धर्म परिवर्तन का आयोजन देश और दुनिया में कोई नया कायर्क्रम नहीं हैं ! जब से धरती पर धर्म का आगमन हुआ है तभी से इंसान अपने – अपने धार्मिक मूल्यों और उनके संदेशो के साथ साथ उस धर्म की वजह से मिलने वाली सुविधाओं का लोभ ,लालच ,प्रलोभन इत्यादि दे कर या फिर डरा – धमका कर धर्म परिवर्तन का कार्यक्रम जारी रखे हुए हें ! हज़ारों साल से चले आ रहे इस धर्म – मज़हब परिवर्तन नामक कार्यक्रम में एक नया अध्याय तब जुड़ा होगा जब पहली बार किसी ने दूसरे धर्म की महिला के साथ प्रेम विवाह करके चुपचाप उस महिला का धर्म परिवर्तन कराया होगा ! एक प्रेम विवाह में एक दो प्रतिशत अपवाद मिल सकते हैं जब किसी पुरुष ने किसी महिला के धर्म या मज़हब को अपनाया होगा अन्यथा हर बार महिलाओं को ही धर्म परिवर्तन करना पड़ा होगा, यह परम्परा अब भी जारी है !
इस दुनिया के साथ साथ इस देश में भी धर्म या मज़हब परिवर्तन पर भी सिर्फ पुरुषों का ही अधिकार रहा है ! घर का पुरुष ही तय करता है की किसे कौन सा धर्म अपनाना है या कौन से धर्म का त्याग करना है ! पुरुष की यह अपनी निजी राय होती है जो बाद में फैसला बना कर घर की महिला पर थोप दिया जाता है ! समूची दुनिया के धर्म परिवर्तनों के आकड़ो पर अगर गौर करेंगे तो पता चलेगा कि कभी भी ,किसी भी पुरुष ने धर्म परिवर्तन पर अपने घर की महिलाओं की कोई राय जानने की ज़रा सी भी ज़हमत नहीं उठाई होगी, और पुरुष ने महिला को अपने पुराने धर्म को त्यागने और नया धर्म अपनाने पर भी कोई राय नहीं ली होगी !
पुरुषवादी सभ्यता ने महिलाओं पर सिर्फ फैसले थोपे हैं और उन थोपे गये फैसलों को मनवाने के लिये पुरुष किसी भी हद तक गया है ! आज तक अगर सभी तरह के धर्म परिवर्तन के इतिहास पर नज़र डालें तो ऐसा कभी कोई मामला सामने नहीं आया है जब घर की महिलाओं ने फैसला लिया हो और घर के पुरुषों के साथ साथ पूरे गाँव या कस्बे ने उस पर अमल करके अपना धर्म परिवर्तन किया हो ! आज तक ऐसा कोई मामला भी सामने नहीं आया है जहां की सामूहिक रूप से पूरे गाँव या कस्बों की औरतों ने पुरषों के विरोध के बावजूद अपना धर्म परिवर्तन किया हो !
अगर इतिहास की गर्द को खंगाले तो ऐसे बहुत सारे मामले सामने आ जायेंगे जबकी पुरषों ने धर्म परिवर्तन किया हो मगर उनकी पत्नी ने धर्म परिवर्तन नहीं किया हो तो ऐसे में पुरूष ने अपने नए धर्म के मुताबिक़ दूसरी शादी कर ली और आराम से अपना जीवन यापन करने लगा होगा ,बिना इस बात का ख्याल किये की इससे पहले जो महिला उसकी पत्नी थी उसका क्या हाल होगा और उसकी ज़िम्मेदारी कौन उठा रहा होगा !
धर्म परिवतन के नाम पर जितना शोषण महिलाओं का हुआ है उतना तो शायद खुद धर्म का भी नहीं हुआ होगा ! धर्म परिवर्तन के नाम पर महिलाओं को भेड़ – बकरी की तरह पुरुष एक धर्म से दुसरे धर्म में सिर्फ हांक कर ले जाता है बिना इस बात का ख्याल किये की महिला के साथ साथ उस महिला के घर परिवार पर क्या गुज़रेगी ! महिलाओं का धर्म परिवर्तन के नाम पर अब तक जो भी शोषण हुआ है वह सिर्फ दकियानुसी रीती-रिवाजों के नाम पर ही हुआ है ! ‘’पति परमेश्वर’’, ‘’स्वामी’’ आदि प्रवचन पुरुषवादी सभ्यता ने लगभग हर धर्म में पहले से ही गढ़ लिए थे ताकी महिलाओं के मुख पर परमेश्वर नामक ताला लगाया जा सके और पुरुष अपनी सुविधा के मुताबिक अपना धार्मिक सिस्टम चला सके !
