तालिबानों पर होती लानतों की विश्वव्यापी बौछार

तनवीर जाफ़री**,,

वैसे तो दुनिया के किसी भी देश में तालिबानों को समर्थन दिए जाने,उनके साथ सहयोग करने अथवा उनकी दरिंदगी की प्रशंसा करने की बात देखी व सुनी नहीं गई। चूंकि उनका काम ही आतंक फैलाना,बेक़ुसूरलोगों को मारना,धार्मिक उन्माद फैलाना, इस्लाम के नाम पर आत्मघाती दस्ते तैयार करना तथा आत्मघाती हमले कराना,मंदिर-मस्जिद,गुरुद्वारों, दरगाहों व इमाम बारगाहों पर हमले करना तथा स्कूली शिक्षा विशेषकर लड़कियों को दी जाने वाली शिक्षा का विरोध करना आदि है इसलिए दुनिया का हर देश, हर वर्ग तथा हर समुदाय यहां तक कि आम मुस्लिम समुदाय भी तालिबानों को गिरी नज़रों से देखता है तथा समय-समय पर इन के द्वारा अंजाम दी जाने वाली अमानवीय घटनाओं की निंदा व भत्र्सना करता रहता है। परंतु गत् 9 अक्तूबर मंगलवार को पाकिस्तान स्थित इन वहशी तालिबानों द्वारा पाकिस्तान के उत्तर-पश्चिम क्षेत्र की स्वात घाटी की मलाला युसु$फ ज़ई नामक 14 वर्षीय किशोरी पर जो वहशियाना आक्रमण किया गया तथा उसके सिर में गोली मार कर उस मासूम की हत्या का प्रयास किया गया उसके बाद पूरे विश्व में इन दरिंदे तालिबानों पर जिस प्रकार लानतों की बौछार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होती देखी जा रही है उतनी लानतें तालिबानों पर बरसते पहले कभी नहीं देखी गई। पाकिस्तान जैसा देश जहां यह हादसा हुआ तथा जो देश खुद तालिबानों, कट्टरपंथियों व रूढ़ीवादियों की गिरफ़्त में आता जा रहा है वहां भी कई प्रमुख स्थानों पर मलाला युसुफ ज़ई के पक्ष में तथा उसकी जि़दगी के लिए दुआएं मांगने के हक में व वहशी तालिबानों के विरोध में प्रदर्शन होते हुए देखे गए।

