गोपाल प्रसाद**
सरकार, सरकारी योजनाएँ और तमाम सरकारी गतिविधियाँ हमारे दैनिक जीवन में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं । आम आदमी से जुड़े कई मामले प्रशासन में
बैठे भ्रष्ट, लापरवाह या अक्षम कर्मचारियों/अधिकारियों के कारण फलीभूत
होने के बजाय कागज का पुलिंदा बनकर रह जाती है । सन् १९४७ में मिली
कल्पित आजादी के बाद से अब तक हम मजबूर थे । व्यवस्था को कोसने के सिवाय
कुछ नहीं हैं, क्योंकि आज हमारे पास ‘सूचना का अधिकार’ (RTI) नामक औजार
है, जिसका प्रयोग करके हम सरकारी विभागों में अपने रूके हुए काम आसानी से
करवा सकते हैं । इस हेतु हमें ‘सूचना का अधिकार अधिनियम २००५’ की
बारिकियों को ध्यानपूर्वक समझना और समझाना होगा । सामाजिक क्षेत्र में यह
कानून ग्राह्य हो, इसके लिए बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं,
महिलाओं, युवाओं के विशेष रूप से जागरूक किए जाने की आवश्यकता है । भगत
सिंह ने क्रांति को जनता के हक में सामाजिक एवं राजनीतिक बदलाव के रूप
में देखा था । सूचना का अधिकार (RTI) को हल्के अंदाज में न लेकर एक बड़े
आंदोलन के रूप में देखें, सोंचे एवं मूल्यांकन करें तभी वास्तव में इसकी
सार्थकता सिद्ध होगी । ६३ साल पूर्व मिली आजादी वास्तव में सत्ता के
अदला-बदली की औपचरैकता भर बनकर रह गई । शोषितों का शोषण नहीं रूक बल्कि
आम आदमी की परेशानियाँ और बढ गई । आज ज्यादातर लोग प्रशासन/व्यवस्था को
मन ही मन गाली देकर अपनी भड़ास निकल लेते हैं, परन्तु क्या इससे कुछ
समाधान मिल सकता है । समाधान हेतु व्यक्ति को व्यवस्था परिवर्तन का अंग
बनकर उस दिशा में सक्रिय भूमिका निभाने हेतु तत्पर होना पड़ेगा । क्या है
सूचना का अधिकार अधिनियम २००५? ःइस अधिनियम के तहत आवेदन करके हम किसी भी
विभाग से कोई भी जानकारी माँग सकते हैं और अधिकारी/विभाग माँगी गई सूचना
को उपलब्ध करवाने के लिए बाध्य है, बशर्ते वह सूचना माँगने के तरीके की
शैली में हो । यही बाध्यता/जबाबदेही ना केवल पारदर्शिता की गारंटी है,
बल्कि भ्रष्टाचार के उन्मूलन का तथ्य भी निहित है । वास्तव में यह
अधिनियम आम आदमी के लिए आशा की किरण नहीं बल्कि आत्मविश्वास भी लेकर आया
है । इस औजार रुपी अधिनियम का प्रयोग करके हम अपनी आधी-अधूरी आजादी को
संपूर्ण आजादी बना सकते हैं । इस संपूर्ण आजादी को पाने के लिए अधिनियम
को गहराई से अध्ययन कर ज्यादा से ज्यादा लोगों को जागरूक कर संपूर्ण
क्रांति का शंखनाद करना पड़ेगा । सूचना का अधिकार करेगा क्रांति का शंखनाद
ःभगत सिंह ने कहा था- हमारी लड़ाई, हमारी कमजोरियों के खिलाफ है । हम ऐसे
उज्जवल भविष्य में विश्वास करते हैं जिसमें प्रत्येक व्यक्ति को पूर्ण
शांति और स्वतंत्रता का अवसर मिल सके । क्रांति की तलवार विचारों की सान
पर तेज होती है और विद्रोह तो सिर्फ मालिकों के परिवर्तन द्वारा सड़ाध को
ही आगे बढ़ाते हैं । लोगों के परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग चेतना की
जरूरत है । क्रांति एक ऐसा करिश्मा है, जिससे प्रकृति भी स्नेह करती है,
क्रांति बिना सोची-समझी हत्याओं और आगजनी की दरिन्दगी भरी मुहिम नहीं है
और न ही क्रांति मायूसी से पैदा हुआ दर्शन ही है । वास्तव में भगत सिंह
के विचारों को जीवन में आत्मसात कर क्रियान्वित किए बिना क्रांति संभव
नहीं । वैचारिक क्रांति/आंदोलन को धार देने के साथ-साथ उस हेतु समयबद्ध
कार्यक्रम व दूरदर्शी योजना बनानी होगी तभी हम सफल हो सकते हैं और अपने
अधिकारों को पा सकते हैं । दूसरे के कंधों पर बंदूक रखकर चलाने के बजाय
हमें स्वयं को प्रशिक्षित करना चाहिए । जिंदगी के आम जरूरत की तरह आगे
