मंगल मिशन के बाद अब जीएसएलवी

space-red-planet-jupiter-mars-planets-85425{ मदन जैरा }
मंगल मिशन की सफलता के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) अब अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक और छलांग लगाएगा। इसरो द्वारा निर्मित भू स्थैतिक उपग्रह प्रक्षेपण यान (जीएसएलवी) की आठवीं उड़ान पांच जनवरी को होगी। भारत के लिए यह मिशन बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि अंतरिक्ष वैज्ञानिक लंबे समय से इस पर कार्य कर रहे हैं। अब तक सात उड़ानें जीएसएलवी की हो चुकी हैं लेकिन उनमें से दो ही पूरी तरह से सफल रही हैं। इसलिए यह उड़ान बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है। यदि यह सफल रहती है तो भारत भारी उपग्रह प्रक्षेपण की सुविधा और क्षमता वाले चंद देशों में शुमार हो जाएगा। यह क्षमता अमरीका, रूस और यूरोप जैसे देशों के पास ही है। इसलिए पूरे देश की नजर जीएसएलवी की उड़ान पर टिकी है।

जीएसएवी  की डी-5 उड़ान में इसरो ने कई छोटे-बड़े बदलाव किए हैं। पिछले अभियानों में सामने आई सभी कमियों को दूर किया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इसमें देश में निर्मित क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल किया गया है। क्रायोजनिक इंजन बनाने का कार्य लंबे समय से भारत कर रहा है। यह तकनीक रूस से हासिल की गई थी। एक बार पहले भी क्रायोजनिक इंजन का इस्तेमाल जीएसएलवी में किया गया था, लेकिन वह उड़ान विफल रही थी। इसलिए यह उड़ान यह भी बताएगी कि क्रायोजनिक इंजन सफल रहता है या नहीं।

दरअसल, क्रायोजनिक इंजन एक जटिल प्रणाली है। मोटे तौर पर बता दें कि भू स्थैतिक कक्षा में भारी उपग्रहों को ले जाने के लिए प्रक्षेपण वाहनों को लंबी उड़ान भरनी होती है। इसलिए इसमें तीन चरणों के इंजन होते हैं। पहले ठोस इंजन कार्य करता है। उसके बाद तरल एवं तीसरे एवं अंतिम चरण में क्रायोजनिक इंजन कार्य करता है। क्रायोजनिक इंजन में तरल आक्सीजन एवं हाइड्रोजन होती है। लेकिन इन्हें बहुत कम तापमान पर तरल बनाया जाता है। आक्सीजन को-183 डिग्री एवं हाइड्रोजन को -253 डिग्री पर तरल बनाया जाता है जिससे ये बेहद हल्की हो जाती हैं और अंतरिक्ष में प्रभावी तरीके से इंजन को संचालित करती हैं। दशकों से भारत इन इंजनों को बनाने में लगा है।

दूसरे रॉकेट के आकार-प्रकार में भी बदलाव किए गए हैं। मकसद यह कि जिन कारणों से पिछले अभियान विफल हुए हैं, उनकी पुनरावृत्ति नहीं हो। इस प्रक्षेपण वाहन के जरिये एक भारी भरकम उपग्रह जीसैट-14 को भी भेजा जा रहा है, जो अत्याधुनिक संचार उपग्रह है। जीसैट मूलत 1982 किग्रा वजन का संचार उपग्रह  है। इस उपग्रह से देश में संचार, प्रसारण के साथ-साथ टेलीएजुकेशन एवं टेलीमेडिसिन सेवाओं के लिए अतिरिक्त ट्रांसपोंडर हासिल हो पाएंगे। यह इसरो का 23वां संचार उपग्रह होगा। इसके स्थापित होने के बाद अंतरिक्ष में भारत के नौ सक्रिय संचार उपग्रह हो जाएंगे। इसमें लगे केयू एवं सी बैंड ट्रांसपोंडर देश के समस्त क्षेत्र में कवरेज प्रदान करेंगे। जीसैट श्रंखला के उपग्रह 2001, 03, 04 तथा 07 में भी छोड़े गए थे।

जीएसएलवी की सफलता के लिए जरूरी है कि इसकी कम से कम तीन उड़ानें सफल हों। इसलिए इस बार इसरो के वैज्ञानिकों ने कदम-कदम पर सतर्कता बरती है। दो बार इसकी उड़ान को स्थगित किया गया। पहले यह 19 अगस्त को होनी थी, लेकिन इंजन में कुछ लीकेज पाया गया। फिर 28 दिसंबर का दिन तय किया गया लेकिन कुछ कमियों के चलते इसे अब पांच जनवरी को प्रक्षेपित किया जाएगा।

