दिल्ली,
वाराणसी से कांग्रेस के उम्मीदवार का ऐलान अभी नहीं हुआ है और हर दिन एक नया नाम उभर कर सामने आता है। दिग्विजय सिंह से लेकर अहिभूषण सिंह, राजेश मिश्रा से लेकर अजय राय तक कई नाम हवा में हैं। राशिद अल्वी ने भी इस लिस्ट में अपना नाम जोड़ लिया है यह कहते हुए कि पार्टी कहे तो वो मोदी के खिलाफ लड़ने को तैयार हैं। चिदंबरम ही ऐसे हैं जिन्होने ने साफगोई से अपने नाम आगे करने से मना कर दिया।
ग़ौरतलब है कि वित्तमंत्री पी चिदंबरम से जब पूछा गया कि क्या वह बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी से लड़ने के लिए अपना नाम आगे करेंगे? चिदंबरम ने अपनी हाजिर जवाबी का परिचय देते हुआ कहा कि काश वह ऐसा कर पाते, लेकिन उन्हें हिंदी नहीं आती, इसलिए वह वाराणसी में चुनाव प्रचार नहीं कर पाएंगे। उन्होने सवाल को मोदी की तरफ उछालते हुए जोड़ा कि मोदी भी शिवगंगा से लड़ना नहीं चाहेंगे।
चिदंबरम लोकसभा चुनाव लड़ने से पहले ही इनकार कर चुके हैं। इसके बाद उनके संसदीय क्षेत्र शिवगंगा से उनके बेटे कार्ती चिदंबरम को टिकट दिया गया है। वह क्यों नहीं लड़ रहे यह पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि पिछले 30 साल में वह 8 चुनाव लड़ चुके हैं और अब जिंदगी में कुछ दूसरे काम करना चाहते हैं, जिनमें लिखना पढ़ना और पुराने दोस्तों से मिलना जुलना शामिल है। क्या वह हार के डर से नहीं लड़ रहे यह पूछे जाने पर चिदंबरम ने कहा कि ऐसा होता तो 1999 की हार के बाद वह 2004 में ही नहीं लड़ते। लेकिन 2004 और 2009 में जीतने के बाद 2014 हार के डर का सवाल नहीं।
चिदंबरम चाहे जो कहें लेकिन यूपीए सरकार के खिलाफ एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर और तमिलनाडु में जयललिता से उनकी राजनीतिक दुश्मनी बहुत बड़ी वजह है कि चिदंबरम ने नहीं लड़ने का फैसला किया। इसके अलावा राहुल गांधी जिस तरह से युवा नेताओं को तरजीह दे रहे हैं, ऐसे में कार्ती चिदंबरम के लिए अच्छा मौका है अपना राजनीतिक भविष्य बेहतर बनाने का। हालांकि चिदंबरम ने यह भी साफ कर दिया है कि वह राजनीति से संन्यास नहीं ले रहे।