आनेवाले समय में सूचना का अधिकार (RTI) भी एक महत्वपूर्ण आवश्यकता की
श्रेणी में आ जाएगी । सामाजिक परिवर्तन सदा ही सुविधा संपन्न लोगों के
दिलों में खौफ पैदा करता रहा है । आज सूचना का अधिकार धीरे-धीरे ही सही
परन्तु लगातार सफलता की ओर बढ़ रहा है । पुरानी व्यवस्था से सुविधाएँ
भोगनेवाला तबका भी इस अधिनियम का पैनापन खत्म करने की कोशिश में प्रारम्भ
से ही रहा है । कुछ सूचना आयुक्तों का रवैए से इस कानून का बंटाधार होने
की आशंका भी प्रबल हो गयी है । सूचना का अधिकार से जुड़े हुए कार्यकत्ताओं
का उत्पीड़न अभी भी जारी है और केन्द्रीय सूचना आयोग, केन्द्र एवं राज्य
सरकार उन कार्यकर्त्ताओं को पूर्णसुरक्षा देने, बेवजह तंग होने से बचाने
में असमर्थ है । इस हेतु उनकी कोई नीति/नियमावली ही नहीं है । कई महीनों
इंतजार के बाद भी माँगी गई सूचनाएँ नहीं मिलती या फिर अधूरी और भ्रामक
मिलती है । उसके बाद भी यदि कोई आवेदक, सूचना आयोग में जाने की हिम्मत भी
करता है, तब भी कई आयुक्त तो प्रशासन के खिलाफ कोई कार्रावाई नहीं करते
। स्थिति ऐसी है कि हम तमाम कोशिशों के बावजूद आज भी उसी जगह खड़े है,
जहाँ कई दशक पहले खड़े थे । क्रांतिकारियों की कुर्बानियाँ बेकार हो रही
है जिनके लिए आजाद हिंदुस्तान से आजादी के बाद वाला हिंदुस्तान ज्यादा
महत्वपूर्ण था । क्या उन क्रांतिकारियों को दी गई यातनाएँ नहीं झुका पाई?
हमारा उत्पीड़न या कोई भी असफलता क्या हमारे इरादों को तोड़ सकती है, यह
यक्षप्रश्न आज हमारे समक्ष खड़ा है ? सूचना का अधिकार से जुड़े
कार्यकर्त्ताओं को इस अधिकार को और अधिक मजबूती से प्रयोग करने एवं इसके
पूर्ण सशक्तिकरण गेतु संगठित एवं आंदोलित होना चाहिए । देश हमारा है,
सरकार भी हमारी है, इसलिए अपने घर को साफ रखने की जिम्मेवारी भी हम सबकी
है । इसलिए हमें अपने अधिकार की रक्षा हेतु अपने कर्तव्यों का पूर्ण पालन
करना चाहिए । क्या है (RTI) की कमियाँ?पुरानी कार्य-संस्कृति, पुरानी
सोंच, प्रशासनिक उदासीनता एवं बाबूशाही शैली में कार्य करनेवाले लोगों
में इस एक्ट को लेकर काफी बेचैनी है, और इस तरह के लोग (RTI) को अंदर ही
अंदर को सटे रहते हैं । इसके कारण ७० प्रतिशत आवेदकों को ३० दिनों में
कोई सूचना नहीं मिली । यदि मिली भी तो ३० प्रतिशत को ही सूचना मिली और वह
भी गलत, अपूर्ण या भ्रामक । आरटीआई में ऐसा कोई मैकेनिज्म ही नहीं बनाया
गया जिससे यह पता चल सके कि किस आवेदक को सूचना मिली या नहीं मिली और
नाही संबंधित विभाग । सेक्शन माँगी गई सूचना के जबाब की प्रतिलिपि ही
आरटीआई सेल में देने की नैतिक जिम्मेदारी ही पूरी करते हैं । आरटीआई सेल
में कर्मचारियों की भयंकर कमी है । आरटीआई के तहत आवेदकों का ढेर लगता जा
रहा है, परन्तु कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने हेतु प्रशासन का रवैया
उदासीन है, जो गंभीर एवं सोचनीय है । आरटीआई के सूखी सीट पर आने के लिए
कर्मचारी तैयार ही नही होते और जो कर्मचारी इस सेल में आने के लिए उत्सव
भी हैं उन्हें विभिन्न कारणों से यहाँ लगाया ही नहीं जाता । जन सूचना
अधिकारियों के समक्ष काम का अत्यधिक बोझ है । सूचना अधिकारियों को अपने
दैनिक कार्य के साथ-साथ आरटीआई का काम भी देखना पड़ता है और इसी दोहरे बोझ
की वजह से आरटीआई का कार्य प्रभावित होता है । ज्यादातर विभागों में
आरटीआई सेल में कोई कोऑर्डिनेटर ही नहीं है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके
कि आवेदक को ३० दिनों के भीतर और सही सूचना प्राप्त हुई अथवा नहीं । क्या
इस ओर प्रशासन/सरकार की नींद कभी टूटेगी या ऐसी ही चलेगा?
