-तनवीर जाफ़री-
केंद्र में सत्तारूढ़ नरेंद्र मोदी सरकार ने अपने कार्यकाल के दो वर्ष पूरे कर लिए हैं। दिल्ली सहित देश के अन्य कई प्रमुख महानगरों व नगरों में सरकार द्वारा अपनी दो वर्ष की उपलब्धियों का बखान करने हेतु सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च कर दिए गए हैं। सोने पर सुहागा यह रहा कि इस जश्र को मनाने से कुछ ही दिन पूर्व पिछले दिनों देश के पांच राज्यों केरल, पश्चिम बंगाल, आसाम, तमिलनाडु तथा पुड्डुचेरी के चुनाव परिणाम घोषित हुए। इनमें से एक राज्य असम में भाजपा को असम गण परिषद् के साथ हुए गठबंधन के चलते पहली बार सत्ता हासिल करने में कामयाबी मिली। इसमें कोई शक नहीं कि भाजपा ने चाहे राज्य में बंगलादेशी घुसपैठियों का भय दिखाकर चाहे राज्य में बढ़ती हुई अल्पसंख्यक आबादी से असम के मतदाताओं को भयभीत कर या अन्य तरीकों से राज्य में मतों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करवा कर एक सफल चुनावी रणनीति तैयार कर जो जीत हासिल की उसे निश्चित रूप से उसकी उपलब्धि ही गिना जाएगा। परंतु भारतीय जनता पार्टी असम में अपने गठबंधन की जीत के नशे में इतना चूर नजर आ रही है कि वह अन्य चार राज्यों के परिणामों की तो गोया चर्चा ही नहीं करना चाहती। और न जाने कौन-कौन सी परिभाषा के साथ असम के चुनाव परिणाम की व्याख्या कर रही है। पार्टी के कई ज़िम्मेदार नेता इन परिणामों के बाद कभी तो यह कहते सुनाई दे रहे हैं कि देश कांग्रेस मुक्त हो रहा है तो कभी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह जैसे बड़े नेता यह फ़रमा रहे हैं कि असम में पार्टी की जीत केंद्र सरकार की नीतियों पर मतदाताओं की मुहर है।
ऐसे में इस बात का जायज़ा लेना ज़रूरी है कि क्या भाजपा नेताओं के कथनानुसार वास्तव में देश कांग्रेस मुक्त हो रहा है या यह भाजपा नेताओं द्वारा कांग्रेस के विरुद्ध हमेशा से ही रचे जा रहे एक षड्यंत्रकारी दुष्प्रचार का हिस्सा मात्र है? यहां यह बताने की भी ज़रूरत नहीं कि इस समय देश का अधिकांश मीडिया चाहे वह किसी भी कारण अथवा लालच के चलते मोदी सरकार की हां में हां मिलाने में ही व्यस्त दिखाई दे रहा है। बहरहाल जहां तक पांच राज्यों के चुनावी नतीजों का प्रश्र है तो असम की कुल 126 विधानसभा सीटों में भाजपा को 60 सीटें हासिल हुईं तो कांग्रेस ने भी 23 सीटों पर सफलता हासिल की। इसके अतिरिक्त केरल में कांग्रेस को कुल 140 सीटों में से 51 सीटें मिलीं तो भाजपा मात्र एक सीट ही जीत सकी। यह वही राज्य था जिसकी तुलना प्रधानमंत्री ने सोमालिया से की थी। पश्चिम बंगाल जहां भाजपा ने अपनी जीत के लिए सारे हथकंडे इस्तेमाल किए वहां की कुल 294 विधानसभा सीटों में पार्टी केवल चार सीटें ही जीत सकी जबकि कांग्रेस के खाते में 42 सीटें आईं। इसी प्रकार तमिलनाडु में कांग्रेस को 232 में से 9 सीटें हासिल हुईं और भाजपा अपना खाता भी नहीं खोल सकी। पुडुचेरी में 30 सीटों की विधानसभा में कांग्रेस ने 15 सीटें प्राप्त कीं जबकि भाजपा को केवल निराशा हाथ लगी। गोया इन्हीं पांच विधानसभाओं में लगभग तीन राज्यों से भाजपा मुक्त परिणाम सामने आया। कांग्रेस को इन पांच राज्यों की कुल 822 सीटों में 140 सीटों पर जीत हासिल हुई जबकि भाजपा को 65 सीटें ही प्राप्त हो सकीं। क्या इसी को कांग्रेस मुक्त भारत माना जाएगा? या यह महज़ भाजपा के पारंपरिक कांग्रेस विरोधी दुष्प्रचार का एक हिस्सा है?
