आईना दिखाने वालों को आईना देखने से परहेज़ क्यों?

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md{तनवीर जाफ़री**}
                        मीडिया के वास्तविक चरित्र की तर्जुमानी करता हुआ यह शेर मीडिया जगत में बेहद प्रचलित है- ‘न स्याही के हैं दुश्मन न सफेदी के हैं दोस्त। हमको आईना दिखाना है दिखा देते हैं।।’ परंतु स्वतंत्रता से लेकर अब तक भारतवर्ष में मीडिया से जुड़ी तमाम वास्तविकताएं ऐसी हैं जो मीडिया के अपने चरित्र को चुनौती देती आ रही हैं। परंतु दूसरों को आईना दिखाने वाले अपने-आप को आईने में देखने से परहेज़ कर रहे हैं। अरविंद केजरीवाल द्वारा भ्रष्ट एवं पक्षपातपूर्ण मीडिया पर उंगली उठाने के बाद तो कम से कम ऐसा ही देखा जा रहा है। जिस प्रकार स्वतंत्रता से पूर्व महात्मा गांधी,गणेश शंकर विद्यार्थी, पंडित जवाहर लाल नेहरू तथा लाला लाजपत राय जैसे कई महान नेताओं ने मीडिया के माध्यम से अपनी आवाज़ भारतवासियों तक पहुंचाने के लिए मीडिया का किसी न किसी रूप में सहारा लिया उसी प्रकार यह सिलसिला स्वतंत्रता के बाद भी जारी रहा। अंतर केवल इतना रहा कि स्वतंत्रता पूर्व भारतीय नेताओं ने मीडिया का प्रयोग भारतवासियों के जनजागरण के लिए किया। अंग्रेज़ों के विरुद्ध देशवासियों को लामबंद करने के लिए किया। तथा ब्रिटिश दमनकारी नीतियों को देश के कोने-कोने तक पहुंचाने के लिए किया तो स्वतंत्रता के बाद कई नेताओं द्वारा इसी मीडिया का प्रयोग किसी न किसी रूप में अपनी दलीय राजनीति को साधने के लिए तथा निजी राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए किया जाने लगा। चाहे वह पंडित जवाहरलाल नेहरू के संरक्षण में निकाले जाने वाले नेशनल हैरल्ड,कौमी आवाज़ व नवजीवन जैसे समाचार पत्र रहे हों या दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करने वाले गार्जियन व पांचजन्य जैसे समाचार पत्र। ज़ाहिर है जब भारतीय संविधान में समाचार प्रकाशित करने या मीडिया हाऊस खोलने की आज़ादी के प्राप्त अधिकार के अंतर्गत् किसी विशेष विचारधारा या विशेष राजनैतिक दल से जुड़ा कोई भी साधारण भारतीय नागरिक इस क्षेत्र को व्यवसाय समझते हुए इसमें प्रवेश कर सकता है ऐसे में मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है। 

                        परंतु इस हकीकत के बावजूद न सिर्फ मीडिया अब भी निष्पक्ष रूप से अपनी बात कहने व समाचार प्रकाशित करने का दावा करता है बल्कि देश की वह जनता भी जोकि मीडिया की बुनियादी हकीकतों से नावािकफ है वह भी मीडिया पर काफी हद तक विश्वास करती है। परंतु ऐसा भी नहीं है कि देश के सभी मीडिया घराने, समस्त टीवी चैनल्स व समाचार पत्र अपनी पक्षपातपूर्ण या पूर्वाग्रही राय रखते हों। हां इतना ज़रूर है कि समय बीतने के साथ-साथ मीडिया के चाल,चरित्र व चेहरे में काफी अंतर आता जा रहा है। देश के कई बड़े नेता,अपराधी, भ्रष्ट व बाहुबली,व्यवसायी,उद्योगपति यहां तक कि ‘धर्म उद्योग’ से जुड़े तथाकथित धर्मगुरू अपनी उपलब्धियों को जताने व गिनाने की खातिर तथा अपने विरोधी पर प्रहार करने के लिए व अपनी रक्षा के चलते या अपने बचाव व प्रशासन को प्रभावित करने अथवा व्यवसायिक लाभ के उद्देश्य से अपना मीडिया हाऊस शुरु कर चुके हैं। कोई टेलीविज़न चैनल चला रहा है तो कोई अखबार या मैगज़ीन निकाल रहा है। अच्छे से अच्छे समूह संपादक भी इन्हें पैसों की लालच में मिल जाते हैं। नए-नवेले प्रशिक्षु पत्रकारों की टीम भी इनके साथ खड़ी हो जाती है। यह और बात है कि ऐसे पत्रकार कुछ ही समय में अपने विशेष ‘हुनर’ के बल पर सर्व साधन संपन्न हो जाते हैं। कहा जा सकता है कि देश की लचर एवं भ्रष्ट व्यवस्था का लाभ उठाते हुए बहती गंगा में इस प्रकार के मीडिया घराने भी अपना हाथ धो रहे हैं।

