{निर्मल रानी**}
पिछले दिनों देश के प्रसिद्ध तथाकथित संत एवं उपदेशक आसाराम पर पूरे देश के मीडिया का ध्यान लगा रहा। कारण सर्वविदित हो चुका है कि आसाराम पर आरोप है कि उन्होंने अपने ही एक शिष्य की नाबालि$ग पुत्री का यौन शोषण किया। इस प्रकार के यौन शोषण संबंधी आरोप आसाराम पर पहले भी लगते रहे हैं। एक संतरूपी व्यक्ति का यौन शोषण के आरोप में गिर$फ्तार किया जाना हमारे देश की कोई नई घटना नहीं है। और भी कई स्वयंभू संत,मौलवी,पादरी,जैन मुनि व ज्ञानी भाई जैसे तथाकथित धर्मगुरु पहले भी यौन शोषण, हत्या, ज़मीनों पर नाजायज़ $कब्ज़े जैसे विभिन्न अपराधों में आरोपी रह चुके हैं। मीडिया में प्राय: इस बात को लेकर बहस छिड़ती रहती है कि आ$िखर दूसरों को उपदेश व प्रवचन देने वाले ऐसे तथाकथित संत स्वयं आपराधिक व अनैतिक गतिविधियों में क्योंकर शामिल पाए जाते हैं। जिन तथाकथित संतों को उनके अंंधभक्त शिष्य भगवान का दर्जा देने लग जाते हों, जिनके चित्र उनके अनुयायी अपने घरों के मंदिरों में, घर की दीवारों यहां तक कि अपने गले के लॉकेट में तथा जेब में रखने लगते हों ऐसे ‘पूज्य’ संतों की विभिन्न अपराधों में संलिप्तता के समाचार मिलने के बाद उनके शिष्यों व अनुयाईयों पर आ$िखर क्या गुज़रती होगी? क्या ऐसे अपराधी व सांसारिक एवं व्याभिचारी तथा लालची प्रवृति के व्यक्ति का साधू वेश अथवा उपदेशक या प्रवचन कर्ता का रूप धारण करना उचित है? क्या हमारे समाज को ऐसे ढोंगी,पापी व अपराधी लोगों को धर्मगुरु का दर्जा देकर उन्हें सिर पर बिठाना चाहिए? और इन सबसे बड़ा प्रश्र यह है कि धर्म प्रचारक बने बैठे यह स्वयंभू संत धर्म की इज़्ज़त बढ़ा रहे हैं अथवा अपनी भूमिका उसे बदनाम करने में अदा रहे हैं?
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