{ तनवीर जाफरी ** } देश के पांच राज्यों में पिछले दिनों लोकसभा तथा विधानसभा की कई सीटों के लिए उपचुनाव संपन्न हुए। कुल मिलाकर इनके परिणामों से यही प्रतीत हुआ कि अधिकंाशत: सत्तारुढ़ दलों को ही इन चुनावों में प्राय:सफलता प्राप्त हुई। बिहार की महाराजगंज सीट इसका अपवाद ज़रूर रही। इसका कारण भी यही हो सकता है कि महाराजगंज लोकसभा सीट पर सांसद रहे उमाशंकर सिंह की मृत्यु होने के कारण यह सीट रिक्त हुई थी। स्वर्गीय उमाशंकर स्वयं आरजेडी के ही सांसद थे अत: माना जा रहा है कि सहानुभूति के चलते मतदाताओं ने यहां आरजेडी प्रत्याशी प्रभुनाथ सिंह को 1 लाख 37 हज़ार मतों के भारी अंतर से विजयी बना दिया। हालांकि इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि मुख्यमंत्री नितीश कुमार ने महाराजगंज सीट को अपनी प्रतिष्ठा की सीट बना डाला था। अन्यथा वे अपने मंत्रिमंडल के सशक्त शिक्षामंत्री पी के शाही को इस सीट पर जेडीयू के प्रत्याशी के रूप में चुनाव हरगिज़ न लड़वाते। जबकि पी के शाही अपनी हार का ठीकरा भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं के सिर पर यह कह कर फोड़ रहे हैं कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने चुनाव को गंभीरता से नहीं लिया तथा पूरी सक्रियता से कार्य नहीं किया।
उधर गुजरात के उपचुनाव के नतीजे पूरी तरह से नरेंद्र मोदी के पक्ष में गए हैं। राज्य की पोरबंदर तथा बनासकांठा लोकसभा सीटें तो भाजपा ने जीती ही हैं साथ-साथ लिंबादी,मोरवा हद$फ,जेतपुर तथा दोरजी की 4 विधानसभा सीटें भी भाजपा ने अपनी झोली में डाल ली हैं। गुजरात के चुनाव परिणाम को नरेंद्र मोदी कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्रीय सरकार के लिए जनता की ओर से दिया गया संकेत कहकर परिभाषित कर रहे हैं। उनका कहना है कि यह परिणाम इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि अब यूपीए के जाने का समय आ गया है। नरेंद्र मोदी का यह कथन गुजरात उपचुनाव के परिपेक्ष्य में तो सही ज़रूर माना जा सकता है परंतु गुजरात के अतिरिक्त देश के किसी भी अन्य राज्य में भाजपा ने ऐसा कोई करिश्मा नहीं दिखाया जिस से कि यह कहा जा सके कि यदि मोदी के अनुसार यह उपचुनाव परिणाम यूपीए के जाने का संकेत हैं तो इन्हीं परिणामों से भाजपा के लिए कोई $खुश$खबरी भरे संकेत भी आ रहे हों। बजाए इसके यह ज़रूर है कि अभी कुछ ही दिनों पूर्व कर्नाटक में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने भाजपा के हाथों से सत्ता छीन ली थी। जबकि नरेंद्र मोदी ने स्वयं कर्नाटक में कई जनसभाएं कर राज्य में अपनी लोकप्रियता तथा अपने आधार को भी तौलने का प्रयास किया था। हिमाचल प्रदेश में भी कुछ ऐसा ही नज़ारा देखा जा चुका है। यहां भी नरेंद्र मोदी ने भाजपा की तत्कालीन धूमल सरकार के पक्ष में वोट मांगा था। परंतु राज्य की जनता ने नरेंद्र मोदी की अनसुनी करते हुए भाजपा को सत्ता से हटा दिया तथा वहां भी कांग्रेस की सरकार गठित हो गई।
