तनवीर जाफ़री *
प्रेस कौंसिल ऑफ़ इंडिया के वर्तमान अध्यक्ष एवं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू आमतौर पर अपनी स्पष्टवादिता तथा बेलाग-लपेट के की जाने वाली टिप्पणियों के लिए हमेशा सुर्खियों में रहे हैं। न्यायाधीश रहते हुए भी उनकी कई टिप्पणीयां व कई ऐसे निर्णय सामने आए जिन्होंने आम लोगों का ध्यान जस्टिस काटजू की ओर आकर्षित किया। वही जस्टिस काटजू आज के समय में जबकि वे भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष हैं अपने स्वभाव के अनुसार ऐसे वक्तव्य देते रहते हैं या लेख आदि लिखते रहते हैं जिनमें भले ही वास्तविकता क्यों न नज़र आती हो परंतु जिस किसी के हित उनके आलेख या वक्तव्य से प्रभावित होते हैं, स्वाभाविक रूप से वे उनकी टीका-टिप्पणी या लेखों को पसंद नहीं करते। जैसाकि पिछले दिनों देखने को भी मिला।देश के प्रतिष्ठित अंग्रेज़ी समाचार पत्र ‘द हिंदू’ में प्रकाशित हुए उनके एक आलेख ने भारतीय जनता पार्टी में कोहराम बरपा कर दिया। हालांकि जस्टिस काटजू देश में कहीं भी दिखाई दे रही अनियमितताओं, प्रशासनिक या संवैधानिक गड़बडिय़ों या प्रेस संबंधी त्रुटियों,ज़्यादतियों या प्रेस द्वारा बरती जा रही गैर जि़म्मेदारियों या अनैतिकताओं के प्रति खुलकर अपने विचार व्यक्त करते रहे हैं। जस्टिस काटजू के आलोचकों का कहना है कि उन्हें अपने पद की गरिमा के मद्देनज़र पद की सीमाओं में रहते हुए अपने विचार व्यक्त करने चाहिए तथा विवादित बयान देने से गुरेज़ करना चाहिए। इस पर जस्टिस काटजू का मानना है कि वे किसी भी पद पर बैठने के साथ-साथ एक भारतीय नागरिक भी हैं तथा एक संवेदनशील इंसान भी। लिहाज़ाख़ामोश रहकर ज़्यादतियों,बुराईयों या अनियमितताओं को देखते रहना या उसे सहन करना अथवा उसके विरुद्ध आवाज़ बुलंद न करना यहां तक कि ऐसे मामलों की आलोचना भी न करना एक संवेदनशील इंसान के वश की बात नहीं है। लिहाज़ा उनकी बातें या उनके बयान अथवा आलेख आदि एक संवेदनशील भारतीय नागरिक व एक इंसान की अभिव्यक्ति के रूप में देखे जाने चाहिए।
जस्टिस मार्कंडेय काटजू को लेकर भारतीय जनता पार्टी की ओर से उनके द हिंदू में प्रकाशित आलेख पर जो सवाल उठाए जा रहे हैं उस आलेख में काटजू ने गुजरात की नरेंद्र मोदी सरकार की कई मोर्चों पर खुलकर आलोचना की है। उन्होंने गुजरात के विकास का ढिंढोरा पीटे जाने को वहां की धरातलीय स्थिति के विपरीत बताया है। उन्होंने लिखा है कि वहां विकास के जो दावे किए जा रहे हैं वे बिल्कुल झूठे हैं। क्योंकि गुजरात में आज भी 48 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं तथा राज्य में शिशु मृत्यु दर का अनुपात अन्य राज्यों से बहुत अधिक है। उनका कहना है कि चंद औद्योगिक घरानों को सस्ती ज़मीनें मुहैया कराकर या उन्हें सुविधाएं देकर राज्य के समग्र विकास की बात नहीं की जा सकती।
