अच्छे संस्कार के बीजों को
दबा दिया था मैने
अपने अंतर की जमीं पर
और मन ही मन मुस्कराई थी
जल्द ही अंकुरित होंगे बीज
पौधे का रूप लेंगे जल्द ही
और होगा फायदा ही फायदा
लगभग उम्रभर इस व्यवसाय का
इसके फूल ,फल ,जड सभी
उंचे दामो मे बिकेंगे
तने ,टहनियों ,पत्तों के भी
अच्छे भाव मिलेंगे
बीते घण्टे ,दिन और महीने
पौधों का रूप ले लिया उन बीजों ने
फिर बीत गये कितने ही साल
ले लिया तब पेडों का रूप विशाल
और इस बार जब ले गई थी
भीड-भाड वाले मेले मे
इज्जत भरपूर मिलेगी
यही सोंचा था अकेले मे
पर यहां का हाल कुछ और था
ये तो अलग ही दौर था
सभी घेरे खडे थे
झूठ ,बेईमानी और भ्रष्टाचार को
किसी ने भी नही पूछा ,
बगल मे पडे अच्छे संस्कार को
उम्र भर जो देखा था ,
वो सपना टूट गया था
मेहनत तो की थी बहुत ,
पर भाग्य रूठ गया था
सभी फायदे मे थे आजतक ,
जिसने भी किया था धन्धा
किसी का न हुआ था ,
यह व्यवसाय कभी मन्दा
समझ न आया था ,
सोंच थी क्या मेरी गलत
या फिर अब नही था ,
अच्छे संस्कारों का वक़्त …
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शालिनी खन्ना
गत्यात्मक ज्योतिष
निवास झरिया झारखण्ड
नमस्कार 🙂
बहुत ही सुन्दर शब्द की क्रमबध्द भावों की माला बस इसे स्वरों के गले में इसे पहनाये जानें की आशा हैं ।
बधाई आपको ।
आपका
गोविंद ।