एक तरफ किसानों के लिए कल्याणकारी योजनाएं, किसानहित सर्वोपरि की बात करने वाली प्रदेच्च सरकार के नित-नये वायदे तथा बुन्देलखण्ड को विच्चेद्गा पैकेज देने का दंभ भरने वाली केन्द्र व प्रदेच्च सरकार की घोद्गाणाएं और दूसरी तरफ वहां आए दिन किसानों द्वारा की जा रही आत्महत्याएं। कितना विरोधाभाद्गा है दोनों में। आखिर कहां जा रहा है योजानाओं का धन, कौन खा रहा है उसे, क्यों नहीं पहुंच पा रहा है सही जगह। इन ढेर सारे प्रच्च्नों की बौछार कर रही है बुन्देलखण्ड में बांदा जिले के गौच्चाला गांव के किसान ५० वद्गर्ाीय ”कल्लू गुप्ता” की आत्महत्या। किन परिस्थितियो ने मजबूर किया उसे इस कृत्य के लिए।
सूचनाओं के मुताबिक कल्लू ने अपनी बेटे तथा बेटी की द्राादी के लिए गांव के साहूकारों से ६५ हजार रूपये कर्ज लिया था। कुछ महीने पहले लकवा ग्रस्त हो जाने के कारण चलने फिरने में वह असमर्थ हो गया था। उधर आए दिन साहूकार कर्ज वसूली के लिए उस पर दबाव बनाते थे। उसने अपनी जमीन भी गिरवी रख दी। इन परिस्थितियों को लेकर वह बेहद तनाव में था। अन्त में उसने आत्महत्या को ही अपना रास्ता चुन लिया।
समाजवादी पार्टी के सत्ता में आने के बाद अब तक बुन्देलखण्ड में ३६ किसान आत्महत्या कर चुके हैं। यहां किसानों की खुदकुच्ची का सिलसिला लगातार जारी है। यहां किसान कर्ज के बोझ में दबे हैं और खुदकुच्ची कर रहे हैं। समाजवादी पार्टी ने अपने घोद्गाणा पत्र में किसानों को सपना दिखाया था कि उनका ५०० करोड़ का कर्ज माफ कर दिया जाएगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट का स्पद्गट आदेच्च है कि किसी किसान पर कर्ज वसूली का दबाव नहीं बनाया जाए। कोर्ट ने सरकार से भी ऐसी सखत नीति बनाने से मना किया जिससे किसान आत्महत्या पर मजबूर हों लेकिन अदालत के इस आदेच्च का पालन नहीं हो रहा है। बैंक और वित्तीय संस्थान कर्ज में डूबे किसानों से वसूली के लिए सखत रवैया अपना ही रहे हैं। सरकारी आंकड े ही कहते हैं कि बुंदेलखंड में वर्द्गा २०१० में ५८३ किसानों ने आत्महत्या की थी। पिछले साल तो आत्महत्या का आंकड ा छह सौ को पार कर गया। २०१० में बुदेलखंड के किसानों पर ३६१३ करोड रूपए का कर्ज था जो पिछले साल बढ कर ४३७० करोड रूपये हो गए। एक आकलन के अनुसार बुंदेलखंड के किसान पचास हजार से आठ लाख रूपये के कर्जदार हैं। राजनीतिक कारणों से ही सही केंद्र सरकार ने बुदेलखंड में विकास की कई योजनाएं चलाईं और विच्चेद्गा पैकेज भी दिया।
तत्कालीन मुखयमंत्री मायावती ने भी घोद्गाणाओं का प्रतिद्वंद्वी पासा फेंका। लेकिन हालत और बदतर होती गई। जबकि मायावती सरकार के नसीमुद्दीन सिद्दीकी जैसे अधिकांच्च ताकतवर मंत्री बुंदेलखंड इलाके से थे। मुखयमंत्री अखिलेच्च यादव की सरकार में बुंदेलखंड इलाके से कोई मंत्री नहीं है। सपा के झांसी से दो और बांदा तथा चित्रकूट से एक-एक विधायक जीत कर विधानसभा में पहुंचे हैं। कर्ज माफी के वायदे के अलावा किसानों की उम्मीद अब इलाहाबाद उच्च न्यायालय पर भी टिकी है।
