{डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी**,,}
आज सुलेमान कुछ जल्दी में था। मेरे लेखन कक्ष में घुसते ही बोला डियर कलमघसीट बन्द करो लिखना/पढ़ना और तैयारी शुरू कर दो कश्मीर, मुम्बई, दिल्ली चलने की। कहना पड़ा क्यों भाई सुलेमान आखिर यह सब क्या बड़बड़ा रहे हो? वह तुनक कर बोला मियाँ कलमघसीट अब तक जब भी कोई गम्भीर लेख लिखते रहे उनमें सर्वप्रथम मुल्क के अवाम के ऊपर महँगाई की मार ही मुख्य विषय वस्तु रहा करती होगी। अब देखो जनाब फारूख अब्दुल्ला का क्या कहना है कि देश का एक व्यक्ति एक रूपए में भरपेट भोजन कर सकता है। वहीं काँग्रेस के दो नेताओं राजबब्बर एवं रशीद मसूद ने कहा कि मुम्बई में 12 रूपए और दिल्ली में 5 रूपए में क्रमशः भरपेट भोजन खाया जा सकता है।
अब इन नेताओं के बयानों की सच्चाई जाननी है तो कश्मीर, मुम्बई और दिल्ली तक का सफर तो करना ही पड़ेगा। बेहतर होगा कि गरीबों का मजाक उड़ाने वालों के बयानों की सच्चाई पता लगा ली जाए। यदि उनके बयान सच्चे हैं तब यहाँ रहकर महँगाई/गरीबी आदि का रोना क्यों रोया जाए? सुलेमान की बात सुनकर कहना पड़ा यार बैठ जावो थोड़ा हम दोनों इस तरह के बयानों पर चर्चा कर लें। मियाँ सुलेमान ने सामने की कुर्सी पर बैठकर कहा कि चल यार अब तुम्हीं शुरू हो और इन बयानबाजों के बारे तफशीली जानकारी दो। मैंने सुलेमान से मुखातिब होते हुए कहा डियर पहले इन बयानबाजों के बारे में जान लिया जाए। राजबब्बर नेता/साँसद बनने से पहले अभिनेता थे।
क्या समझे? जनाब बब्बर मूलतः फिल्म अभिनेता हैं, इन्हें जमीनी हकीकत का अन्दाजा ही नही है। जननेता तो बन गए लेकिन मुम्बई में 12 रूपए में भरपेट भोजन मिलने की बात कह कर उन्होंने सिद्ध कर दिया कि वह अभिनेता से नेता तो जरूर बन गए हैं, लेकिन जमीनी हकीकत और सामाजिक सरोकारों से उनका दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं है। यह तो रही अभिनेता से नेता बने साँसद राजबब्बर की बात। इतना कहकर थोड़ा रूकता हूँ- इसी दौरान सुलेमान बोल उठा यार मियाँ कलमघसीट जो कुछ भी कहना है उसे जल्दी कह डालो। देखो कितनी उमस है, ऊपर से बिजली नदारद। हम जैसे आम आदमी का जीना दुश्वार हो गया है। मैंने उसकी बात सुनकर एक हाथ का पंखा ‘हैण्ड फैन‘ पकड़ा दिया, वह अपने गमछे से पसीना पोंछकर हाथ से हैण्ड फैन चलाकर हवा करने लगता है।
मेरा ब्रेक समाप्त होता है और मैं फिर से सुलेमान से मुखातिब होकर महँगाई, गरीबी, सस्ता भोजन और अप्रत्याशित बयानबाजों के बारे में शुरू हो जाता हूँ। तो मियाँ सुलेमान अभी तक तो आपने जनाब राजबब्बर साहिब के बारे में सुना जो मूलतः अभिनेता हैं। अब उनकी सुनिए जो मूलतः नेता हैं। मसलन जनाब रशीद मसूद और फारूख अब्दुल्ला जैसे नेता यदि यह कहें कि 5 और 1 रूपए में भरपेट भोजन किया जा सकता है तो यह बयान अप्रत्याशित एवं घोर आश्चर्य चकित करने वाला कहा जा सकता है। क्योंकि ये दोनों नेता हैं इन्हें अवाम की हर आम खास मसायल का एहसास और तजुर्बा भी है। लेकिन ये लोग भी बब्बर साहब जैसा ही बयान देकर यह साबित कर रहे हैं कि देश के वर्तमान नेता विशेष रूप से शासक दल के नेता संवेदनहीन हो गए हैं साथ ही इनका जनसरोकारों से कोई ताल्लुक नहीं हैं। ऐसे खफतुलहवाश नेता गरीबों का मजाक उड़ाने लगे हैं।
मेरी इतनी बात सुनकर सुलेमान ने कुर्सी पर से छलाँग सा लगाया और थोड़ा दूर खड़ा होकर बोला यार कलमघसीट अच्छा यह बताओ कि इन नेताओं ने अपने महलों में कुत्ते तो अवश्य ही पाल रखे होंगे, साथ ही इनके पेट्स ए.सी. में रहते होंगे, इन कुत्तों पर प्रतिदिन कितना खर्च आता होगा क्या इसका हिसाब किताब इनके पास होगा? शायद नहीं। यह नेता गरीबों को इंसान समझते ही नहीं। एक बात और आने वाले पार्लियामेण्ट इलेक्शन 2014 के मद्देनजर ये नेता गरीबों का वोट पाने की गरज से मुट्ठी भर अनाज देने के लिए खाद्य सुरक्षा बिल सदन में प्रस्तुत करते हैं। यह बिल भी गरीबों का वोट खरीदने के लिए ही है, ताकि इसके जरिए ये फिर से सत्ता की कुर्सी पर काबिज हो सकें।
सुलेमान की बातें सुनकर मैं अवाक् रह गया। इतनी सटीक बात सुलेमान तो मुझसे भी अधिक जानता है। मैंने कहा मियाँ सुलेमान आवो यार कुर्सी पर बैठो। सुलेमान कुर्सी पर बैठ गया। मैंने कहा अब बताओ क्या अब भी कश्मीर, मुम्बई, दिल्ली चलने का इरादा है। वह बोला नहीं यार जेब में इतने पैसे नहीं हैं कि गरीबों का मजाक उड़ाने वाले नेताओं के बयानों की पुष्टि के लिए दूर जाऊँ। जो तुमने कहा और जो मैंने कहा दोनों ठीक है। बस समझो कि नेताओं के वक्तव्यों की पुष्टि हो गई। इसी बीच बिजली आ जाती है और पंखा इस कदर चलने लगता है जैसे रेंग रहा हो।
सुलेमान हैण्डफैन चलाते हुए बोला मियाँ कलमघसीट देख रहे हो इस राज में क्या हो रहा है? अभी कल की ही बात है अधिशाषी अभियन्ता ने पूंछने पर बताया कि 12 हजार वोल्टेज के सापेक्ष मात्र 7 हजार वोल्ट बिजली मिल रही है जिसे वह इस शहर के वासिन्दों में आपूर्ति करा रहे हैं। मैंने कहा डियर सुलेमान कुछ सूबे की सरकार के बारे में बोल डालो। वह बोला क्या बोलूँ कुछ भी ऐसा नहीं जिस पर बोला जाए। बस आइन्दा होने वाले इलेक्शन का रिजल्ट देखना सारी गप्पबाजी और नेतागीरी धरी की धरी रह जाएगी।
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*डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी (वरिष्ठ पत्रकार/टिप्पणीकार) अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.)
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*लेखक स्वतंत्र पत्रकार है
*लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।