रहा सवाल अमित शाह के इस कथन का कि असम के चुनाव परिणाम केंद्र सरकार की नीतियों पर जनता की मुहर हैं तो अमित शाह को बिहार व दिल्ली के विधानसभा चुनावों के परिणामों को भी केंद्र सरकार की नीतियों से जोड़कर ज़रूर देखना चाहिए। गुजरात से लेकर दिल्ली तक और अब असम के विधानसभा चुनाव तक भारतीय जनता पार्टी की इस रणनीति से देश वाक़िफ़ हो चुका है कि पार्टी किस प्रकार अपने जनाधार को बढ़ाने के लिए दूसरे राजनैतिक दलों के बागी नेताओं को अपने लोभ व लालच में फंसा कर फिर उन्हीं के कंधों पर सवार होकर सफलता हासिल करने के प्रयास करती है। असम की जीत भी इसी रणनीति का परिणाम है। देश यह भी जानता है कि असम व बंगाल में चुनाव जीतने हेतु राष्ट्रीय स्वयं संघ तथा भाजपा के कार्यकर्तओं ने कौन-कौन सी रणनीति नहीं अपनाई? परंतु कांग्रेस की भीतरी कलह तथा असम गण परिषद् द्वारा भाजपा के साथ गठबंधन तथा कांग्रेस के कई दिग्गज नेताओं द्वारा पार्टी छोड़कर भाजपा का साथ दिए जाने के परिणामस्वरूप भाजपा को असम में सफलता प्राप्त हो सकी। हां यदि राजनैतिक विश्लेषकों तथा मीडिया के महारथियों द्वारा असम में भाजपा की जीत से भी अधिक आश्चर्यचकित करने वाली कोई राजनैतिक खबर होनी चाहिए थी तो वह थी बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की सत्ता में जबरदस्त वापसी। जहां सत्ता विरोधी लहर का लाभ उठाने की फ़िराक़ में लगी भाजपा को केवल 3 सीटों पर संतोष करना पड़ा जबकि सत्तारुढ़ तृणमूल कांग्रेस 211 सीटों पर अपनी जीत दर्ज कराकर सत्ता में शानदार तरीके से वापस आई। यहां यह भी गौरतलब है कि 2011 में तृणमूल कांग्रेस ने 184 सीटें हासिल की थीं और इस बार उसे पिछले चुनाव की तुलना में 27 सीटें अधिक प्राप्त हुईं।
इसमें कोई दो राय नहीं कि देश के उन राज्यों में जहां-जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच सीधा मुक़ाबला होता रहा है वहां भाजपा कांग्रेस से सत्ता छीनने में प्रायः कामयाब होती देखी गई है। इसका कारण सीधा और साफ़ है कि भाजपा कांग्रेस पर हमेशा अल्पसंख्यकों के तुष्टीकरण का आरोप लगाकर सांप्रदायिक आधार पर मतों का ध्रुवीकरण कराने का खेल खेलती रही है जबकि कांग्रेस अपनी बुनियादी नीतियों पर चलते हुए सभी धर्मों व जातियों के लोगों को समान रूप से एक साथ लेकर चलने तथा अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार व सुरक्षा दिलाए जाने के प्रति अपना संकल्प दोहराती रही है। कांग्रेस को इस बात का भी हमेशा नुक़सान उठाना पड़ा है कि वह अपने हाथों से बहुसंख्य मतों के फिसलने से भयभीत होकर कभी भाजपा की हिंदूवादी नीतियों का डटकर मुक़ाबला भी नहीं कर सकी। दूसरी ओर भाजपा पूरी तरह से मुखरित होकर हिंदुवादी राजनीति करती आ रही है। और उसे अल्पसंख्यक मतों को नाराज़ करने या उनके हाथ से निकल जाने का भय कभी नहीं