जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी



– सुनील दत्ता कबीर –

उपरोक्त श्लोक में जन्म , जीवन तथा उसके लिए भौतिक आधार प्रदान करने वाली जननी ( माँ ) तथा जन्म भूमि ( मातृभूमि ) को स्वर्ग से भी उंचा बताया गया है | उपरोक्त पंक्तिया वाल्मिक रामायण में लंका प्रवास के दौरान राम द्वारा लक्ष्मण को सम्बोधित करके कहे गये श्लोक का है |

वह पूरा श्लोक इस प्रकार है —- अयि स्वर्णमयी लंका . न में लक्ष्मण रोच्यते, जननी जन्मभूमि भुमिशच स्वर्गादपि गरीयसी ||

इस श्लोक में राम ने अपने भाई लक्ष्मण से जननी एवं जन्मभूमि को स्वर्ग से भी उंचा बताते हुए स्वर्णमयी लंका में रहने बसने के प्रति अपनी अरुचि को स्पष्ट रूप से व्यक्त किया है | स्वतंत्रता आन्दोलन के दौरान जननी जन्मभूमि को महान बताने वाले इस मन्त्र को बार – बार दुहराया जाता रहा है | यह श्लोक उस दौर के प्रबुद्ध राष्ट्रवादियो की अभिव्यक्तियों का अभिन्न हिस्सा रहा है | यह वह दौर था जब उच्चस्तरीय शिक्षा के लिए इग्लैंड गये प्रबुद्धजनो का एक हिस्सा अपनी पढ़ाई छोड़कर या पढ़ाई पूरी करने के बाद अपनी जन्मभूमि में वापस आकर स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय भागीदारी निभाता रहा था | स्पष्ट है की उस दौर के राष्ट्रवादियो ने अपनी जननी से भी कही ज्यादा जन्म,भूमि को महत्व दिया | जन्मभूमि की स्वतंत्रता के लिए अपने सुखी पदों – प्रतिष्ठाओ का त्याग करने के साथ अपने सुखी सम्पन्न जीवन का भी त्याग बलिदान किया | इसमें देश के राष्ट्रवादी क्रान्तिकारियो का हिस्सा सबसे आगे रहा | उन्होंने देश से कुछ लिया नही मगर अपने त्याग व बलिदान से राष्ट्र की स्वतंत्रता का अलख जगाने तथा जन्मभूमि को स्वर्ग से उच्च मानने की भावना को सशक्त एवं व्यापक बनाने का काम अवश्य किया | इसमें अमेरिका और कनाडा में बसे प्रवासी हिन्दुस्तानियों ने गदर पार्टी में अपना सब कुछ होम कर दिया | राष्ट्र स्वतंत्रता के लिए संघर्ष हेतु नका बड़ा हिस्सा गदर पार्टी के रूप स्वदेश चला आया | अंग्रेजी सरकार द्वारा गिरफ्तारी के बाद जेल कालापानी और फाँसी की सजाये पाई |

क्या राष्ट्रवाद का यह विचार एवं व्यवहार आज हमारे समाज में मौजूद है ? एकदम नही ! इसके लिए कोई भी यह तर्क दे सकता है की 1947 में ब्रिटिश राज के हटाए जाने के बाद उस दौर जैसे राष्ट्रीय स्वतंत्रता आन्दोलन की वैसे स्न्घर्श्शील राष्ट्रवादी की कोई आवश्यकता नही रहा है | जाहिर तौर पर यह बात ठीक भी लगती है | मगर से राष्ट्र स्वतंत्रता की इस प्रचलित अवधारणा में एक बुनियादी गडबडी है |

