मीडिया मैनेजमेंट से भी मनमोहन सिंह की हुई जनविरोधी छवि साफसुथरी होगी नहीं। क्योंकि मनमोहन सिंह की छवि पर भ्रष्टचार की कालिख पुत गची है। प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे मनमोहन सिंह संविधान-लोकतंत्र के रखवाले नहीं बल्कि धृतराष्ट हैं/ मनमोहन सिंह शिखंडी हैं/ भ्रष्टाचार-कालेधन के संरक्षक है/ औद्योगिक घरानों-वैश्विक लूटेरों के सबसे पसंददीदा प्रधानमंत्री हैं?राजसिंहासन पर बैठे धृतराष्ट ने जिस दिन द्रौपदी का चिरहरण पर मौन साधा था उसी दिन महाभारत की नींव पड़ी थी और कौरववंश के नाश का समय निर्धारित हो गया था। मनमोहन सिंह ने धृतराष्ट की तरह सुरेश कलमाडी /ए राजा/ कारपोरेटेड घरानों को देश का धन लूटते हुए चुपचाप देखा। सिर्फ चुपचाप ही नहीं देखा बल्कि भ्रष्ट राजनेताओं और औद्योगिक घरानों के संरक्षण देने के लिए खड़े भी हुए। भ्रष्टचार पर पर्दा डालने के लिए भ्रष्ट थॉमस को सीबीसी का अध्यक्ष बना दिया जाता है। देवास प्रकरण में खुद प्रधानमंत्री का कार्यालय निर्णायक और प्रमाणित तौर पर कठघरे में दोषी के तौर पर खड़ा है। देवास प्रकरण पर प्रधानमंत्री कार्यालय के किस अधिकारी और प्रभारी मंत्री पर कार्रवाई हुई? फिर भी प्रधानमंत्री अपने आप को ईमानदार होने और मजबूत प्रधानमंत्री होने का सर्टिफेकेट बाटंते हैं और मीडिया भी मनमोहन सिंह को सत्य हरिश्चंद्र से भी बड़ा सत्यवादी मान लेता है।
ऐसा सिर्फ और सिर्फ भारत में ही हो सकता है। अगर मनमोहन सिंह जैसा कोई शिखंडी और धृतराष्ट सरीखा प्रधानमंत्री अमेरिका या यूरोपीय देश में होता तो निश्चित मानिये कि मनमोहन सिंह की जगह प्रधानमंत्री की कुर्सी नहीं बल्कि जेल होती। सामाजिक-राजनीतिक बहिष्कार के रूप में जलालत झेलनी पड़ती। मनमोहन सिंह का कागजी अर्थशास्त्री की उपलब्धि या विशेषज्ञता की भी अब पर्दाफाश हो चुका है। पेटरो मूल्य वृद्धि और महंगाई पर मनमोहन सिंह का जवाब आम आदमी की भावनाओं के खिलाफ है। आज देश पर अर्थशास्त्रियों का राज है फिर महंगाई नियंत्रण की उम्मीद बैमानी है। देश को क्या गैर राजनीतिक और कागजी अर्थशास्त्रियों के भ्रम से मुक्त होने की जरूरत नहीं है।
मीडिया का सहारा क्यों?