आखिर ऐसी क्या बात थी जिसने मात्र एक 14 वर्षीय कन्या पर तालिबानी हमले को पूरी दुनिया के लिए ध्यान आकर्षित करने का मुद्दा बना दिया। दरअसल मलाला युसफ ज़ई जब 11वर्ष की थी तथा स्कूल जाया करती थी उसी दौरान स्वात घाटी में तालिबानों ने स्कूलों के खुलने का विरोध करना शुरु कर दिया था। उन्होंने कई स्कूल जहां सांसारिक व प्रगतिशील शिक्षा दी जाती थी उन्हें ध्वस्त करना शुरु कर दिया। स्कूल जाते हुए बच्चों का अपहरण करने लगे। और सबसे ज़्यादा उनका विरोध इस बात को लेकर था कि लड़कियां तो $खासतौर पर स्कूल हरगिज़ न जाया करें। और तालिबानों के इस रवैये का प्रभाव यह पड़ा कि स्वात घाटी में आम लोग भयवश अपने बच्चों को स्कूल जाने से रोकने लगे। 11 वर्षीय मलाला भी उस समय स्कूल जाया करती थी। इसी उम्र में उसे यह एहसास हो चला था कि इंसान को अपने जीवन को सफल व सुखद बनाने के लिए शिक्षित होना बहुत ज़रूरी है। और अपने इन्हीं विचारों के साथ वह शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए तथा तालिबानों के शिक्षा विरोधी मुहिम के विरुद्ध खुलकर सामने आ गई। उसने शिक्षा,प्रगतिशीलता,उदारवाद तथा धर्मनिरपेक्षता के हक़ में बोलना व लिखना शुरु कर दिया। यहां तक कि विश्व की सबसे प्रतिष्ठित समाचार एजेंसी बीबीसी उर्दू सर्विस के लिए मात्र 11 वर्ष की आयु में ही उसने अपनी डायरी लिखनी शुरु कर दी। बीबीसी पर प्रसारित होने वाले उसके हृदयस्पर्शी कार्यक्रम स्वात घाटी सहित पूरे पाकिस्तान व अफ़ग़ानिस्तान में अत्यंत लोकप्रिय होने लगे। अपनी डायरी में वह स्वात घाटी के वास्तविक हालात का बयान करती, तालिबान की दहशत तथा उनके ज़ल्मो-सितम के परिणामस्वरूप उस क्षेत्र पर पडऩे वाले नकारात्मक प्रभाव का जि़क्र करती तथा साथ-साथ शिक्षा के प्रसार पर ज़ोर देती।
मलाला के ऐसे प्रयासों के परिणामस्वरूप स्वात क्षेत्र के आम लोगों ने अपने बच्चों को सादे लिबासों में तथा अपनी शाल व चादरों के बीच किताबें छुपाकर पुन: स्कूल भेजना शुरु कर दिया। उसकी बहादुरी के चर्चे इस हद तक हुए कि उसे पाकिस्तान में राष्ट्रीय वीरता पुरस्कार भी दिया गया। इसके पश्चात मलाला को बच्चों के अंतर्राष्ट्रीय विश्व शांति पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया। और इस प्रकार वह स्वात के प्रगतिशील विचार रखने वाले लोगों खासतौर पर बच्चों के लिए एक आदर्श कन्या के रूप में लोकप्रिय होने लगी। ज़ाहिर है उसे यह सभी उपलब्धियां केवल इसीलिए मिल रही थीं क्योंकि वह एक किशोरी थी और कम उम्र की बालिका होने के बावजूद तथा दरिंदे तालिबानों के गढ़ में रहने के बावजूद वह बड़े बुलंद हौसलों के साथ सच्चाई के पक्ष में तथा असत्य,अधर्म तथा अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठा रही थी। जिस समय तालिबानी दरिंदे मलाला युसुफज़ई को स्कूल के बच्चों की गाड़ी से उसका नाम पुकार कर बाहर उतरवा कर उसके सिर में गोली मारी इस हमले के बाद पाकिस्तान तालिबान के प्रवक्ता ने अपनी जि़म्मेदारी स्वीकार करते हुए यह कहा भी था-कि यह हमला उसने इसलिए किया है क्योंकि मलाला तालिबान के खिलाफ थी व धर्मनिरपेक्ष थी और उसे बख्शा नहीं जाएगा। ज़ाहिर है तालिबानों की इस स्वीकारोक्ति का अर्थ यही है कि तालिबानों के शिक्षा के विरोध करने के बावजूद मलाला का शिक्षा के पक्ष में खड़े होना तालिबानों को नागवार गुज़रा।