अपने लेख में उन्होंने यह भी कहा कि गुजरात में 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगे एक सुनियोजित षड्यंत्र थे। वे दंगों को गोधरा ट्रेन हादसे की प्रतिक्रिया बताए जाने की बात को भी पूरी तरह $खारिज करते है। जस्टिस काटजू ने नरेंद्र मोदी की तुलना जर्मन तानाशाह हिटलर से करते हुए देश के लोगों से यह अपील भी की है कि वे ऐसी $गलती न करें जो 1933 में जर्मनवासियों ने(हिटलर को चुनकर) की थी। उन्होंने गुजरात दंगों की भयावहता व क्रूरता की चर्चा करते हुए लिखा है कि विकास का ढोल पीटकर क्रूरता का पाप नहीं छुपाया जा सकता। उन्होंने गोधरा हादसे पर भी सवालिया निशान खड़ा करते हुए लिखा है गोधरा कांड अभी तक एक रहस्य बना हुआ है। जस्टिस काटजू यह मानने को तैयार नहीं कि गुजरात दंगों में मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का हाथ नहीं था। जस्टिस काटजू ने अपने लेख में नरेंद्र मोदी व उनकी कार्यशैली व गुजरात की वास्तविकता के विषय में और भी तमाम बातें लिखी हैं। उनका यह लेख नरेंद्र मोदी को भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने की चर्चा के बीच प्रकाशित हुआ है जिस में उन्होंने देश की जनता से यह अपील भी की है कि वे सोच-समझ कर अपना प्रधानमंत्री चुनें।
ज़ाहिर है नरेंद्र मोदी व भारतीय जनता पार्टी को आईना दिखाने वाला जस्टिस काटजू का यह लेख भाजपाईयों के गले की फांस बन गया है। और पार्टी नेताओं द्वारा सवाल यह उठाया गया कि एक अर्धसंवैधानिक पद पर रहते हुए जस्टिस काटजू ने ऐसा लेख क्यों लिखा? उन पर भाजपा नेताओं ने यह आरोप भी लगाया कि वे कांग्रेस पार्टी द्वारा उन्हें भारतीय प्रेस परिषद का अध्यक्ष बनाए जाने का शुक्रिया अदा करने हेतु कांग्रेस की भाषा में अपने विचार व्यक्त कर रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता व राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष अरुण जेटली ने तो उनके त्यागपत्र की मांग कर डाली है और उनके द्वारा त्यागपत्र न दिए जाने की स्थिति में सरकार से उनको हटाए जाने की मांग की है। जस्टिज काटजू ने भी अरुण जेटली पर जवाबी हमला करते हुए यह कहा है कि अरुण जेटली बातों को घुमा-फिरा कर पेश किया करते हैं। वे राजनीति के लिए बिल्कुल उपयुक्त व्यक्ति नहीं है। लिहाज़ा उन्हें राजनीति छोड़ देनी चाहिए। उन्होंने जेटली पर निशाना साधते हुए यह भी कहा कि वे नरेंद्र मोदी के प्रति इसलिए ज़्यादा व फादारी दिखा रहे हैं क्योंकि मोदी ने ही उन्हें गुजरात से राज्यसभा के लिए निर्वाचित कराया था। यहां एक बात फिर से याद दिलाता चलूं कि जस्टिस मार्कंडेय काटजू की पृष्ठभूमि एक अति प्रतिष्ठित एवं बुद्धिजीवी परिवार की है। उनके दादा कैलाशनाथ काटजू मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री थे तो पिता शिवनाथ काटजू इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायधीश रह चुके हैं। जस्टिस शिवनाथ काटजू की दिलचस्पी धर्म,संस्कृति एवं इतिहास में भी बहुत अधिक थी। विश्व हिंदू परिषद उन्हें अपनी संस्था का अंतर्राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बना चुकी है। इसलिए जस्टिस मार्कंडेय काटजू पर कांग्रेस की भाषा बोलने का आरोप लगाना मुनासिब नहीं लगता।