मीडिया से दूर रहने वाले और भारतीय भाषायी पत्रकारिता से अनभिज्ञ मनमोहन सिंह को आखिर भारतीय भाषायी मीडिया मैनजमेंट की जरूरत क्यों पड़ी? क्या इस मीडिया मैनेजमैंट से भी मनमोहन सिंह अपनी घृतराष्ट और शिखड़ी की छवि से बाहर निकल पायेंगे? भारतीय भाषायी मीडिया की याद मनमोहन सिंह को तभी आयी जब वे कांग्रेस कार्यसमिति द्वारा लतियाये गये। कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी की मौजूदगी में मनमोहन सिंह पर राजनीतिक हमले हुए थे और कांग्रेस को आम आदमी की भावनाओं से दूर होने/भ्रष्टाचार में घिरने/भ्रष्टचारियों का संरक्षण देने/महंगाई बढाने जैसे मुद्दो को लेकर मनमोहन सिंह की खिचाई हुई थी। कांग्रेस कार्यसमिति की गर्माहट थी कि प्रधानमंत्री की चुप्पी से भी कांग्रेस के प्रति गलत संदेश जाता है। निर्णायक तौर पर मनमोहन सिंह को मीडिया के सामने मुंह खोलने और सफाई पेश करने का फरमान था। कांग्रेस के मंथन में यह निष्कर्ष था कि भारतीय भाषाई पत्रकारिता का मैनजमेंट किये बिना सरकार और कांग्रेस की छवि सुधर नहीं सकती है। इसीलिए मनमोहन सिंह ने भारतीय भाषाओं के अखबारों के संपादकों को अपनी सफाई के लिए आमंत्रित किया। सिर्फ पांच अखबारों के संपादकों को ही क्यों अवसर दिया गया? कांग्रेसी संस्कृति के पत्रकारों को मनमोहन सिंह ने अवसर दिया ताकि असहज और भ्रष्टचार से पर्दा उठाने वाले सवालों से बजा जा सके। इलेक्टॉनिक्स मीडिया के संपादकों ने पिछली बार मनमोहन सिंह को भ्रष्टाचार पर ऐसी घेराबंदी की थी जिससे मनमोहन सिंह की छवि और दागदार हुई थी। बचाव में रखे गयेे मनमोहन सिंह के सभी तर्क बेकार साबित हुए थे।
भ्रष्टाचार के संरक्षणकर्ता क्यों नहीं?…………..
भ्रष्टाचार के मिनार सुरेश कलमाडी और ए राजा पर मनमोहन सिंह ने अपने पुराने राग को दोहराया। सुरेश कलमाडी और ए राजा को भ्रष्टाचार के मिनार खड़े करने की छूट मिली ही क्यों? ए राजा पर उनकी गठबंधन की मजबूरी थी। लेकिन सुरेश कलमाडी किस गठबंधन धर्म की मजबूरी थी? इसकी सफाई अभी तक मनमोहन सिंह पेश नहीं कर पाये हैं। सफाई कांफ्रेंस में पांचों संपादकों ने इस पर कोई सवाल किये या नहीं? सुरेश कलमाडी को लेकर मनमोहन सिंह इतने अंदर धशे हुए हैं कि उनकी जगह जेल होनी चाहिए। मनमोहन सिंह ने पूरी तरह से सुरेश कलमाडी को लूटने की छूट दी थी। केन्द्रीय मंत्रिमंडल ने तत्कालीन खेल मंत्री सुनील दत्त को राष्टमंडल खेल आयोजन समिति का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पारित किया था। मंत्रिमंडल के इस फैसले को मनमोहन सिंह ने पलट कर सुरेश कलमाडी को आयोजन समिति का अध्यक्ष क्यों बनाया? मनमोहन सिंह के मंत्रिमंडल के सदस्य नैयर ने कई चिटिठयों में राष्टमंडल खेल आयोजन योजनाओं में कलमाडी के भ्रष्टचार और स्वेच्छाचारिता पर उगंली उठायी थी/प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को सचेत किया था। नैयर के पत्रों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई? सुनील दत्त की जगह सुरेश कलमाडी को किस मकसद से आयोजन समिति का अध्यख बनाया गया था। टू जी स्पेक्टरम घोटाले पर पर्दा डालने के लिए भ्रष्ट थॉमस को सीबीसी का अध्यक्ष क्यों बनाया जाता हैं। थॉमस को बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक पर एक झूठ का प्रत्यारोपन किस मकसद से होता है? देवास लूट कांड में प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारी और प्रभारी मंत्री पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई। फिर ईमानदार होने का शंवाग क्यों।
फिर भी मजबूत प्रधानमंत्री का दावा…………….
