**गठबंधन सरकार की संभावनाओं को लिए उत्तर प्रदेश चुनाव

**निर्मल रानी
                उत्तर प्रदेश में हो रहे विधानसभा चुनावों के समापन की ओर बढ़ने के साथ-साथ प्रदेश में संभावित सरकार के स्वरूप को लेकर भी तरह-तरह की अटकलबाçज़यां व चर्चाएं शुरु हो गई हैं। मीडिया विश्र£ेषक, पत्रकार यहां तक कि लगभग सभी राष्ट्रीय व क्षेत्रीय दलों के नेता स्वयं किसी न किसी अंदाज़ से यह स्वीकार कर रहे हैं कि उत्तर प्रदेश विधानसभा अपने इस नए निर्वाचन अर्थात् 16वीं विधानसभा सं ावतज् किसी भी party की पूर्ण बहुमत वाली सरकार नहीं देख सकेगी। हां निश्चित रूप से बहुजन समाज party सत्ता में होने, जाति आधारित समीकरण की राजनीति करने तथा अपनी क्षमता के अनुरूप पूरे दम$खम के साथ चुनाव प्रबंधन करने के चलते अत्यधिक आत्मविeास में ज़रूर है तथा पूर्ण बहुमत में सत्ता में पुनज्वापसी का दावा पेश कर रही है। इस बीच बयानबाज़ी में कभी भी अपने को हारता न दर्शाने वाले यहां तक कि अपने आप को किसी से स्वयं को कम न समझने वाले नेतागण अपनी party के कार्यकर्ताओं तथा मतदाताओं को हेकड़ी भरे संदेश देने से भी चूक नहीं रहे हैं। गोया कि भीतरी तौर पर चुनाव परिणामों की वास्तविकता का अंदाज़ा लगाने के बावजूद भी पूर्ण बहुमत से अपनी सरकार बनाने की बातें कर रहे हैं।
                ऐसे में सवाल यह है कि देश के इस सबसे बड़े राज्य में यदि किसी एक दल को बहुमत प्राप्त नहीं होता है तो वहां अगली सरकार के गठन में कौन-कौन से राजनैतिक दल शामिल हो सकते हैं। हालांकि वर्तमान चुनावी महासमर में सभी राजनैतिक दलों के नेता एक-दूसरे पर जमकर निशाना साध रहे हैं। यहां तक कि चुनाव प्रचार में कुछ ऐसे व्यवहार व अमर्यादित बयान भी सुने व देखे जा रहे हैं जिन्हें देखकर तो ऐसा ही प्रतीत होता है कि इनमें से कोई भी राजनैतिक दल किसी दूसरे दल के साथ मिलकर शायद ही सरकार चला सके। परंतु निश्चित रूप से यदि चुनाव परिणामों के बाद किसी एक दल को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ तो गठबंधन सरकार का गठन करना ही एकमात्र विकल्प रह जाता है। अन्यथा विधानसभा भंग कर पुनज्चुनाव कराए जा सकते हैं। ज़ाहिर है सरकार बनाने के बजाए राजनैतिक दलों का  पुनज् चुनाव की ओर जाना न केवल प्रदेश की जनभावनाओं का अनादर होगा बल्कि इससे सरकार पर राजस्व का एक बड़ा बोझ भी पड़ेगा। अतज् किसी भी राजनैतिक दल को पूर्ण बहुमत न मिलने की स्थिति में गठबंधन सरकार बनाना ही एकमात्र विकल्ा नज़र आ रहा है। बस बहस केवल इस विषय को लेकर छिड़ी है कि बहुमत के आंकड़े 203 को छूने के लिए कौन-कौन से दल आपस में हाथ मिला सकते हैं।