सवाल यह है कि क्या इस्लाम धर्म भी शिक्षा के विरुद्ध है? यदि हम तालिबानों की शिक्षा विरोधी सोच को सही मान लें तो एक सवाल यह भी है कि क्या कुरान शरीफ का संकलन बिना शिक्षित लोगों के सहयोग के संभव हो सका? क्या कुरान शरीफ में लिखी आयतें तथा उसकी समीक्षाएं या उनपर तबसेरा आदि करना किसी अशिक्षित व्यक्ति के वश की बात है? क्या दवा-इलाज,इंजीनियरिंग, यहां तक कि तालिबानों द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले आधुनिक संचार प्रणाली व हथियार आदि किसी अशिक्षित व्यक्ति द्वारा किए गए अविष्कार हैं? आज यही तालिबानी सोच रखने वाले लोगों के घरों की लड़कियां या महिलाएं जब बीमार होती हैं तब यही लोग महिला डॉक्टर की खोज करते देखे जाते हैं। आखिर कहां से आएगी महिला डॉक्टर जब आपकी बच्चियां स्कूल ही नहीं जाएंगी? पैगंबर हज़रत मोहम्मद, हज़रत अली से लेकर सभी इमाम व खलीफा शिक्षा व शिक्षित समाज के पक्ष में बोलते देखे गए। शिक्षा को मानवता, विकास तथा आत्मनिर्भरता की बुनियाद माना जाता है। अशिक्षित समाज की हालत दुनिया में कैसी होती है यह देखने के लिए किसी और वर्ग या समाज को देखने की नहीं बल्कि स्वयं तालिबानों को अपने-आप को देखने की ज़रूरत है। क्या मलाला युसुफ ज़ई का कुसूर यही था कि वह आम लोगों के बच्चों विशेषकर स्वात घाटी के तालिबानी दरिंदों की दहशत के शिकार समाज के बच्चों को शिक्षित होने का रास्ता दिखा रही थी? शिक्षा की चाहत रखने वाले अभिभावकों व बच्चों के लिए वह मशअल-ए-राह बन चुकी थी?
स्वयं को इस्लाम धर्म का ठेकेदार बताने वाले यह दुष्ट, क्रूर व खबीस तालिबानी क्या इस्लाम धर्म के इतिहास में किसी ऐसी घटना की मिसाल दे सकते हैं जो 14 वर्षीय बच्ची के सिर में गोली मारे जाने की घटना का समर्थन करती हो। स्वयं को मुस्लिम कहकर इस्लाम धर्म को कलंकित करने वाले इन वहशियों ने मलाला को केवल इसलिए गोली मारी क्योंकि वह बच्ची पिछड़े व अनपढ़ समाज को शिक्षित समाज के रूप में देखना चाहती थी। यदि तालिबानी वहशी आधुनिक शिक्षा, आधुनिक समाज या आधुनिक व्यवस्था के इतने ही बड़े विरोधी हैं तो वे अपने आतंकी मिशन में आधुनिक हथियारों व आधुनिक संचार माध्यमों का भी प्रयोग क्यों करते हैं? दरअसल तालिबान या इन जैसे कोई भी आतंकी संगठन यह भलीभांति जानते हैं कि अनपढ़ समाज व जाहलियत के कारण बेरोज़गारी का सामना करने वाला युवा ही इनका समर्थक, इनका सहयोगी हो सकता है तथा वह जल्दी इनके झांसे में आ सकता है। परंतु शिक्षित युवा प्राय: अपनी सोच-समझ व शिक्षा के अनुसार ही कोई निर्णय लेता है। लिहाज़ा तालिबानों को अपनी भलाई भी इसी में नज़र आती है कि उनसे संबंधित अधिकांश लोग अनपढ़ ही हों।
परंतु दुनिया तालिबानों की इस सोच के पूरी तरह विरुद्ध है। आज विश्व के प्रत्येक भाग में शिक्षा का प्रचार-प्रसार हो रहा है। यहां तक कि कट्टरपंथियों की गिरफ़्त में रहने वाले पाकिस्तान व अफगानिस्तान जैसे देशों में भी । और यही वजह है कि मलाला युसुफ ज़ई पर हुए हमले ने तालिबानों को दुनिया की नज़रों से इस कद्र गिरा दिया है जिसकी वे कभी उम्मीद भी नहीं कर सकते थे। यह उनकी इस दरिंदगी का ही परिणाम है कि आज सारी दुनिया में जहां मलाला के शीघ्र सेहतमंद होने के लिए दुआओं के हाथ बुलंद हो रहे हैं वहीं तालिबानों पर लानतों की विश्वव्यापी बौछार भी हो रही है।

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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author  Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost  writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
(Email : tanveerjafriamb@gmail.com)

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*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC

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