सताता। क्योंकि भाजपा का संघ संस्कार उसे हिंदू राष्ट्रवाद की राजनीति करने की प्रेरणा देता है। परंतु ठीक इसके विपरीत जिन-जिन राज्यों में स्थानीय दल अथवा क्षेत्रीय पार्टियों का वर्चस्व है वहां यदि कांग्रेस के हाथ से सत्ता फिसलती है तो वह भाजपा के हाथों में जाने के बजाए क्षेत्रीय पार्टियों के पक्ष में चली जाती है। दिल्ली, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, पश्चिम बंगाल आंध्रप्रदेश जैसे इसके कई उदाहरण हैं।
इसी प्रकार मोदी सरकार के दो वर्ष पूरे होने के अवसर पर केंद्र सरकार द्वारा अपने 2014 के चुनावी नारों जैसे बहुत हुई मंहगाई की मार-अब की बार मोदी सरकार की सैकड़ों करोड़ रुपये के विज्ञापनों के माध्यम से लीपापोती करने की कोशिश की गई। देश की जनता एक ओर तो यह सवाल पूछ रही है कि मंहगाई की मार पड़नी कम क्यों नहीं हुई? तो विज्ञापनों के माध्यम से इसका जवाब दिया जा रहा कि अब की बार महिलाओं को खुशियां अपार, अब की बार जन-जन का उद्धार। उपलब्धियों का गुणगान करते हुए बताया जा रहा है कि अब की बार युवाओं का अवसर अपार, अबकी बार बड़ा कारोबार, अब की बार मिटा भ्रष्टाचार, अब की बार विकास ने पकड़ी रफ्तार और अब की बार किसान विकास में हिस्सेदार। यानी न तो 2014 के नारों का कोई जवाब न ही दो वर्षों की उपलब्धियां बखान करने वाले नारों की कोई सच्चाई या उसका कोई आधार। केवल और केवल विज्ञापन की बौछार। आंकड़ों के अनुसार केवल महाराष्ट्र राज्य में पिछले चार महीनों में चार सौ किसानों द्वारा आत्महत्या किए जाने के समाचार हैं। दालों की क़ीमतें दो सौ रुपये प्रति किलो से ऊपर जा चुकी हैं। चीनी का मूलय 45 रुपये प्रति किलो हो चुका है। देश में दलितों, मजदूरों व किसानों पर तथा छात्र समुदाय पर होने वाले अत्याचार में इज़ाफ़ा हुआ है। देश का सांप्रदायिक सौहाद्र बुरी तरह प्रभावित हुआ है।
पार्टी द्वारा अपनी दो वर्ष की तथाकथित उपलब्धियों का बखान करने हेतु जिन महान फ़िल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन को आमंत्रित किया गया उनका नाम भी पिछले दिनों पनामा लीक्स की उस रिपोर्ट में उजागर हुआ था जिसमें देश व दुनिया के कई उन प्रमुख लोगों के नाम शामिल थे जिन्होंने विदेशों में अपना काला धन जमा कर रखा है। परंतु मोदी सरकार के रणनीतिकारों को इन बातों से आिखर क्या लेना-देना हो सकता है क्योंकि इस सरकार में तो पहले से ही कई गंभीर अपराधों के आरोपी सत्ता में मंत्री पद सुशोभित करते देखे जा रहे हैं। परंतु इन सब वास्तविकताओं से आंखें मूंदकर भाजपा के रणनीतिकार अपनी प्रशंसा का झूठा ढिंढोरा पीटने में व्यस्त हैं।
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Abaut the Auther
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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