                यदि निष्पक्ष रूप से प्रदेश की वर्तमान राजनैतिक स्थिति का आंंकलन करें तो जहां एक ओर बहुजन समाज party यदि राज्य में बहुमत की सरकार बनाती हुई नहीं नज़र आ रही है वहीं उसकी ओर से सत्ता में वापसी सुनिश्चित करने की $गरज़ से प्रदेश में बसपा का सबसे बढ़िया व कुशल प्रबंधन वाला चुनाव भी लड़ा जा रहा है। उधर मुलायम सिंह यादव की समाजवादी party भी प्रदेश में पिछले लोकसभा चुनावों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर रही है। इस बेहतर प्रदर्शन से उत्साहित मुलायम सिंह यादव भी यही कर रहे हैं कि समाजवादी party की ही पूर्ण बहुमत की सरकार प्रदेश में गठित होगी। लिहाज़ा सत्ता के इन दो प्रमुख दावेदारों को यदि राजनैतिक विश्र£ेषकों के अनुसार पूर्ण बहुमत नहीं भी मिला तो यह तो तय है कि पहले व दूसरे नंबर पर इन्हीं दो दलों में से कोई एक दल अर्थात् बहुजन समाज party या समाजवादी party आने जा रही है। ज़ाहिर है यदि सपा व बसपा बहुमत में नहीं आते तो इन्हें बहुमत के आंकड़े  को छूने के लिए किसी न किसी दूसरे राजनैतिक दल के सहारे की ज़रूरत पड़ सकती है। अब सवाल यह है कि कौन से दल बसपा या सपा के  साथ मिलकर सरकार बनाने के लिए गठबंधन सरकार में शामिल होना पसंद करेंगे और कौन विपक्ष में बैठना चाहेगा? यहां एक बात यह $काबिले$गौर है कि उत्तर प्रदेश विधानसभा में कई दलों की गठबंधन सरकारें बन चुकी हैं। परंतु पिछला अनुभव यही बताता है कि इन सरकारों का हश्र अच्छा नहीं रहा। सहयोग व विeास की पूरी कमी देखी गई। यहां तक कि विधानसभा में हिंसा के ऐसे तांडव देखे गए जिन्होंने उत्तर प्रदेश विधानसभा के इतिहास को भी कलंकित किया।
                दूसरी बात यह कि जैसा कि कहा जाता है कि दिल्ली दरबार का रास्ता उत्तर प्रदेश से होकर ही जाता है, ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश के राजनेताओं को भी यह बात भलीभांति मालूम है। इसीलिए प्रदेश की राजनीति में सक्रिय सभी राजनैतिक दलों विशेषकर कांग्रेस-भाजपा,बसपा व सपा जैसी पाटिüयों का यही प्रयास रहता है कि किसी भी प्रकार से वे कमज़ोर न पड़ने पाएं तथा मतदाताओं को उन्हें कम आंकने का कोई अवसर न मिले। उनकी पकड़ मतदाता, सत्ता, शासन-प्रशासन पर पूरी बनी रहे। इसी के साथ-साथ यही नेता यह भी चाहते हैं कि वे अपने प्रतिद्वंद्वी राजनीतिज्ञ को अधिक से अधिक नीचा दिखाएं, बदनाम करें, उनपर आक्षेप लगाएं ताकि मतदाताओं के मध्य उनके व उनकी party को कमज़ोर साबित किया जा सके। इस प्रकार की राजनीति केवल प्रदेश की कुरसी को ही ध्यान में रखकर नहीं की जाती बल्कि ऐसा करने कर म$कसद अपने दिल्ली के रास्ते को भी हमवार करना रहता है। ज़ाहिर है उत्तर प्रदेश देश का एक मात्र ऐसा सबसे बड़ा राज्य है जहां 80 लोकसभा की सीटें हैं तथा 403 सदस्यों की विधानसभा इस राज्य में संचालित होती है। ऐसे में प्रत्येक राजनैतिक दल की यही कोशिश होती है कि किसी भी प्रकार से उसकी अपनी अकेली पकड़ राज्य की सत्ता व व्यवस्था पर पूरी तरह बनी रहे।
                परंतु ज़ाहिर है जब मतदाता किसी भी सरकार को पूर्ण बहुमत का निण्üाय नहीं देंगे तो गठबंधन सरकार बनने के रास्ते तो स्वयं सा$फ हो जाएंगे ऐसे में सवाल यह है कि क्या बहुजन समाज party को सरकार में पुनज् बने रहने के लिए कोई राजनैतिक दल समथüन दे सकता है? यदि बहुजन समाज party के सपा व भाजपा के साथ हुए गठबंधन सरकार चलाने के पिछले समझौतों व इतिहास में दर्ज़ उन दुष्परिणामों पर नज़र डालें तो पहली नज़र में तो यही दिखाई देता है