{ सुरेश पाठक (सुभाष) } आप सभी अच्छी तरह से परिचित है कि हमारे देश मैं त्याहारों का बड़ा महत्व है उन्ही में से एक है वसंत पंचमी, जो एक हिन्दू त्योहार है, इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह तिथि देवी सरस्वती का प्राकट्य दिवस होने से इस दिन सरस्वती जयंती, श्रीपंचमी आदि पर्व भी होते हैं। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। बसंत पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य नारायण के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। वसंत पंचमी वाले दिन ही (1192 ई) पृथ्वीराज चौहान ने चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह गौरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया। वसंत पंचमी यानी ज्ञान, कला और संगीत की देवी सरस्वती की आराधना का दिन। बसंत पंचमी पर हर साधक ना सिर्फ देवी की आराधना करता है बल्कि यह दिन कई मायनों में हर कलाकार के लिए खास होता है। कहीं पर कलाकार अपने वाद्य यंत्रों की पूजा-अर्चना करते हैं तो कहीं साधकों द्वारा पहले से ज्यादा अभ्यास और समर्पण के प्रण लिए जाते हैं। वसंत को ऋतुराज के नाम से भी जाना जाता है। माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसंत ऋतु का आरंभ होता है। वसंत के आते ही पेड़-पौधों में नाना प्रकार के रंग-बिरंगे फूल मुस्कुरा उठते हैं। खेतों मे सरसों के फूल, गेंहू व जौ मे निकलती बालियाँ, आम के पेड़ों मे खिलती हुई आम्र मंजरी (बालें), मंद-मंद बहती हवाएँ व खिली हुई हल्की धूप, पुष्प रसों के लोभी भ्रमर समूहों का गुँजार व रंगबिरंगी तितलियों का समूह प्रत्येक व्यक्ति को मनमुग्ध कर देता है। बसंत का उत्सव प्रकृति का उत्सव है। सतत सुंदर लगने वाली प्रकृति बसंत ऋतु में सोलह कलाओं से खिल उठती है। बसंत को ऋतुओं का राजा कहा गया है क्योंकि इस समय पंच-तत्व अपना प्रकोप छोड़कर सुहावने रूप में प्रकट होते हैं। बसंत ऋतु आते ही आकाश एकदम स्वच्छ हो जाता है, अग्नि रुचिकर तो जल पीयूष के सामान सुखदाता और धरती उसका तो कहना ही क्या वह तो मानों साकार सौंदर्य का दर्शन कराने वाली प्रतीत होती है। ठंड से ठिठुरे विहंग अब उड़ने का बहाना ढूंढते हैं तो किसान लहलहाती जौ की बालियों और सरसों के फूलों को देखकर नहीं अघाता। इस ऋतु के आते ही हवा अपना रुख बदल देती है जो सुख की अनुभूति कराती है| धनी जहाँ प्रकृति के नव-सौंदर्य को देखने की लालसा प्रकट करने लगते हैं वहीँ शिशिर की प्रताड़ना से तंग निर्धन सुख की अनुभूत करने लगते हैं| सच में! प्रकृति तो मानों उन्मादी हो जाती है। हो भी क्यों ना! पुनर्जन्म जो हो जाता है उसका। श्रावण की पनपी हरियाली शरद के बाद हेमन्त और शिशिर में वृद्धा के समान हो जाती है, तब बसंत उसका सौन्दर्य लौटा देता है। नवगात, नवपल्ल्व, नवकुसुम के साथ नवगंध का उपहार देकर विलक्षणा बना देता है। संगीत, उसका एहसास और उसकी साधना ईश्वरीय देन है। हर साधक के लिए वसंत पंचमी का दिन एक नई ऊर्जा लेकर आता है लिहाजा इसका इंतजार सभी को रहता है। जलज संगीत समूह के निदेशक तबला वादक शचींद्र अग्रवाल बताते हैं- संगीत से आत्मीय जु़ड़ाव होने के कारण मैं तबला बजाता हूँ। हर साधना की शुरूआत धीमी और कठिन होती है।
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सुरेश पाठक (सुभाष)
विशेष संवाददाता – अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम
ई मेल – spathakua@gmail.com