“रेगिस्तान में कैक्टस भी अपने आपको वृक्ष मानता”

{संजय कुमार आजाद**}
भारतीय लोकतंत्र वंशवाद की विषवेल में लिपटी है,जो अपनी मुक्ति की आकांक्षा की वाट जोह रही है .२०१४ का आम चुनाव इस मायने में मील का पत्थर साबित होगा. भारत के इतिहास में यह चुनाव भारत माता को परम वैभव तक ले जाने के लिए लड़ा गया चुनाव होगा.वंशवाद के स्थान पर राष्ट्रवाद को प्रतिष्ठित करने के लिए ही २०१४ का चुनाव होगा.युवा भारत का स्वप्न को साकार कर सशक्त भारत,एक भारत और श्रेष्ठ भारत के लिए लड़ा गया २०१४ का आम चुनाव लोकतंत्र के इतिहास में स्वर्णिम काल के रूप में दर्ज होगा.

स्वस्थ लोकतंत्र के लिए राजनितिक दल ओक्सिजन के सामान है किन्तु यदि जो राजनितिक दल वंशवाद के बेल से लिपटी है तो वह कार्वन डाय आक्साइड के सामान प्राणघातक है.१९४७ से ही भारत के वंशवाद को पोषित करने वाली राजनीति ने इस देश के राष्ट्रवादी दलों को बरगद और पीपल की तरह नष्ट कर उसके स्थान पर क्षेत्रीय दल रूपी  यूकोलिप्टस को लगाया है ऐसे में इन वंशवादी दलों सहित क्षेत्रीय दल रूपी  यूकोलिप्टस से भारत के लोकतंत्र को बचाने का सन्देश लेकर यह चुनाव आई है.भारत का विकृत इतिहास जो हमें बताया गया वह सत्य से कोसों दूर है.यह इतिहास वंशवाद का फैलाया इंद्रजाल है और इसी इंद्रजाल से हमें निकलना है.

भारत की संस्कृति हिन्दू सस्कृति है और जिसकी संस्कृति होती उसी का राष्ट्र होता है.उदार हिन्दू संस्कृति ने ना सिर्फ आघात सहा बल्कि उसका प्रवल प्रतिकार भी किया है.हिन्दू इतिहास स्वर्णिम इतिहास और वीर भोग्या वसुंधरा का इतिहास रहा है.किन्तु ए वंशवादी रूपी पालकी को ढ़ोनेवाले गुलाम इतिहासकारों ने हिन्दूयों को कायरता का पर्याय बनाने की धृष्टता अपने तोड़-मरोड़ कर लिखी पुस्तकों में की है.इसी कायरता को वीरता से ज़वाव देने का समय अब अपने दहलीज़ पर दस्तक दे रही है.भारत की सनातन ऋषि परम्परा में जो ज्ञान विज्ञान दिया उसके सहारे विश्व प्रकाशमान है किन्तु भारत यहाँ दीपक तले अन्धेरा है तो इसी इस्लामी-अंग्रजी-वंशवादी परम्परा के कारण है जिसने इस ज्ञान विज्ञान को कूड़े के डाला. 

भारतीय सनातन परम्परा में भारत का कण-कण पुण्यभूमि है.इस पुण्यभूमि भारत में काशी का अतिविशिष्ट पूज्य स्थान रहा है .भारत की सांस्कृतिक राजधानी और ज्ञान की तपोभूमि के रूप में विश्व विख्यात काशी सदैव हिन्दुओं के सहनशीलता और वीरता का प्रतीक रहा तभी तो बर्वर इस्लामी आताताई और मानवता का शत्रु ओरंगजेब द्वारा १६६९ में पवित्र विश्वनाथ जी मंदिर को विध्वंस करने के बाद भी काशी के हिन्दुओं ने उस इस्लामी आतातियो को भी प्रश्रय देने से परहेज नही किया.भय से नहीं अपितु हिंदुत्व के मूल वसुधैव कुटूम्वकम के कारण इसके सह अस्तित्व की भावना के बशिभुत होने के कारण दिया था .जिसने भी काशी को बरण किया उसे काशी ने स्वीकारा यही काशी की विशेषता है जो कावे में संभव नही है,और इस वार के चुनाव में काशी एक बार फिर भारत के भाग्य को बदलने को बेचैन है.गंगा की अविरल धारा निर्मल हो जीवनदायी बनने को बेचैन है ,श्री सोमनाथ जी की भाति श्री विश्वनाथ जी भी अपनी पारलौकिकता को भारत भूमि पर फैलाने को उद्दत हैं.