कि कोई भी party मायावती के नेतृत्व में पुनज् सरकार बनाना $कतई नहीं चाहेगी। हालांकि राजनीति में किसी भी प्रकार की संभावनाओं को नकारा भी नहीं जा सकता। अब जहां तक दूसरे विकल्प का प्रश्र्न है तो यदि सपा व कांग्रेस दोनों मिलकर पूर्ण बहुमत के आंकड़े तक पहुंच जाते हैं तो क्या इन दो दलों के बीच गठबंधन होना संभावित है? ज़ाहिर है सांप्रदायिक शक्तियों को सत्ता में आने से रोकने के म$कसद से कांग्रेस व समाजवादी party राज्य में गठबंधन सरकार बना सकते हैं। चूंकि केंद्र में भी समाजवादी party द्वारा संप्रग सरकार को समर्थन दिया जा रहा है। इस वजह से भी इस बात की संभावना प्रबल है कि सपा व कांग्रेस मिली-जुली सरकारों का गठन करें। उधर राजनैतिक अस्पृश्यता के दौर से गुज़रने वाली भारतीय जनता party को राज्य में अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए भी यही ज़रूरी होगा कि वह भी सत्ता के मोह में फंसने के बजाए अपनी इÊज़त-आबरू बचाते हुए विपक्ष में ही बैठे तथा भविष्य में घटित होने वाले संभावित गठबंधन सरकार के संभावित राजनैतिक तमाशों को देखे। वैसे भी भारतीय जनता party उत्तर प्रदेश में अपने अंतçर्वरोधों के चलते अपेक्षित परिणाम शायद न ला सके। क्योंकि राज्य में भाजपा के बड़े नेता जहां मध्यप्रदेश से आयातित नेत्री उमा भारती को नहीं हज़म कर पा रहे हैं वहीं पूवीü उत्तर प्रदेश में भाजपा सांसद एवं party के $fire ब्रांड नेता आदित्यनाथ योगी ने अपना अलग क्षेत्रीय दल गठित कर party को कमज़ोर करने का काम शुरु कर दिया है।
                अब ऐसे में पुनज्एक प्रश्र्न यह उठता है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर गठित होने वाली कांग्रेस व सपा की संभावित सरकार क्या राज्य को टिकाऊ शासन दे पाएगी? या फिर सरकार का गठन होते ही 2 वर्ष बाद होने वाले लोकसभा चुनावों को मद्देनज़र रख़ते हुए दिल्ली की सत्ता के इन दोनों दावेदारों के मध्य रस्साकशी शुरू हो जाएगी? दरअसल कांग्रेस एवं समाजवादी party के बीच सियासत की जंग उस दूरगामी लक्षय क ो लेकर है जिसमें कि कांग्रेस party प्रदेश की सत्ता पर अपनी पकड़ मज़बूत कर तथा राज्य से अधिक से अधिक सांसदों को जिताकर अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने व राहुल गांधी को उसी पूर्ण बहुमत वाली कांगेस सरकार का प्रधानमंत्री बनाए जाने की ç$फ़राक़ में है। तो दूसरी ओर मुलायम सिंह यादव भी चौधरी चरण सिंह वीपी सिंह तथा चन्द्रशेखर की ही तरह किसी एक ऐसे केंद्रीय समीकरण की तलाश में है जो उन्हें दिल्ली दरबार की गद्दी तक पहुंचा सके। सत्ता संघर्ष में लगे राजनैतिक दलों के इन्हीं सशक्त प्रयासों ने उत्तर प्रदेश को गठबंधन सरकार के गठन की संभावनाओं के द्वार तक पहुंचा दिया है।

**निर्मल रानी
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer)
1622/11 Mahavir Nagar
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Haryana
phone-09729229728

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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