कुल मिलाकर यह बात तो स्वीकार की जा सकती है कि नरेंद्र मोदी ने अपनी तिकड़मबाज़ी, अपनी हिंदुत्ववादी शैली तथा अल्पसंख्यक विरोधी छवि की बदौलत गुजरात में हिंदू मतों का अपने पक्ष में जिस प्रकार ध्रुवीकरण किया है उसे देखकर यह माना जा सकता है कि नरेंद्र मोदी को गंाधी नगर से हिलाना निश्चित रूप से $िफलहाल तो बहुत मुश्किल है। परंतु नरेंद्र मोदी के लिए दिल्ली की गद्दी के सपने पूरे करना भी उतना ही मुश्किल भरा है जितना कि उन्हें गांधी नगर से हिलाना। $गौरतलब है कि नरेंद्र मोदी 26 लोकसभा सीटों वाले गुजरात राज्य के मतदाताओं के समर्थन के बल पर देश का प्रधानमंत्री बनने का सपना देख रहे हैं। जबकि 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश,42 सीटों वाले राज्य पश्चिम बंगाल तथा 48 सीटों वाले राज्य महाराष्ट्र एवं बिहार जैसे बड़े राज्यों की ओर से नरेंद्र मोदी को कोई विशेष समर्थन मिलने की $कतई उम्मीद नहीं। कर्नाटक तथा आंध्र प्रदेश भी इनके समर्थन में $िफलहाल नहीं है। राजस्थान में भी कांग्रेस सत्तासीन है। मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ हालांकि बीजेपी शासित राज्य ज़रूर हैं परंतु इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री अपने-अपने राज्यों में नरेंद्र मोदी का $कद बड़ा कर दिखाए जाने के पक्ष में हरगिज़ नहीं हैं। इसलिए नरेंद्र मोदी द्वारा प्रधानमंत्री पद तक पहुंचने के लिए की जा रही $कवायद महज़ एक असफल ज़ोर आज़माईश मात्र प्रतीत होती है।
वैसे भी नरेंद्र मोदी को अपने विरोधियों अथवा गठबंधन सहयोगियों से उतना $खतरा नहीं लगता जितना कि उन्हें अपनी पार्टी भाजपा के भीतर दिखाई दे रहा है। गोया मोदी की दिल्ली की राह में उनकी पार्टी ही सबसे बड़ी अड़चन साबित हो सकती है। दुनिया जानती है कि नरेंद्र मोदी गुजरात के विकास का ढिंढोरा पीटने के लिए क्या कुछ नहीं कर रहे हैें। उन्होंने एक विदेशी कंपनी को गुजरात के विकास का प्रचार व प्रसार करने का ठेका तक दे रखा है। सोशल मीडिया पर नरेंद्र मोदी के समर्थक भी पूरी तरह मुस्तैद व सक्रिय हैं। गोया नरेंद्र मोदी बड़े ही सुनियोजित ढंग से देश की जनता को यह समझाने की कोशिश कर रहे हैं कि गोया गुजरात पहले बिहार अथवा उड़ीसा जैसा कोई पिछड़ा हुआ गुमनाम सा राज्य था। जिसे मोदी ने सत्ता में आने के बाद अपनी प्रगतिशील नीतियों के बल पर रातोंरात देश के प्रथम राज्य की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। मोदी विरोधी उनके इस दावे को सिरे से $खारिज करते हैं। परंतु मोदी के विरोधियों का ‘मोदी विरोध’ तो राजनैतिक स्तर पर किया जाने वाला विरोध मानकर उस की अनदेखी भी की जा सकती है। पंरतु जब पार्टी के वर्तमान सर्वाेच्च नेता लालकृष्ण अडवाणी स्वयं नरेंद्र मोदी के दावों को खोखला साबित करने पर उतर आएं तो इसे मोदी के लिए शुभ संकेत तो हरगिज़ नहीं कहा जा सकता। $गौरतलब है कि पिछले दिनों मध्यप्रदेश में लाल कृष्ण अडवाणी ने नरेंद्र मोदी के गुजरात के विकास के दावों की यह कहते हुए हवा निकाल दी थी कि ‘गुजरात पहले से ही एक स्वस्थ राज्य था। नरेंद्र मोदी ने इसे एक उत्कृष्ट राज्य अवश्य बनाया है। परंतु कभी देश का बीमारू राज्य कहे जाने वाले मध्यप्रदेश की तो मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने काया ही पलट डाली’। इतना ही नहीं बल्कि अडवाणी ने अटल बिहारी वाजपेयी से चौहान की तुलना करते हुए कहा कि वे वाजपेयी जी की तरह विनम्र हैं तथा अहंकार से दूर हैं। मोदी के आलोचक मोदी में इन्हीं दो कमियों को विशेष रूप से रेखांकित करते हैं। एक तो यह कि वह अहंकारी हैं और दूसरा यह कि उन्हें विनम्रता होने के बजाए बेवजह अपनी पीठ आप थपथपाने में पूरी महारत रखते हैं।