२०१४ का चुनाव भारत की सांस्कृतिक राजधानी काशी विश्वनाथ जी के आशीर्वाद से भारत को विश्व गुरु बनाने की शुरुयात है जिसे अब कोई बाबरी-ओरंगजेबी आताताई नही रोक सकता है क्षेत्रीय दल यूकोलिप्टस की तरह शीघ्र बढ़ते हैं किन्तु जो हश्र यूकोलिप्टस उपजाऊ भूमि को करती वही हश्र लोकतंत्र को क्षेत्रीय दल कर रहे हैं. इसका परिणाम भारत के लोकतंत्र ने राष्ट्रिय राजधानी दिल्ली में भुक्ता. यूकोलिप्टस की भाँती बढ़ा दिल्ली में ये दल लोकतंत्र के लिए धब्बा रहा है.वंशवाद से त्रस्त भारतीय लोकतंत्र पर यह दल कोढ़ में खाज की तरह है.और इस खाज से मुक्ति दिलाना हर राष्ट्रवादी भारतीय का पहला लक्ष्य है. इसी के परिपेक्ष्य में पावन नगरी काशी इस बार इस खाज की अचूक दवा वर्ष २०१४ में ही देगी ऐसा विश्वास राष्ट्रवादी नागरिकों को है.यूकोलिप्टस की तरह पनपते ऐसे दल न देश हित में ना समाज हित में और ना ही लोकतंत्र के लिए सार्थक है,

जिस तरह बरगद के निचे पौधे तो अंकुरित हो जाते किन्तु बसंत का आनंद नही ले पाता उसी तरह आज राष्ट्रवाद रूपी बरगद के नीचे अंकुरित हो चुके ए क्षेत्रीय दल अपनी अस्तित्व बचाने की ज़द्दोजेहाद में हैं.१६वी भारतीय आम चुनाव में इस बार हर हाल में ऐसे क्षेत्रीय दलों से लोकतंत्र को निजात मिलानी चाहिए ये समय की मांग है.भारत की संप्रभुता को क्षेत्रीयता में बाटने बाला देश के एकता को साम्प्रदायिकता में बाटने वाला सत्ता के लिए अखंडता को तार-तार करने बाले ऐसे दल लोकतंत्र के लिए नासूर से कम नहीं है.यदि वंशवादी दल कौरव है तो ये क्षेत्रीय दल येन-केन प्रकारेण उन कौरवों के ही सहचर हैं और वर्ष २०१४ का चुनाव वंशवादी कौरव और राष्ट्रवादी पांडव की सेनाओं के वीच है जहां श्री कृष्ण के रूप में आम नागरिक है.

आज क्षेत्रीय दल रेगिस्तान में उगने वाले उस केक्टस की तरह हैं जो अपने आपको भी बृक्ष ही मानता है.भारत की शस्य श्यामला धरा के लिए ना केक्टस अनुकूल है और ना ही यूकोलिप्टस अनुकूल है उसी तरह विश्व में लोकतंत्र की जननी भारत के लिए भी ये क्षेत्रीय दल अनुकूल नहीं है. अब भी यदि हम नहीं जागे तो अपना भी लोकतंत्र का हश्र उस डायनासोर की भाँती होना ही है.

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A**संजय कुमार आजाद
पता : शीतल अपार्टमेंट,
 निवारणपुर रांची 834002
मो- 09431162589 (*लेखक स्वतंत्र लेखक व पत्रकार हैं) *लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं ।

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