सूचना का अधिकार कानून की विशेषता :१. सूचना का अधिकार के तहत जमा किए गए
आवेदक का उत्तर ३० दिनों के अंदर देना आवश्यक है अन्यथा प्रतिदिन की देरी
के हिसाब से २५० रू० मात्र का जुर्माना देना पड़ सकता है । २. इस कानून के
तहत आप सरकारी निर्माण कार्यों का मुआयना भी कर सकते हैं । ३. अब आप
सरकारी निर्माण में प्रयोग की गई चीजों का नमूना भी माँग सकते हैं ।४.
किस अधिकारी ने फाईल पर क्या लिखा है, कि जानकारी भी प्राप्त कर सकते हैं
अर्थात् इस अधिकार का प्रयोग करके आप फाईल नोटिंग्स की प्रतिलिपि भी ले
सकते हैं ।
शिकायत भी कम नहीं : १. आवेदकों को सूचना का अधिकार के तहत आवेदन जमा
करवाने तक के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है ।२. सूचना आयोग में कानून का
कड़ाई से पालन नहीं करने से सरकारी अफसर अपनी मनमानी कर रहे हैं ।
छोटे-मोटे मामलों में तो सूचनाएँ मिल भी जाती है परन्तु नीतिगत मसलों,
बड़ी योजनाओं या फिर जहाँ किसी भ्रष्टाचार का अंदेशा हो तो सरकारी अधिकारी
चुप्पी साध लेते हैं । ३. सूचना का अधिकार का प्रचार-प्रसार स्वयंसेवी
संस्थाओं या फिर कुछ कार्यकर्ताओं द्वारा ही किया जा रहा है । सरकार अपनी
ओर से इस कानून के प्रचार की कोई जिम्मेवारी नहीं निभा रही है । सरकार इस
अधिकार के प्रचार-प्रसार में कोई रूचि नहीं ले रही है । उदाहरणस्वरूप
२००६-०७ के दौरान प्रिंट मीडिया को १०९ करोड़ रूपया और इलेक्ट्रानिक
मीडिया को १०० करोड़ रूपया का विज्ञापन किया गया परन्तु उनमें से एक भी
विज्ञापन सूचना का अधिकार अधिनियम २००५ के लिए नहीं था । ४. इस अधिनियम
के तहत तमाम सरकारी विभागों को जनसूचना अधिकारी तो नियुक्त करवा दिए
परन्तु सूचना अधिकारियों को आवश्यक सुविधाएँ नहीं दी । कई विभागों में तो
आरटीआई के बारे में प्रशिक्षण भी नहीं दी गई है । कहीं-कहीं आरटीआई सेल
को कमरा भी उपलब्ध कराया गया है । ५. सूचना आयोग में भी अदालतों की तरह
केसों का ढेर लगता जा रहा है । किसी केस की सुनवाई जल्दी नहीं हो पा रही
है । वास्तव में सूचना आयोगों में भी पर्याप्त संख्या में न तो आयुक्त
हैं न आवश्यक सुविधाएँ । ६. कई दागदार व्यक्तियों को भी सूचना
आयुक्त/सूचना अधिकारी बना दिया गया है । यदि उन्हें मौका मिला तो इस
कानून को तहस-नहस कर देंगे । ७. कई सूचना आयुक्त तो न्याय की सामान्य
प्रक्रिया तक नहीं जानते । न्याय करने के लिए दोनों पक्षों की सुनवाई
आवश्यक है परन्तु आयुक्त तो सिर्फ आवेदक को ही बुलाकर कुछ ही मिनटों में
सुनवाई पूरी कर देते हैं । कभी-कभी तो आवेदक के खिलाफ भी फैसला कर डालते
हैं ।
