इन दिनो एक बार फिर दिल्ली का ‘आम आदमी’ चर्चा मेँ है। आम आदमी के तथाकथित सर्वे सर्वा और आम आदमी की सरकार के मुखिया अरविंद केजरीवाल एक बार फिर ‘धरनागिरी’ और सड़क छाप राजनीति करने के लिये बाध्य नज़र आ रहे हैँ। वैसे तो दिल्ली की पुरानी आबो हवा ने कई इतिहास बनते और रचते देखे हैँ लेकिन फिलहाल जिस घटना के चश्मदीद हम सभी बन रहे हैँ वो अपने आप मेँ अद्भूत है।
दिल्ली के इतिहास में पहली बार दिल्ली के मुख्यमंत्री अपने पूरे कैबिनेट और विधायकों के साथ रेल भवन पर धरना दे रहे हैं। केजरीवाल अपने दो मंत्री सोमनाथ भारती और राखी बिड़ला के कहने पर कार्रवाई नहीं करने वाले दिल्ली पुलिस के एसीपी और तीन एसएचओ को निलंबित करने की मांग कर रहे हैं। इस मांग पर कार्यवाही हेतु उन्होंने गृह मंत्रालय को अल्टीमेटम भी दे दिया है।
हालात ऐसे हो गये हैँ कि आज दिल्ली सरकार और दिल्ली पुलिस आमने-सामने है। केजरीवाल सरकार ड्रग माफिया और सेक्स रैकेट चलाने वाले लोगों और राजधानी में महिला को जलाने वाले लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करने वाले एसीपी और एसएचओ को सस्पेंड करने की मांग पर अड़ी हुई है।
वैसे तो एक ओर अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा कि महिला सुरक्षा के मुद्दे पर में अपने सभी मंत्री और विधायकों के साथ गृहमंत्रालय के बाहर धरने पर बैठूंगा। गणतंत्र दिवस की तैयारियों के चलते मैं आम जनता से अपील करता हूं कि कोई भी धरने पर न आए। लेकिन क्या हक़िक़त मेँ ऐसा हो सका? कल से रेल भवन का पूरा हिस्सा आम आदमी पार्टी के समर्थकोँ से पटा हुआ है। लाखोँ की संख्या मेँ स्त्री पुरूष इस धरने मेँ शामिल होने के लिये पहुँच रहे हैँ। लेकिन मुद्दा ये है कि आखिर ‘आप’ एक बार फिर ‘धरने प्रदर्शन’ के लिये क्योँ खड़ा हुआ? जो केजरीवाल लोकपाल के मुद्दे पर अन्ना हज़ारे से ये कहकर अलग हुए थे कि सिर्फ धरनो और प्रदर्शनोँ से कुछ हासिल नहीँ होगा हमेँ सिस्टम मेँ घुस कर बदलाव लाने होंगे, तो आखिर आज क्योँ वही केजरीवाल अपने साथियोँ के साथ रेल भवन पर धरना कर रहे हैँ?
केजरीवाल और ‘आप’ के क़ामयाबी के ग्राफ़ का सारा देश गवाह है। एक मामूली प्रदर्शनकारी समूह से एक राजनीतिक दल मेँ तब्दिल होना और फिर जनता के असीम प्यार और समर्थन के बाद दिल्ली मेँ सरकार का गठन करना किसी भी सूरत मेँ कम नहीँ आँका जा सकता है। लेकिन फिर भूल कहाँ हुई? कमी क्या रह गई?
जिस सिस्टम के भीतर पहुंच कर सिस्टम बदलने की मंशा लिये ये दल चला था उस दल की दिशा फिर धरना और प्रदर्शन क्यूँ हो गई? क्या आज हमारे नेता और मुख्यमंत्री आम शिष्टाचार की भाषा भी भूल चुके हैँ? क्योँ देश के गृहमंत्री के लिये केजरीवाल इतनी अभद्र लहजे मेँ बोल रहे हैँ? सवाल कई हैँ और जवाब फिलहाल कुछ नहीँ है।
वैसे जिस मुद्दे को लेकर ये सारा घटनाक्रम चल रहा है उस मामले मेँ गृह मंत्री से मिलने से पहले सोमनाथ भारती और राखी बिड़ला मामले में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल उपराज्यपाल से मीटिंग कर चुके है। जिसमें दिल्ली पुलिस कमिश्नर बीएस बस्सी भी शामिल थे। इस मीटिंग के बाद उपराज्यपाल और दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने सरकार से दो टूक में पुलिस वालों के खिलाफ कार्रवाई करने से मना कर दिया था। हालांकि उपराज्यपाल ने रिटायर जज से इस मामले की तीस दिन में जांच कराने की घोषणा की थी। यहां तक कि उपराज्यपाल ने भी केजरीवाल को धरना नहीं करने की हिदायत दी। लेकिन दिल्ली सरकार पुलिस अधिकारियों को निलंबित करने पर अड़ी रही। वहीं गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे का कहना है कि मामले की जांच हो रही है इसलिए अरविंद केजरीवाल सब्र रखें।
लेकिन एक बात तो साफ़ है कि सिर्फ सड़कों पर धरना देने भर से सरकार नहीं चला करती हैं।
केजरीवाल को दिल्ली पुलिस के काम करने के तरीके में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। जो मुख्यमंत्री एक ब्यूरोक्रेट से एक्टीविस्ट और फिर नेता बने उनेँ तो कमसेकम इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि सरकार सड़क पर धरना देने से नहीं चलती हैं, बल्कि सचिवालय में काम करने से चलती हैं। सभी को भ्रष्ट और निकम्मा कहना क्या उचित है?