अगर सभी धर्मो के इतिहास पर एक बार फिर नज़र डाले तो पता चलता है कि सभी धर्मो को इस धरा पर लाने वाले , फ़ैलाने ,प्रचार करने वाले सभी पुरुष के रूप में ही अवतरित हुयें हैं ! कितनी अचरज की बात है ना कि आज तक कोई भी अवतरित ‘’अवतार’’ महिला के रूप में इस धरती पर नहीं आया है ! ( मैं इस बात पर कोई सवालिया निशान नहीं लगा रहीं हूँ ,न ही किसी की धार्मिक आस्था को कोई ठेस पहुचा रही हूँ ! मैं बस एक महिला होने के नाते कुछ सवाल इश्वर के समक्ष रख रही हूँ ) ! पुरुषों ने सती प्रथा ,देवदासी प्रथा से लेकर न जाने और कितनी प्रथा इस पति परमेश्वर के नाम पर महिलाओं पर मढ़ दी और इसका संचालन एक पूरी परम्परा बना कर कुंठित व्यवस्था ने महिलाओं के शोषण लिये सदियों तक किया ! आज तक इतिहास में ऐसा कोई तथ्य नहीं मिलता जब किसी पुरुष ने किसी महिला के समक्ष ऐसा कोई साक्ष्य पेश किया हो जिससे उसकी ईमानदारी और वफादारी का सबूत मिलता हो ! हर बार हर कसौटी पर महिलाओं को ही खरा उतरने का ठेका इस कुंठित व्यवस्था ने महिलाओं के लिए ही आरक्षित कर दिया ?
कुंठित पुरुष वादी व्यवस्था ने एक ऐसे विधि – विधान का निर्माण किया जिसमें महिलाओं को सिर्फ इस्तेमाल के साथ – साथ भोग विलास की वस्तू के अलावा पुरुष की हाँ में हाँ मिलाने वाला कोई मशीनी मानव बना दिया ! एक ऐसा मशीनी मानव जिसको तब तक ही जीने ,खाने पीने ,सोने ,हँसने ,रोने ,जागने का अधिकार प्राप्त था जब तक उनका पति रूपी मालिक या कुंठित व्यवस्था का संचालक चाहता हो ! इस कुठित व्यवस्था ने महिलाओं को एक ऐसे शोषण सिस्टम में डाला है जहां से किसी भी महिला का अपनी सोच ,अपनी ख्वाहिश,अपनी ज़िंदगी पर कोई अधिकार नहीं रह जाता है !
आज 21 वी सदी में दुनिया की इस आधी आबादी के लिये बहुत कुछ नहीं बदला है ! नहीं बदला है कुछ भी इस आधी आबादी के लिये गाँव देहात ,दूर-दराज़ में अपना जीवन यापन करने वाली महिलाओं के लिये ! हाँ, बदलाव आया ज़रूर है सिर्फ उन महिलाओं में जो पढ़ – लिखकर खुदमुख्तार हो गई हैं ! अपने पैरो पर खड़ी होकर इस सदियो से चली आ रही परम्परा को जो अब खुले आम चुनौती दे रही हैं ! आज तक जितने भी मामले महिलाओं के सामने आये उनमें सबसे बड़ा योगदान खुद पीड़ित महिलाओं का ही है कुछ मामले अपवाद भी हो सकते हैं ! सभी बुद्धिजीवी और महिला संगठन महिलाओं के लगभग हर मामले में अपनी राय गाहे-बगाहे रख ही देता है पर आज तक किसी भी आयोग ,महिला संगठन ,खबरिया चैनल या फिर अखबारी दुनिया ने महिलाओं के इस भेड़- चाल, धर्म परिवर्तन पर कोई सवालिया निशान क्यूँ नहीं उठाया ? और साथ ही किसी न्यायपालिका ने आजतक क्यूँ इस पर संज्ञान नहीं लिया ? क्यूँ कभी किसी ने किसी धर्म परिवर्तन कैम्प में जा कर महिलाओं की राय नहीं ली ? क्यूँ कभी धर्म परिवर्तन करने वाले पुरुषों के गले में धर्म परिवर्तन न करने वाली पत्नी और बच्चों का “ गुज़ारा भत्ता’’ नामक पट्टा ही बांधा ? क्या इस धर्म परिवर्तन के खेल में महिलाएं अभी भी सिर्फ मूक दर्शक का ही रोल अदा करती रहेंगी और समाज के साथ साथ धर्म के ठेकेदार इस कुंठित परम्परा की आड़ में अपने अपने स्वर्ग का मार्ग खोजते रहेंगे ?
