अनिल सिन्दूर**,,
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय का उपक्रम, इग्नू नोडल एजेन्सी
देश के आम जनमानस को अनौपचारिक रूप से शिक्षित व जागरूक करने को स्थापित ज्ञानवाणी एफएम रेडियो जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते ज्ञान देने में अक्षम साबित हो रहे है । मुद्रण के बाद जनसंचार कंे क्षेत्र में मार्कोनी ने सन् 1896 में जब बिना तार के संदेश भेजने की तकनीकी का पता लगाया तो सामाजिक दृष्टि से इस नई विधा नें जनमानस में क्रान्ति ला दी। इसके बाद रडियो का आगमन इतिहास की एक क्रान्तिकारी घटना थी। रेडियो के आने से मानव जाति को प्रगति पथ पर अग्रसर होने के नये आयाम मिले विशेषकर दूर-दराज और ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के लिए तो रेडियो जैसे वरदान साबित हुआ।
20वीं सदी के पूर्वार्द्ध में शुरू होकर जनमाध्यम के रूप में अपनी पहचान बना चुका रेडियो आज लगभग 92 प्रतिशत क्षेत्रफल तथा 99 प्रतिशत जनसंख्या तक पहुंच गया है। यूनेस्को के सहयोग से वर्ष 1959 में रेडियो रूरल फोरम का कार्य आरम्भ हुआ। इसमें महाराष्ट्र के 150 गांवों में 15-20 लोगों के समूह बनाये गये और उनके लिए कृषि आधारित चर्चाएं प्रसारित की गयीं साथ ही किसानों की जिज्ञासायें भी शांत की गयीं। 1965 में आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से ग्रामीण कार्यक्रमों का प्रसाररण होने लगा। वर्ष 1966 में फार्म एण्ड होम यूनिट की स्थापना की गयी। शुद्ध मनोरंजन के अलावा रडियो से किसानों को घर बैठे खेती के नये तौर तरीकों का परिचय भी होने लगा। इस बात में कोई संदेह नहीं कि हरितक्रान्ति में सफलता का अधिकांश श्रेय संचार माध्यमों को जाता है।
केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्रांलय की पहल पर नवम्बर 2001 से आरम्भ शैक्षिक एफएम रेडियो ज्ञानवाणी देश भर में 40 स्थानों पर स्थापित किये गये। परियोजना के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी पर डाली गयी। मीडिया सहकारिता के सिद्धान्त पर कार्य करने वाले इस शैक्षिक एफएम रेडियो ज्ञानवाणी को एनसीईइारटी, यूजीसी, आईआईटी, गैरसरकारी, अर्द्धसरकारी संस्थाओं तथा सामाजिक संगठनों ने भी अपेक्षित सहयोग दिया। इस मॉडल में शैक्षिक तथा सामाजिक क्षेत्रों की भागीदारी 60ः40 के अनुपात में रखी गयी।
ज्ञानवाणी के कार्यक्रमों में प्रोढ़शिक्षा, कृषि, तथा प्रतियोगी परिक्षाओं पर आधारित विद्यार्थियों के कार्यक्रम बेहद लोकप्रिय कार्यक्रम हैं। आज हालत यह है कि कृषि तथा शिक्षा पर आधारित रिकार्डिंग न होने के कारण पुराने रिकार्डिंग को ही प्रसारित किया जा रहा है जिससे श्रोताओं की रूचि खत्म हो रही है साथ ही नये तथ्यों की जानकारी से श्रोता वचिंत हो रहे हैं। मालूम हो कि कानपुर एक मात्र ऐसा केन्द्र है जहां से चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रोद्यौगिकी विश्व विद्यालय के वैज्ञानिकों के सहयोग से निर्मित कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता था जिसकी रिकार्डिंग भी अब पुरी तरह से बन्द है। कार्यक्रमों के क्रियान्वयन की जिम्मेदारी इग्नू के क्षेत्रीय कार्यालय पर है वह भी इस ओर ध्यान नहीं दे रहा है। उ.प्र. में ज्यादातर ज्ञानवाणी केन्द्रों की हालत कमोवेश एक जैसी है।
*******
**लेखक श्री अनिल सिन्दूर वरिष्ठ पत्रकार है । पिछले 22 सालो में कई समाचार पत्रों में विभिन्न पद पर कार्य किया है । अंतर्राष्ट्रीय समाचार एवम विचार निगम में राष्ट्रीय विशेष संवाददाता के पद पर कार्यरत है ।
अनिल सिन्दूर
संपर्क : anilsindoor2010@gmail.com
: 09415592770
*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.