प्रकटीकरण इस देश के आम नागरिकों में नहीं होगा, तब तक उन सेकुलर भेड़ियों का आहार इस देश के आम नागरिक बनते रहेंगे और उसका प्रहार उनके आस्था स्थलों, संस्कार व संस्कृति केन्द्रों पर होता ही रहेगा। इस देश की सेकुलर सरकार ,यहां के आस्था केन्द्रों को यहां के नागरिकों के जिम्मे छोड़े। क्या करेंगे? कैस चलायेंगे? ये चिंता इन सेकुलर गिरोहों को छोड़ देनी चाहिए। अंग्रेज भी यही सोचते थे कि भारत को स्वतंत्र कर दूंगा तो यहां की शासन व्यवस्था छिन्न-भिन्न होगी। छिन्न-भिन्न तो हुआ, किंतु जाने के बाद नहीं बल्कि अंग्रेजों ने यहीं रहकर देश के गद्दारों के साथ मिलकर विभाजन करा दिया। अतः सेकुलर गिरोह अंग्रेजों की चाल ना चले। जब इस देश में मुगलों और अंग्रेजों का शासन था तब भी आस्था स्थल की व्यवस्था सुदृढ़ थी और आज भी ये आस्था स्थल इन सेकुलर जमातों से मुक्त होती है। तो इससे अच्छी व्यवस्था में चलेगी, इसमें कोई संदेह नहीं है। जो शब्द इस देश का प्राण है, उससे जिसे घृणा है, वे लोग इस देश का उत्थान करेंगे यह बालू से तेल निकालने जैसा है। उनलोगों के लिए तो यह देश सिर्फ भोगभूमि है, पुण्यभूमि या मातृभूमि नहीं। आज भी जो सरकार ब्रिटिश क्राऊन (कॉमनवेल्थ) के अधीन हो, वह इस देश के संस्कार, संस्कृति और विभूति के बारे में सोचे, इसकी संभावना कम ही है।
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निवारणपुर रांची
834002
*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।