क्या आप जानते हैं ???
पिंजरा भर देता है मन में अनंत आकाश ,
हर बंधन से मुक्ति की छट पटा हट
जड़ता और रिवायतों से विरोध भाव ,
समस्त सुकुमार कोमल समझौतों के प्रति घृणा
यह तो पिंजरे में बंद चिरिया से पूछो ,
क्यूंकि वही जानती है आज़ादी के सही मायने
वो तरस खाती है उस आज़ाद चिरिया पर
जो कोमल घास पर फुदक फुदक कर
छोटे छोटे कीड़े मकौडों को आहार बनाती है
आज़ादी के सच्चे अर्थ नही जानती
और लम्बी तान गाती है ,
अपने में मशगूल अपना
आस पास भुला देती है
उसके गीत में राग अधिक है वेदना कम
वह अपनी मोहक आवाज़ से
मूल मंत्र भी बिसरा देती है
यहाँ पिंजरे में बंद चिरिया की तान
दूर दूर चट्टानी पहाड़ों को भी दरका सकती है
उसके गीत में दर्द से बढ़कर कुछ है
जिसे समझ सकती है केवल पिंजरे की चिरिया …..
************************
डा. सुधाकर उपाध्याय,
एसोसिएट प्रोफेसर
जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज,
दिल्ली विश्वविद्यालय.