मनमोहन सिंह का डोर सोनिया गांधी के हाथों में बंधी है। पिछले लोकसभा चुनावों में लालकृष्ण आडवाणी ने मनमोहन सिंह को लोकतांत्रिक इतिहास का सबसे कमजोर प्रधानमंत्री कहा था। लाल कृष्ण आडवाणी के इस बयान की जगहंसाई हुई थी। आडवाणी पर मीडिया ने भी खुन लानत चढायी थी। अब यह साबित हो चुका है कि मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री जरूर है पर उन्हें मंत्रिमंडल के सहयोगियों पर पूरा नियंत्रण न कभी था और न है। मंत्री मंडल सहयोगियों का अलग-अलग एजेंडा है। वित्त मंत्रालय की कथित जासूसी प्रकरण यह प्रमाणित करता है कि मनमोहन सिंह का पूरा मंत्रिमंडल पर अविश्वास का घेराबंदी है। जासूसी प्रकरण में गृहमंत्री पी चिदम्बरम का नाम सामने आया है। एक भी ऐसा निर्णय सामने उदाहरण के लिए मौजूद नहीं है जिसमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की दृढ इच्छाशक्ति को दर्शाने वाला है। कांग्रेसी यह कहते जरूर है कि हमने ए राजा और कलमाडी को जेल पहुंचाया। विपक्ष ने अगर संसद का अनिश्चित कालीन बहिष्कार नहीं किया होता/भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम नहीं चलायी होती तो निश्चित मानिये कि आज न तो सुरेश कलमाडी अंदर होता और न ही ए राजा । चर्चित प्रसंग टू जीस्पेक्टरम घोटाले में लिप्त कारपोरेटेड घरानों के अधिकारियों-मालिकों को जेल जाने का सवाल ही नहीं उठता था।
कूटनीति की भी जगहंसाई…………
कूटनीति के क्षेत्र में भी देश की जगहंसाई करने और स्वहित को तिलांजलि देने में मनमोहन सिह को पछतावा नहीं है। मिश्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री युसूफ जिलानी का वह होजियर स्वीकार कर लिया था जिसमें साफतौर पर कहा गया था कि भारत पाकिस्तान के कबलाई इलाके में आतंकवाद को संरक्षण दे रहा है। जब यह मामला खुला तब पर्दा डालने के लिए तर्क पर तर्क प्रस्तुत किये गये। मुबंई हमले के बाद उठी मनमोहन सिंह की मर्दानगी कब का ढेर हो चुकी है। पाकिस्तान को अंतर्राष्टीय स्तर पर बेनकाब करने की जगह वार्तालाप का दौर चल रहा है। अमेरिका के साथ हुआ परमाणु समझौता भी बेमानी साबित हो गया है। इसलिए कि परमाणु आपूर्तिकर्ता देशों के समूहों ने भारत को कोई राहत देने से साफ इनकार कर दिया है। अफगानिस्तान में तालिबान से अमेरिकी समझौते के प्रयास से हमारे अपने हित असुरक्षित हो गये हैं। भारत अफगानिस्तान में सर्वाधिक मददकर्ता देश है। अफगानिस्तान के विकास की आधरभूत संरचना को खड़ा करने के लिए भारत कई योजनाएं चला रखी है। चीन की गुडागर्दी से हमारी संप्रभुता खतरे में है। ब्रम्हपुत्रा नदी प्रसंग पर मनमोहन सिंह ने कौन सी कूटनीतिक वीरता दिखायी है।
कागजी अर्थशास्त्रियों से मुक्ति जरूरी…………..
देश पर अर्थशास्त्रियों का राज है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अर्थशास्त्री हैं। योजना आयोग के उपाध्यक्ष मंटोक सिंह अहलुवालिया अर्थशास्त्री हैं। मनमोहन सिंह को पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में वित्त मंत्री और सोनिया गांधी द्वारा इसीलिए प्रधानमंत्री बनाये गये थे कि ये अर्थशास्त्री है। बढ़ती महंगाई और आम आदमी की घटती क्रय शक्ति से यह साफ हो गया कि मनमोहन सिंह सिर्फ और सिर्फ कागजी अर्थशास्त्री हैं। उनके पास बढती महंगाई को रोकने की अचुक योजनाएं है ही नहीं। मनमोहन सिंह खुद कहते हैं कि महंगाई वैश्विक कारणों से बढ रही है। कागजी अर्थशास्त्री को प्रशासनिक और राजनीतिक विशेषज्ञता हासिल होगी भी तो कैसे। प्रधानमंत्री की कुर्सी कागजी अर्थशास्त्री के पास नहीं बल्कि पूर्ण रूप से राजनीतिक शख्सियत के पास होनी चाहिए। अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री के भ्रम से देश को मुक्ति हासिल कर लेनी चाहिए।
निष्कर्ष………….
मीडिया मैनजमेंट से भी मनमोहन सिंह की दागदार हुई छवि साफ नहीं हो सकती है। असली निर्णय का केन्द्र जनता है। जनता का विश्वास है कि मनमोहन सिंह आम जन का नहीं बल्कि भ्रष्टरु/लूटेरे/कारपोरेटेड-औद्