कैसे करें आरटीआई आवेदन :-१. सादा कागज पर ही आवेदन करें ।२. नकद, बैंक
ड्राफ्ट, बैंकर्स चेक या पोस्टल ऑर्डर से शुल्क जमा करें । जो भी बैक
ड्राफ्ट, बैकर्स चेक या पोस्टल बनवाएँ उन पर उस जनसूचना अधिकारी का नाम
हो जिससे सूचना माँगी जाय । ३. आवेदन-पत्र संबंधित जन सूचना अधिकारी को
स्वयं या डाक द्वारा भेजा जा सकता है । ४. आवेदनकर्ता को सूचना माँगने का
कारण बताना जरूरी नहीं है । ५. यदि सूचना माँगने वाला व्यक्ति गरीबी
रेखा से नीचे गुजर-बसर कर रहा है तो उसे कोई शुल्क नहीं देना होगा, लेकिन
उसे गरीबी रेखा के नीचे रहने का प्रमाणपत्र की छायाप्रति लगानी होगी । ६.
कोई भी व्यक्ति ग्राम पंचायत से लेकर राष्ट्रपति महोदय तक किसी ही
सरकारी कार्यालय से किसी भी अभिलेख, सलाह, प्रेस विज्ञप्ति, आदेश,
लॉगबुक, कान्ट्रैक्ट, रिपोर्ट आँकड़े, माजल आदि की सूचना प्राप्त कर सकता
है । ७. यदि ३० दिनो के भीतर सूचना नहीं मिलती है तो आपको अप्रील अधिकारी
के पास (जो उसी विभाग का वरिष्ठ अधिकारी होगा) प्रथम अपील दाखिल कर सकते
हैं । ८. यदि प्रथम अपील करने के ३० दिनों तक भी सूचना नहीं मिले तो
संबंधित सूचना आयोग में ९० दिनों के भीतर दूसरी अपील कर सकते हैं ।
कैसे करें शिकायत/ अपील :-१. यदि आवेदनकर्ता को किसी भी आधार पर कोई
सूचना देने से मना किया जाता है या ३० दिनों के भीतर सूचना नहीं मिलती है
तो प्रथम अपील अधिकारी के पास शिकायर/अपील की जा सकती है ।२. यदि
आवेदनकर्ता प्रथम अपील अधिकारी के निर्णय से भी असंतुष्ट हैं तो
आवेदनकर्त्ता राज्य सूचना आयोग के समक्ष द्वितीय अपील कर सकता है । ३.
यदि आवेदनकर्ता को सूचना अधिकारी का नाम नहीं बताया जाता है या फिर आवेदन
लेने से ही मना किया जाता है तो आवेदक राज्य सूचना आयोग के पास शिकायत कर
सकता है । ४. यदि आवेदनकर्त्ता को लगता है कि उससे माँगा गया शुल्क
अविश्वसनीय या मिथ्या है तो भी सूचना आयोग से शिकायत की जा सकती है । ५.
यदि आप साक्षर नहीं है या शारीरिक रूप में अक्षम हैं जो जनसूचना अधिकारी
की बाध्यता है कि वह आपकी मदद करे । ६. यदि जन सूचना अधिकारी की लापरवाही
की वजह से आपको कोई हानि हुई हो अथवा बार-बार सूचना आयोग के पास जाना पड़ा
हो तो आप व्यय-भार की भरपाई की माँग करें । केंन्द्रीय सूचना आयोग ने इसी
तरह के कुछ मामलों में आवेदकों को हरजाना दिलवाया है ।
नोट : ऐसी कोई भी जानकारी देश की संप्रभुता, अखंडता एवं सुरक्षा को
प्रभावित करती हो, विधायिका या संसद के विशेषाधिकार का हनन करें या
धारा-८ के अंतर्गत आती हो, ऐसी सूचना नहीं दी जा सकती है ।
– गोपाल प्रसाद (RTI ACTIVIST)**