आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़ल

मुद्दतों ख़ुद की कुछ ख़बर न लगे,
कोई अच्छा भी इस क़दर न लगे.

मैं जिसे दिल से प्यार करता हूं,
चाहता हूं उसे ख़बर न लगे.

वो मेरा दोस्त भी है दुश्मन भी,
बद्दुआ दूं उसे, मगर न लगे.

रास्ते में बहुत अंधेरा है,
डर है मुझको के’ तुझको डर न लगे.

बस तुझे उस नज़र से देखा है,
जिस नज़र से तुझे नज़र न लगे.

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Alok Srvastvaआलोक श्रीवास्तव,

पत्रकार आजतक एवं कवी – लेखक

निवास दिल्ली ,

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