                        परंतु जिस प्रकार देश में राजनैतिक विकल्प के रूप में आम आदमी पार्टी का उदय हो रहा है उसे देखकर जहां सभी क्षेत्रों के भ्रष्ट,बेईमान व ब्लैकमेलिंग करने वाले तथा रिश्वतखोर प्रवृति के लोग घबराए हुए हैं वहीं भारतीय मीडिया का भी एक ऐसा ही बड़ा वर्ग आम आदमी पार्टी विशेषकर अरविंद केजरीवाल से भयभीत है। हालांकि इसमें भी कोई शक नहीं कि आज अरविंद केजरीवाल व आम आदमी पार्टी की राष्ट्रव्यापी शोहरत का कारण भी सिर्फ मीडिया ही है। परंतु समय के साथ-साथ जैसे-जैसे अरविंद केजरीवाल अपने इरादों को ज़ाहिर कर रहे हैं उसे देखकर ऐसा प्रतीत होने लगा है कि यदि कभी आम आदमी पार्टी के हाथों में सत्ता शक्ति आई तो मीडिया सहित किसी भी व्यवस्था को वह दोनों हाथों से देश के बहूमूल्य धन की लूट इस तरह हरगिज़ नहीं करने देगी। और शायद यही वजह है कि कल तक अन्ना हज़ारे व अरविंद केजरीवाल को अपने सिर-आंखों पर बिठाने वाला तथा उन्हें अर्श तक पहुंचाने वाला मीडिया अब उनको अपनी नज़रों से गिराने की राह पर चलने लगा है। अब वही मीडिया अरविंद केजरीवाल की नकारात्मक बातों को बढ़ा-चढ़ा कर पेश कर रहा है। उनकी मामूली सी बातों का बतंगड़ बनाया जा रहा है। उदाहरण के तौर पर आम आदमी पार्टी से जुडऩे वाले देश के विशिष्ट व महत्वपूर्ण  लोगों की चर्चा यदि मीडिया विशेषकर टीवी चैनल्स में कम है तो पार्टी के नेताओं की परस्पर फूट या नकारात्मक बयानबाज़ी की चर्चा अधिक। केजरीवाल के मुंबई दौरे में भीड़ व सफलता की चर्चा कम, लालबत्ती पार करने,ट्रैिफक नियमों का उल्लंघन करने तथा मेटल डिटेक्टर तोडऩे की चर्चा ज़्यादा।