बांदा के बबेरू प्रखंड के संतोद्गा सिंह चार बीघा जमीन के मालिक थे। उनका कर्ज ब्याज बढ़ने के साथ ८० हजार रूपये तक पहुंच गया था। उन्होंने तुलसी ग्रामीण बैंक से कर्ज लिया था। कर्ज अदा करने में असमर्थ ४५ साल के संतोद्गा ने पिछले मई में आत्महत्या कर ली। संतोद्गा के परिवार में उनकी विधवा के अलावा पांच लड किया हैं जिनके सामने अब भुखमरी की स्थिति है। संतोद्गा का परिवार अब अपने पेट की आग बुझाने के लिए चार बीघा जमीन को बेचने जा रहा है। चित्रकूट के कर्वी प्रखंड के रसीन गांव के भानुमति के परिवार की हालत और भी खस्ता है।
रसीन बांध बनाने के लिए उसकी बारह बीघा जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया और उसे कोई मुआवजा नहीं दिया गया। हताच्च भानुमति के बेटे ब्रज मोहन ने आत्महत्या कर ली। ऐसी घटनाएं बुदेलखंड में आम हैं। खुद को किसानों की पक्षधर बताने वाली उत्तर प्रदेच्च की समाजवादी पार्टी की सरकार के लिए किसानों की आत्महत्या का मसला गंभीर चिंता और आत्ममंथन दोनों का विद्गाय है। क्या जमीन पर भी सपा की नीतियां काम कर रही हैं या यह केलव हवा-हवाई हैं, कहीं यह केवल मंच का प्रपंच तो नहीं है। किसानों की जमीनें छीनी जा रही हैं। सर्राटेदार सड़कों के लिए, आलीच्चान इमारतों के लिए, पूंजी घरानो के फायदे के लिए खेती की जमीनें छीन कर विकास का नारा दिया जाएगा तो किसानों का हित कैसे होगा ? उल्लेखनीय है कि देच्च में हर महीनें ७० किसान कर आत्महत्या कर रहे हैं। सरकार की तमाम तकरीरों और फर्जी बयाने के समानान्तर कर्ज के बोझ से दबे किसानों की आत्महत्या जारी है। यह आधिकारिक आंकड ा भी चौंकाने वाला ही है कि देच्च में हर महीने ७० से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं। देच्च में २००८ से २०११ के बीच देच्च भर में ३,३४० किसानों ने आत्महत्या की। इस तरह से हर महीने देच्च में ७० से अधिक किसान आत्महत्या कर रहे हैं। कृद्गिा मंत्रालय के कृद्गिा एवं सहकारिता विभाग कहता है कि २००८ से २०११ के दौरान सबसे अधिक महाराद्गट्र में १,८६२ किसानों ने आत्महत्या की। आंध्रप्रदेच्च में १,०६५ किसानों ने आत्महत्या की। कर्नाटक में इस अवधि में ३७१ किसानों ने आत्महत्या की। इस अवधि में पंजाब में ३१ किसानों ने आत्महत्या की जबकि केरल में ११ किसानों ने कर्ज से तंग आ कर मौत को गले लगाया।
देच्च भर से सबसे अधिक किसानों ने सूदखोरों से कर्ज लिया है। देच्च में किसानों के १,२५,००० परिवारों ने सूदखोरों एवं महाजनों से कर्ज लिया जबकि ५३,९०२ किसान परिवारों ने व्यापारियों से कर्ज लिया। बैंकों से १,१७,१०० किसान परिवारों ने कर्ज लिया जब कि कोओपरेटिव सोसाइटी से किसानों के १,१४,७८५ परिवारों ने कर्ज लिया। सरकार से १४,७६९ किसान परिवारों ने और अपने रिच्च्तेदारों एवं मित्रों से ७७,६०२ किसान परिवारों ने कर्ज लिया।
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दावा अस्वीकरण – इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और यह जरूरी नहीं कि आई.एन.वी.सी उनसे सहमत हो।