इसरो के चेयरमैन एस. राधाकृष्णन ने उम्मीद जताई है कि इसरो मंगल मिशन की भांति इस मिशन में भी कामयाब होगा। उन्होंने कहा कि कई मायनों में यह मिशन महत्वपूर्ण है। भारत भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण की क्षमता हासिल करेगा। जीएसएलवी डी-5 में देश में ही निर्मित क्रायोजनिक इंजन इस्तेमाल किया गया है। इस इंजन निर्माण की सफलता भी भारत के लिए बड़ी उपलब्धि है। तीसरे, इसे श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र के जिस लांचिग पैड से छोड़ा जाएगा,वह नव निर्मित है। वहां पहले एक ही लांचिंग पैड था, लेकिन अब एक और बना दिया गया है। इसलिए जीएसएलवी यह उड़ान नए साल में भारत को तीन मोर्चों पर सफल बनाएगी। यह रॉकेट अपने साथ एक बड़ा संचार उपग्रह जीसैट-14 भी ले जाएगा।

-जीएसएलवी के जरिये दो हजार या इससे अधिक टन के उपग्रहों को भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित किया जाएगा। संचार एवं प्रसारण में इस्तेमाल आने वाले उपग्रहों को भू स्थैतिक कक्षा में स्थापित करना होगा। अभी तक भारी उपग्रह प्रक्षेपित करने की क्षमता भारत के पास नहीं थी। उसे दूसरे देशों की मदद लेनी पड़ती है। इसकी सफलता से भारत न सिर्फ अपनी जरूरत के लिए भारी उपग्रह प्रक्षेपित करेगा, बल्कि दूसरे देशों को भी अपनी सेवाएं देकर राजस्व अर्जित कर सकता है। अभी इसरो दूसरे देशों के छोटे उपग्रह प्रक्षेपित करता है। हल्के उपग्रहों को ध्रुवीय कक्षा में स्थापित करने के लिए भारत का अपना सफल लांच व्हीकल पीएसएलवी है।  लेकिन यह एक हजार किग्रा से ज्यादा वजन नहीं ले जा सकता।

कब-कब हुई जीएसएलवी की सात उड़ानें

-18 अप्रैल 2001 को पहली उड़ान भरी। इसमें 1560 किग्रा का जीसैट-1 उपग्रह भेजा गया था। लेकिन जीएसएलवी ने भू स्थैतिक कक्षा से पहले ही जीसैट-1 को छोड़ दिया था, क्योंकि उसमें आगे बढ़ने के लिए ईंधन नहीं बचा था। मिशन विफल रहा।

-8 मई 2003 को दूसरी उड़ान सफल रही। 1825 क्रिग्रा के जीसैट को सफलतापूर्वक कक्षा में स्थापित किया।

-20 सितंबर 2004 को जीएसएलवी की तीसरी विकासात्मक उड़ान भी सफल रही। 1990 किग्रा के एजुसैट को कक्षा में स्थापित किया।

-10 जुलाई 2006 को जीएसएलवी ने चौथी उड़ान भरी। यह अपने साथ 2168 किग्रा के उपग्रह इंसेट 4सी को लेकर उड़ा, लेकिन कुछ ही मिनटों में आई तकनीकी खराबी के बाद बंगाल की खाड़ी में जा गिरा।

-दो सितंबर 2007 को जीएसएलवी की पांचवीं उड़ान हुई। यह 2160 किग्रा के इनसेट 4 सीआर को लेकर गया। उड़ान आशिंक रूप से विफल रही। उपग्रह को कक्षा में सही तरीके से स्थापित नहीं कर पाया। हालांकि बाद में इसे ठीक कर लिया गया और उपग्रह कार्य कर रहा है।

-15 अप्रैल 2010 को जीएसएलवी की छठीं उड़ान विफल रही। इसमें क्रायोजनिक इंजन लगाया गया था जो ठीक से कार्य नहीं कर पाया और कक्षा में पहुंचने से पहले उड़ान फेल हो गई। इसमें 2220 किग्रा का जीसैट-4 भी था।

-25 दिसंबर 2010 को जीएसएलवी की सातवीं उड़ान भी फेल हो गई। इसमें 2130 किग्रा का जीसैट-5पी था। दूसरे चरण का तरल इंजन कार्य नहीं कर पाया।

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*लेखक एवं पत्रकार है।

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