यह गडबडी इस बात को अनदेखा करने में निहित है की ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी मुख्यत इस देश को व्यापार , बाजार का हिसा बनाने , राष्ट्र की सम्पदा की व्यापारिक लुट करने और लाभ कमाने के लिए आई थी | बाद में उसने कम्पनी राज के शासन – प्रशासन तथा न्याय कानून आदि की समूची प्रणाली को खड़ा करने का काम अपने व्यापार – बाजार को बढ़ाने और उस पर एकाधिकार स्थापित कर्ण इ के लिए किया | उसने इस देश की सामन्ती शक्तियों और विदेशियों यूरोपीय कम्पनियों से युद्ध लड़कर उन्हें परास्त किया और इस देश की स्मान्ति शासन प्रणाली को ध्वस्त कर दिया | उसकी जगह पर पहले ईस्ट इंडिया कम्पनी के राज को स्थापित किया और बाद में आधुनिक युग के , ब्रिटिश साम्राज्यी कम्पनियों के सामूहिक हितो वाले ब्रिटिश राज के रूप में उसे और सुदृढ़ बनाने का काम किया | लेकिन यह काम ब्रिटिश साम्राज्य के औद्योगिक व्यापारिक एवं महाजनी लुट एवं प्रभुत्व के लिए ही किया गया | स्वाभाविक बात है की कम्पनी राज का ब्रिटिश राज ब्रिटिश कम्पनी और ब्रिटिश साम्राज्य का मुख्य लक्ष्य नही था | वह तो लक्ष्य प्राप्ति का एक आवश्यक सामान था | उसका मुख्य लक्ष्य राज के सरक्षंण और सहयोग से इस देश की श्रम सम्पदा का शोषण – दोहन करके अपने लाब तथा सूद व्याज को अधिकाधिक बढाना था | उसे जारी रखने हेतु इस देश को उपनिवेश या गुलाम बनाना था | साम्राज्यी पूंजी व तकनीक पर इस राष्ट्र की निर्भरता को बढाना था | क्या १९४७ और उसके बाद ब्रिटिश राज को हटाने के साथ उनके ( तथा अन्य साम्राज्यी देशो के भी ) इस लक्ष्य के विरोध में राष्ट्र को खड़ा करने तथा राष्ट्र को स्वतंत्र कराने का काम हो पाया ? क्या राष्ट्र को विदेशी पूंजी – तकनीक एवं प्रभाव – प्रभुत्व से बचाने तथा आत्मनिर्भर बनाने के राष्ट्रीय कार्यभार को उठाया और आगे बढाने का काम हुआ ? क्या उसके लिए 1947 से पहले के साम्राज्वाद विरोधी राष्ट्रवाद को राष्ट्र के जनगण में पुनर्जीवित किया गया ? कत्तई नही ! अगर ऐसा किया गया होता तो पिछले २५ सालो से देश के आधुनिक विकास के लिए विदेशी पूंजी व तकनीक की मांग को निरंतर बढाते जाने की कोई आवश्यकता नही पड़ती | उसके बिना राष्ट्र का विकास न होने का शोरगुल नही करना पड़ता | देश के प्रधान मंत्रियों को , देश के धनाढ्य कारोबारियों के जत्थों के साथ विदेशी पूंजी के मांग के लिए साम्राज्यी देशो के ककर नही काटना पड़ता |

ये और अन्य स्थितिया न केवल राष्ट्रवाद की अवधारणा को छोड़ने की द्योतक है , बल्कि जन्मभूमि या मातृभूमि के गौरव को निचे गिराने की भी द्योतक है | ये स्थितिया विदेशी पूंजी के मालिको एवं देश में उनके धनाढ्य वर्गीय सहयोगियों द्वारा मातृभूमि के प्राकृतिक एवं मानवीय संसाधनों की लुट को बढाते जाने का द्योतक है |

यह राम द्वारा जननी और जन्मभूमि की उद्घोषित अवधारणा के नितांत विपरीत है | राम द्वारा स्वर्णमयी लंका को अरुचिकर बताने और मातृभूमि को महिमा मंडित करने की अवधारणा के विपरीत है | यह देश की धनाढ्य एवं उच्च हिस्सों में अमेरिका व अन्य साम्राज्यी देशो की धनाढ्यता भव्यता एवं शक्ति सम्पन्नता से अभिभूत होने का द्योतक है | साम्राज्यी पूंजी तकनीक एवं वैश्विक व्यापार बाजार तथा प्रभाव प्रभुत्व की डोर को पकड कर धन सत्ता का बड़ा एकं सशक्त मालिक संचालक बने रहने का द्योतक है | मगर १९८० – ८५ के बाद से वह तेजी के साथ और खुलेआम बढ़ता जा रहा है | इसीलिए अब इनके द्वारा राष्ट्रवाद की जगह वैश्वीकरणवाद ववन निजिवाद को अपनी प्रमुख निति के रूप में खुले रूप में अपना लिया गया है | उनके लिए अब जननी जन्म भूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी का मन्त्र निर्थक है || ( इसी लिए अब राम के इस श्लोक को याद रखने के साथ साम्राजयी शोषण – दोहन से राष्ट्र के श्रम सम्पदा को मुक्त कराने का काम राष्ट्र के सभी समुदायों के श्रमजीवी जन साधारण को ही करना पडेगा | उसके लिए राष्ट्र के ध्नाध्य्यो एवं उच्च हिस्सों की तरह किसी दुसरे राष्ट्र में रहने – बसने का कोई भी आधार भी नही है | उनके लिए मातृभूमि पर अधिकार उनकी रूचि से कही ज्यादा उनके जीवन के लिए अनिवार्य आवश्यकता है | इसी लिए अब इन्ही के लिए ही राम का यह कथन प्रासंगिक एवं अनुकरणीय है |