सोनाली बोस
उप – सम्पादक
इंटरनेशनल न्यूज़ एंड वियुज़ डॉट कॉम
व्
अंतराष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम
Sonali Bose
Sub – Editor
international News and Views.Com
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International News and Views Corporation
संपर्क –: sonali@invc.info & sonalibose09@gmail.com
बहुत बढ़िया मुद्दे पर लिखा है और अच्छा लिखा है आपने. बधाई एवं आभार
यथार्थपरक व्यंग्यात्मक आलेख ..कितना अजीब है हमारे समाज में ” किसी की जान जाती है ..कोई मस्ती लुटाता है….लोग साहित्यकार के व्यंग पर हँसते है , उनके आत्मा की पीड़ा को नहीं समझ पाते . हमलोग भाग्यशाली हैं की इस मंच पर विद्वत पाठक की बहुलता है..लेकिन सोये तंत्र को दृष्टि कहाँ ?
किसी ने ठीक ही लिखा है ” एक ही उल्लू काफी है बर्बाद गुलिश्तां करने को
हर डाल पे उल्लू बैठा हो अंजामे गुलिश्तां क्या होगीं ?
बहुत सुन्दर आलेख सोनाली ..आप इसी तरह आगे बढ़ती रहे, साभार , शिव कुमार झा टिल्लू ( समालोचक और कवि )
इस देश में बहुत बड़ी फर्जी भीड़ जमा हैं महिलावादी लेखन के क्षेत्र में पर सोनाली जी आपने अपनी कलम से सभी को मूह तोड़ जबाब दिया हैं !आपके सभी लेख पढ़े ,आपने हर बार उस अनछुए पहलू को छुआ हैं जिस पर अब पुरुषो को भी नए सिरे से मंथन करने की आवश्यकता महसूस होने लगी हैं !
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सोनाली जी आप महिलावादी लेखन और आलोचना को वह चेहरा हैं जो निर्भीक ,निडर होने के साथ साथ कलम की धार को तलवार बना कर महिलाओ के शोषण का पोषण करने वालो पर लगातार प्रहार करने का दम रखती है ! बधाई
सोनाली जी आपके सभी लेख पढ़े ! आपको पढ़ते – पढ़ते कब रात से सुबह हुई पता ही नही चला ! महिला लेखन और आलोचना के आकाश का आप अब सबसे चमकाता चाँद हैं ! मुझे ऐसा लगा ! आपके अगले लेख का इन्तिज़ार हैं !
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सोनाली जी आपने लिखने पढ़ने वालो के साथ साथ चर्चा का मंच सजाने वालो के लिए एक नया अध्याय खोल दिया हैं हालाकि यह अध्याय बहुत ही पुराना है पर अब चर्चा का विषय बन गया हैं ! मैंने यह लेख पढ़ा उसके बाद मैंने आपका हर लेख पढ़ा ! आप सच में बधाई की पात्र हैं ! महिला लेखन और आलोचक होना कोई आसान काम नहीं हैं !
सोनाली जी आपने इस लेख में भी महिलाओं के उस उनछुये पहलू का छूआ हैं जिसे आजतक किसी ने भी चर्चा का मुददा भी नहीं समझा !
आपने जो घार्मिक तथ्य रखे हैं ! उस सबको समझने के लिए मुझे सभी धार्मिक अवतारो का पूर्वालोकन करना पडा ! मै एक औरत होने के साथ साथ एक माँ ,बहन ,बेटी भी हूँ ! आपने जो धार्मिक अवतार और धर्म परिवर्तन तथा महिलाओ की स्तिथि बहुत ही सजग तरह से स्पस्ट की हैं ! साभार !
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सोनाली जी ,आपका आलोचना करने का यह एक दम नया तरिका हैं आप इतिहास के साथ आलोचना करती हैं ! समाज के कभी महिलाओं के इस पक्ष का कब ख्याल था ! सलाम आपकी कलम को !
आपकी कलम के साथ साथ आपको भी सलाम ! औरतो का सच हाल बहुत अफ़सोसनाक रहा हैं !
आपका लेख पढ़ने के बाद बहुत देर तक मै शून्य काल में रही ! कितना झेला हैं हम सबने ! इस लेख के बाद मैंने आपके सभी लेख पढ़े ! आप जिस तरहा महिलाओं का पक्ष रखती हैं उसकी कोई मिसाल नहीं हैं !
आपसे आने वक़त को बहुत उम्मीद हैं !महिआओ के मुद्दे जिस तरह आप उठाती हैं ! आप जिस तरहा से आधी आबादी की हालत पर सभी को एक कसौटी पर ला खडा करती है उसके लिये आपको सलाम !
आप हर बार वह मुददा अपने लेख में उठाती हैं जो बाद में चर्चा का विषय बन जाता है ! आपने यह जो विषय जनता के समक्ष रखा हैं उसका आज नहीं तो कल रिजल्ट जरूर आयेगा ! बधाई ! आप सच में आलोचक हैं !
आप महिलावादी लेखन में बहुत दूर की तक जाएँगी ! महिलावादी लेखन जो जगह खाली थी आपने उसकी भरपाई कर दी हैं ! बधाई !