परंतु राजनीति में आमतौर पर ऐसा देखने को मिलता है कि जब किसी व्यक्ति की कोई बात किसी एक पक्ष के मुआफ़िक़ नहीं होती तो वह पक्ष उस व्यक्ति को दूसरी विचारधारा या दृष्टिकोण से प्रेरित या ग्रसित बता दिया करता है। चाहे वह भाजपा की नीतियों के विरुद्ध लिखे जाने वाले लेखकों के आलेख हों या जस्टिस मार्कंडेय काटजू की आईना दिखाने वाली बातें। भाजपाईयों व इनके अन्य सक्रिय संगठनों द्वारा पलक झपकते ही यह आरोप लगा दिया जाता है कि यह कांग्रेसी है या कांग्रेस का दलाल।यदि आप इन्हें सांप्रदायिक कहें, कट्टरवादी कहें तो इस संगठन के लोग आपको ही कांग्रेसी,देशद्रोही, राष्ट्रविरोधी या जो इनके मुंह में आए कह देते हैं। तमाम वेबसाईटस पर तो इनके चेले-चपटे असंसदीय भाषा का प्रयोग करते हैं यहां तक कि अपने आलोचकों को मां-बहन की गालियां तक देते रहते हैं। टेलीविज़न पर भी प्राय: जब इन दक्षिणपंथी ताकतों के लेाग बहस में हिस्सा लेते हैं उस समय भी यह दूसरों को बोलने का अवसर नहीं देना चाहते तथा टीवी पर भी कई बार आक्रामक मुद्रा धारण कर लेते हैं। इस विचारधारा के लोगों का व इनके नेताओं का जवाब तर्क आधारित होने के बजाए आमतौर पर दूसरों पर लांछन लगाने वाला ही होता है। गोया आप कांग्रेसी हैं इसलिए ऐसा लिख रहे हैं या बोल रहे हैं।
दरअसल किसी भी बात का जवाब तर्कों,वास्तविकताओं, या विषय की धरातलीय स्थिति को ध्यान में रखकर दिया जाना चाहिए। बजाए इसके कि आप यह कहें कि उसने यह बात क्यों कही या उसे यह बात इसलिए नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि वह अमुक पद पर बैठा हुआ है। चिंतन इस बात को लेकर होना चाहिए कि किसी ने ‘क्या कहा है’ बजाए इसके कि उसने क्यों कहा है।
जस्टिस काटजू यदि कांग्रेसी हैं या कांग्रेस की भाषा बोल रहे हैं तो अभी पिछले ही दिनों अमेरिका ने नरेंद्र मोदी को अमेरिका का वीज़ा न देने की बात क्यों दोहराई है? क्या अमेरिका कांग्रेसी है? जस्टिस काटजू कांग्रेस की भाषा बोलते हुए यदि नरेंद्र मोदी को दंगों का जि़म्मेदार मान रहे हैं तो वह कांग्रेसी हैं परंतु अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री होते हुए जब गुजरात दंगों के समय नरेंद्र मोदी को राजधर्म निभाने की सलाह दी थी तो वह क्या थे? क्या वाजपेयी जी भी कांग्रेसी थे? आज भी गुजरात से संबंधित तमाम ऐसे मामले सुनाई दे रहे हैं जिन्हें सुनकर पता चलता है कि नरेंद्र मोदी गुजरात में अल्पसंख्यकों के प्रति कितनी बेरुखी़ बरत रहे हैं तथा वे लोग किस कद्र उपेक्षा के शिकार हैं। परंतु मोदी बड़ी चतुराई के साथ 9 करोड़ गुजरातियों की बात कहकर अपने गुप्त एजेंडे पर पर्दा डाल जाते है। जस्टिस काटजू ने नरेंद्र मोदी के लिए न तो कोई नई बात कही है और न ही यह बातें पहली बार कही गई हैं। ऐसी बातें पहले भी हो चुकी हैं और भविष्य में भी की जाती रहेंगी। अत: भाजपाई नेताओं को अथवा उनके समर्थक संगठनों को बातें ‘क्यों’ कही जा रही हैं के बजाए सिर्फ यह देखना चाहिए कि इन बातों में क्या कहा जा रहा है। और ऐसे क्या उपाय किए जा सकते हैं जिनसे कि ऐसी बातें बार-बार दोहराई न जाएं।
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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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