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परिचय:-

सुनील दत्ता

स्वतंत्र पत्रकार व समीक्षक

वर्तमान में कार्य — थियेटर , लोक कला और प्रतिरोध की संस्कृति ‘अवाम का सिनेमा ‘ लघु वृत्त चित्र पर  कार्य जारी है

कार्य 1985 से 1992 तक दैनिक जनमोर्चा में स्वतंत्र भारत , द पाइनियर , द टाइम्स आफ इंडिया , राष्ट्रीय सहारा में फोटो पत्रकारिता व इसके साथ ही 1993 से साप्ताहिक अमरदीप के लिए जिला संबाददाता के रूप में कार्य दैनिक जागरण में फोटो पत्रकार के रूप में बीस वर्षो तक कार्य अमरउजाला में तीन वर्षो तक कार्य किया |
एवार्ड – समानन्तर नाट्य संस्था द्वारा 1982 — 1990 में गोरखपुर परिक्षेत्र के पुलिस उप महानिरीक्षक द्वारा पुलिस वेलफेयर एवार्ड ,1994 में गवर्नर एवार्ड महामहिम राज्यपाल मोती लाल बोरा द्वारा राहुल स्मृति चिन्ह 1994 में राहुल जन पीठ द्वारा राहुल एवार्ड 1994 में अमरदीप द्वारा बेस्ट पत्रकारिता के लिए एवार्ड 1995 में उत्तर प्रदेश प्रोग्रेसिव एसोसियशन द्वारा बलदेव एवार्ड स्वामी विवेकानन्द संस्थान द्वारा 1996 में स्वामी

विवेकानन्द एवार्ड
1998 में संस्कार भारती द्वारा रंगमंच के क्षेत्र में सम्मान व एवार्ड
1999 में किसान मेला गोरखपुर में बेस्ट फोटो कवरेज के लिए चौधरी चरण सिंह एवार्ड
2002 ; 2003 . 2005 आजमगढ़ महोत्सव में एवार्ड
2012- 2013 में सूत्रधार संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
2013 में बलिया में संकल्प संस्था द्वारा सम्मान चिन्ह
अन्तर्राष्ट्रीय बाल साहित्य सम्मेलन, देवभूमि खटीमा (उत्तराखण्ड) में 19 अक्टूबर, 2014 को “ब्लॉगरत्न” से सम्मानित।
प्रदर्शनी – 1982 में ग्रुप शो नेहरु हाल आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो चन्द्र भवन आजमगढ़ 1983 ग्रुप शो नेहरु हल 1990 एकल प्रदर्शनी नेहरु हाल 1990 एकल प्रदर्शनी बनारस हिन्दू विश्व विधालय के फाइन आर्ट्स गैलरी में 1992 एकल प्रदर्शनी इलाहबाद संग्रहालय के बौद्द थंका आर्ट गैलरी 1992 राष्ट्रीय स्तर उत्तर – मध्य सांस्कृतिक क्षेत्र द्वारा आयोजित प्रदर्शनी डा देश पांडये आर्ट गैलरी नागपुर महाराष्ट्र 1994 में अन्तराष्ट्रीय चित्रकार फ्रेंक वेस्ली के आगमन पर चन्द्र भवन में एकल प्रदर्शनी 1995 में एकल प्रदर्शनी हरिऔध कलाभवन आजमगढ़।

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