                        कुछ ऐसा ही पिछले दिनों उस समय देखने को मिला जबकि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के वरिष्ठ पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी द्वारा अरविंद केजरीवाल से लिए गए एक साक्षात्कार के अंत में हो रही एक अनौपचारिक बातचीत का चोरी किया हुआ एक अंश सोशल मीडिया के माध्यम से सार्वजनिक किया गया। हालांकि इस बातचीत में ऐसा कुछ भी विशेष नहीं था जिसे लेकर अरविंद केजरीवल, पुण्य प्रसून वाजपेयी या आजतक टीवी चैनल को कठघरे में खड़ा किया जा सके। परंतु इस विवादित टेप को लेकर देश का अधिकांश मीडिया अरविंद केजरीवाल व पुण्य प्रसून वाजपेयी जैसे पत्रकार पर उंगलियां उठाने लगा। इसे िफक्सिंग तथा सेटिंग जैसा नाम दिया जाने लगा। यहां हम उस विवादित अंश का उल्लेख करना चाहेंगे जिसे लेकर भारतीय जनता पार्टी सहित देश का अधिकांश मीडिया घराना अरविंद केजरीवाल को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहा था। साक्षात्कार का दृश्य कुछ इस प्रकार है कि पुण्य प्रसून वाजपेयी अपने कठोर सवालों के साथ अपना साक्षात्कार पूरा कर लेते हैं। लाईट और कैमरा औपचारिक रूप से बंद कर दिए जाते हैं। परंतु दरअसल टेक्नीशिन उसे बंद नहीं करते। केजरीवाल व वाजपेयी के माईक उनके पास ही होते हैं। और शुरु होती है साक्षात्कार के बाद की वह बातचीत जो आमतौर पर प्रत्येक साक्षातकार के बाद हर पत्रकार से हर साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति द्वारा की जाती है। वाजपेयी- आप उस बात को बोले नहीं। अरविंद-अगर मैं ऐसा कहता तो कुछ लोगों को गलत मैसेज जाता। वे नाराज़ हो जाते। मैं उन बातों में पडऩा नहीं चाहता। जिससे एक तबका नाराज़ हो जाए। अरविंद-वह वाला थोड़ा थ्योरेटिकल है, कारपोरेट वाला जो आप बोल रहे थे ना’ । पुण्य प्रसून-अच्छा। अरविंद-काफी थ्योरेटिकल है इसलिए मैं उसमें नहीं जा रहा था। उससे जितना मिडल क्लास है वह एंटी हो जाएगा कि हम प्राईवेटाइज़ेशन के िखलाफ हैं, कंपनियों के िखलाफ हैं। इसलिए मैं उसमें नहीं आ रहा था। उस डिबेट में नहीं पड़ रहा था जानबूझ कर। बाकी पूछिए। पूण्य प्रसून-और ये हाशिए पर जो 80 फीसदी समाज है उसपे बोलें। अरविंद -इसपे बोलेंगे। पुण्यप्रसून-इसपे अब आ जाईए ना। अरविंद-बिल्कुल अब यह बोलना है भूल गया था मैं बोलना। पुण्यप्रसून- अगर हम उनके लिए कर रहे हैं तो। अरविंद-मैं यह नहीं कह सकता कि ये सारे ही प्राईवेट कंपनी वाले कर रहे हैं। और कोई भी सरकार आ जाए प्राईवेट से कमीशन लेती है। हम सारे प्राईवेट सेक्टर को नकार देंगे, सारा प्राईवेट बुरा भी नहीं है। पुण्यप्रसून-बहुत ही क्रांतिकारी हो गया है यह इंटरव्यू,बहुत क्रांतिकारी। अरविंद उसी को ज़्यादा चला दीजिएगा। पुण्यप्रसून-नहीं नहीं अरे वह तो चलेगा, भगतसिंह वाला हिस्सा, बड़ा रिएक्शन आएगा इसपे। 

                        अब उपरोक्त बातचीत में ऐसा कुछ विशेष नहीं है जोकि अन्य किसी भी दल के नेताओं द्वारा साक्षात्कार के पश्चात की जाने वाली अनौपचारिक बातचीत से भिन्न हो। कौन नेता नहीं कहता कि उसके साक्षात्कार के उन अंशों को अधिक प्राथमिकता से प्रसारित कीजिएगा जिनसे सकारात्मक परिणाम मिलने वाले हों? और जवाब में भी पत्रकार उस समय साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति की हां में हां ही मिलाता है। यदि इस पूरे वास्तविक इंटरव्यू को गौर से देखा जाए तो इसमें वाजपेयी ने केजरीवाल से अपनी ओर से कठिन से कठिन व टेढ़े व तीखे सवालों के तीर छोडऩे में कोई कसर उठा नहीं रखी थी। िफक्सििंग या साक्षात्कार का मापदंड तो साक्षात्कार की प्रश्रावली से मापा जा सकता है न कि साक्षात्कार के बाद की अनौपचारिक बातचीत से। परंतु बड़े आश्चर्य की बात है कि पेड मीडिया के भागीदार मीडिया व पार्टियां, विज्ञापन के बल पर अपनी छवि चमकाने वाले दल व नेता तथा अपने निजी स्वार्थ के लिए मीडिया में घुसपैठ कर चुके लोग जोकि वास्तव में अरविंद केजरीवाल के भ्रष्टाचार विरोधी रुख को देखकर स्वयं भयभीत हो रहे हैं वे केजरीवाल की इस बातचीत के बहाने से उन्हें कठघरे में खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि प्रसारित किया गया वास्तविक साक्षात्कार पूरी तरह निष्पक्ष व पत्रकारिता का दायित्च निभाता हुआ नज़र आता है। केजरीवाल द्वारा भ्रष्ट मीडिया को जेल भेजने की बात कहने को पूरे मीडिया जगत का अपमान बता रहे हैं। आज ज़रूरत इस बात की है कि देश के सभी मीडिया घराने अपनी निष्पक्षता का प्रमाण देते हुए जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश करें तथा किसी एक दल अथवा विचारधारा पर अपनी विशेष कृपा बनाने के बजाए साफ-सुथरे एवं वास्तविक दर्पण का काम करें। 

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Tanveer Jafri**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc. He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.Contact Email : tanveerjafriamb@gmail.com
1622/11, Mahavir Nagar Ambala
City. 134002 Haryana
phones 098962-19228 0171-2535628
*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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