बहरहाल, अडवाणी द्वारा चौहान की प्रशंसा में उनके क़सीदे पढऩा इस बात की ओर सा$फ इशारा करता है कि नरेंद्र मोदी खुली आंखों से जो चाहे सपने लेते रहें परंतु प्रधानमंत्री पद की राह उनके लिए $कतई आसान नहीं है। जहां तक भाजपा शासित राज्यों विशेषकर मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ का प्रश्र है तो इन राज्यों के स्थानीय नेता जिनमें मुख्यमंत्री शिवराज चौहान व डा० रमनसिंह भी शामिल हैं वे भी अपने राज्यों में नरेंद्र मोदी के $कद को ज़्यादा ऊंचा होता हुआ नहीं देखना चाहते। इन नेताओं की यही सोच है कि आगामी लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में भाजपा के पक्ष में जो भी मतदान हो उसका श्रेय इन्हीं मुख्यमंत्रियों को मिले। जबकि यदि नरेंद्र मोदी इन राज्यों का दौरा करते हैं और भाजपा यहां से अपेक्षित सीटें जीत कर लाती है तो नरेंद्र मोदी यह जताने में ज़रा भी देर नहीं लगाएंगे कि इस जीत का श्रेय केवल उन्हीें के चुनाव प्रचार को जाता है। लिहाज़ा कहा जा सकता है कि भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री भी नरेंद्र मोदी की ओर से पूरी तरह चौकस व सचेत हैं। उधर मोदी ने आरएसएस तथा राजनाथ सिंह पर अपना जादू चलाते हुए पार्टी की केंद्रीय समिति में विशेष स्थान प्राप्त कर लिया है तथा अपने कुछ विशेष सहयोगियों को भी केंद्रीय चुनाव अभियान समिति में शामिल करा लिया है। बावजूद इसके कि लालकृष्ण अडवाणी मोदी को 2014 के चुनाव प्रचार की कमान देने पर सहमत नहीं थे। पंरतु जब अडवाणी की इच्छा के विपरीत मोदी चुनाव प्रचार अभियान समिति में शामिल हो गए उसके पश्चात अडवाणी ने अब एक और नया शगू$फा यह छोड़ दिया है कि चुनाव प्रचार कमेटी के समानांतर एक दूसरी कमेटी का भी गठन किया जाना चाहिए। इन परिस्थितियों को देखकर यह सा$फ पता चलता है कि मोदी को लेकर भाजपा में छिड़ा शीत युद्ध थमने का नाम नहीं ले रहा है।
वैसे भी नरेंद्र मोदी देश में कहीं भी घूम-घूम कर अपनी तारी$फों के पुल स्वंय कितना ही क्यों न बांधते फिरें परंतु अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी की दागदार छवि पर अभी भी इसका कोई सकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ा है। अमेरिका ने तो गत् दिनों एक बार फिर नरेंद्र मोदी को अमेरिका का वीज़ा ने दिए जाने की पुष्टि की है। इस बार अमेकिा ने अपने इस $फैसले पर स्पष्टीकरण देते हुए माया कोडनानी के नाम का उल्लेख करते हुए सा$फतौर पर यह कहा है कि मोदी ने 2002 के दंगों के प्रमुख आरोपियों में से एक माया कोडनानी को दंगों का आरोपी होने के बावजूद उन्हें अपने मंत्रिमंडल में मंत्री पद देकर यह संदेश देने की कोशिश की कि उनके मानवता विरोधी हिंसक कारनामों के पुरस्कार स्वरूप मंत्रीपद दिया जा रहा है। जबकि कालांतर में वही माया कोडनानी अदालत से सज़ाया$फता होकर जेल भेजी गई तथा सज़ा होने के बाद मोदी को आ$िखरकार उसे मंत्री पद से हटाना पड़ा। ज़ाहिर है अमेरिका द्वारा किया गया यह $फैसला नरेंद्र मोदी के विरोधियों के दबाव में लिया जाने वाला $फैसला नहीं कहा जा सकता। राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नरेंद्र मोदी के संबंध में आने वाली इस प्रकार की प्रतिक्रियाएं अपने आप में इस निर्णय पर पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि 2002 के दंगों के बाद नरेंद्र मोदी ने गुजरात को भले ही अपनी सांप्रदायिकतापूर्ण राजनीति की बदौलत अपने नियंत्रण में क्यों न कर लिया हो परंतु दिल्ली की कुर्सी उनके लिए अभी भी मात्र दिव्य स्वप्र के सिवा और कुछ नहीं।
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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
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