गौरतलब है कि कानून मंत्री सोमनाथ भारती द्वारा कथित सेक्स और ड्रग्स रैकेट पर कार्रवाई न करने वाले अधिकारियों को सस्पेंड किए जाने की मांग को लेकर मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने गृह मंत्रालय के बाहर विरोध प्रदर्शन का ऐलान किया था। लेकिन सोमवार को वहां जाने से रोके जाने पर वे अपने समर्थकों के साथ रेल मंत्रालय के बाहर धरने पर बैठ गए। छापा मारने से इन्कार करने वाले दिल्ली पुलिस के कुछ अधिकारियों के निलंबन की मांग को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के धरना-प्रदर्शन पर विरोधियों ने जमकर हमला बोला है।
लेकिन अगर मुख्यमंत्री को सिर्फ़ इस धरनो मेँ ही आनंद आता है तो ऐसे कई मुद्दे हैँ जिस पर वह धरना दे सकते हैं। इस तरह के प्रदर्शनोँ से दिल्ली की जनता को तकलीफ हुई है। जिस आम आदमी के लिये वे लड़ रहे हैँ क्या उस आम आदमी की तकलीफ का जवाब उनकी पार्टी को नहीँ देना होगा?
ये तो हम सभी जानते हैँ कि केजरीवाल के गृह मंत्रालय के बाहर प्रदर्शन की घोषणा के मद्देनज़र सोमवार से पांच मेट्रो स्टेशन बंद कर दिए गए थे।
लेकिन आंदोलन करने और सरकार चलाने में काफी अंतर है। अगर पुलिसकर्मियों को लेकर उन्हें कोई शिकायत है तो उसका भी एक तरीका है। लेकिन अगर सरकार का मुखिया की बचकानी हरकत पर उतारु हो जाए तो जनता का क्या होगा। केजरीवाल ने उपराज्यपाल नजीब जंग से मिलकर पुलिस अधिकारियों की शिकायत की थी जिसकी न्यायायिक जांच का आदेश दिया गया है। इसकी रिपोर्ट आने से पहले ही केजरीवाल का प्रदर्शन करना उनकी मंशा पर सवाल खड़े करता है। कहीँ मुख्यमंत्री को इस बात का तो डर नहीँ सता रहा है कि रिपोर्ट में कहीं उनके कानून मंत्री को ही कसूरवार न ठहरा दिया जाए। इसलिए लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सड़क पर तमाशा कर रहे हैं।
ये तो हम सभी जानते हैँ कि हर पद की एक गरिमा होती है। केजरीवाल जी को मुख्यमंत्री पद की गरिमा को समझना चाहिए। जांच का आदेश दिया गया है। पहले यह तो पता चले कि इसमें दिल्ली पुलिस की गलती है या कानून मंत्री की। गौरतलब है कि कांग्रेस ने आप को मुद्दों पर आधारित सशर्त समर्थन दिया है। लेकिन क्या इन सब हरकतो के बाद भी कहीँ कांग्रेस उन्हें समर्थन जारी रखने पर विचार ना करने लगे।
आज जिस तरह से ‘आप’ के समर्थक बैरिकेट्स तोड़ कर पुलिस को उकसा रहे हैँ क्या उसकी वजह से खुद आम जनता और धरने पर बैठे केजरीवाल जी की सुरक्षा पर मुसीबत नहीँ आ जायेगी। ख़ुदा ना खास्ता अगर किसी आतंकी गतिविधी के चलते कोई अप्रिय घट्ना हो जाये तो इसकी ज़िम्मेवारी कौन लेगा? 26 जनवरी बस आने ही वाली है, ऐसे मेँ ख़ुफ़िया तंत्र और दिल्ली पुलिस हाई ऐलर्ट पर होती है। क्या केजरीवाल जी आम जनता के नाम पर समुचे देश की व्यवस्था और सम्मान को ताक पर रख सकते हैँ? क्यो दिल्ली के मुख्यमंत्री थोड़ा भी व्यावहारिक रूख नहीँ अपना रहे हैँ? ये समुचा आन्दोलन आज की तारिख मेँ अहम का आन्दोलन ज़्यादा नज़र आ रहा है। इस अहम की खींच तान मेँ भुगतने वाला सिर्फ आम आदमी ही होगा शायद ये हम सभी जानते हैँ, लेकिन समझ कर भी नासमझी का ढोंग करना अब हमारी मजबूरी बनती जा रही है।
आम आदमी पार्टी को दिल्ली की जनता ने अपनी आम परेशानियोँ मेँ अपना हमसफर समझ विधानसभा चुनाव मेँ अपना समर्थन और वोट दिया था। अपने चुनावी मैनीफेस्टो मेँ भी ‘आप’ ने आम समस्याओँ को ही प्रमुखता से रखा था। आज विश्वास मत प्राप्त करने के बावजूद भी केजरीवाल जी और उनका मंत्री मंडल अपने चुनावी मुद्दो को पूरा क्योँ नहीँ कर रहे हैँ? बिजली, पानी और दूसरी मूलभूत समस्याओँ को दरकिनार कर इस तरह एक घट्ना को इतना बड़ा मुद्दा बना कर आन्दोलन की शक्ल देना कहाँ की मैच्योरिटी कही जायेगी? कहीँ ऐसा तो नहीँ कि ‘आप’ की सरकार और खुद केजरीवाल अपने चुनाव पूर्व वादोँ और इरादो को पूरा नहीँ कर पा रहे हैँ और इसी नाक़ामयाबी से जनता का ध्यान हटाने के लिये कल से आन्दोलन कर रहे हैँ? सवाल कई हैँ लेकिन जवाब मेँ आज हमारे पास सिर्फ ख़ामोशी और अराजकता है।